RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल्स स्कूल पार्ट --40
अब आगे .....
थोड़ा सा हिचकते हुए स्नेहा ने अपने हाथ में पकड़े लंड को नीचे झुकाया और अपने होंठो से छुआ दिया.. और फिर होंठों पर जीभ फेरते हुए उसको दूर कर दिया...
"क्या हुआ?" विकी तड़प सा उठा और खुद ही नीचे झुक कर वापस उसके होंठो से भिड़ाने की कोशिश करने लगा..
"कुच्छ नही.. अजीब सा लग रहा है..." अब स्नेहा खुल गयी थी.. पूरी तरह...
" अच्च्छा नही लग रहा क्या..?" बेचैनी से विकी ने पूछा...
बिना कोई जवाब दिए.. स्नेहा ने अपने होंठो को आधा खोला और सुपादे के अगले भाग को होंटो में दबा लिया.. और विकी की और देखने लगी..
विकी को पहली बार इतना आनंद आया था की उसकी आँखें बंद हो गयी..," अयाया.. "
"अच्च्छा लग रहा है...?" अब की बार स्नेहा ने पूचछा...
"हाआँ..." जीभ निकाल कर चाटो ना.. प्लीज़..." विकी कराह उठा.. आनंद के मारे..
स्नेहा को कोई ऐतराज ना हुआ.. उसको ये जानकार बहुत खुशी हुई की विकी को अच्च्छा लग रहा है.. अपनी जीभ निकाली और लंड की जड़ से लेकर सुपादे तक नीचे से चाट'ती चली गयी...
"आआहह.. मार डालोगी.. तुम तो.. ऐसे ही करो.. और इसको मुँह के अंदर लेने की कोशिश करो..."
स्नेहा तो मस्त होती जा रही थी... उसको भी बहुत मज़ा आ रहा था..
विकी ने देखा स्नेहा अपने हाथ को उसकी टाँगों के बीच से निकालकर नीचे ले जाने की कोशिश कर रही है.. विकी को समझते देर ना लगी... वो भी तो तड़प रही होगी," एक मिनिट.. कहकर विकी घूम गया और झुकते हुए अपनी कोहनियाँ स्नेहा की जांघों के बीच टीका दी.. स्नेहा की चिकनी चूत अब उसकी पहुँच में थी..
स्नेहा के लिए भी अब आसान हो गया.. लंड उसके मुँह के उपर सीधा लटक रहा था.. उसने अपने होंठ जितना हो सकता था उतने खोले और सूपदे को मुँह में भर लिया...
दोनो 69 की स्थिति में थे.. स्नेहा तो स्नेहा; विकी भी मानो आनंद के असीम सागर में तेर रहा हो.. बड़ी ही नाज़ूक्ता से उसने स्नेहा की जांघों को अपने हाथो से दबाया.. और एक हाथ की उंगली से उसकी चूत की कुँवारी फांकों को अलग करके उनके बीच छुपे हुए छ्होटे से दाने को देखा.. मस्ती से अकड़ा हुआ था.. चूत का रंग अंदर से स्नेहा के होंठो जैसा ही था.. एकद्ूम गुलाबी रंगत लिए हुए.
वह झुका और स्नेहा के 'दाने' को चूसने लगा..
स्नेहा एकद्ूम उच्छल सी पड़ी और इस उच्छलने में लंड सूपदे से कहीं ज़्यादा दूर उसके मुँह में हो आया...
स्नेहा इतनी उत्तेजित होने के बावजूद उसके सबसे अधिक संवेदनशील अंग के साथ छेड़ छाड सहन नही कर पा रही थी.. मस्ती से वा अपनी गांद को इधर उधर मटकाने लगी.. विकी ने भी उसको कसकर दबोच लिया.. और एक मुश्त कयि मिनूटों तक स्नेहा को जन्नत के प्रॅथम दर्शन कराता रहा...
दोनो ही बावले से हो चुके थे.. दोनो एक दूसरे का भरपूर साथ दे रहे थे.. की अचानक एक बार फिर स्नेहा के साथ वही स्थिति एक बार फिर उभर आई.. उसकी टाँगें काँपने लगी.. सारा बदन अकड़ सा गया और अपनी जांघों में उसने विकी का सिर जाकड़ लिया..
विकी को भी हटने की जल्दी ना थी.. स्नेहा की बूँद बूँद को वह मदहोशी के आलम में ही अपने गले में उतार गया...
उधर स्नेहा भी उसके लंड के साथ अब तक बुरी तरह व्यस्त थी... चाट चाट कर, चूस चूस कर... काट काट कर उसने सूपड़ा लाल कर दिया था...
स्नेहा के ढीली पड़ते ही विकी 'अपना' हाथ में लेकर घुटनो के बाल उसके मुँह के पास बैठ गया," तुम्हे भी पीना पड़ेगा...?"
"क्या?" स्नेहा के चेहरे से असीम तृप्ति झलक रही थी...
"यही.. इसका रस.. जो अभी निकलेगा..." विकी का हाथ बड़ी तेज़ी से चल रहा था..
"नही... रहने दो ना... प्लीज़.." स्नेहा ने रिक्वेस्ट की..
" रहने कैसे दूँ.. मुझे भी तो पीला दिया.. ज़बरदस्ती.. टाँगों में सिर भींच कर.."
