दास्तान - वक्त के फ़ैसले
06-14-2017, 01:10 PM,
#7
RE: दास्तान - वक्त के फ़ैसले
ज़ूबी कि शादी को कई हफ़्ते बीत चुके थे। आज भी उसे वो दिन याद था कि शादी के तुरंत बाद कैसे बड़ी मुश्किल से उसने अपने आपको साफ़ किया था जिससे उसके शौहर को उस पर शक ना हो पाये। जैसे-जैसे समय बीतता गया, वो अपने साथ हुए हादसों को भूलने लगी।

वो खुशकिस्मत थी कि उसी इज्जत के साथ उसे आज भी अपनी नौकरी हासिल थी। किन हादसों से गुज़र कर उसने अपनी नौकरी बचायी थी। गलती उसकी ही थी शायद, एक तो इतने बड़े ग्राहक का केस उसने गलत तरीके से संभाला था, दूसरा अगर उसकी गलती सामने आ जाती तो शायद उसे अपने वकील के लायसेंस से भी हाथ धाना पड़ सकता था। पर उसकी मेहनत और लगन ने उसे इन सबसे बचा लिया था।

एक अंजान सा डर अब भी ज़ूबी के जेहन में आता रहता था। उसे पता था कि एक ना एक दिन मिस्टर राज जरूर उसे याद करेगा और हो सकता है कि शर्मिन्दगी और जिल्लत का वही दौर फिर से शुरू हो जाये। उसने कई कोशिश कि वो राज के चुंगल के निकल जाये, पर जब तक राज के पास उसकी चुदाई का वीडियो कैसेट था वो कुछ नहीं कर सकती थी।

गुजरते वक्त के साथ उसे लगने लगा कि राज उसकी ज़िंदगी से निकल गया है, पर अल्लाह अभी कहाँ उसपर मेहरबान हुआ था।

एक दिन सुबह वो अपनी कंपनी के पार्टनर के साथ उसके केबिन में किसी केस पर बहस कर रही थी कि तभी इंटरकॉम पर रिसेप्शनिस्ट की आवाज़ आयी।

“ज़ूबी, मिस्टर राज लाइन नंबर सात पर तुमसे बात करना चाहेंगे” रिसेप्शनिस्ट की आवाज़ सुनायी दी।

रिसेप्शनिस्ट की आवाज़ सुनकर उसके हाथ में पकड़ा कॉफी का मग हिलने लगा। उसका बदन फिर एक डर से काँप उठा। फाइल जो उसकी गोद में पड़ी थी फ़िसल कर ज़मीन पर गिर पड़ी।

“ज़ूबी तुम ठीक तो हो ना?” पार्टनर ने पूछा। इस कहानी के लेखक राज अग्रवाल है!

ज़ूबी ने अपनी गर्दन धीरे से हिलायी और लगभग लड़खड़ाती आवाज़ में जवाब दिया, “मिस्टर प्रशाँत! एक जरूरी फोन है जिसे मुझे लेना पड़ेगा, मैं अभी आयी।”

बिना कुछ और कहे ज़ूबी कुर्सी से उठी और काँपते हाथों से कॉफी के मग को पार्टनर की टेबल पर रखा और लगभग दौड़ती हुई अपने केबिन में पहुँची।

मिस्टर प्रशाँत, एक चालीस साल का आदमी था। वो हैरानी से ज़ूबी को अपने केबिन से जाते हुए देखता रहा। जैसे ही वो केबिन के बाहर निकली, उसने उठकर अपने केबिन का दरवाजा बंद किया और अपनी अलमारी से एक छोटा सा टेप रिकॉर्डर निकाल कर फोन से अटैच कर दिया। फिर वो लाइन सात के कनेक्ट होने का इंतज़ार करने लगा। उसने फोन का स्पीकर ऑन कर दिया और ज़ूबी और मिस्टर राज की बातें सुनने लगा।

वो सोच रहा था कि कंपनी के सबसे बड़े ग्राहक के साथ ज़ूबी अकेले में क्या बात करना चाहती है। कहीं दोनों के बीच कोई खिचड़ी तो नहीं पक रही।

“हेलो! हाँ मैं ज़ूबी बोल रही हूँ।”

“हाय, ज़ूबी! राज बोल रहा हूँ। कैसी हो मेरी काबिल वकील?” राज ने पूछा।

“मैं ठीक हूँ,” ज़ूबी किसी भी निजी विषय पर उससे बात नहीं करना चाहती थी, “क्या आप अपनी फाइल के बारे में बात करना चाहते हैं?”

