RE: Chudai Kahani मैं और मौसा मौसी
रज्जू जो पैंटी पहना रहा था, बार बार लीना की जांघों को चूम लेता "हां भैयाजी, एक घंटे आराम करते हैं, फ़िर और चोदेंगे लीना भाभी को. मन नहीं भरा, क्या जन्नत की परी है बहू रानी"
"चलो हटो अब, बहुत हो गया. बहू को इतना मसला कुचला, अब भी मन नहीं भरा तुम्हारा? चलो अब आराम करने दो उसको घर जा कर. चलो हटो, मैं साड़ी पहना देती हूं" मौसी ने सबको हटाया और साड़ी पहनाने लगीं. लीना अबतक आंखें बंद करके ऐसी पड़ी थी कि बेहोश हो, आंखें खोल कर किलकिला करके मेरे को देखा और आंख मार कर मुंह बना दिया कि लो, मौसी क्यों बीच में आ गयीं, मैं तो और मजा लेती.
जब हम घर को निकले तो मैं काफ़ी थक गया था. लंड और गोटियां दुख रही थीं. पर मन में मस्ती छाई हुई थी. रज्जू ने लीना को कंधे पर लिया हुआ था जैसे गेहूं की बोरी हो. उसकी आंखें बंद थीं. रघू और मौसाजी पीछे चल रहे थे.
"कचूमर निकाल दिया मेरी बहू का, क्यों रे बदमाशों?" मौसी बोलीं.
"अरे नहीं मालकिन, बहू रानी तो अब भी तैयार थी, हम लोगों के ही लंड अब नहीं खड़े होते" रज्जू बोला.
"पर वो तो चिल्ला रही थी कि छोड़ दो" मौसी बोली.
"अरे बड़ी बदमाश है तेरी बहू. जानबूझकर इनको उकसा रही थी. जरा देखो, हंस रही है चुपचाप" मौसाजी बोले. लीना के चेहरे पर मुस्कान थी. आंखें खोल कर मेरी ओर देखा और आंख मार दी.
’अरे तो इसको उठा कर क्यों चल रहे हो?" मौसी ने पूछा.
"चुदा चुदा कर थक गयी है लीना बिटिया. चल तो लेगी पर खुद ही बोली कि मुझे उठा कर ले चलो सो रज्जू ने उठा लिया. एकदम निछावर हो गया है बहू पर, लाड़ में उठा लिया"
"हां अनिल भैया, आप की लुगायी जैसी औरत नहीं देखी आज तक. क्या चुदवाती है. मैं तो अब भाभी का गुलाम हो गया, उनकी खूब सेवा करूंगा, जैसे चाहेंगीं, मैं चोदूंगा" रज्जू बोला.
"और मैं भी. भैया, अब मुझे उठाने दो भाभी को" रघू बोला. दोनों बारी बारी से लीना को उठा कर घर पे ले आये.
उस रात हमने आराम किया. सब काफ़ी थक गये थे. मौसी बोलीं "आज सुस्ता लो, कल से दिन भर चुदाई होगी. कोई पीछे नहीं हटेगा, अपनी अपनी चूतें और लंड का खयाल रखो और उनको मस्त रखो" मौसी बोलीं. "लीना बेटी, तू कल आराम कर, आज जरा ज्यादा ही मस्ती कर ली तूने"
"अरे नहीं मौसी, यहां आराम करने थोड़े आई हूं! और ये ऐसे नहीं छोड़ूंगी इन दोनों बदमाशों को" उसका इशारा रघू और रज्जू की ओर था. "और मौसाजी भी सस्ते छू जायेंगे. ये तीनों रोज दोपहर चार घंट मेरे लिये रिज़र्व हैं. इनको इतना चोदूंगी कि इन तीनों के लंड नुन्नी बन कर रह जायेंगे" लीना मस्ती में लरज कर बोली.
अगला हफ़्ता ऐसे बीत गया कि पता ही नहीं चला. सुबह हम देर से उठते थे. नहा धो कर खाना खाकर लीना मौसाजी के साथ खेत के घर में चली जाती थी जहां रघू और रज्जू उसकी राह देखते थे. मैं राधा और मौसी घर में रह जाते थे. दिन भर मस्ती चलती थी. दोनों लंड की ऐसी भूखी थीं कि बस बारी बारी से मुझसे चुदवातीं. बीच बीच में खूब खातिरदारी करतीं, हर दो घंटे में बदाम दूध देतीं.
लीना जब शाम को आती थी तो उसका चेहरा देखते बनता था. चेहरे पर एकदम शैतानी झलकती थी और एक सुकून सा रहता था कि क्या मजा आया. ऐसी दिखती थी जैसे मलाई खाकर बिल्ली दिखती है. उसकी हालत किसी छोटे बच्चे सी थी जिसे मनचाहे खिलौने मिल जायें तो खेल खेल कर थक जाये फ़िर भी खेलता रहता है. इतना चुदवाती थी लीना कि उससे चला भी नहीं जाता था. मैंने एक बार कहा भी कि रानी, जरा सम्हाल के, इस तरह से अपनी चूत और गांड की धज्जियां मत उड़वाओ तो मुझे टोक देती "तुम्हे क्यों परेशानी हो रही है मेरे सैंया जब मैं खुश हूं? परेशान मत हो, आराम करने को तो बहुत समय मिलेगा जब हम वापस जायेंगे. तब चूत और गांड फ़िर टाइट कर लूंगी दस दिन में. तब तक इन तीनों लंडों का मजा तो ले लूं. और वो रघू और रज्जू के लंड तो बेमिसाल हैं." रघू रज्जू और मौसाजी उसके आगे पीछे ऐसे घूमते जैसे उसके गुलाम हों और वो मलिका.
रात को सब इतने थक जाते कि सो जाते. पहली रात को मौसाजी के साथ मिलकर हमने जो मस्ती की थी उसकी याद मुझे आती थी. मौसी और राधा की बुर और गांड से मुझे बहुत सुख मिलता था पर कभी कभी मौसाजी की गांड की याद आती थी, कितना मजा आया था उस रात उनकी मारने में. क्या गोरी चिकनी गरमा गरम गांड थी मौसाजी की. मैं सोचता था कि जाने के पहले कम से कम एक बार तो मौसाजी की फिर से मारूंगा.
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