उन्न पलों को याद करके स्नेहा बाग बाग हो गयी.. फिर शरारत से मुँह बनाते हुए बोली.. "ठीक है... लाओ पिलाओ.." कह कर उसने अपना मुँह खोल लिया...
उसके बाद तो 2 ही मिनिट हुए होंगे.. अचानक विकी रुका और स्नेहा के खुले होंठो में लंड जितना आ सकता था फँसा दिया.. रस की धारा ने स्नेहा का पूरा मुँह भर दिया.. आख़िर कार जब बाहर ना निकल पाई तो मुस्कुराते हुए गटक लिया...
विकी धन्य हो गया... हटा और बेड पर धदाम से गिर पड़ा.. स्नेहा उठी और अपनी चूचियों को विकी की छाती पर दबा कर उसके होंठों को चूमने लगी.. अजीब सी क्रितग्यता उसके चेहरे से झलक रही थी...
इतनी हसीन और कमसिन लड़की को अपनी बाहों में पाकर नशे में होने के बावजूद तैयार होने में विकी को 3-4 मिनिट ही लगे... वह अचानक उठा और स्नेहा को अपने नीचे दबोच लिया.. उसकी आँखों में फिर से वही भाव देखकर स्नेहा मुस्कुराइ," अब क्या है..?"
"अब अंदर..." कहते हुए. विकी ने फिर उसकी जांघें खोल दी.. और हौले हौले टपक रही चूत पर नज़र गढ़ा दी... और एक बार फिर उसको तैयार करने के लिए उंगली और होंठो को काम पर लगा दिया...
स्नेहा भी जल्द ही फिर से फुफ्कारने लगी... लुंबी लुंबी साँसे और योनि छिद्र में फिर से चिकनाई उतर आना इस बात का सबूत था की वो उस असीम आनंद को दोबारा पाने के लिए पहली बार होने वाले दर्द को झेल सकती है...
विकी पंजों के बल बैठ गया और स्नेहा के घुटनो के नीचे से बेड पर हाथ जमकर उसकी जांघों को उपर उठा सा दिया... चूत हूल्का सी रास्ता दिखाने लगी.. विकी ने सूपड़ा 'सही' सुराख पर सेट किया और स्नेहा के चेहरे की और देखने लगा..," एक बार दर्द होगा.. सह लोगि ना...?"
"तुम्हारे लिए...." स्नेहा हमला झेलने के लिए तैयार हो चुकी थी.. अपने पहले प्यार की खातिर...
विकी के भी अब बात बर्दास्त के बाहर थी.. ज़्यादा इंतज़ार वो कर नही सकता था.. सो स्नेहा की जांघों को पूरी तरह अपने वश में किया.. और दबाव अचानक बढ़ा दिया...
स्नेहा के मुँह से तो चीख भी ना निकल सकी.. एक बार में ही सूपड़ा अपना रास्ता अपने आप बनाता हुआ काफ़ी अंदर तक चला गया था.. स्नेहा ने पहले ही अपने मुँह को अपने ही हाथो से दबा रखा था... लंड सर्दियों में जमें हुए मक्खन में किसी गरम चम्मच की तरह घुस गया था.. कुच्छ देर तक विकी ना खुद हिला और ना ही स्नेहा को हिलने दिया.. और आगे झुक कर स्नेहा की छातियो को दबाते हुए उसको होंठो को भी अपने होंठों की गिरफ़्त में ले लिया..
धीरे धीरे 'चम्मच' की गर्मी से 'चूत' का जमा हुआ 'मक्खन' पिघल कर बहने सा लगा.. इश्स चिकनाहट ने दोनो के अंगों को तर कर दिया.. स्नेहा को लगा.. अब हो सकता है तो उसने अपनी गांद उचका कर विकी को सिग्नल दिया...
विकी ने थोड़ा पिछे हट'ते हुए एक बार और प्रहार किया.. इश्स बार अंदर लेने में स्नेहा को उतनी पीड़ा नही हुई..
करीब 5 मिनिट बाद स्नेहा सामान्य हो गयी और अजीब तरह की आवाज़ें निकालने लगी.. ऐसी आवाज़ें जो कामोत्तेजना को कयि गुना बढ़ा दें...
अब दोनो ही अपनी अपनी तरफ से पूरा सहयोग कर रहे थे.. विकी उपर से आता और आनंद की कस्ति पर सवार स्नेहा की गांद नीचे से उपर की और उच्छलती और दोनो की जड़ें मिल जाती.. दोनो एक साथ आ कर बैठते...
आख़िरकार स्नेहा आज तीसरी बार 'आ' गयी... विकी भी आउट ऑफ कंट्रोल होने ही वाला था.. उसने झट से अपना लंड बाहर निकाला और फिर स्नेहा के मुँह के पास जाकर बैठ गया.. जैसे वहाँ कोई स्पर्म बॅंक खोल रखा हो...
स्नेहा ने शरारत से एक बार अपने कंधे 'ना' करने की तरह उचकाए.. और फिर मुस्कुराते हुए अपने होंठ खोल दिए.. उसकी आँखों में अजीब सी चमक थी... पहले प्यार की चमक!
सुबह विकी उठा तो स्नेहा उसके कंधे पर सिर रखे उसके बलों में हाथ फेरती हुई उसकी ही और देख रही थी.. अपलक!
