RE: Nanad ki training--ननद की ट्रैनिंग
जब चाय उबल रही थी, तब तक गुड्डी आगयि. कोई भी उसकी शकल देख के कह सकता था कि खूब हचक के चुदाई हुई है. गाल पे दाँतों के गहरे ताज़ा निशान, हल्के बिखरे से बाल, टॉप भी थोड़ा, सिकुड मुक़ुड गया था, पर उसके निपल अभी भी खड़े थे और टॉप से बाहर निकलने को बेताब थे. और वह जिस तरह से दोनों टांगे हल्के से फैला कर खड़ी थी. मैने झटके से उसकी स्कर्ट उठा दी. पैंटी तो उसने शुरू से ही नही पहनी थी. उसकी गुलाबी चूत लंड का धक्का खा के लाल हो गयी थी और वीर्य से लिपटी थी. मैने उसे प्यार से बाहों मे भर लिया और गाल चूम के बोली, " चलो अब तुम मेरी और अल्पना की बिरादरी मे शामिल हो गयी. साफ सूफ तो नही किया."
" नही भाभी, देर हो रही थी और फिर जीजू ने भी कहा कि कही कोई कमरे मे ना आ जाय."
तब तक बाहर से किसी ने गुहार लगाई, हे चाय बन गयी या बिरबल की खिचड़ी हो रही है. मेरे इशारे पे वो बोली हाँ हो गयी है अभी लाती हू.
मैने उससे कहा यार अब साफ करने का टाइम नही है. बस तुम कस के अपनी चूत भींच लो, वैसे ही अल्पी ने कहा था ना कि पहली चुदाइ के बाद तुम्हारे भैया ने एक बूँद भी बाहर नही निकलने दिया था, कि ये सबसे अच्छा लुब्रीकेंट होता. बस भिंचे रहो. थोड़ी देर मे बुर सब सोख लेगी और अगली चुदाई मे बहुत कम दर्द होगा.
और उसने कस के अपनी चूत भींच ली. उसने मुझसे मुस्कुरा कर शरारत से पूछा, " भाभी इसमे चीनी तो नही डाली"मैं उसका मतलब समझ के मुस्कुराने
लगी और उसकी ओर नमक की शीशी बढ़ा दी. उसने एक छोटी केटली मे चाय उडेल कर उसमे नमक मिला दिया, और हंस के बोली जो दीदी के देवर लोग बहोत
बन रहे थे ना "
हाँ लेकिन अपनी दीदी के ननदों को भी मत छोड़ना." मैं हंस के बोली. बाहर गाली की आवाज़ अभी भी आ रही थी.
अरे दूल्हा की बहना चली अरे मीनू छिनार चली फुलवा तोड़े, गिरी पड़ी बिचलाई जी
अरे उनकी बुरिया मे घुस गयी लकड़िया जी, अरे गंदिया मे घुस गयी लकड़िया जी,
दौड़ा दौड़ा, दुलहे भैया, मुहवा से खींचा लकड़िया जी.
पंडित और नाऊ को भी नही बख्शा जा रहा था, दुलारी तो ख़ास तौर पे नाऊ के पीछे पड़ी थी. जब हम लोग चाय लेकर बाहर पहुँचे, भांवर की तैयारिया शुरू हो गयी
थी. अल्पना भी आ गई थी चाय बटवाने.मैने दोनो से इशारे से पूछा कि जूता चुराने का क्या हुआ. गुड्डी ने हंस के कहा, कम्मो के पास है. दुलहे के पहुँचते ही उसने पार कर दिया था. आख़िर सबसे छोटी साली है. मैने देखा कि वो राजीव के पास चिपट के बैठी है.
अल्पना और गुड्डी ने जैसे ही चाय बाटना शुरू किया, बारात के जितने लड़के थे उनमे हलचल हो गयी. किसी ने पूछा , अरे यार चाय गर्म है कि नही अरे जब बाटने वालियाँ इत्ति गरम है तो चाय तो गर्म होगी ही. कोई बोला, अरे यार अगर इनके हाथ से जहर भी मिल जाय तो पी लू. जब गुड्डी झुकती तो लड़कों की आँखे एकदम उसके टॉप फाड़ते उभारों पे गढ़ जाती. तब तक एक दो चुस्की के बाद कोई बोला, अरे ये तो नमकीन है अल्पना ने हंस के जवाब दिया अरे आप ही लोग तो कह रहे थे कि बाँटने वालिया जैसी होंगितो अगर बाँटने वालिया नमकीन है तो चाय भी नमकीन हो गयी होगी.तब तक चाय देते देते, गुड्डी दूसरे किनारे पे पहुँच गयी थी और वही से वह बोली,
" अरे अभी तो आप लोग कह रहे थे कि हमारे हाथ से जहर भी पी लेंगे तो ये तो थोड़ा नमक ही है अरे इससे पता चल गया कि कितनी मर्दानगी है, बारात के लड़कों मे और नमक तो इसलिए पिलाया हैज़िससे आप लोग नमक हरामी ना करे."
सब लोग हंस पड़े और सब की आँखे गुड्डी और अल्पना की ही ओर थी. मैं भी बोली, " ठीक है ये लोग एक बार ये चाय ख़तम कर के अपनी मरदानगि साबित कर दे तो मीठी पिला दे."
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