RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
उस घटना के बाद मैं शिशिर के सामने नहीं गई। मन में चोर होने से किसी से कहने की हिम्मत नहीं हुई। मेरी झिझक भी खत्म हो गई। पेटीकोट में घूमती रहती, कभी-कभी तो जानबूझ कर और उघाड़ लेती। कभी ऐसा पोज बनाती कि चूचियां, चूतड़ या यहां तक कि चूत उभर के सामने आ जाये। छुप-छुप करके देखती कि वह नंगा तो नहीं हो गया है। इस तरह के खेल में मुझे मजा आने लगा था। इऩ दिनों मैं राकेश से चुदवाती भी बहुत थी।
एक सुबह शिशिर ने छत पर खड़े-खड़े ऊँची आवाज में कहा- “आज रात दस बजे तमाशा होगा खिड़की खोल के रखना…” बात जानबूझ के कही गई थी।
मैंने निश्चय कर लिया कि खिड़की नहीं खोलूंगी, राकेश के सामने कुछ ऐसी वैसी बात हो गई तो? राकेश साढ़े दस के करीब खर्राटे लेने लगा। मुझसे नहीं रहा गया। मैंने शिशिर के बेडरूम के सामने की खिड़की खोल दी। ठीक सामने उसकी खिड़की खुली थी। खिड़की के सामने पलंग पड़ा हुआ था जिसका सिरहाना खिड़की की ओर था। पलंग पर नंगी कुमुद लेटी थी। वह खिड़की की तरफ नहीं देख सकती थी। उसकी चूचियां साफ नजर आ रही थीं, छोटी-छोटी सख्त बादामी फूले हुये चूचुक। उसने अपनी टांगें चौड़ी कर रक्खी थीं। टांगों के बीच में पूरा नंगा लण्ड ताने शिशिर बैठा था और उसकी निगाहें खिड़की पर जमी हुई थीं।
मैं खिड़की खोलकर पलंग पर लेट गई। उसकी खिड़की मेरी आँखों के सामने थी। उसने सीधा मेरी आँखों में देखा और हाथ से लण्ड पकड़कर कुमुद की चूत में पेल दिया। कुमुद ने अपनी चूत उठाकर पूरा ले लिया। शिशिर सीधा मेरी आँखों में देख रहा था और कस-कस के कुमुद की चूत में पेल रहा था। चोद कुमुद को रहा था लेकिन मुझे लग ऐसा रहा था जैसे चोटें मेरी चूत में पड़ रही हों।
कुमुद भी हर चोट पर अपनी चूत आगे कर देती थी।
पता नहीं मेरा हाथ कब मेरी चूत पर पहुँच गया। बगल में मेरा पति लेटा था और मैं साड़ी उठाये चड्ढी एक तरफ किये अपनी चूत में उंगलियां अंदर बाहर कर रही थी। जैसे शिशिर की रफ्तार बढ़ने लगी तो मैं इस बुरी तरह से अपने को ही चोदने में लीन हो गई कि शिशिर के झड़ने के पहले ही मैं खलास हो गई। उस रात जब मैं सोई तो ऐसा लगा जैसे शिशिर के द्वारा चोदी गई हूँ।
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