"तुम कब जागी?" विकी ने हुल्की सी मुस्कान उसकी और फैंकते हुए पूचछा...
"मैं तो सोई ही नही.. नींद ही नही आई..?" नींद और पहले प्यार की खुमारी उसकी आँखों में हुल्की सी लाली के रूप में चमक रही थी.. और उसके चेहरे पर कली से फूल बन'ने का बे-इंतहा नूर था.. विकी ने उसकी आँखों में आँखें डाली तो स्नेहा ने पलकें झुका ली..
"कैसा रहा रात का अनुभव?" विकी ने उसकी और करवट लेते हुए स्नेहा की कमर में हाथ डाल कर अपनी और खींच लिया.. और स्नेहा मुस्कुरा कर उस'से चिपक गयी.....
" हम कहाँ रहेंगे मोहन?" स्नेहा ने उसके गले में अपनी गोरी बाँहें डाल दी..
" मतलब? " विकी ने नज़रें चुरा ली...
"मैं वापस हॉस्टिल नही जाना चाहती.. यहीं रहना चाहती हू.. तुम्हारे साथ.."
विकी ने बात टालने के इरादे से अपने एक हाथ से उसकी चूची को दबाया और उसके होंठो को अपने होंठो में लेने के लिए अपना चेहरा उसकी तरफ बढ़ा दिया..
कामुकता भरे आनंद की लहर स्नेहा के पुर बदन को दावादोल सा कर गयी.. पर वह अगले कदम के बारे में जान'ने को चिंतित थी.. उसने अपना चेहरा सिर झुका कर विकी की छाती में छुपा लिया," बताओ ना मोहन.. अब हम क्या करेंगे.. मुझे वापस तो नही भेजोगे ना? मुझे अब तुमसे दूर नही जाना.."
विकी एक पल के लिए असमन्झस में पड़ गया.. इश्स वक़्त उसको स्नेहा को वादों के जाल में उलझाए ही रखना था.. पर जाने क्यूँ.. स्नेहा के सीधे सवाल का टेढ़ा जवाब देने से वह कतरा रहा था..," पर तुम्हारे पापा.. उनका क्या करोगी..? विकी ने सवाल का जवाब सवाल से ही दिया...
स्नेहा का उम्मीदों से भरा मॅन क्षणिक कड़वाहट से भर उठा..," पापा! हुन्ह... उनकी पैदाइश होने के अलावा हमारा रिश्ता ही क्या रहा है.. मैं 8 साल की तही जब उन्होने मुझे हॉस्टिल में डाल दिया.. आज 11 साल होने को आ गये हैं.. और मुस्किल से 11 बार ही मैने उनका चेहरा देखा है.. मैं उनसे बहुत प्यार करती थी.. हमेशा उनसे मिलने को.. घर जाने को तड़पति रहती थी.. पर उन्होने.. पता नही क्यूँ.. मुझे प्यार दिया ही नही.. कभी हॉस्टिल से घर लेने भी आता तो उनका ड्राइवर.. घर जाकर पता चलता.. देल्ही गये हैं.. बाहर गये हैं.. और मुझे तकरीबन उसी दिन शाम को या अगले दिन वापस भेज हॉस्टिल में फैंक दिया जाता" स्नेहा की आँखों में अतीत में मिली प्यार के अभाव की तड़प के छिपे हुए आँसू जिंदा हो उठे..," सब फ्रेंड्स के मम्मी पापा.. उनसे मिलने आते.. उनको घर लेकर जाते और वो लड़कियाँ आकर घर जाकर की गयी मस्ती को सबको बताती.. सोचो.. मेरे दिल पर क्या बीत-ती होगी.. लड़कियाँ मुझे 'अनाथ' तक कह देती थी.. अगर पापा ऐसे ही होते हैं तो सबके क्यूँ नही होते मोहन.. हम अपने बच्चे को हॉस्टिल नही भेजेंगे.. अपने से कभी दूर नही करेंगे मोहन... मैने महसूस किया है.. बिना अपनों के साथ के जिंदगी कैसी होती है.. फिर भी मैं हमेशा यही सोचती थी की पापा बिज़ी हैं.. पर प्यार तो करते ही होंगे... पर कल तो उन्होने दिखा ही दिया की... मैं सच मैं ही 'अनाथ' हूँ.." कहते हुए स्नेहा का गला बैठ गया.. और दिल की भादास विलाप के रूप में बाहर निकालने लगी...
विकी से उसका रोना देखा ना गया.. चेहरा उपर करके उसके आँसू पौंच्छने लगा... पर दिल उसका भी ज़ोर से धड़क रहा था.. उसके रोने के पिछे असली कारण वही था," अब.. रोने से क्या होगा सानू? सम्भालो अपने आपको... " विकी ने उसको अपनी छाती से चिपका लिया....
" बताओ ना.. हम कहाँ रहेंगे.. कहाँ है अपना घर?" स्नेहा पूरी तरह से विकी के लिए समर्पित हो चुकी थी.. उसके घर को अपना घर मान'ने लगी थी...
" उस'से पहले तुम्हे मेरी मदद करनी पड़ेगी... सानू..!"
