RE: XXX Kahani छाया - अनचाहे रिश्तों में पनपती कामुकता
छाया के मानस भैया
अगले दिन मैं मानस भैया के पास के पास अपनी किताबें लेकर गई. उन्होंने मुझसे कई सारे प्रश्न किए जैसे वह जानना चाहते हैं कि मैंने अभी तक कितना ज्ञान अर्जित किया है. उसके पश्चात मानस भैया ने मुझे हर हर विषय को पढ़ने का तरीका बताया. मैं उनकी बातों से मंत्रमुग्ध थी कब दो-तीन घंटे बीत गए यह पता ही नहीं चला. वह पूरी तन्मयता से मुझे पढ़ा रहे थे. मेरी मां के खाना लेने लेकर आने के बाद ही उन्होंने मेरी पढ़ाई बंद की. मैं बहुत खुश थी.
यह सिलसिला अगले दो दिनों तक चला. तीसरे दिन जब वह मुझे पढ़ा रहे थे तो मुझे झपकी आ रही थी. उन्होंने मुझसे ध्यान देकर पढ़ने के लिए कहा तभी उनके कुछ पुराने दोस्त नीचे आकर आवाज देने लगे. उन्होंने कहा तुम पढ़ाई जारी रखो मैं थोड़ी देर में आता हूं. मुझे नींद आ रही थी. उनके जाते ही मैं उनके बिस्तर पर झपकी लेने लगी और जाने मुझे कब नींद आ गई. कुछ देर बाद मुझे अपने घुटने के ऊपर ठंडक का एहसास हुआ मैंने अपनी पलकें थोड़ी थोड़ी ऊपर की तो देखा मानस भैया खड़े थे उनका हाथ मेरे लहंगे को ऊपर की तरफ उठा रहा था. मैं थरथर कांपने लगी वह मेरे घुटने और पैरों को लालायित नजरों से देख रहे थे. मेरा घाघरा अब मेरी जांघों तक आ चुका था. मैंने इस कामुक परिस्थिति को यहीं पर विराम देना उचित समझा और करवट लेने लगी. मैंने देखा मानस भैया ने तुरंत मेरा लहंगा नीचे कर दिया और बोले
“छाया उठो पढ़ाई नहीं करनी है क्या?”
उनकी इस बात में हक भी दिखाई दे रहा था. मैं आंखे मीचती हुई उठ खड़ी हुई. मेरी धड़कने अब सामान्य हो गई थी पर मैं आगे पढ़ पाने की स्थिति में नहीं थी. मानस भैया के साथ मेरे रिश्ते का नया अध्याय शुरू होने वाला था. मैं उनसे नजरें नहीं मिला पा रही थी. बाकी कल पढ़ेंगे यह कहकर में मानस भैया के कमरे से चली आयी.
मानस भैया कल वापस दिल्ली जाने वाले थे. माँ पड़ोस में होने वाले किसी सांस्कृतिक समारोह में जा रही थी. उन्होंने मानस भैया को आवाज देकर बोला यदि कोई जरूरत हो तो छाया को आवाज दे देना. पता नहीं क्यों मुझे अंदेशा हो रहा था कि वह मुझसे मिलने जरूर आएंगे. मैंने एक सुंदर सा घाघरा और चोली पहनी तथा अपने कमरे में बिस्तर पर लेट गई. दस मिनट बीत गए अचानक मानस भैया की आवाज सुनाई दी वह मुझे पुकार रहे थे. मैंने जानबूझकर उनकी बात को अनसुना किया कुछ ही देर में वह मुझे ढूंढते हुए मेरे कमरे में आ गए. मैंने जैसा सोचा था ठीक वैसा ही हुआ मैं सोने का नाटक करती रही. मेरा घाघरा मैंने स्वयं अपने घुटने तक उठा दिया था. मैं आंखें बंद कर मानस भैया के अगले कदम की प्रतीक्षा कर रही थी. तभी मैंने अपने घाघरे को ऊपर की तरफ उठता महसूस किया. उस दिन वाली घटना की पुनरावृत्ति हो रही थी.
