RE: Mastram Sex Kahani मस्ती एक्सप्रेस
मैं उसका लण्ड चूतड़ों की दरार पर महसूस कर रही थी। मैंने मुँह पीछे करके उसको चूम लिया। उसने घुमाकर मुझको सामने कर लिया। अपने होंठ मेरे होंठों पर जोर से गड़ा कर चूसने लगा और इतने जोर से जकड़ा कि मेरी पसलियां चरमरा उठीं। फिर एक हाथ सामने लाकर मेरा ब्लाउज़ खोलने लगा।
मैंने कहा- “इसको मत उतारो…”
लेकिन उसने बटन खोलकर उसे अलग कर दिया। अब उसने हाथ पेटीकोट के नाफै पर बढ़ाया।
मैंने मिन्नत की- “प्लीज़्ज़ इसको रहने दो…”
वह बोला- “तुमने मुझे इतना सताया कि अब कोई दया नहीं…” और नाड़ा खींचकर उसने मेरा पेटीकोट नीचे गिरा दिया।
अब मैं बिल्कुल नंगी की। शर्म से एक हाथ से अपने दोनों सीनों को ढक लिया और एक हाथ जहां टांगें मिलती है उसके ऊपर रख लिया। उसने सख्ती से मेरे दोनों हाथ अलग कर दिये। मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं। जब कुछ देर तक कुछ न हुआ तो मैंने अपनी आँखें खोलीं। वह एकटक मेरे को निहारे जा रहा था।
मैंने कहा- “क्या बात है पहले माया को नहीं देखा क्या?”
लेकिन शेखर तो भरपूर गोलाइयों में डूबा था। दोनों उभार छोटे सख्त खरबूज से जो आगे से मोड़ लेकर ऊपर हो गये थे, जिनके ऊपर चूचुक गहरे बादामी सहतूत से उठे हुये थे। नीचे तराशी जांघें केले के तने सी, उसके बीच में चूत का जबर्दस्त उभार डबलरोटी सा, बाल अच्छी तरह तराशे गये थे एकदम सेव नहीं किये गये थे। बीच से झांकती दो रसभरी नारंगी की फांकें। उसके सामने पूरी औरत खड़ी थी। बाहर से छरहरी अंदर से भरपूर। दमकते शरीर पर पूर्ण गोलाइयां अर्ध-गोल उठे हुये भरे-भरे मांसल नितम्ब जो गद्दे की तरह आदमी का बोझ संभाल सकते थे और सफाचट तने पेट के नीचे जांघों के बीच फूली-फूली खुलने को आतुर जगह।
शेखर सम्मोहित सा मुंह बाये देख रहा था।
संगीता ने आगे बढ़कर उसके कंधे पर हाथ रखकर झझोड़ा तो उसे सुध हुई। मुँह से निकल गया- “अद्भुत… भाभी तुम बाहर से जितनी खूबसूरत हो अंदर से उससे भी ज्यादा खूबसूरत हो…” और फिर चुंबक सा चिपक गया और चिकनी मांशल कमर में हाथ डालकर ले जाकर बेड पर बिठा दिया। वो अभी भी पूरे कपड़े सूर्तटाई पहने हुये था।
चूमने को झुका तो संगीता ने टाई से पकड़कर खींचते हुये कहा- “मेरे को तो निर्लज्ज कर दिया और खुद बाबूजी बने हुये हैं…” संगीता तो उतारने की जरूरत ही नहीं पड़ी।
शेखर ने खुद सब कपड़े निकालकर एक तरफ फर्श पर फेंक दिये। अब वह संगीता के सामने एकदम नंगा था। संगीता ने उसकी ओर देखा। अच्छी सुदर्शन देह थी। अग्रवाल साहब की तो थोड़ी सी तोंद थी लेकिन शेखर का पेट सफाचट था। अग्रवाल का लण्ड अच्छा खासा था लेकिन शेखर का भी उनसे कम नहीं था, मोटाई में ज्यादा ही होगा। झांट के बाल जरूर बेतरतीब हो रहे थे, जैसे वहां ध्यान न दिया गया हो। शेखर ने बढ़ करके उसे बांहों में ले लिया और धकेलता हुआ उसको बेड पर अपने नीचे गिरा लिया। पहले मुँह पर सब जगह चूमा फिर संगीता के रसीले होंठ अपने होंठों में दबोच लिये।
संगीता ने अपनी बांहों में उसका सिर जकड़ लिया और टांगें थोड़ी चौड़ी कर दीं जिससे शेखर के नीचे के भाग को जगह मिल जाये। शेखर का लण्ड उसको गड़ रहा था।
शेखर नीचे को खिसक गया। संगीता की छोटी-छोटी उभरी चूचियां शेखर को बहुत अच्छी लग रही थीं। वह उनको पूरी मुट्ठी में सहलाने लगा फिर उनको भींचने लगा। संगीता के शरीर में बिजली सी दौड़ गई जो उसकी चूत तक चली गई। वह सिसकने लगी। उसके चूचुक एकदम सख्त हो गये थे। जब शेखर न घुंडियों को ऊँगलियों में मसला।
तो संगीता सीत्कार कर उठी- “उइइईई…” उसकी चूत से पानी निकलने लग गया था।
शेखर ने मुँह नीचे करके एक चूचुक को मुँह में लेकर चूसने लगा और दूसरे को ऊँगलियों से मसल रहा था। यह संगीता के लिये ज्यादा था। वह तो पूरी तरह गर्मा चुकी थी। उसने नीचे हाथ डालके उसका लण्ड पकड़ लिया और खींचकर अपनी चूत पर लगाने लगी।
लेकिन शेखर इतनी जल्दी उसको देना नहीं चाहता था, पहले उसकी चूत से खेलना चाहता था। वह अपने को पीछे कर लेता था। वह सिगीता को खिझा रहा था।
जब वह खींचकर अंदर डालने में कामयाब नहीं हुई तो संगीता ने पलटी खाई। शेखर नीचे आ गया और वह उसके ऊपर। उसने एक हाथ से उसका लण्ड पकड़करके अपनी चूत के छेद पर लगाया और धप्प से उसके ऊपर बैठ गई और पूरा का पूरा लण्ड लील लिया। जैसे चैन मिल गया हो सांस बाहर निकाली- “हुऊऊऊऊऊ…” फिर चूत को ऊपर किया फिर धप्प से पूरा लण्ड अंदर- “हिईईईईईईई…”
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