" मैं क्या मदद कर सकती हूँ..? मैं खुद अब तुम्हारे हवाले हूँ..!"
" वो तो ठीक है.. पर अगर तुम्हारे पापा को पता चल गया तो मेरी जिंदगी ख़तरे में पड़ जाएगी.. अब तक तो फिर भी हो चुकी होगी... ये पता चलते ही की मैं ठीक ठाक हूँ और तुम मेरे साथ हो.. पोलीस मुझे उठा लेगी.. उसके बाद तुम फिर अकेली हो जाओगी... मुझे जैल मैं भेज देंगे.. और तुम्हारे पापा कभी सच्चाई को सामने नही आने देंगे...." विकी ने अपनी अगले प्लान की भूमिका बाँधी....
स्नेहा सुनकर डर गयी.. उसके पापा 'पॉवेरफूल थे.. और सच में ऐसा कर सकते थे.. स्नेहा के लिए तो विकी उसके बाप का एस.ओ. ही था..," फिर.. अब हम क्या करें मोहन!"
"सिर्फ़ एक ही रास्ता है.. तुम पहले मीडीया में जाकर सच्चाई बता दो.. की तुम्हारे बाप ने ही ये सब किया है.. और ये भी कहना की तुम अब वापस नही जाना चाहती.. फिर कुच्छ दिन तुम्हे छिप कर रहना पड़ेगा..!" विकी ने स्नेहा को वो रास्ता बता दिया जो उसको मंज़िल तक ले जाने के लिए काफ़ी था..
"उसके बाद तो सब ठीक हो जाएगा ना?"स्नेहा को अब भी चिंता सता रही थी..
"हाँ.. उसके बाद हम साथ रह सकते हैं.. खुलकर.." स्नेहा की सहमति जानकर विकी खिल उठा और उसने अपना हाथ स्नेहा की जांघों के बीच फँसा दिया...," पर याद रखना.. तुम्हे मेरा कहीं जिकर नही करना है.. यही कहना की मैं किसी तरह उनके चंगुल से बचकर अपनी किसी सहेली के घर चली गयी थी.. अगर मेरा नाम आया तो वो मुझे ढ़हूंढ लेंगे...!"
"आआहह.. ये मत करो.. मुझे कुच्छ हो रहा है.." अपनी पॅंटी में विकी की उंगलियाँ महसूस करके तड़प उठी...
"तुमने सुन लिया ना..." विकी ने अपना हाथ बाहर निकाल लिया..
"हां.. बाबा! सुन लिया.. कब चलना है.. मीडीया के सामने..?"
"मैं नही जाउन्गा.. तुम्हे किसी दोस्त के साथ भेज दूँगा.. चिंता मत करो.. मैं आसपास ही रहूँगा.." कहकर विकी उठ गया...
"अब कहाँ भाग रहे हो.. मुझे छेड़ कर..!" स्नेहा ने विकी को बेड पर वापस गिरा लिया और उसके उपर आ चढ़ि... अपनी टाँगें विकी की जांघों के दोनो तरफ रखकर 'वहाँ' बैठ गयी और सामने की और झुक कर अपनी चूचियों विकी की छाती पर टीका दी....
नया नया खून मुँह लगा था.. ये तो होना ही था...
कुच्छ ही देर बाद दोनो के कपड़े बेड पर पड़े थे और दोनो एक दूसरे से 'काम-क्रीड़ा' कर रहे थे.. स्नेहा की आँखों में अजीब सी तृप्ति थी.. 'अपनी मंज़िल' को प्राप्त करने की खुशी में वो भाव विभोर हो उठी थी.. प्यार करते हुए भी उसकी आँखों में नमी थी... खुशी की!
"रिया.. आज वो लड़का नही आया ना...!" क्लास में बैठी प्रिया की नज़रें किसी को ढ़हूंढ रही थी...
"ओहूओ... क्या बात है.. आजकल...."
"ज़्यादा बकवास मत्कर.. पहले तो मेरी फाइल दे दी उस घंचक्कर को .. अब मज़ाक सूझ रहे हैं... आज प्रॅक्टिकल है.. केमिस्ट्री का.. अगर नही आया तो मैं क्या करूँगी.." प्रिया ने मुँह बनाकर अपने चेहरे पर उभर आए शर्मीलेपान को छिपाने की कोशिश की...
"हमारे सामने ही तो रहता है.. घर जाकर माँग लाना..!" रिया ने चुटकी ली.. उसको पता था की उसके घर में ये सब नही चलता....
"तू पागल है क्या..? मैं उसके घर जाउन्गि? मरवा दे मुझे!....... तू ले आना अगर हिम्मत है तो!" प्रिया ने रिया को झिड़कते हुए कहा...
"मैं तो कभी ना जाउ? हां.. वीरेंदर को कह सकती थी पर आज तो वो भी नही दिख रहा..
तभी क्लास में सर आ गये और उनकी गुफ्तगू बंद हो गयी
दोस्तो इधर मुरारी का क्या हाल हो रहा है ज़रा इसे भी देंखे ......
" मे आइ कम इन सर?" 22-23 साल की चुलबुली सी एक छर्हरे बदन की युवती ने मुरारी से अंदर आने की इजाज़त माँगी...
"आओ जान ए मंन.." मुरारी खुश लग रहा था..
