RE: Dost ki Maa ki Chudai दोस्त की नशीली माँ
माया आंटी तो इतना बहक गई थीं कि मात्र मेरे चुम्बन और साथ-साथ गांड और चूची के रगड़ने मात्र से ही झड़ गईं..
जब उनका चूतरस स्खलित हुआ तो उनके होंठ स्वतः ही मेरे होंठों से जुदा हुए और एक गहरी.. ‘श्ह्ह्हीईईई ईईईई..’ सीत्कार के साथ बंद आँखों से चेहरा ऊपर को उठाए झड़ने लगीं।
उस पल उनके सौंदर्य को मैं जब कभी याद कर लेता हूँ.. तो अपने लौड़े को हिलाए बिना नहीं रह पाता।
क्या गजब का नज़ारा था.. चेहरे पर ख़ुशी के भाव.. होंठ चूसने से होंठों पर लालिमा.. और अच्छे स्खलन की वजह से उनके माथे पर पसीने बूँदें.. उनके सौंदर्य पर चार चाँद रही थीं..
मैं तो उनके इस सौंदर्य को देखकर स्तब्ध सा रह गया था।
तभी उन्होंने चैन की सांस लेते हुए आँखें खोलीं और मुझे अपने में खोया हुआ पाया।
तो उन्होंने मेरे लौड़े को मसलते हुए बोला- राहुल मेरी जान.. किधर खो गया?
उनकी इस हरकत से मैं भी ख्वाबों की दुनिया से बाहर आता हुआ बोला- आई लव यू माया डार्लिंग.. तुम कितनी प्यारी हो.. पर ये क्या.. तुम तो पहले ही बह गईं।
तो उन्होंने नीचे झुककर मेरे लोअर को नीचे सरकाया और मेरी वी-शेप्ड चड्डी के कोने में अपनी दो उंगलियां घुसेड़ कर मेरे पप्पू महान को.. जो की रॉड की तरह तन्नाया हुआ था.. उसे अपने दूसरे हाथ की उँगलियों से पकड़कर बाहर निकाला।
उन्होंने मेरे लौड़े के ऊपर की चमड़ी को खिसकाया ही था.. तभी मैंने देखा कि जैसे मेरे लौड़े के टोपे में मस्ती और चमक दिख रही थी.. ठीक वैसे ही उनके चेहरे पर चमक और होंठों पर मस्ती झलक रही थी।
फिर उन्होंने मेरे सुपाड़े को लॉलीपॉप की तरह एक ही बार में ‘गप्प’ से अपने मुँह में घुसेड़ लिया और अगले ही पल निकाल भी दिया। शायद उन्होंने मेरे लौड़े के सुपाड़े को मुँह में लेने के पहले से ही थूक का ढेर जमा लिया था.. जिसके परिणाम स्वरूप मेरी तोप एकदम ‘ग्लॉसी पिंक’ नज़र आने लगा था।
जिसे देख कर माया ने हल्का सा चुम्बन लिया और मेरे लौड़े को मुठियाते हुए बोली- राहुल.. तेरे इस लौड़े का कमाल है.. जो मुझे खड़े-खड़े ही झाड़ दिया.. पता नहीं.. इसके बिना अब मैं कैसे रह पाऊँगी।
मैं बोला- आप परेशान न हों.. मैं हूँ न.. मैं कभी भी आपको इसकी कमी न खलने दूंगा..ु
कहते हुए मैंने अपने दोनों हाथों को उनके सर के पीछे कुछ इस तरह जमाया.. जिससे मेरे दोनों अंगूठे उनके दोनों कानों के पिछले हिस्से को सहला सकें और इसी के साथ ही साथ मैंने अपने लौड़े को उनके होंठों पर ठोकर देते हुए सटा दिया..
जिसका माया ने भी बखूबी स्वागत करते हुए अपने होंठों को चौड़ा करते हुए मेरे चमचमाते सुपाड़े को अपने मुख रूपी गुफा में दबा सा लिया।
अब अपने एक हाथ से वो मेरे लौड़े को मुठिया रही थी और दूसरे हाथ से मेरे आण्डों को सहलाए जा रही थी।
मुझे इस तरह की चुसाई में बहुत आनन्द आ रहा था। वो काफी अनुभवी तरीके से मेरे लौड़े को हाथों से मसलते हुए अपने मुँह में भर-भर कर चूसे जा रही थी जिससे कमरे में उसकी मादक ‘गूँगूँ.. गूँगूँ..’ की आवाज़ गूंज रही थी।
वो बीच-बीच में कभी मेरे लौड़े को जड़ तक अपने मुँह में भर लेती.. जिससे मेरा रोम-रोम झनझना उठता।
हाय.. क्या क़यामत की घड़ी थी वो.. जिसे शब्दों में लिख पाना सरल नहीं है।
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