“वैसे तो मैं अपनी फाइल के बारे में भी जानना चाहता हूँ, पर मुझे ये कहते हुए अफ़सोस हो रहा है कि तुम भूल गयी हो कि मैं कौन हूँ।”

“ऐसे कैसे भूल सकती हूँ आपको,” ज़ूबी जबर्दस्ती हंसते हुए बोली, “मैं आपके नये केस के सिलसिले में आपसे बात करने ही वाली थी।”

“हाँ... हाँ... मेरी बात धयान से सुनो, तुम्हें मेरा एक काम करना होगा” राज ने कहा।

राज की बात सुनकर ज़ूबी का दिल बैठ गया, “क्या चाहते हैं आप मुझसे?”

“दिल्ली में मेरी एक दोस्त है, जिसे उसके बिज़नेस में कुछ मदद चाहिये” राज ने जवाब दिया, “मैं चाहता हूँ कि गुरुवार को तुम दिल्ली जाकर उससे मेरे ऑफिस में मिलो। तुम रविवार की शाम तक रुकने के हिसाब से अपना प्रोग्राम बनाना।”

ज़ूबी की समझ में नहीं आया कि वो क्या जवाब दे, “क्या ऑफिस से और वकील भी मेरे साथ जायेंगे?” ज़ूबी ने पूछा।

“नहीं मैं चाहता हूँ कि तुम अकेली वहाँ जाओ” राज ने जवाब दिया।

“क्या मैं अपने शौहर को अपने साथ ला सकती हूँ?”

“हाँ जरूर ला सकती हो,” राज ने कहा और जोरों से हंसने लगा, “मुझे विश्वास है कि वहाँ पर तुम अपनी चुदाई अपने शौहर को दिखाना नहीं चाहोगी। मैं तो वो सीडी भी तुम्हारे शौहर को दिखा सकता हूँ जिसमें मैं तुम्हारी चुदाई कर रहा हूँ, और उसे वो भी बताना चाहुँगा कि किस तरह होटल के कमरे में तुमने कितने मर्दों के साथ एक साथ चुदवाया था।”

ज़ूबी खामोशी से सहमी हुई राज की बातें सुनती रही।

तभी राज ने आगे कहा, “क्या मैं तुम्हारे शौहर को उस होटल के रूम सर्विस वाले नौजवान के बारे में भी बताऊँ कि किस तरह उसने तुम्हारी चुदाई की थी।”

फोन पर थोड़ी देर खामोशी छायी रही। तभी ज़ूबी ने जल्दी से कहा, “नहीं... नहीं... मेरे शौहर को इस सब में मत घसीटो, ये तुम्हारे और मेरे बीच की बात है... इसे हम दोनों तक ही सिमित रहने दो।”

“ठीक है तो फिर अपने जाने की तैयारी करो और वहाँ पर रविवार की शाम तक का प्रोग्राम बना लो,” राज ने कहा। फिर राज ने उसे उस औरत का फोन नंबर दिया जिससे उसे दिल्ली में सम्पर्क करना था और कहना था, “मैं आपका वो इनाम हूँ जिसे मिस्टर राज ने आपको देने को कहा था।” राज फिर हंसा, “समझ गयी ना।”

“हाँ मैं समझ गयी, वैसे ही होगा जैसा आप चाहेंगे,” कहकर ज़ूबी ने फोन रख दिया।

उधर मिस्टर प्रशाँत ने भी फोन रख दिया और टेप रिकॉर्डर को ऑफ कर दिया। उसने वो फोन नंबर भी लिख लिया था जो राज ने ज़ूबी को दिया था। वो उठा और उसने दरवाजे की कुंडी खोल दी और वापस आकर अपनी कुर्सी पर बैठ गया।

वो राज और ज़ूबी की बातें सुनकर हैरान था। उसे ये शक तो था कि ऑफिस में कहीं गड़बड़ जरूर है। उसे ये भी शक था ऑफिस में काम करने वाली लड़कियाँ क्लायंट्स का बिस्तर गरम करती हैं, पर ज़ूबी... उसके लिये तो वो ऐसा सोच भी नहीं सकता था। ज़ूबी इतनी मेहनती और अच्छे चाल चलन वाली लड़की थी।

प्रशाँत ने फोन उठाया और दिल्ली का वो नंबर मिलाया जो राज ने ज़ूबी को दिया था। दूसरी तरफ़ एक औरत ने फोन उठाया।