" सर.. देल्ही से पांडे जी का फोन है.." कहकर वो वापस चली गयी..
"नशे में होने के बावजूद मुरारी खुद को रिसीवर उठाकर खड़ा होने से ना रोक पाया," जैहिन्द सर..!"
" ये क्या तमाशा है मुरारी..? तुम्हारी बेटी तो सही सलामत है..?" उधर से गुर्राती हुई आवाज़ आई..
मुरारी चौंके बिना ना रह सका.. उसने तो स्नेहा को मना किया था.. किसी को भी कुच्छ भी बताने से.. फिर बात देल्ही तक कैसे पहुँच गयी...," हां.. हां सर.. मैं अभी आपको फोन करने ही वाला था.. ववो स्नेहा का फोन ..आया था.. अभी अभी.. बस उस'से ही बात कर रहा था.. वो.. किसी ने अफवाह फैलाई थी.. सर... मैं आपको बताने ही वाला था.."
"अच्च्छा.. अफवाह फैलाई थी.. ज़रा एक बार टीवी ऑन करके इब्न7 देखो.. तुम्हारी अकल ठिकाने आ जाएगी.. हाउ मीन यू आर!" कहकर पांडे ने फोन काट दिया..
टी.वी. तो पहले ही ऑन था.. बस चॅनेल ज़रा दूसरा था.. एफटीवी! मुरारी ने हड़बड़ाहट में चॅनेल सर्च करने शुरू किए.. जैसे ही इब्न& स्क्रीन पर आया.. उसकी आँखें फटी की फटी रह गयी.. उसकी बेटी जैसी लड़की टीवी पर थी... अर्रे हाँ.. वही तो थी..!
मुरारी को एकदम ऐसा अहसास हुआ मानो उसके पैरों तले ज़मीन खिसक गयी हो... वो खड़ा ना रह सका और धम्म से सोफे पर आ गिरा...
स्नेहा बार बार टीवी स्क्रीन पर वो बातें कह रही थी.. जिनको वो 100% सच मान रही थी.. उसके बाप का उसको घूमकर आने के लिए कहने से लेकर बाप के गुण्डों से बचकर वहाँ तक आने की.... कुच्छ ही बातों में मिलावट थी.. जैसे उसको नही पता की ड्राइवर कहाँ है.. और वो अब अपनी किसी पुरानी सहेली के पास रह रही है..
"अब मैं आपको वो रेकॉर्डिंग सुनाती हूँ.. जो मेरे फोन में डिफॉल्ट सेट्टिंग होने की वजह से सेव हो गयी.... मेरे पापा ने मेरे पास कॉल की थी.." कहते हुए स्नेहा बीच बीच में सूबक रही थी.. और न्यूज़ रीडर बार बार उसको धैर्य रखने की गुज़ारिश कर रही थी..
रेकॉर्डिंग सुनकर मुरारी का चेहरा लाल हो गया.. उसके द्वारा कही गयी बातें जाने अंजाने मुरारी की और ही उंगली उठा रही थी.. बेशक उसके दिमाग़ में ये ख़याल बहुत बाद में.. विरोधी पार्टियों की तरफ से धमकी भरे फोन आने के झूठे आरोपों को सच साबित करने के उद्देश्या से आया था...
चॅनेल वाले टीआरपी बढ़ाने के चक्कर में बाल की खाल उतारने में लगे थे.. टीवी स्क्रीन पर नीचे लगातार फ्लश हो रहा था.. " मुरारी या दुराचारी! एक्सक्लूसिव ऑन इब्न7"
" स्नेहा जी.. कहीं इसमें आपका ड्राइवर भी तो शामिल नही है..?" आंकर ने सवाल किया...
"नही.. मैं आपको बता ही चुकी हूँ की उन्होने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की थी.. मुझे बचाने की.. पर वो उसको भी मेरे साथ ही डाल कर ले गये.. फिर उसने वहाँ से निकालने में भी मेरी मदद की... बाकी रेकॉर्डिंग से सब कुच्छ सॉफ है.."
आंकर ने नहले पर दहला ठोंका..," पर रेकॉर्डिंग मैं तो आप कह रही हैं कि आप ड्राइवर के साथ ही हैं... और अब आप कह रही हैं की आपको ड्राइवर के बारे में नही पता.. वो कहाँ है.. इसकी वजह?"
स्नेहा एक पल को सकपका गयी.. पर जल्द ही संभालते हुए बोली...," वो.. वो मैने तब झूठ बोला था.. ताकि पापा मेरी लोकेशन के बारे में आइडिया ना लगा पायें..!"
" पर अगर गुंडे आपके पापा ने ही भेजे थे.. तो उनको तो मालूम होना चाहिए था कि ड्राइवर उनके गुण्डों के ही पास है.. फिर उन्होने आपसे पूचछा क्यूँ?" आंकर ने एक और बआउन्सर मारा...
ये सवाल सुनकर मुरारी के चेहरे पर हूल्का सा सुकून आया.. ," इश्स लौंडिया को तो सीबीआइ में होना चाहिए.." उसके मुँह से निकला..
" ये सवाल आप मेरे पापा से ही करें.. उन्होने क्यूँ पूचछा..? या फिर हो सकता है.. वो भी मेरे बाद बच निकलने में कामयाब हो गये हों.. इसीलिए उन्होने फोन किया हो..?"
