प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
07-04-2017, 12:34 PM,
#37
RE: प्रेम गुरु की सेक्सी कहानियाँ
मैं उसे चूमता हुआ नीचे मदनमंदिर की ओर आने लगा। पहले उसके सपाट पेट को उसके पश्चात उसकी नाभि और श्रोणी प्रदेश को चूमता चला गया। उसके योनि प्रदेश तक पहुंचते पहुँचते मेरा कामदण्ड (लिंग) तनकर जैसे खूंटा ही बन गया था। रोम विहीन रतिद्वार देख कर तो मैं मंत्र मुग्ध हुआ देखता ही रह गया। काम रस से लबालब भरी उसकी योनि तो ऐसे लग रही थी जैसे कोई मधुरस (शहद) की छोटी सी कुप्पी ही हो। बीच में दो पतली सी गहरे गुलाबी रंग की रेखाएं। मैं उसके तितली के पंखों जैसी छोटी छोटी गुलाबी कलिकाओं को चूमने से अपने आप को नहीं रोक पाया। सुनैना की मीठी सीत्कार निकल गई और उसने मेरा सिर अपने कोमल हाथों में पकड़ कर अपने मदनमंदिर (योनि) की ओर दबा दिया। एक मीठी और कामुक महक से मेरा सारा स्नायु तंत्र भर उठा। अब मैंने अपनी काम प्रेरित जिह्वा उसके रतिद्वार पर लगा दी। उसके पश्चात उसे अपने मुँह में भर लिया। पूरी योनि ही मेरे मुँह में समा गई। उसकी योनि में तो जैसे काम द्रव्य का उबाल ही आया था। सुनैना की मीठी किलकारी निकल गई। मैंने 3-4 बार चुस्की लगाई और पुनः अपनी जिव्हा का घर्षण उसकी कलिकाओं पर करना प्रारम्भ कर दिया। कुछ पलों तक उसे चुभलाने और चूसने के उपरान्त मैंने अपना मुँह वहाँ से हटा लिया। अब मेरी दृष्टि उसकी पुष्ट जंघाओं पर गई। उसकी जाँघों पर भी मेहंदी के फू्ल-बूटे बने थे जैसे उसकी हथेलियों पर बने थे। मेरे लिए तो यह स्वप्न जैसा और कल्पनातीत ही था। जब मैंने उसकी जाँघों को चूमना प्रारम्भ किया तो सुनैना बोली,"मेरे प्रियतम अब और प्रतीक्षा ना करवाओ ! मुझे एक बार पुनः अपनी बाहों में ले लो ! मेरा अंग अंग काम वेग की मीठी जलन से फड़क रहा है इनका मर्दन करो मेरे प्रियतम !" मैंने उसके ऊपर आते हुए कस कर अपनी बाहों में भर लिया। अब उसने मेरे खड़े कामदण्ड को पकड़ लिया और सहलाने लगी। इसके पश्चात उसने अपने एक हाथ से अपनी योनि की कलिकाओं को खोल कर मेरा तना हुआ कामदण्ड अपने रतिद्वार के छोटे से छिद्र पर लगा लिया। मैंने धीरे से एक प्रहार किया तो मेरा कामदण्ड उसकी अक्षत योनि में आधे से अधिक प्रविष्ट हो गया। सुनैना की मीठी चीत्कार निकल गई। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे कोई कोसा (थोड़ा गर्म) सा द्रव्य मेरे कामदण्ड के चारों ओर लग गया है। संभवतया प्रथम सम्भोग में यह उसके कुंवारे और अक्षत योनि पटल (कौमार्य झिल्ली) के टूटने से निकला रक्त था। कुछ पलों तक हम दोनों इसी अवस्था में पड़े रहे। उसके चेहरे पर वेदना झलक रही थी। पर वह आँखें बंद किये उसी प्रकार लेटी रही। कुछ क्षणों के उपरान्त मैंने पुनः उसके अधरों और कपोलों को चूमना और उसके कठोर होते रस कूपों का मर्दन प्रारम्भ कर दिया। अब उसकी भी मीठी और कामुक सीत्कार निकलने लगी थी। अब ऐसा प्रतीत होने लगा था जैसे उसकी वेदना कुछ कम हो रही थी। उसने अब मेरे तेज होते लिंग प्रहारों का प्रत्युत्तर अपने नितम्बों को उचका कर देना प्रारम्भ कर दिया था। मैं उसे अधरों और तने हुए स्तानाग्रों को चूमता जा रहा था। सुनैना मेरे लगातार लिंग प्रहारों से उत्तेजना के शिखर पर पहुँचने लगी थी। वह अप्रत्याशित रूप से मेरा साथ दे रही थी। उसका सहयोग पाकर मैंने भी अपने प्रहारों की गति तीव्र कर दी। मेरे लिंग के घर्षण से उसके अंग प्रत्यंग में जैसे नई ऊर्जा का संचार हो गया था। मेरा लिंग उसकी मदनमणि को भी छूने लगा था। इस नए अनुभव