RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
कुमुद की कहानी
मेजबान के रूप में अगली बारी कुमुद की थी। कुमुद ने पहले सेक्स वाली बातें महफिल में नहीं सुनाई थीं। पहले तो झिझकी लेकिन फिर कहने लगी:
“होली मनाने मेरी दीदी मैके आई थीं। उनकी शादी को एक साल से कम हुआ था। होली वाले दिन जीजाजी भी आ गये। जीजाजी बड़े खुले और मजाकिया किश्म के हैं। मेरी भाभियों ने उनसे छेड़खानी की, गंदे मजाक किये। जिनका उन्होंने तुरंत बढ़कर जवाब दिया, उनके संग होली खेली जिसमें मर्यादा को ध्यान में रखते हुये उन्होंने एक दूसरे के अंग छुये। मेरे साथ भी जीजाजी ने होली खेली लेकिन उस समय वह मर्यादा भूल गये। रंग लगाने के बहाने उन्होंने मेरे दोंनों उरोजों को मसला और हाथ बढ़ाकर चूत के ऊपर भी रगड़ दिया…” यह कहकर कुमुद ने सबेरे की होली को निशाना बना करके दबी आँखों से राकेश की ओर देखा।
कुमुद ने कहना चालू रखा- “मेरी दीदी ने देख करके भी अनदेखी कर दी। भाभियां हँसती रही। मेरे ऊपर कुछ शुरूर आ गया। रंग बाजी खतम हुई तो कहा गया कि सब लोग नहा धोकर तैयार हो जाओ क्योंकि जीजाजी के चाचा जी ने सबको बुलाया है जो उसी शहर में रहते थे।
एक भाभी ने ताना कसा कि मेरी ननद यानी दीदी के संग तो होली मनाई ही नहीं है।
तो वह मुश्कुराके बोले अभी मनाऊँगा।
मैं नहाने के लिये गुसलखाने में घुस गई। कपड़े उतार के नीचे की ओर देखा जहां जीजाजी ने हाथ लगाया था तो सिहरन हो आई। मैंने वहां पानी की तेज धार छोड़ दी। साबुन उठाने के लिये ताक पर हाथ बढ़ाया और ऊपर देखा जहां से छत साफ नजर आती थी। वहां जीजाजी दीदी को पकड़े हुये थे। छत की सीढ़ियों का दरवाजा उन्होंने बंद कर रखा था।
दीदी रंग से सराबोर हो रही थीं। दीदी अपने को छुड़ा के भागीं। जीजाजी ने छत की मुड़ेर पर दीदी को पकड़ लिया और सामने से चिपका लिया। दीदी मुड़ेर पर झुकतीं गईं और जीजाजी उनकी चूचियों को चूमने लगे। दीदी ने उनके सिर के ऊपर हाथ रखकर और जोर से सिर चूचियों पर दबा लिया और दूसरे हाथ से जीजाजी का लण्ड टटोलने लगीं। जीजाजी को जैसे करेंट लग गया हो। वह दीदी से अलग हो गये और पेटीकोट समेत उनकी साड़ी उलट दी।
गीले अंडरवेर को नीचे खींच कर उतार लिया फिर उंगली में घुमाते हुये नीचे सड़क पर फेंक दिया। अपने हाथ से पैंट के बटन खोलने लगे। इस बीच दीदी अपने ब्लाउज़ के बटन खोल चुकी थीं और उन्होंने ब्रेजियर के हुक खोलकर उसको अलग कर दिया। उनके भरे जोबन मुँह बाये खड़े थे। मुझे नहीं मालूम था कि उनकी गोलाइयां इतनी बड़ी थीं। जीजाजी ने अपनी पैंट गिरा दी। उनका मोटा लण्ड एकदम तनकर में खड़ा था। उस बीच मैंने साबुन घिस-घिस के बहुत सारा झाग बनाया, तभी जीजाजी का लण्ड सामने दिखा तो अपने आप मेरा हाथ चूत के छेद पर चला गया और मैंने सारा का सारा झाग चूत में घुसेड़ लिया।
दीदी ने अपने आप टांगें चौड़ा दीं। वह चूत का मुँह फैलाये मुड़ेर से टिकी झुकी हुई थीं, पीठ मुड़ेर पर पसरी हुई थी। दीदी का सिर मुड़ेर से बाहर निकला हुआ था। साड़क पर जाने वाला कोई भी ऊपर देखे तो उनकी पोजशिान को देख सकता था लेकिन इस समय उनको इसकी फिक्र नहीं थी। जीजाजी ने खड़े-खड़े ही लण्ड को हाथ से पकड़कर उनकी चूत के मुँह पर रखा और धीरे-धीरे अंदर डालना चालू किया। दीदी की चूत उसको लीलती गई। दीदी ने कस करके दोनों बाहें जीजाजी की पीठ पर बाँध लीं। पहले तो जीजाजी धीरे-धीरे आगे-पीछे करते रहे फिर उन्होंने धकाधक-धकाधक चालू कर दी। दीदी भी चूत उठा-उठाकर के झेल रही थीं।
इस बीच पता नहीं कब मैं गुसलखाने में रखी कपड़े डालने की रैक से टिक गई थी और उसकी खूंटी की घुंडी को अपनी चूत में घुसेड़ लिया था। जब जीजाजी धकाधक लगा रहे थे तो मैं भी खूंटी पर उसी लय से आगे पीछे हो रही थी। मैं मज़े में पूरी तरह डूबी थी कि दरवाजा खटखटाने से होश में आई।
बड़ी भाभी कह रही थी- अब निकलोगी भी बाहर या नहाती ही रहोगी सबको तैयार होना है।
मैंने जल्दी से अपनी सफाई की और बाहर निकल आई। जीजाजी अभी भी दीदी को लगाये जा रहे थे।
उसी दिन शाम को जीजाजी के चाचा जी के यहां मेरी शिशिर से मुलाकात हुई। वास्तव में हम लोगों को मिलाने के लिये ही यह आयोजन किया गया था। कहानी खत्म होने पर बड़े कामुक तरीके से राकेश ने कुमुद को देखा।
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