" तो देखा आपने.. हमारे देश की राजनीति किस कदर गिर चुकी है.. चंद वोटों की खातिर जो नेता.. अपनी इतनी प्यारी बेटी तक को दाँव पर लगाने से नही चूकते.. उनके लिए आप और हम जैसे इंसानो की क्या कीमत है.. आप अंदाज़ा लगा सकते हैं.. बहरहाल.. हम मुरारी से कॉंटॅक्ट करने की कोशिश कर रहे हैं.. तब तक लेते हैं एक छ्होटा सा ब्रेक.. आप देखते रहिए.. आज की सबसे सनसनीखेज वारदात.. ' मुरारी या दुराचारी ' सिर्फ़ और सिर्फ़ इब्न पर.. जाइएगा नही.. अभी और भी खुलासे होने बाकी हैं.. मिलते हैं ब्रेक के बाद!"
पागल से हो उठे मुरारी ने टेबल पर रखी बोतल टीवी पर दे मारी.. स्क्रीन टूट कर टीवी से धुंवा निकलने लगा.. हड़बड़ाहट में मुरारी ने पांडे के पास फोन मिलाया...
" प्पंडे जी.. सब बकवास है.. झूठह है.. मेरे खिलाफ बहुत बड़ी साजिस हो रही है.. विरोधियों की और से..."
" व्हाट दा हेल आर यू टॉकिंग अबौट.. ये मुहावरा बहुत पुराना हो गया मुरारी.. मत भूलो की स्क्रीन पर तुम्हारी अपनी बेटी है.. जो तुम्हारे शड्यंत्रा का खुलासा कर रही है... अब हो सके तो जल्दी से अपनी बेटी को अपने कंट्रोल में लो.. वरना आप कल से पार्टी में नही हैं.. आप जैसे आदमी की वजह से हम पार्टी की छवि को नुकसान नही पहुँचा सकते..!" पार्टी आलाकमान का गुस्सा सातवें आसमान पर था..
"सर.. सुनिए तो.. वो.. वो मेरी बेटी नही है... मैं ये बात प्रूव कर सकता हूँ.. मैं वो डीएनए पीएनए के लिए भी तैयार हूँ. सर.. वो मेरी बीवी की नाजायज़ औलाद है.. साली कुतिया.. अपनी मा पर गयी है.. मादर चोद.. बिक गयी! वो मेरा खून नही है सर.." मुरारी अनाप शनाप जाने क्या क्या उगले जा रहा था..
"माइंड उर लॅंग्वेज.. मुरारी! वी हॅव नतिंग टू डू व्ड उर पास्ट ऑर वॉटेवर यू आर टॉकिंग अबौट.. जस्ट ट्राइ टू टेक बॅक उर चाइल्ड इन उर फेवर ओर बी रेडी टू बी किक्ड आउट...!" कहकर पांडे ने पटाक से फोन काट दिया..
काफ़ी देर से वो दरवाजे पर खड़ी मुरारी की कॉल के ख़तम होने का इंतज़ार कर रही थी... जैसे ही कॉल डिसकनेक्ट हुई.. उसने अंदर आने की इजाज़त माँगी," मे आइ कम इन,सर?"
"तू.. साली कुतिया.. यहाँ खड़ी होकर क्या सुन रही है..? बेहन्चोद.. अंदर आ.."
शालिनी डर के मारे काँपने लगी.. 2 दिन पहले ही उसने मुरारी के ऑफीस को जाय्न किया था.. यूँ तो ऑफीस के हर एंप्लायी को मुरारी की चरित्रहीनता का पता था.. पर नौकरी का लालच और सुन्दर और कुँवारी लड़कियों को अच्च्ची तनख़्वाह देने का मुरारी का रेकॉर्ड लड़कियों को वहाँ खींच ही लाता था.. वैसे भी मुरारी ऑफीस में 5-6 महीनों से ज़्यादा किसी लड़की को रखता नही था...," सर्र.. वो.. इब्न7 से बार बार आपके लिए कॉल आ रही है.." शालिनी सूखे पत्ते की तरह थर थर काँपती थोडी सी अंदर आकर खड़ी हो गयी...
" उन्न बेहन के लोड़ों को तो मैं बाद में देख लूँगा.. पहले तू बता.. क्या सुन रही थी.. छिप कर..!" मुरारी खड़ा होकर शालिनी के पास गया और उसका गिरेबान पकड़ कर खींच लिया.. शर्ट का एक बटन टूट कर फर्श पर जा गिरा.. शालिनी की सफेद ब्रा शर्ट में से झलक उठी..
" कुच्छ.. नही सर्र.. मैने कुच्छ नही सुना.. म्म्मै तो अभी आई थी.. प्लीज़ सर.. मुझे माफ़ कर दीजिए.. आइन्दा ऐसी ग़लती नही होगी..." शालिनी ने मुरारी के मुँह से आ रही तेज बदबू से बचने के लिए अपना चेहरा एक तरफ करके अपना हाथ उपर उठाया और.. उसके और मुरारी के चेहरे के बीच में ले आई...
मुरारी ने शालिनी का वही हाथ पकड़ा और उसको मोड़ दिया.. दर्द के मारे वो घूम गयी.. उसकी गांद मुरारी की जांघों से सटी हुई थी..," आ.. छ्चोड़ दीजिए सर.. प्लीज़.. मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ...
