Hindi Porn Kahani रज़िया और ताँगे वाला
05-29-2018, 11:58 AM,
#3
RE: Hindi Porn Kahani रज़िया और ताँगे वाला
अब मुझे तड़पाने की बारी उसकी थी। इसलिये उसने अपनी लुंगी इस तरह धीरे से सरकायी कि उसकी जाँघें बिल्कुल नंगी हो गयी और एक झटके में ही वो किसी भी पल अपना लंड मेरे सामने नुमाया कर सकता था। मैं तो उसका लण्ड देखने के मरी जा रही थी। लुंगी के पतले से कपड़े में से उसके लंड की पूरी लंबाई नामोदार हो रही थी। करीब आठ-नौ इंच लंबे उस गोश्त को अपने हाथों में पकड़ने की मुझे बेहद आरज़ू हो रही थी। इसलिये टाँगेवाले को और उकसाने के लिये मैं मासूमियत का नाटक करते हुए अपने मम्मे उसके कंधे पर और ज्यादा दबाने लगी जिससे उसे ये ज़ाहिर हो कि टाँगे के हिचकोलों की वजह से ये हो रहा है। मेरे मम्मों की गर्मी उसे महसूस हो रही थी जिसके असर से लुंगी में उसका तंबू और बुलंद होने लगा और खासा बड़ा होकर खतरनाक नज़र आने लगा। मैं समझ नहीं पा रही थी कि अब भी वो टाँगेवाला खुद पे काबू कैसे कायम रखे हुए था। फिर लालटेन की मद्धम रोशनी में मैंने नोटिस किया कि उसके लंड का सुपाड़ा लुंगी के किनारे से नज़र आ रहा था।



“या मेरे खुदा!” मैं हैरानी से सिहर गयी। उसके लंड का सुपाड़ा वाकय में बेहद बड़ा था - किसी बड़े पहाड़ी आलू और लाल टमाटर की तरह। रात के अंधेरे में वो पूरी शान और अज़मत से चमक रहा था। मैं जानती थी कि इतना बड़ा सुपाड़ा देखने के बाद अब मैं ज्यादा देर तक खुद पे काबू नहीं रख पाऊँगी। उसे अपने हठों में लेकर उसे चूमने और उसे चाटने के लिये मैं तड़प उठी थी।



सूरत-ए-हाल अब बिल्कुल बदल चुके थे। उसे अपने हुस्न और अदाओं से दीवाना बनाने की जगह अब वो मुझे ही अपने बड़े लण्ड के जलवे दिखा कर ललचा रहा था। मैं अब और आगे बढ़ने से खुद को रोक नहीं सकी और अपनी चोली का एक और हुक खोल दिया। वैसे भी मेरी चोली में तीन ही हुक थे और उसमें से एक तो पहले ही खुला हुआ था और अब दूसरा हुक खुलते ही मेरे दोनों मम्मे चोली में से करीब-करीब बाहर ही कूद पड़े और अब खुली हवा में ऐसे थिरक रहे थे जैसे अपनी आज़ादी का जश्न मना रहे हों।



टाँगेवाले ने ये नज़ारा देखा तो शरारत से मेरे कान में धीरे से फुसफुसा कर बोला, “अरे मेमसाब! ये क्या… आपने तो अपने मम्मों को पूरा ही खुला छोड़ दिया, क्या हुआ आपको?”



मैंने कहा, “क्या करूँ! गर्मी बहुत है ना… इन बेचारों को भी तो रात की थोड़ी ठंडी हवा मिलनी चाहिये… बेचारे दिन भर तो कैद में रहते हैं!” सच कहूँ तो रात की ठंडक में अपने नंगे मम्मे को टाँगे के हिचकोलों के साथ झुलाते हुए उस ठरकी की बगल में बैठना बेहद अच्छा लग रहा था।



लहंगे में छुपी मेरी चूत की तरफ देखते हुए टाँगेवाला बोला, “तो फिर तो मेमसाब नीचे वाली को भी तो थोड़ी हवा लगने दो ना! उसे क्यों बंद कर रखा है!” ये कहते हुए उसने अपने हाथ मेरी जाँघों पर रख दिये और मेरी मुलायम और गोरी सुडौल टाँगों को नामूदार करते हुए लहंगा मेरी जाँघों के ऊपर खिसकने लगा - जैसे कि इशारा कर रहा हो कि मैं अपना लहंगा पूरा ऊपर खिसका कर अपनी चूत का नज़ारा उसे करा दूँ। उस कहानी की लेखिका रज़िया सईद हैं।



लेकिन मैंने उसे ऐसा करने से रोक दिया क्योंकि मैं उसे थोड़ा और तड़पाना चाहती थी। मैं बोली, “अरे पहले ऊपर का काम तो मुकम्मल कर लें! नीचे की बात बाद में सोचेंगे ना!”



