RE: Antarvasna Sex Story - जादुई लकड़ी
अध्याय 43
मैं अपनी BMW से वापस घर के लिए निकल गया था ,ये वही गाड़ी थी जिससे मेरे पिता जी अधिकतर आफिस जाया करते थे ,मेरा सर दर्द करने लगा था ,आखिर इन सबके पीछे था कौन …??
मुझे गाड़ी चलाने की ज्यादा आदत नही थी ,अभी अभी तो मैंने ड्राइविंग सीखी थी ,फिर भी मैं जितनी जल्दी हो सके अपने घर पहुचना चाहता था …
अंधेरा हो चुका था ,मैं अपनी गाड़ी को उसी पूरी स्पीड में भगा रहा था,मुझे कुछ दूर जंगल से होकर जाना था और वंहा बहुत ही ज्यादा टर्न थे ,तभी एक मोड़ आया और सामने से आती हुई ट्रक की लाइट सीधे मेरे आंखों में आई ,कुछ देर के लिए मुझे मानो दिखना भी बंद हो गया ,और मैं गाड़ी को सम्हाल नही पाया ,मेरे पैर ब्रेक की जगह एक्सीलेटर में जा लगा और गाड़ी रोड से उतर कर सीधे जंगल में घुस गई ,
दिमाग ऐसे भी खराब था अब पूरा ही हो गया ,
मैं जैसे तैसे गाड़ी से उतरा और जंगल से बाहर आया ,गाड़ी से पेड़ से टकरा कर रुक गई थी ,गनीमत थी की मैंने सीटबेल्ट लगाया था और एयरबेग भी खुल गए ,तभी मेरा फोन बजा …
फोन निकिता दीदी का था ..
“भाई कहा है तू ,मां को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर रहे है “
“क्या इतनी जल्दी ??अभी अभी तो उन्हें होश आया है “
“हा डॉ ने बोला की इन्हें शाररिक नही मानसिक आघात ज्यादा हुआ था इसलिए वो बेहोश हो गई थी ,अब ठीक है नार्मल वार्ड में शिफ्ट कर रहे है ,तो हमने सोचा की क्यो ना घर में शिफ्ट कर दे ताकि हमारे साथ ही रहे ,हॉस्पिटल ने एक नर्स लगा दी है इनके लिए ,तू आजा फिर शिफ्ट करते है “
अब मैं सोच में पड़ गया था ..
“दीदी आपके साथ अभी और कौन है ??”
“मैं और नेहा “
“ओके एक काम करो रोहित को बुला लो साथ ही भैरव अंकल को भी बुला लेना ,मैं अभी नही आ पाऊंगा थोड़ी देर हो जाएगी मुझे आने में “
मेरी बात से दीदी थोड़ा घबरा गई थी
“तू ठीक तो है ना “
“हा दीदी ठीक हु बस काम में फंसा हुआ हु ,आकर बात करते है और सिक्योरिटी का पूरा ध्यान रखना आपके पास सिक्योरिटी चीफ का नंबर है ना “
“हा है,तू फिक्र मत कर मैं कर लुंगी “
“थैंक्स दीदी “
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अब मेरे दिमाग पहली चीज ये आई की यंहा से कैसे निकलू ,मैंने डॉ को फोन लगाया और सारी बात बताई ,उन्होंने कहा की वो तुरंत मदद भेज रहे है ,मैंने उन्हें अपना लोकेशन शेयर किया और रोड के किनारे एक मिल के पथ्थर में बैठा सभी चीजो के बारे में सोचने लगा ,तभी मेरे दिमाग में एक बात आयी और मैंने तुरंत अपनी जेब चेक की ,
बाबा जी की दी हुई विभूति अभी मेरे जेब में ही था,मैंने मोबाइल से उस कागज में लिखे मंत्र को देखा और एक चुटकी विभूति खाई और आंखे बंद कर मंत्र का जाप करने लगा ..
