RE: Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
मैं बैठा बैठा उन कुछ सेकंडों में दिखे दृश्य को याद करता रहा. मन में एक मीठी सिहरन होने लगी, मन ही मन खुद से बोला कि बेटे विनय, तूने कभी सपने में भी सोचा था कि उमर में तेरी मां से भी बड़ी स्नेहल चाची के स्तन इतने तड़पा देने वाले होंगे.
वह एक बहुत निर्णायक क्षण था. उस क्षण के बाद चाची की ओर देखने का मेरा नजरिया ही बदल गया, सिर्फ़ चाची ही नहीं, बड़ी उमर की हर नारी की ओर देखने का दृष्टिकोण बदल गया. उमर में बड़ी नारियां भी कितनी सेक्सी हो सकती हैं, यह बात दिमाग में घर कर गयी. उस दिन बचे हुए समय में मैंने कोई गुस्ताखी नहीं की, उलटे बड़ी सावधानी से चाची से दूर रहा, वे एक कमरे में तो मैं दूसरे कमरे में, बल्कि शाम को मैं जो बाहर गया वह देर रात ही वापस आया. अब उनको देखते ही दिल में कैसा तो भी होता था. उनसे अब ठीक से पहले जैसी बातें भी मैं कर सकूंगा कि नहीं, यह भी मुझे विश्वास नहीं था, क्योंकि अब दिल साफ़ नहीं था, दिल में चाची के प्रति बहुत तेज यौन आकर्षण बैठ गया था.
उस रात मुझे हस्तमैथुन करना पड़ा, नींद ही नहीं आ रही थी, लंड साला सोने नहीं दे रहा था. और झड़ते वक्त चाची के मुलायम वक्षस्थल का वह दृश्य मेरी आंखों के सामने तैर रहा था.
दूसरे दिन से यह सब सावधानी जैसे गायब हो गयी, उसका मेरे लिये कोई मायना नहीं रहा, मैं जैसे चाची के पीछे बौरा गया. याने कोई गुस्ताखी कर बैठने का मन था यह बात नहीं थी, उतना साहस अब भी मुझमें नहीं था और न कभी पैदा होगा यह भी मैं जानता था. हां उनको देखने की धुन में अब मुझे और कुछ नहीं सूझता था. जैसा जमे, जितना जमे, उनकी और घर वालों की नजर बचाकर चाची को देखने की धुन मुझे सवार हो गयी. अब हर किसी मर्द को मालूम है कि घर आयी औरतों को देखने का भी एक तरीका होता है, और वह तरीका ज्यादातर जवान औरतों और लड़कियों के बारे में अपनाना पड़ता है, क्योंकि उमर में बड़ी औरतों की ओर सहसा ऐसी नजर नहीं जाती, उनके प्रति ज्यादा आकर्षण भी नहीं होता. हम रिश्ते की इतनी सारी प्रौढ़ स्त्रियों के संपर्क में होते हैं, कोई बारीक होती हैं, कोई मोटी सिठानी, कई फूले फूले बदन की होती हैं, अब चेहरा अगर बहुत सुन्दर ना हो तो हम उस बारे में सोचते भी नहीं, उनको आकर्षक स्त्री रूप में नहीं देखते, उनको हमेशा बुआ, मौसी, नानी, दादी इसी रूप में देखते हैं. बस इसलिये मेरा भी इतने दिन ध्यान चाची पर नहीं गया था.
पर अब मेरी नजरें बस चाची को ही ढूंढती थीं. और जितना देखूं, वो कम था. जल्द ही बात मुझे समझ में आ गयी कि ... याने ठेठ भाषा में कहा जाय तो ... चाची ’माल’ थीं. अब उनके उन मांसल गोरे गुदाज उरोजों की एक झलक देखने के बाद उनके रूप का हर छोटा से छोटा कतरा भी मेरी नजर में भर जाता था. पहली बार मैं उनकी हर चीज को बड़े गौर से देखने लगा था. स्नेहल चाची का कद एवरेज ही था, पांच फुट एक या दो इंच के आस पास होगा. याने नाटी नहीं थीं पर खाया पिया बदन होने की वजह से जरा नाटी लगती थीं. वजन पैंसठ और सत्तर किलो के बीच होगा, याने अच्छी खासी मांसल और भरे पूरे बदन की थीं. पर वैसे शरीर बेडौल नहीं था, कमर के मुकाबले छाती और कूल्हे ज्यादा चौड़े थे याने फ़िगर अब भी प्रमाणबद्ध था. रंग गेहुआं कह सकते हैं, वैसे उससे ज्यादा गोरा ही था. पर स्किन की क्वालिटी ... एकदम मस्त, चिकनी, इतना अच्छा काम्प्लेक्शन, वो भी इस उमर में बहुत कम स्त्रियों का होता है.
