RE: Hindi Chudai Kahani हमारा छोटा सा परिवार
एक शुक्रवार के दिन अक्कू को सारा दिन स्कूल में मेरी ज़रुरत थी पर हमें एकांत स्थल ही नहीं मिला। उस दिन हमनें अपना स्कूल का काम उसी दिन ख़त्म करने की कोई आवशयकता नहीं थी। मुझे अपने छोटे भैया के भूखे सख्त वृहत लंड के ऊपर बहुत तरस आ रहा था।
अक्कू और मैं जब अपनी रोज़ की रति-क्रिया में सलंग्न हो गए तो उस दिन हम दोनों ने पागलों के तरह संतुष्ट न होने का मानो संकल्प कर लिया था। हमें समय का ध्यान ही नहीं रहा। अक्कू मेरी तीसरी बार गांड मार रहा था। उसके बड़े हाथ मेरे उरोज़ों को बेदर्दी से मसल रहे थे। उसका मोटा लम्बा लंड निर्मम प्रहारों मेरी गांड का लतमर्दन कर रहा था। मेरी हल्की चीखें, ऊंची सिस्कारियां कमरे में गूँज रहीं थीं।
हमें मम्मी की खाने के लिए आने की पुकारें सुनाई नहीं दीं।
मैं ज़ोरों से अक्कू से विनती कर रही थी , "अक्कू और ज़ोर से मेरी गांड मारो। अक्कू मेरी गांड फाड़ दो जैसे डैडी मम्मी की गांड फाड़ते हैं। "
अक्कू ने भी ज़ोर से घुरघुरा कर बोला, "दीदी मेरा लंड तो हमेशा आपकी गांड में घुसा रहना चाहता है। " अक्कू ने मेरे दोनों कंचों जैसे चूचुकों को उमेठ कर मेरी चीख को और भी परवान चढ़ा दिया।
उस समय यदि भूताल भी आ जाता तो भी अक्कू और मुझे पता नहीं चलता। पर एक शांत स्थिर आवाज़ हम दोनों के वासना से ग्रस्त मस्तिष्कों
की मोटी तह को छेद कर प्रविष्ट हो गयी , "अक्कू और सुशी, जब तुम दोनों फारिग हो जाओ तो डैडी और मुझे तुम दोनों से आवश्यक बात करनी है। "
मम्मी के शांत स्वरों को सुन कर अक्कू मुझे से इतनी जल्दी लपक कर दूर हुआ मानो की उसे किसी ने बिजली का झटका लगा दिया हो।
उसका मोटे सुपाड़े ने मेरी गांड के तंग छेद को रबड़ बैंड के तरह तरेड़ दिया और मेरे रोकते हुए भी मेरी चीख निकल गयी।
मम्मी डैडी शांति से हमें देख रहे थे। अक्कू और मेरे तो प्राण निकल गए।
डैडी ने शांत स्वाभाव से कहा ,"पहले तो मम्मी और मैं तुम दोनों से क्षमाप्रार्थी हैं की तुम दोनों के बंद कमरे में में हम बिना तुम्हारी आज्ञा के प्रवेश हो गए। पर मम्मी बहुत देर से तुम दोनों को पुकार रहीं थीं। जब हम दोनों दरवाज़ा खटखटा ही रहे थी की सुशी की उम …
कैसे कहूँ ....... सुशी के चीख सुन कर हमसे रुका नहीं गया … और … " डैडी का सुंदर मुंह शर्म से लाल हो चूका था और मुझे डैडी और भी सुंदर लगे। मैं किसी और समय लपक कर उनसे लिपट काट चूम लेती पर उस दिन तो मेरा हलक रेत की तरह सूखा हो गया था।
"हमें यह तो पता है की तुम क्या कर रहे थे। पर शायद तुम दोनों हमें कुछ समझा सको की यह सब कब से .... कैसे ," मम्मी भी डैडी की तरह अवाक अवस्था में शर्म से लाल और शब्द विहीन हो गयीं।
अक्कू ने उस दिन मुझे अपनी समझदारी से कायल कर दिया ,"मम्मी यह सब मेरे दीदी के प्यार के वजह से मेरे शरीर में हुए प्रभावों से शुरू हुआ। मैं गलती से दीदी को दूर करना शुरू कर दिया। दीदी के एरी तरफ प्यार इतना प्रबल था की उन्होंने मेरे लिए मेरे लं
…… सॉरी पीनिस को सहलाना…., " अक्कू भी घबरा और शर्मा रहा था।
"मम्मी मैं बड़ी हूँ और सारी ज़िम्मेदारीमेरी है। मैं अक्कू को अपना प्यार पूरी तरह से देना चाहती हूँ। और मुझसे उसके शरीर में मेरी वजह से होते बदलाव की वजह से अपने से दूर नहीं जाने दे सकती। और फिर मैंने सोचा की आपको और डैडी को देख कर मैं शायद अक्कू की देखभाल और भी अच्छे से कर सकूँ और फिर जो हम दोनों ने आपको देख कर सीखा उस से अक्कू और मैं बहुत खुश हैं।
क्या हमें यह नहीं करना चाहिए था ?" मेरा सूखा गला मुश्किल से इतना कुछ बोल पाया।
मम्मी और डैडी ने एक दुसरे को देर तक एक तक देखा। मम्मी ने हमेशा की तरह शीघ्र ही गलतियों के ऊपर फैसला अपने दिमाग में बैठा लिया था। मैं अब परेशान थी की मम्मी हमें क्यासज़ा देंगी?