टाँगेवाला मेरे करीब-करीब नंगे मम्मों को देख रहा था जो चोली में से बाहर झाँक रहे थे। वैसे तो चोली का आखिरी हुक खोलना बाकी था लेकिन अमलन तौर पे तीसरे हुक का कोई फायदा नहीं था क्योंकि मेरे मम्मे तो झिनी चुनरी में से पूरे नंगे नुमाया हो ही रहे थे। टाँगेवाले से और सब्र नहीं हुआ और मेरे मम्मों को अपने हाथों में लेकर मसलने लगा। उसके मजबूत और खुरदरे हाथों के दबाव से मैं कंपकंपा गयी। मैं सोचने लगी कि जब इसके हाथों से मुझे इतनी लज़्ज़त मिल रही है तो अपने लंड से वो मुझे कितना मज़ा देगा।



फिर वो बोला, “मेमसाब आप अपने मम्मों का दीदार हमें छलनी में से छान कर क्यों करा रही हैं… ज़रा इस पर्दे को हटा दीजिये!” वो मेरी चुनरी की तरफ इशारा कर रहा था लेकिन इस दिल्चस्प शायराना अंदाज़ में उसे अपनी ख्वाहिश का इज़हार करते देख मैं मुस्कुराये बिना नहीं रह सकी।



बरहाल उसकी गुज़ारिश मानते हुए मैं अपनी चोली का आखिरी हुक खोलते हुए बोली, “तुम्हारी तमन्ना भी पूरी कर देते हैं… लो अब तुम दिल भर के मेरे मम्मों से खेल लो… पर तुम सिर्फ़ अपने बारे में ही सोचते रहोगे या हमारा भी कुछ ख्याल रखोगे?” मैं उसके बड़े लंड की तरफ देखते हुए बोली जो अब तक बेहद बड़ा हो चुका था और पहला मौका मिलते ही मेरी चूत फाड़ने के लिये तैयार था। मैं उस हैवान को हाथों में लेने के लिये इस कदर तड़प रही थी कि एक पल भी और इंतज़ार ना कर सकी और उसे अपनी लुंगी खोलने का भी मौका नहीं दिया और झपट कर उसका लौड़ा अपने हाथों में ले लिया।



ऊऊऊहहह मेरे खुदा! या अल्लाहऽऽ… वो इतना गरम था जैसे अभी तंदूर में से निकला हो! मुझे लगा जैसे मेरी हथेलियाँ उसपे चिपक गयी हों। मैं वो लौड़ा हाथों में दबान लगी जैसे कि मैं उसके कड़ेपन का मुआयना कर रही होऊँ। मेरी चूत भी उस लंड को लेने के लिये बिलबिला रही थी। उस पल मैंने फैसला किया कि जिस्म की सिर्फ नुमाईश और ये छेड़छाड़ और मसलना काफी हो गया… आज की रात तो मैं इस लौड़े से अपनी चूत की आग ठंडी करके रहुँगी। अब मैं उससे चुदवाये बगैर नहीं रह सकती थी। इस दौरान टाँगेवाला एक हाथ से मेरे मम्मों से खेलने में मसरूफ था। वो मेरे निप्पलों को मरोड़ रहा था और झुक कर उन्हें चूसने की कोशिश भी कर रहा था लेकिन टाँगे के हिचकोलों की वजह से ठीक से चूस नहीं पा रहा था। मैं उसके लण्ड को इतनी ज़ोर-ज़ोर से मसल रही थी जैसे कि ज़िंदगी में फिर दोबारा मुझे दूसरा लण्ड नसीब नहीं होगा। फिर कमीने लण्ड का ज़ुबानी एहतराम करने के लिये मैं उसे अपने मुँह में लेने के लिये झुक गयी।
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