दिखने में चेहरे मोहरे से चाची एकदम सादी थीं. किसी भी तरह से उन्हें कोई सुंदर नहीं कह सकता था. हां ठीक ठाक रूप था. कुछ बाल सफ़ेद हो गये थे, पर अधिकतर काले थे. पर जैसे भी थे, उनके बाल बड़े सिल्की और मुलायम थे. वे हमेशा उन्हें जूड़े में बांधे रहतीं. होंठ गुलाब की कली वली की उपमा देने लायक भले ना हों पर मुझे अच्छे लगे, याने थोड़े मोटे और मांसल थे पर एकदम चुम्मा लेने लायक. और दांत ... उन दो टेढ़े दांतों की वजह से ही मेरे मन में ये सब तूफान उठना शुरू हुआ था और अब वे टेढ़े दांत ही मुझे एकदम सेक्सी लगने लगे थे. एकदम सफ़ेद अच्छे स्वस्थ दांत थे चाची के, और वे हंसतीं तो ऊपर का होंठ थोड़ा ऊपर सिकुड़ जाता और उनका ऊपर का गुलाबी मसूड़ा दिखने लगता. किस करते वक्त कैसा लगेगा, यही मेरे मन में बार बार आता.
चाची के चेहरे से ज्यादा उनके शरीर को देखने में मेरा सबसे ज्यादा इन्टरेस्ट था. अब शरीर ज्यादा दिखता नहीं था, आखिर चाची एक संभ्रांत महिला थीं, कोई शरीर प्रदर्शन करती नहीं घूमती थीं, घर में साड़ी पहनती थीं, साड़ी ब्लाउज़ पहनकर जितना शरीर दिख सकता है, उतना ही दिखता था. वे अधिकतर कॉटन की साड़ी ब्लाउज़ ही पहनती थीं, याने ब्लाउज़ वैसा नहीं होता था जैसा मैंने पहले लिखा है और जिसमें से मुझे कुछ साल पहले उनकी काली ब्रा की पट्टी दिख गयी थी. हां उनके एक दो ब्लाउज़ टाइट थे, उन कॉटन के ब्लाउज़ में से भी नीचे की ब्रा की पट्टी का उभार सा दिखता था, बस, पर मुझे इतना ही काफ़ी था, बस रंगीन कल्पना में डूब जाता कि चाची ब्रा कैसी पहनती होंगी. एक दिन पहने हुए एक सफ़ेद जरा झीने ब्लाउज़ में से यह भी दिखा कि पीठ पर ब्रा के पट्टी का आकार यू शेप का था, याने अच्छी खासी मॉडर्न ब्रा पहनती होंगी चाची, पुराने ढंग की महिलाओं जैसी बॉडी या शेपलेस चोली नहीं. ब्रा का स्ट्रैप जिस तरह से उनकी पीठ के मांसल भाग में गड़ा हुआ रहता था, वह भी मेरी नजर से नहीं छुप पाया.
वैसे घर के पीछे आंगन में सूखने डाले कपड़ों में मुझे मां के कपड़ों के साथ चाची के भी अंगवस्त्र दिखते थे पर मैं बस दूर से देखता था. पास जाकर देखने की हिम्मत नहीं हुई क्योंकि मां हमेशा ही घर में रहती थी और पकड़े जाने का डर था. फ़िर भी एक बार एकादशी के दिन जब मां और चाची दोपहर को दस मिनिट के लिये बाहर पास के मंदिर में गये थे, मैंने झट से आंगन में जाकर चाची की गीली ब्रा को हाथ लगाकर देख भी लिया था. अब गीला भीगी ब्रा में देखने जैसा कुछ होता नहीं, पर फ़िर भी उस सफ़ेद अच्छी क्वालिटी के कपड़े की ब्रा के कप और सफ़ेद इलास्टिक की स्ट्रैप देखकर मन में एक अनोखा उद्वेग सा हो आया था.
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