RE: Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
उस समय मैं बात टाल गया. सौभाग्य से दूसरे दिन एक नजदीकी शादी का फ़ंक्शन था तो सब उसमें बिज़ी थे. इसलिये बात फ़िर से नहीं निकली. मैं मना रहा था कि चाची भूल ही जायें कहकर तो अच्छा है. सोचा कि हो सकता है उन्होंने सिर्फ़ फ़ॉर्मलिटी में कह दिया हो. वैसे उनके चेहरे पर से लगता नहीं था कि उन्होंने बस शिष्टाचार के लिये कहा होगा, उनके चेहरे के भाव में सच में आत्मीयता थी जब उन्होंने मुझसे साथ रहने का आग्रह किया था. मां ने दूसरे दिन एक बार मुझे कहा कि अरे चाची ठीक कह रही हैं. वहां रह लेना, तेरा खूब खयाल रखेंगीं वे, तीन महने की तो बात है. उनको अच्छा लगेगा, हम भी आश्वस्त रहेंगे कि तेरे को खाने पीने की कोई परेशानी नहीं है. मैंने कहा कि मां सोच के बताता हूं एक दो दिन में, चाची तो अभी हैं ना कुछ दिन.
दो तीन दिन ऐसे ही निकल गये. उन दिनों में स्नेहल चाची से मेरी जान पहचान थोड़ी और गहरी हो गयी. अब तक जब भी वे मिली थीं, मेरा बचपन ही चल रहा था. ऐसे उनके साथ रहना भी नहीं हुआ था. अब बड़ा होने के बाद पहली बार उनके साथ रह रहा था, उनके स्वभाव, उनके रहन सहन, उनके बोलने हंसने की ओर ध्यान जाने लगा. उनके प्रति मेरे मन में सम्मान की भावना थोड़ी बढ़ गयी. बड़ा शांत सादा स्वभाव था. साथ ही उनसे थोड़ा डर भी लगता था, याने जैसा बच्चों को किसी स्ट्रिक्ट लेडी प्रिन्सिपल के प्रति लगेगा वैसा डर, सम्मान युक्त डर. इनके साथ ज्यादा पंगा नहीं लिय जा सकता, यह भावना. और बाद में मां ने एक बार बताया भी कि वे कुछ साल पहले एक स्कूल में प्रधान अध्यापिका थीं. फ़िर नौकरी छोड़ दी. याने मुझे वे जो किसी स्ट्रिक्ट डिसिप्लिनेरियन जैसी लगती थीं, वो मेरा वहम नहीं था. मां भी उनको बड़ा रिस्पेक्ट देती थीं. उनका रहन सहन सादा ही था, याने घर में भी साड़ी पहनती थीं, गाउन नहीं. पर साड़ी हमेशा एकदम सलीके से पहनी हुई होती थी, प्रेस की, प्रेस का ब्लाउज़, फ़िटिंग भी एकदम ठीक, कोई ढीला ढाला पन नहीं.
अब असली मुद्दे पर आता हूं. मेरी नयी नयी जवानी थी, खूबसूरत लड़कियों और आंटियों की तरफ़ ध्यान जाने लगा था. इस उमर के लड़कों की तरह अब राह चलती खूबसूरत सूरतों को तकने का मन होता था. फ़िर इन्टरनेट का चस्का लगना शुरू हुआ. घर में पी सी था, वह पिताजी भी यूज़ करते थे. इसलिये उसपर कोई ऐसी वैसी साइट्स देखने का सवाल ही नहीं था. जब मन होता, तो उस वक्त तक इन्तजार करना पड़ता था जब तक किसी दोस्त का, खास कर होस्टल में रहने वाले दोस्त का लैपटॉप ना उपलब्ध हो.
स्नेहल चाची के आने के तीन चार दिन बाद एक दिन मैं अपने दोस्त से मिलने होस्टल गया. वह अब भी होस्टल में था, एक दो सब्जेक्ट क्लीयर करने थे. गप्पें मारते मारते जब काफ़ी वक्त हो गया, वो बोला "यार बैठ, मैं नहा कर आता हूं. आज देर से उठा, दिन भर ऐसा ही गया. तब तक ये एक साइट खुली है, जरा देख." और मुझे आंख मार दी. रंगीन मिजाज का बंदा था, अकेला भी रहता था. मेरा भी कभी मन होता था खूबसूरत जवान रंगीन तस्वीरें देखने का तो उसीका लैपटॉप काम आता था. और उसे मालूम था कि मेरा दिल आज कल आंटियों पर ज्यादा आता है.