“मैं आपकी क्या मदद कर सकती हूँ,” एक मादक और सैक्सी आवाज़ ने पूछा।

प्रशाँत ने नंबर तो मिला लिया था पर उसकी समझ में नहीं आया कि वो क्या कहे, उसने खंखारते हुए कहा, “मुझे ये नंबर किसी ने दिया था।”

“क्या आप दिल्ली में है जनाब।”

“नहीं फ़िलहाल तो नहीं! पर इस शनिवार को मैं दिल्ली पहुँच रहा हूँ,” प्रशाँत ने जवाब दिया।

“क्या आपको एक जवान लड़की की जरूरत है?” उस मादक आवाज़ ने पूछा।

अब उसकी समझ में आया कि ये नंबर किसी वेश्यालय का है या फिर ऐसी सर्विस सैंटर का है जो लड़कियाँ सपलायी करती है। “हाँ मैं भी कुछ ऐसा ही सोच रहा था” उसने जवाब दिया।

“हमारे यहाँ बहुत ही खूबसूरत और जवान लड़कियाँ उपलब्ध हैं। जब आप शहर में आ जायें तो इस नंबर पर सम्पर्क कर के अपनी जरूरत बता दें, ठीक है।”

“जरूर,” कहकर प्रशाँत ने फोन रख दिया।

तभी ज़ूबी ने केबिन के दरवाजे पर दस्तक दी, “क्या मैं अंदर आ सकती हूँ?”

प्रशाँत ने उसे अंदर आने का इशारा किया और गौर से उसे देखने लगा। ज़ूबी ने एक सिल्क का ब्लाऊज़ पहना था जो गले के नीचे तक खुला हुआ था। प्रशाँत ने देखा कि ज़ूबी ने एक टाइट स्कर्ट पहन रखी थी जिससे उसके चूत्तड़ों की गोलाइयाँ साफ़ दिखायी दे रही थी और पैरों में काफी हाई हील के सैंडल पहने हुए थे जिनसे उसकी चाल और भी सैक्सी लग रही थी। ज़ूबी उसके सामने कुर्सी पर बैठ गयी जिससे उसकी जाँघों के अंदरूनी हिस्से दिख रहे थे। ये सब देख कर प्रशाँत का लंड पैंट में खड़ा होने लगा।

प्रशाँत को मन ही मन गुस्सा आ रहा था। उसे आज से कई साल पहले का वो किस्सा याद आ गया जब वो ऑफिस में नये और काबिल वकीलों को भर्ती कर रहा था। इस काम में इंटरवियू, गैदरिंग और पिकनिक शामिल थी। उसे याद आ रहा था कि उस दिन ज़ूबी कितनी सुंदर दिख रही थी शॉर्ट स्कर्ट और टॉप में। उस दिन शाम को पार्टी में वो कुछ ज्यादा ही पी गया था और भूल से उसने ज़ूबी को बांहों में भर कर चूमना चाहा था, पर किस कदर ज़ूबी ने उसकी बेइज्जती की थी और ये बात उसके पार्टनरों और बीवी तक को बताने की धमकी दी थी। इस कहानी के लेखक राज अग्रवाल है!

कई बार माफी माँगने के बाद वो ज़ूबी को समझा पाया था। इस बात का ज़िक्र ज़ूबी ने फिर कभी किसी से नहीं किया था। पर प्रशाँत ने ज़ूबी को माफ़ नहीं किया था, कि किस कदर उसने उसे धमकाया था। शायद बदले का समय आ गया था।

प्रशाँत के ख्यालों से बेखबर ज़ूबी अपनी ही सोच में खोयी हुई थी। “कहो ज़ूबी क्या काम है?” प्रशाँत ने पूछा।

“ओह सर! मुझे गुरुवार को किसी काम से दिल्ली जाना है” ज़ूबी ने चौंकते हुए कहा।

“ठीक है तुम जा सकती हो” प्रशाँत ने उसे जाने की इजाज़त दे दी।

ज़ूबी बड़ी दुविधा में अपना सफ़र का बैग पैक कर रही थी। उसे अपने आप से घृणा हो रही थी। उसे अपनी शौहर से झूठ बोलना पड़ रहा था और साथ ही बेवफ़ायी भी करनी पड़ रही थी। पर शायद ये वक्त का फ़ैसला था जिसे वो मानने पर मजबूर थी। उसकी ज़िंदगी अब उसकी नहीं थी, उसके हाथों से फ़िसल कर किसी और की हो चुकी थी।
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