मैंने अपनी धड़कनों पर काबू कर कर रखा था. मैं मानस भैया की तरफ पीठ करके लेटी हुई थी. मेरी चोली के पीछे से मेरी अधनंगी पीठ दिखाई पड़ रही थी. घाघरा अब जांघों तक आ गया था और मेरे नितंबों से कुछ ही नहीं नीचे रह गया था. इससे ऊपर वह घाघरे को नहीं ले जा पा रहे थे क्योंकि वह मेरे पैरों से दबा हुआ था. कुछ देर तक वह शांत रहे उन्हें आगे बढ़ने का कोई रास्ता नहीं दिखाई पड़ रहा था. मैं मुड़ते हुए पीठ के बल हो गई. मैंने उन्हें एहसास ना होने दिया कि मैं जाग रही हूं. फिर भी वह सहम गए मेरी जांघें सामने से दिखाई पड़ रही थी. मेरे चोली में बंद स्तन भी अब दिखाई देने लगे थे. कुछ देर में उन्होंने हिम्मत जुटाई और मेरे घागरे तक अपने हाथ लाये पर उसे छूने की हिम्मत नही जुटा पाए.
मैं उनके मन में चल रही भावनाओं को समझ रही थी पर पहल उनको ही करनी थी. मैं तो अपना मन बना ही चुकी थी.
मानस और छाया के बीच प्रेम पनप रहा था जो समाज द्वारा थोपे गए रिश्ते के ठीक विपरीत था.
आकस्मिक आगमन .
कॉलेज में वापस आने के बाद मुझे छाया का चेहरा हमेशा याद आता था. गांव में इस बार उसने मेरे साथ जो पल बिताए थे वह मेरे लिए यादगार बन गए थे. उसका सुंदर और प्यारा चेहरा तथा कोमल तन मुझे आकर्षित करने लगे थे. पता नहीं क्यों मुझे ऐसा महसूस होता जैसे मेरा उसके साथ कोई नया रिश्ता जुड़ने वाला था. मेरे मन में उसके प्रति कामुकता जरूरत थी पर वह उसकी खूबसूरती को देखने के बाद स्वाभाविक थी. मैंने छाया को केंद्र में रखते हुए कभी भी हस्तमैथुन नहीं किया. वह मेरे लिए प्यार की मूर्ति बन रही थी.
समय बीत रहा था और कुछ दिनों बाद होली आने वाली थी. मैंने छाया से मिलने की सोची. मुझे पता था यदि मैं पापा से बात करूंगा तो शायद वह मेरी पढ़ाई को ध्यान में रखते हुए मुझे आने के लिए रोक देंगे. होली के एक महीने बाद ही मेरी परीक्षा थी. मेरा मन छाया से मिलने के लिए उत्सुक हो उठा था. और अंततः मैं बिना किसी को बताए अपने गांव के लिए निकल पड़ा. स्टेशन पर उतरने के बाद मैंने ऑटो किया और घर पहुंच गया.
सुबह के लगभग 10:00 बज रहे थे मुझे दूर से ही छत पर छाया दिखाई पड़ गई. वह धूप में अपने बाल सुखा रही थी. मैंने घर में प्रवेश किया और देखा की पापा की स्कूटर घर पर नहीं थी. मैं समझ गया की वो कॉलेज गए हुए हैं. घर के अंदर प्रवेश करने पर मुझे माया जी कहीं दिखाई नहीं पड़ रहीं थीं. मेरे इस आकस्मिक आगमन के बारे में किसी को जानकारी नहीं थी. मैंने अपना बैग नीचे रखा और सीधा छत पर छाया से मिलने चला गया.
छत पर आते ही मैंने देखा छाया मेरी तरफ पीठ किए हुए खड़ी है. उसने एक घाघरा और चोली पहनी हुई थी. मैं धीरे-धीरे उसके पास गया और पीछे से उसकी आंखों पर अपनी हथेलियाँ रख दीं. वह मुझे पहचानने की कोशिश कर रही थी.
उसने अपनी कोमल उंगलियों से मेरी उंगलियों को छू कर पहचानने की कोशिस की और उन्हें अपने आंख से हटाने लगी. उसने खुश होकर कहा ...
“मानस भैया?” उसकी आवाज में प्रश्न छुपा हुआ था.