थोड़ी ही देर हुए थे की मुझे ऐसे लगा जैसे मैं बेहोश हो गया हु जब मुझे होश आया तो मैं किसी अनजान जगह में था ,मुझे समझ आ चुका था की ये मेरा सूक्ष्म शरीर है .
मैं एक बर्फीले पहाड़ी में था लेकिन मुझे नाम मात्रा को भी ठंड का आभास नही हो रहा था ,होता भी कैसे शारीरिक संवेदना तो सिर्फ शरीर को ही महसूस होती है ..
मेरे सामने बर्फ एक ढके पत्थर में एक बड़ी बड़ी जटाओं वाला इंसान आंखे बंद किये बैठा था वो पूरी तरह से नंगा था और शरीर में भस्म लगाए हुए था ,उसे देख कर ही उसकी ताकत का अंदाजा लग जाता था ऐसा लग रहा था की जैसे इस बर्फ की ठंड से उनका शरीर बिल्कुल ही अछूता है ….
मैं जैसे किसी सम्मोहन में चला गया था ,मुझे उनके रूप में देवत्व नाचता हुआ दिख रहा था ….अद्भुत सौंदर्य था उनके रूप में ..
मैं बस मोहित सा उन्हें देख रहा था तभी उनकी आंखे खुली ..
“तो क्या जानने आये हो राज “
उन्होनें मुझे मेरे नाम से पुकारा था
“महाराज आप तो अंतर्यामी है मैं आपसे क्या कहु ..आपको तो सब कुछ पता ही है “
वो मुस्कुराये
“तुम्हे जिससे मिलना है उसका नाम है राजू ,एक सामान्य सा गांव का लड़का जो की मजबूरी में अघोरी बन गया “
“वो मुझे कहा मिलेगा महाराज “
“डॉ चूतिया के पास “
मैं बुरी तरह से चौका
“क्या ??”
“हा उन्हें कहना की तुम्हे बादलपुर वाले राजू से मिलना है ,राजू उनका वैसे ही मित्र है जैसे की तुम हो “
मैं बुरी तरह से चौक गया था इससे पहले की मैं कुछ कह पता मेरी आंखे खुली मैं अपने शरीर में था ..
मैंने तुरंत ही डॉ को फोन किया
“हा राज मदद निकल चुकी है कुछ देर में पहुच जाएगी “
“डॉ साहब मुझे बादलपुर के राजू से मिलना है “
उधर से थोड़ी देर के लिए चुप्पी छा गई
“तुम उससे मिलकर क्या करोगे “
“क्या आपको नही पता की वो कौन है “
“जानता हु उसे लेकिन तुम्हे उससे क्यो मिलना है “
मैं गुस्से से भर गया था
“क्या आपको सही में नही पता की मैं उससे क्यो मिलना चाहता हु “
“नही ,मुझे कैसे पता होगा,???:?: क्या मुझे पता होना चाहिए?:?:”
“बिल्कुल क्योकि वही अघोरी है जिसके कारण चन्दू की मौत हुई और जिसने मुझे मारा था “
“क्या..:o ..ऐसे कैसे हो सकता है वो तो एक सीधा साधा इंसान है “
“मुझे उससे मिलना है ..”
“ठीक है मैं तुम्हे कल ही उससे मिलवाता हु “
मुझे वो अघोरी मिल चुका था ,पता नही उससे मुझे कितना फायदा होना था लेकिन फिर भी मैं उससे मिलना चाहता था ,अब मैं बेसब्री से मदद का इंतजार करने लगा ,थोड़ी देर में दो गाड़िया मेरे पास आकर रुकी कुछ लोग थे जिन्हें मैंने अपने कार की पोजिशन दिखा दी उन्होंने मुझे जाने को कहा वो गाड़ी ठीक करवा कर मेरे घर छोड़ने वाले थे ,मैंने भी जल्द से अपने घर जाना बेहतर समझा….
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