Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
06-21-2018, 11:59 AM,
#4
RE: Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
घर वापस आते वक्त बार बार मन में चाची ही आ रही थीं. याने ऐसा नहीं था कि अब मैं उनको बुरी नजर से देखने लगा था, बल्कि इसलिये कि आज जो कुछ देखा था, और उसका मेरे मन पर जो प्रभाव पड़ा था, उसे मैं समझने की कोशिश कर रहा था. तभी मुझे चार साल पहले की वह घटना याद आ गयी जिसका जिक्र मैंने पहले किया था. उस समय हम सब एक शादी के सिलसिले में नासिक गये थे. मेरे मामा के मकान में रुके थे. चाची भी आयी थी. वहां से शादी का हॉल दूर था. सुबह सब जल्दी चले गये, चाची रात देर से आयी थीं इसलिये थकी हुई थीं. वे सब से बाद नहाने गयीं. मां ने मुझे कहा कि तू रुक और फ़िर चाची को साथ लेकर आ. आधे घंटे बाद जब मैं चाची के कमरे में गया कि वे तैयार हुईं कि नहीं, तब वे साड़ी ही लपेट रही थीं. मुझे देखकर बोलीं "विनय, अब जरा जल्दी मेरे सूटकेस से वो गिफ़्ट एन्वेलप निकाल कर उसमें ये ५०० रु रख दे, मैं बस पांच मिनिट में तैयार होती ही हूं.

उस काम को करते करते सहज ही मेरी नजर चाची पर जा रही थी. उन्होंने आंचल ठीक किया, फ़िर थोड़ा स्नो और पाउडर लगाया और फ़िर बिंदी लगाई. उन्होंने एकदम मस्त गहरे ब्राउन रंग की साड़ी और ब्लाउज़ पहना हुआ था. उनके गोरे रंग पर वह अच्छी निखर आयी थी. तब तक मैंने चाची के बारे में बस अपने रिश्ते की एक बड़ी उमर की महिला इसी तरह सोचा था. अब हम सब की पहचान वाली और रिश्ते में उस उमर की बहुत महिलायें होती हैं और उनसे बात करते वक्त ऐसा वैसा कुछ कभी दिमाग में भी नहीं आता. पर तब चाची को उस अच्छी साड़ी और ब्लाउज़ में देखकर और खास कर उस महीन कपड़े से सिले ब्लाउज़ की पीठ में से दिखती काली ब्रा की स्ट्रैप देखकर एकदम से जैसे इस बात का एहसास हुआ कि शायद वे भी एक ऐसी स्त्री हैं जिसे सुंदर स्मार्ट दिखने की और उसके लिये अच्छे सटीक कपड़े पहनने की इच्छा है. याने बस एक उमर में बड़ी रिश्तेदार महिला, इसके आगे भी उनका एक स्त्री की हैसियत से कोई अस्तित्व है. उसके बाद एक बार मामी के यहां के पुराने एलबम में चाची के बहुत पुराने फोटो देखे. तब वे जवान थीं. सुन्दर न हों फ़िर भी अच्छी खासी ठीक ठाक दिखती थीं.

बस ऐसे ही स्नेहल चाची के बारे में सोचते हुए मैं घर आया. घर वापस आया तो बस पांच मिनिट के अंदर एक और झटका लगा. और यह झटका जोर का था, उससे मेरे मन की उथल पुथल शांत होने के बजाय और बढ़ गयी. हुआ यूं कि दोपहर का खाना खाकर मां और चाची बाहर ड्रॉइंग रूम में बैठे थे. मां टी वी देख रही थी और चाची पढ़ रही थीं. और संयोग से बिलकुल वही हमेशा का पोज़ था, याने सोफ़े पर पैर ऊपर करके एक तरफ़ टिक कर चश्मा लगाकर चाची पढ़ रही थीं. न चाहते हुए भी मुझे उस साइट की वह औरत याद आ गयी. मैं बैठ कर जूते उतारने लगा. मां नौकरानी को कुछ कहने को अंदर चली गयी, शायद मेरे लिये खाना भी लगाना था. चाची ने किताब बाजू में की और चश्मा नीचे करके मेरी ओर देखकर स्नेह से मुस्करायीं "आ गये विनय! आज दिखे नहीं सुबह से"

"हां चाची, वो दोस्त से मिलने गया था, देर हो गयी" मैंने धड़कते दिल से कहा.

वे मुस्करायीं और चश्मा ठीक करके फ़िर से पढ़ने लगीं. मैं अंदर जाकर कपड़े बदलकर हाथ मुंह धो कर वापस आया और पेपर पढ़ने लगा. पेपर पढ़ते पढ़ते बार बार चोरी छिपे नजर चाची की ओर जा रही थी. अब वे साड़ी पहनी थीं इसलिये बदन ढका ही था पर कोहनी के नीचे उनकी बाहें और पांव दिख रहे थे. पहली बार मैंने गौर किया कि थोड़ी मोटी और भरी भरी होने के बावजूद उनकी बाहें कितनी सुडौल और गोरी चिकनी थीं. पांव भी एकदम साफ़ सुथरे और गोरे थे, नाखून ठीक से कटे हुए और उनपर पर्ल कलर का पॉलिश. हो सकता है कि अगर अब इस वक्त कुछ नहीं होता तो शायद मैं फ़िर से संभल जाता, चाची के बारे में सोचना बंद कर देता और फ़िर से उनकी ओर सिर्फ़ उमर में मां से भी बड़ी एक स्त्री जो रिश्ते में मेरी दूर की चाची थीं, देखने लगता. पर जो आगे हुआ उसकी वजह से मेरे मन की चुभन और तीव्र हो गयी.

मां ने अंदर से उन्हें किसी काम से आवाज लगायी. वे जरा जल्दी में उठीं और स्लीपर पहनने लगीं. जल्दबाजी में उनके हाथ की किताब नीचे गिर पड़ी. उन्होंने नीचे देखा तो चश्मा भी नीचे गिर पड़ा. वे पुटपुटाईं "ये मेरा चश्मा ... हमेशा गिरता है आजकल ..." और किताब और चश्मा उठाने को नीचे झुकीं. उनका आंचल कंधे से खिसक कर नीचे हो गया. किताब और चश्मा उठाने में उन्हें जरा वक्त लगा और तब तक बिलकुल पास से और सामने से उनके ढले आंचल के नीचे के वक्षस्थल के उभार के दर्शन मुझे हुए. उनके ब्लाउज़ के नेक कट में से मुझे उनके गोरे गुदाज स्तनों का ऊपरी भाग साफ़ दिखा. उनके स्तनों के बीच की गहरी खाई में उनका मंगलसूत्र अटका हुआ था. ब्लाउज़ के सामने वाले भाग में से उनकी सफ़ेद ब्रा के कपों का ऊपरी भाग भी जरा सा दिख रहा था. सीधे होकर उन्होंने आंचल ठीक किया और अंदर चली गयीं. मैं आंखें फाड़ फाड़ कर उनके उस शरीर के लावण्य को देख रहा था, इस बात की ओर उनका ध्यान गया या नहीं, मुझे नहीं पता. अंदर जाते वक्त भी मेरी निगाहें उनकी पीठ पर टिकी हुई थीं. वैसे उनकी पीठ रोज भी कई बार मुझे दिखती थी पर आज मेरी नजर उनके ब्लाउज़ के कपड़े में से हल्की सी दिखती ब्रा की पट्टी पर जमी थी.
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