“ हां” मैं अपने हाथ नीचे की और ले गया और उसे उसके पेट से पकड़ कर हवा में उठा लिया उसकी कमर मेरी नाभि से सटी हुई थी. मेरा राजकुमार उसके नितंबों से सटा हुआ था. उसके पैर जमीन से ऊपर आ चुके थे मैं उसे गोल गोल घुमाने लगा. मेरा राजकुमार अब तक तनाव में आ चुका था वह छाया के नितंबों में निश्चय ही चुभन पैदा कर रहा होगा और अपनी उपस्थिति का एहसास दिला रहा होगा. उसे घुमाते समय मेरी हथेलियां छाया में पेट पर थी. उन्होंने घाघरा और चोली के बीच में अपनी जगह बना ली थी. अपनी हथेलियों से छाया के पेट की कोमलता को महसूस करते हुए मुझे काफी आनंद आ रहा था. कुछ देर बाद मैंने छाया को नीचे उतार दिया वह खिलखिला कर हंस रही थी. उसे भी इस तरह घूमने में आनंद का अनुभव हुआ था. नीचे उतरने के बाद वह मुझसे लिपट गई उसका शरीर मेरे शरीर से पूरी तरह सटा हुआ था. स्तन और पेट पूरी तरह से मुझसे चिपके हुए थे. एक दूसरे से चिपके होने के कारण मेरा राजकुमार उसके पेट पर कछु रहा था.
उसने कहा
“अच्छा हुआ आप होली पर आ गए मैं इस बार आपका इंतजार कर रही थी” यह कहते हुए वह मुझसे अलग हो गइ और भागती हुई नीचे गइ.
“मां देखो मानस भैया आए हैं” माया जी भी खुश हो गयीं. उन्होंने मेरा स्वागत किया और कहा
“होली के त्योहार पर घर आ गए अच्छा किया. छाया भी तुम्हें याद करती है.” शाम को पापा के आने के बाद वो भी खुश थे. मैं रात्रि में छाया को याद करते हुए सो गया .
अगले तीन-चार दिन मेरे लिए रोमांचक होने वाले थे. अगली सुबह मैं अपने दोस्तों से मिलने घर से बाहर गया था. लगभग 11:00 बजे वापस घर आया तो माया जी ने कहा छाया पढ़ने के लिए तुम्हारे कमरे में कब से इंतजार कर रही हैं. मैं खुश हो गया और अपने कमरे में जाकर देखा छाया वहां मेरे बिस्तर पर लेटी हुई थी. उसकी किताब उसके चेहरे के पास गिरी हुई थी. वह अत्यंत सुंदर और मासूम लग रही थी. वह करवट लेकर सोई हुई थी. त्योहार के अवसर पर उसके पैरों में आलता लगा हुआ था और एक छोटी सी पायल पहनी थी जिससे उसके पैर अत्यंत खूबसूरत लग रहे थे. मेरे मन में फिर एक बार उसकी जांघों को देखने की इच्छा प्रबल हो गई. मैंने घागरे को ऊपर करना शुरू कर दिया घागरा तुरंत ही घुटनों के ऊपर आ गया मैंने थोड़ा और प्रयास किया. घाघरा अब जांघों तक आ गया पर अभी भी उसकी राजकुमारी दूर थी. पर मेरे लिए दृश्य अत्यंत लुभावना था. आज तीन चार महीने बाद मुझे यह दृश्य मेरी आँखों के सामने था. पता नहीं मेरे मन में क्या आया मैंने अपने राजकुमार को छू लिया. वह शायद मेरी ही प्रतीक्षा कर रहहा था. मैंने अपने पजामे के अंदर ही उसे सहलाने लगा. छाया की नग्न जांघों को देखते हुए उसे छूने में एक अद्भुत आनंद आ रहा था. कुछ देर तक मैं ऐसे ही अपने राजकुमार को सहलाता रहा. अंततः मेरे राजकुमार में अपना वीर्य त्याग दिया. आज पहली बार मैंने छाया को ख्वाबों में कुछ और दूर तक नंगा कर दिया था. उसकी राजकुमारी की परिकल्पना मात्र से राजकुमार ने अपना वीर्य त्याग दिया था. मैं मजबूर था राजकुमार पर मेरा कोई बस नहीं था उसे अपनी राजकुमारी को याद कर अपना प्रेम जता दिया था. मैंने अपने आपको व्यवस्थित किया. सारा वीर्य मेरे पाजामें में ही लगा हुआ था. मैंने अपना कुर्ता नीचे किया और छाया की जांघों को उसके लहंगे से ढक दिया. मैंने छाया को पुकारा
“छाया उठो मैं आ गया.” वह आंखें मींचती हुई उठ खड़ी हुई. अगले दो-तीन घंटे तक हम लोग पढ़ाई की बातें करते रहे.
मेरे आकस्मिक आगमन का उपहार मुझे मिल चुका था.
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