अब तक शालिनी के कुंवारे और गरम खून की महक पाकर मुरारी की आँखों में वासना के लाल डोरे तैरने लगे थे..," छ्चोड़ दूं.. साली.. कुतिया.. तुझे छ्चोड़ दूँगा तो क्या तेरी मा को चोदुन्गा... च्छुपकर बात सुन'ने की सज़ा तो तुझे मिलेगी ही.." कहते हुए मुरारी ने उसको ज़ोर से धक्का दिया और संभालने की कोशिश करती हुई सी शालिनी बेड के कोने पर जा गिरी..
तुरंत ही उठते हुए उसने जहाँ से बटन टूटा हुआ था.. वहाँ शर्ट को अपने हाथ से पकड़ लिया.. और गिड़गिदाने लगी..," मैं बर्बाद हो जाउन्गि सर्र.. मुझे नही करनी नौकरी.. आप मुझे जाने दीजिए प्लीज़.. जाने दीजिए.." जो कुच्छ होने वाला था.. उसकी कल्पना करके ही शालिनी सिहर उठी.. और फफक कर रोने लगी...
"चुप कर कुतिया.. ज़्यादा नाटक मत कर.. नही तो कभी वापस नही जा पाएगी... तू मेरी बातें सुन्न'ने की हिम्मत करती है.. मुरारी की बातें.." मुरारी ने कहते हुए उसके बालों को पकड़ कर उपर की और खींच लिया.. असहाय सी हो उठी शालिनी की आइडियान दर्द को कम करने की खातिर उपर उठ गयी.. तब भी बात नही बनी तो उसके हाथ उपर उठकर अपने बालों को नीचे की और खींचने लगे...," प्लीज़.. सर.. मैं मर जाउन्गि.. मुझे जाने दो...!"
मुरारी ने एक बार फिर उसकी शर्ट को पकड़ कर खींचा और शर्ट पर उसकी इज़्ज़त के रखवाले बटन दम तोड़ गये.. फटी हुई शर्ट में शालिनी का कमसिन बदन दारू के नशे में और इज़ाफा कर रहा था... बाल खींचे होने की वजह से वो बैठकर अपने आपको छुपा भी नही सकती थी.. असहाय खड़ी थी.. बिलबिलाते हुए.. बिलखते हुए...
"इसको खोल साली..! वरना इसे भी फाड़ दूँगा.." नशे में टन मुरारी ने शालिनी की ब्रा में हाथ डाल दिया... उसकी चूची पर उभरा हुआ मोटा दाना मुरारी की उंगलियों से टकरा कर सहम गया... मुरारी अपनी बेटी का गुस्सा उस बेचारी पर निकाल रहा था....
"प्लीज़ सर.. मेरे बाल छ्चोड़ दीजिए.. बहुत दर्द हो रहा है..." शालिनी चीख सी पड़ी...
"ब्रा निकल पहले.. नही तो उखाड़ दूँगा सारे..?" मुरारी ने बालों को और सख्ती से खींच लिया..
"अया.. निकालती हूँ.. सर.. भगवान के लिए.. प्लीज़.. एक बार छ्चोड़ दीजिए बाल.. अया.."
मुरारी ने झटका सा देते हुए उसके बालों को छ्चोड़ दिया... और जाकर दरवाजा बंद कर दिया..
शालिनी ने एक बार अपनी नज़रें उठाकर मुरारी की तरफ इस तरह देखा जैसे कोई मासूम हिरण शेर के पंजों से घायल होकर उसके पैरों में पड़ा हो और अपनी जिंदगी की भीख माँग रहा हो.. पर मुरारी पर इसका कोई फ़र्क़ नही पड़ा.. वह शेर थोड़े ही था.. वह तो भेड़िया था.. जो बिना भूख लगे भी शिकार करते हैं.. सिर्फ़ शिकार करने के लिए.. अपनी कुत्सित राक्षशी भावनाओ की तृप्ति के लिए..," निकालती है साली या खींच कर फाड़ दूं..."
और कोई रास्ता बचा भी ना था... शालिनी ने पिछे हाथ लेजाकार ब्रा के हुक खोल दिए.. ब्रा ढीली होकर नीचे सरक गयी.. उसने झुक कर 50 साल के राक्षस के सामने नंगे खड़े अपने जिस्म को देखा और फूट फूट कर रोने लगी...
" क्या री शालिनी तेरी चूचियाँ तो बड़ी मस्त हैं.. क्या मसल्ति है इन्न पर!" शालिनी के क्रंदन से बेपरवाह मुरारी ने आगे बढ़कर ब्रा को खींचकर निकाल दिया और उसकी मस्त कबूतरों जैसी गोरी चूचियों को बारी बारी से मसालने लगा... शालिनी को चक्कर आ रहे थे.. मुरारी इतनी कामुकता से उनको मसल रहा था की यदि उसकी जगह उसका 'रोहित' होता तो नज़ारा ही कुच्छ और होता.. जिसको उसने आज तक खुद को उनके पास फटकने तक नही दिया था... शालिनी के लगातार बह 5रहे आँसुओं से उसकी चूचियाँ गीली हो गयी थी...