"तो तुम दोनों चोरी से हमारी एकान्तता का उल्लंघन भी कर रहे हो ," मम्मी के शांत स्वर चिल्लाने और गुस्से से भी ज़्यादा डराते थे।
अक्कू ने जल्दी से कहा ,"मम्मी सिर्फ एक बार। उस रात के बाद हमने कभी भी वैसा नहीं ……बस उस दिन," अक्कू भी डर से बहुत विचलित था।
मम्मी ने धीरे से पूछा ,"सुशी क्या अक्कू तुम्हारी सिर्फ गांड मरता है ?"
मम्मी से मुंह से निकले उन शब्दों में से मानों मम्मी की शिष्टता से उनकी अश्लीलता गायब हो गयी।
"मम्मी उसके अलावा मैं उसके लं लं लंड को चूसती हूँ और अक्कू भी मेरी चू ….. चू ….चु ….. चूत चूसता है ," मैंने हकला कर जवाब दिया।
"इसका मतलब है की अक्कू ने तुम्हारी अब तक चूत नहीं मारी?" मम्मी ने बिना स्वर ऊंचा किये मुझसे पूछा।
अक्कू और मेरे चेहरे पर अनभिग्यता का भौंचक्कापन साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा होगा।
मैंने धीरे से हकलाते हुआ कहा ," मुझे पता ही था की अक्कू से अपनी चूत भी मरवा सकती थी। डैडी ने उस दिन सिर्फ आपकी गांड ही मारी थी। "
मम्मी ने अपना मुंह नीचे कर उसे अपने सुडौल हांथों में छुपा लिया। डैडी के शर्म से लाल चेहरे पर एक अजीब सी तिरछी मुस्कान का आभास सा होने लगा।
मम्मी का शरीर काम्पने लगा मानों वो रोने लगीं हों। मैं और अक्कू दौड़ कर मम्मी से लिपट गए ," सॉरी मम्मी। सॉरी। "
ममी ने अपने सुंदर हँसते मुंह से दोनों के सिरों को चूमा ,"अरे पागलो तुम दोनों ने डैडी और मुझसे क्यों नहीं बात की ?"
"सॉरी, हमें पता नहीं यह क्यों नहीं ध्यान आया ," वास्तव में डैडी और मम्मी हमारे किसी भी सवाल को नज़रअंदाज़ नहीं करते थे।
"अंकु, इन दोनों को तो अभी बहुत कुछ सीखना है ," मम्मी ने डैडी से हमें अपने से लिपटाते हुए कहा ,"क्या तुम दोनों डैडी और मुझसे सब कुछ सीखना चाहते हो। हम तुम दोनों को रोक तो नहीं सकते पर एक दुसरे के शरीर को और अच्छी तरह से उपभोग करने में सहायता ज़रूर दे सकतें हैं। "
अक्कू और मैं बच्चों की तरह खुशी से चीखने उछलने लगे।
डैडी ने नाटकीय अंदाज़ से अप्पने दोनों कानों को अपने हाथों से ढक लिया।
"अच्छा अब शांत हो जाओ। चलो पहले खाना खाने आ जाओ फिर हम सब इकट्ठे निर्णय लेंगें," डैडी ने हम दोनों के बालों को सहलाया।
अक्कू ने जल्दी से अपनी निक्कर ढूडनी शुरू कर दी। मम्मे ने उसे रोक कर कहा ,"अक्कू क्या तुम अपनी बड़ी बहन के आनंद को अधूरा ही छोड़ दोगे ? डैडी और मैं कुछ देर और प्रतीक्षा कर सकते हैं। तूम पहले अपनी दीदी को अच्छे से संतुष्ट करो," मम्मी के चेहरे पर एक रहस्मयी मुस्कान थी। मम्मी का दैव्य रूप किसी को भी चकाचौंध कर सकने में सक्षम था।
अक्कू और मैं जब अकेले हुए तो कई क्षण किंकर्तव्यविमूढ़ स्थिर खड़े रहे फिर अचानक एक दुसरे से लिपट कर पागलों की तरह एक दुसरे को चूमने लगे।
मैंने अक्कू के तेज़ी से खड़े होते लंड को सहलाना शुरू कर दिया। अक्कू मुझे पलंग पर पेट के बल लिटा कर बेदर्दी से मेरे गांड में अपना लंड ठूंसने लगा। मेरी चीखें उसे और भी उकसाने लगीं। अक्कू ने उस शाम मेरी गांड की हालत ख़राब कर दी। डैडी और मम्मी को एक घंटे से भी ज़्यादा इंतज़ार करना पड़ा।
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