अब पहले मैंने आप को बताया था कि मेरा स्वभाव जरा शर्मीला है, गर्ल फ़्रेंड वगैरह भी नहीं है अब तक. अब शर्मीला स्वभाव होने का मतलब यह नहीं है कि लड़कियों में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है. उलटे बहुत ज्यादा है, और जवान लड़कियों से ज्यादा अब धीरे धीरे मेरी दिलचस्पी आंटियों में ज्यादा होने लगी है. बड़ी तकलीफ़ होती है, अब जवानी भी जोरों पर है और ये मेरा बदमाश लंड बहुत तंग करने लगा है, कई बार हस्तमैथुन करके भी इसकी शांति नहीं होती.
वो साइट खोली तो जरा अजीब सा लगा. मुझे लगा कि आंटी वांटी के फोटो होंगे. पर उन महाशय ने मेच्योर याने उमर में काफ़ी बड़ी औरतों की एक साइट खोल रखी थी. वैसे मुझे उनमें कोई खास दिलचस्पी नहीं थी, मैं तो जवान मॉडल टाइप या फ़िर तीस पैंतीस साल की आंटियों की तस्वीरें देखने में ज्यादा दिलचस्पी दिखता था. पर यहां अधिकतर पैंतालीस, पचास की उमर की औरतें थीं. वैसे उनमें से कुछ अच्छी सेक्सी थीं. मैं इन्टरेस्ट से देखने लगा. स्क्रॉल करते करते एक तस्वीर पर मैं ठिठक गया. एक गोरी चिट्टी औरत चश्मा लगाकर पढ़ रही थी पर थी बिलकुल नंगी. पचास के ऊपर की थी, ऊंची पूरी, मांसल सेक्सी बदन की, हाइ हील पहने हुए, लटके हुए पर मस्त मम्मे, मोटी चिकनी गोरी गोरी जांघें. याने उसके सेट की सब तस्वीरें देखने लायक थीं. पर मैं इसलिये चौंका कि उसे देखते ही मुझे न जाने क्यों चाची की याद आ गयी. उसका चेहरा या बदन चाची से जरा नहीं मिलता था, चाची नाटी सी हैं, यह औरत ऊंची पूरी थी, चाची जूड़े में बाल बांधती हैं, इस औरत के बॉब कट बाल थे, चाची पूरी देसी हैं, यह औरत पूरी फिरंगी थी. पर सब मिलाकर जिस अंदाज में वह सोफ़े पर पैर ऊपर करके बैठी थी, चाची को भी मैंने कई बार वैसे ही पैर ऊपर करके पढ़ते देखा था. और उसने चाची जैसा ही सादे काले फ़्रेम का चश्मा लगाया हुआ था. और सब से संयोग की बात यह कि मुस्कराते हुए उसके दो जरा टेढ़े दांत दिख रहे थे, चाची के दो दांत भी आगे बिलकुल वैसे ही जरा से टेढ़े हैं.
देखकर अजीब लगा, थोड़ी गिल्ट भी लगी कि चाची को मैंने उस नंगी मतवाली औरत से कम्पेयर कर लिया. मैं आगे बढ़ गया. पर पांच मिनिट बाद फ़िर उसी पेज पर वापस आकर उस महिला के सब फोटो देखने लगा. और न जाने क्यों लंड एकदम खड़ा हो गया. अब वो उस नग्न परिपक्व महिला का खाया पिया नंगा बदन देखकर हुआ था या उस तस्वीर को देखकर चाची याद आ गयी थीं इसलिये हुआ था, मुझे भी नहीं पता. वैसे एक छोड़कर बाकी किसी तस्वीर में उस औरत और चाची के बाच कोई समानता नहीं दिखी मुझे. उस दूसरी तस्वीर में भी वह औरत मुस्करा रही थी और उसके दांत साफ़ दिख रहे थे.
मेरा दोस्त वापस आया तब तक मैंने लैपटॉप बंद कर दिया था. उसने पूछा "यार देखा नहीं?"
"देखा यार पर ये तेरे को क्या सूझी कि आंटियों से भी बड़ी बड़ी औरतों को - नानियों को - देखने लगे?" मैंने मजाक में कहा.
"अरे यार, हर तरह की साइट देखता हूं मैं, जब मूड होता है, वही सुंदर जवान लड़कियां आखिर कितनी देखी जा सकती हैं. और तेरे को भी तो अच्छी लगती हैं साले, बन मत मेरे सामने. और नानी तो नानी सही, ऐसी नानियां दादियां हों तो मुझे चलेंगी"
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