"चल जीन्स खोल..! तेरी चूत भी इनकी तरह करारी होगी.. शेव कर रखी है या नही.... अगर..." मुरारी का वाक़या अधूरा ही रह गया.. दरवाजे पर जोरों से खटखट होने लगी...
"कौन है मदर्चोद.. किसने हिम्मत की दरवाजे तक आने की.." उसने फोन उठाकर गार्ड को फोन मिलाया.. पर किसी ने फोन नही उठाया..!
" आबे... कहाँ अपनी मा का.. कौन है बे.. चल फुट..." पर दरवाजे पर खटखट की आवाज़ बढ़ती ही गयी...," तू रुक एक बार.. साले बेहन के..." दरवाजे के खुलते ही मुरारी का सारा नशा उतर गया.. उसकी आँखें फटी की फटी रह गयी...... अधूरी बात उसने अपने गले में थूक के साथ गटक ली.. और दरवाजा बाहर से बंद करते हुए निकल गया...
" वी आर फ्रॉम सी.आइ.ए. भिवानी मिस्टर. मुरारी, दुराचारी और वॉटेवर.. यू आर अंडर अरेस्ट.." 3 सिपाहियों और एक ए.एस.आइ. के साथ खड़े इनस्पेक्टर ने उसका स्वागत किया...
मुरारी फटी आँखों से उसको देखता रहा.. फिर संभालते हुए बोला..," तू जानता तो है ना मैं कौन सू!" मुरारी ने बंदर घुड़की दी...
" हां.. कुच्छ देर पहले टी.वी. पर देखा था.. कुत्ते से भी गया गुजरा है तू.. लानत है 'बाप' के नाम पर.. पर तू शायद मुझे नही जानता.. मुझे टफ कहते हैं.. टफ.. चल थाने.. बाकी की कुंडली वहाँ सुनता हूँ.. डाल लो इसको.." टफ ने सिपाहियों की और इशारा किया....
"एक मिनिट.. तुम तो भिवानी से हो.. तुम मुझे कैसे अरेस्ट कर सकते हो..?" मुरारी उसकी टोन से बुरी तरह डर गया था..
"अबबे चुतिये.. हिन्दी समझता ही नही है.. सालो.. इतने क्राइम करते हो.. तो थोड़ा सा जी.के. भी रखा करो.. किडनॅपिंग वाला नाटक तूने वही रचाया था ना.. तो क्या पोलीस लंडन से आएगी.. भूतनि के..." कहकर टफ ने उसको सिपाहियों की और धकेला.. और जाने के लिए वापिस मूड गया....
"मुझे बचाओ प्लीज़.. मुझे यहाँ से निकालो.." दरवाजा अंदर से थपथपाया गया तो टफ चौंक कर पलटा.. एक पल भी बिना गँवाए उसने दरवाजा खोल दिया.. और अंदर का द्रिस्य देखकर चौंक पड़ा..
फर्श पर शराब की बोतल टूटी पड़ी थी.. टीवी का स्क्रीन टूटा हुआ था... और टफ की आँखों के सामने आँखें झुकाए अपनी फटी हुई शर्ट को अपने बदन पर किसी तरह लपेटे खड़ी शालिनी भी जैसे टूटी हुई ही थी.. उसके बॉल बिखरे पड़े थे और बदहवास सी लगातार बह रहे अपने आँसुओं को अपनी आस्तीन से पौंच्छने की कोशिश कर रही थी..
"ओह्ह्ह.. एक मिनिट.." टफ लगभग भागते हुए अंदर गया और बेड की चादर खींच कर शालिनी के बदन को ढक दिया...
"ये सब क्या है?" टफ ने सिपाहियों के साथ जा रहे मुरारी को आवाज़ लगाकर वापस बुला लिया," अंदर लाओ इसको!"
मुरारी विकी के बिच्छाए जाल, अपनी नियत और नियती के चक्रव्यूह में बुरी तरह से फँस गया था.. हमारी मीडीया आजकल एकमात्र अच्च्छा काम यही कर रही है कि वो मुद्दों को इस तरह उठाती है जैसे इस-से पहले ऐसा कभी नही हुआ... और उनके द्वारा दिखाई गयी खबर पर अगर प्रसाशण तुरंत कार्यवाही नही करता तो वे प्रायोजित करना शुरू कर देते हैं की सब मिले हुए हैं.. बड़ी मछ्लियो के मामले में तो वो खास तौर पर ऐसा करते हैं.. बेशक ऐसा वो अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए करते हैं.. पर आज उनके दिखाए टेलएकास्ट से कम से कम जो एक अच्च्छा काम हुआ वो ये.. की बेचारी शालिनी की इज़्ज़त तार तार होने से बच गयी.. देल्ही में बैठे पार्टी के आला नेताओ ने पार्टी की छवि बचाने के लिए अधिकारियों पर तुरंत कार्यवाही का दबाव बनाया और उसका ही नतीजा था.. की भिवानी पोलीस डिपार्टमेंट में हाल ही में प्रमोशन पाकर इनस्पेक्टर बने सबसे काबिल और दबंग टफ को ये काम सौंपा गया....
"ये क्या है मुरारी..?" टफ को लगा शालिनी बात करने की हालत में नही है... इसीलिए मुरारी से ही पूच्छ लिया...
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