से तो उसकी मीठी किलकारियां ही गूंजने लगी थी। उसका तो जैसे रोम रोम ही पुलकित और स्पंदित हो रहा था। उसकी आँखें मुंदी थी, अधर कंपकंपा रहे थे और साँसें तेज चल रही थी। वह तो आत्मविभोर हुई जैसे स्वर्ग लोक में ही विचरण कर रही थी। मुझे लगा उसकी योनि का संकुचन बढ़ने लगा है और पूरा शरीर अकड़ने सा लगा है। उसकी कोमल बाहों की जकड़न कदाचित अब बढ़ गई थी। उसके मुँह से अस्फुट सा स्वर निकला,"कुमार मुझे यह क्या होता जा रहा है ? विचित्र सी अनुभूति हो रही है। मेरा रोम रोम फड़क रहा है, मेरा अंग अंग तरंगित सा हो रहा है …ओह … आह…" "हाँ... प्रिय … मेरी भी यही स्थिति है… मैं भी काम आनंद में डूबा हूँ … आह…" "ओह … कुमार ...आपने तो मुझे तृप्त ही कर दिया। इस मीठी चुभन और पीड़ा में भी कितना आनंद समाया है … आह... !" उसके मुँह से एक कामरस में डूबी मधुर किलकारी सी निकल गई। मुझे लगा उसकी योनि के अन्दर कुछ चिकनापन और आर्द्रता बढ़ गई है। संभवतया वह रोमांच के चरम शिखर पर पहुँच कर तृप्त हो गई थी। "हाँ प्रिय मैं भी आपको पाकर तृप्त और धन्य हो गया हूँ !" मैंने अपने धीमे प्रहारों को चालू रखा। कुछ क्षणों के उपरान्त वह बोली,"कुमार आपको स्मरण है ना हम कैसे उस पहाड़ी के पीछे और कभी उस उद्यान और झील के किनारे छुप छुप कर किलोल किया करते थे। आपने तो मुझे विस्मृत (भुला) ही कर दिया। आपने आने में इतना विलम्ब क्यों किया ? क्या आपको कभी मेरा स्मरण ही नहीं आया ?" "नहीं ... मेरी प्रियतमा मुझे सब याद आ है पर मैं क्या करता आपकी यह विमाता (सौतेली माँ) ही मुझे अपने रूप जाल में उलझा लेना चाहती थी। मैं डर के मारे आप से से मिल नहीं पा रहा था।" "ओह... कुमार अब समय व्यर्थ ना गंवाइए मुझे इसी प्रकार प्रेम करते रहिये … आह... कदाचित हमारे जीवन में ये पल पुनः ना लौटें !" मैंने एक बार पुनः उसे कस कर अपनी बाहों में जकड़ लिया और अपने लिंग के प्रहारों की गति तीव्र कर दी। उसने अपने पाँव थोड़े से ऊपर कर लिए तो उसकी पायल की झंकार जैसे हमारे प्रहारों के साथ ही लयबद्ध ढंग से बजने लगी। सुनैना ने लाज के मारे अपनी आँखें बंद कर ली और अपने पाँव भी नीचे कर लिए। मैंने अपने धक्कों को गतिशील रखते हुए पुनः उसके अधरों को चूमना प्रारम्भ कर दिया। अब मुझे लगने लगा था कि मेरे लिंग का तनाव कुछ और बढ़ गया है। मैंने शीघ्रता से 3-4 धक्के और लगा दिए। कुछ ही क्षणों में मेरा वीर्य निकल कर उसकी योनि में भर गया। हम दोनों की ही मीठी सीत्कारें गूंजने लगी थी। एक दूसरे की बाहों में जकड़े हम पता नहीं कितने समय तक उसी अवस्था में पड़े रहे। अब बाहर कुछ आहट सी सुनाई दी। पहले प्रतिहारी आई और उसके पश्चात महारानी कनिष्क ने कक्ष में प्रवेश किया। उसका मुँह क्रोधाग्नि से मानो धधक रहा था। "कुमार … तुमने राज कन्या से दुष्कर्म किया है… तुम राज अपराधी हो … तुमने मेरी भावनाओं का रत्ती भर भी सम्मान नहीं किया ? अब तुम्हें मृत्यु दंड से कोई नहीं बचा सकता !" महारानी क्रोध से काँप रही थी। उसने ताली बजाते हुए आवाज लगाई,"सत्यव्रत !" "जी महारानी ?" "कुमार को यहाँ से ले जाओ और कारागृह में डाल दो !" "जो आज्ञा महारानी !" "और हाँ उस काल भैरवी को तैयार करो, आज सूर्योदय से पहले इस दुष्ट कुमार की बलि देनी है !" महारानी कुछ पलों के लिए रुकीं। उसने क्रोधित नेत्रों से सुनैना को घूरा और पुनः बोली,"और हाँ सुनो ! कुमारी स्वर्ण नैना के लिए भी अब यह राज कक्ष नहीं कारावास का कक्ष उपयुक्त रहेगा !"
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