RE: Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
इस बात पर असल में मुझे अब थोड़ा टेंशन भी होने लगा था. चाची के साथ अकेले रहते हुए कोई उलटा सीधा काम न कर बैठूं इसका मुझे बहुत टेंशन था. सवाल सिर्फ़ मेरा नहीं था, हमारे परिवार के साथ उनके संबंधों का था. घर में पता चल गया कि मैं उनपर बुरी नजर रखता हूं तो सीधा फांसी पर लटका दिया जाऊंगा यह मुझे पता था. इसलिये कुछ दिन की दिलफेक चाची पूजा के बाद अब मैंने फ़िर से मन उनसे हटाने का प्रयत्न करना शुरू कर दिया था.
दूसरे ही दिन हमारा सारा कार्यक्रम अलट पलट सा हो गया, चाची अभी हफ़्ते भर रहने वाली थीं. मेरी ट्रेनिंग को भी तीन हफ़्ते थे, याने जैसा कंपनी ने पहले बताया था. पर दूसरे ही दिन उनका फोन आया कि अगले सोमवार को ही याने एक हफ़्ते बाद ही ट्रेनिंग शुरू हो रही है और मैं तुरंत वहां आकर रिपोर्ट करूं.
मुझे अब तुरंत जाना जरूरी था, ट्रेन का रिज़र्वेशन बाद का था, अब मिलने की उम्मीद भी नहीं थी. बस से ही जाना पड़ता. वहां गोआ वाले घर में नीलिमा भाभी अकेली थीं, मेरी उनकी पहचान भी नहीं थी, वे भी दिन में नौकरी पर निकल जाती थीं. ये सब कैसे संभाला जाये? अब चाची को कैसे कहें कि आप भी विनय के साथ जल्दी वापस जायेंगी क्या? और बस के टिकट भी एक दो दिन बाद के मिल रहे थे. एक हफ़्ते के बाद के टिकट फ़ुल थे.
पर चाची ने समस्या आसान कर दी. जब उनको पता चला तो बोलीं कि सीधे हम दोनों का कल रात का बस टिकट निकाल लिया जाये, अब मैं गोआ जा रहा ही हूं तो वे भी मेरे साथ ही जायेंगीं, उनको भी साथ हो जायेगा. मां ने कहा कि विनय चला जायेगा, आप आराम से बाद में ट्रेन से जाइये पर वे एक ना मानीं.
परसों मैं चाची के साथ गोआ जाऊंगा यह एहसास ही बड़ा मादक था. मादक भी और थोड़ा परेशान कर देने वाला भी. अब तक तो खूब मन के पुलाव पकाये थे कि ऐसा करूंगा, वैसा करूंगा, अगर चाची ऐसे करें तो मैं वैसा करूंगा आदि आदि. अब जब वो घड़ी आ गयी, तो पसीना छूटने लगा.
दो दिन तक मैंने अपने मन को खूब संभाला, किसी तरह चाची के प्रति मन में उमड़ने वाले सारे रंगीन खयाल उफ़नने के पहले ही दबा दिये. उनको जितना हो सकता था, उतना अवॉइड किया. चाची का भी अधिकतर समय पूना में दूसरे रिश्तेदारों के यहां मिलने जाने में ही बीता, जिनसे वे अगले हफ़्ते में मिलने वाली थीं. यहां तक कि दूसरे दिन मेरा और चाची का सामना ही नहीं हुआ. अगले दिन शाम को बस स्टैंड को जाते वक्त मुझे करीब करीब विश्वास हो गया कि अब मैं चाची के साथ बिलकुल वैसे पेश आ सकता हूं जैसे उनके एक रिश्ते के उमर में उनसे बहुत छोटे लड़के को आना चाहिये.
हम टैक्सी में साथ गये तो मैं आगे ड्राइवर के साथ बैठ गया. चाची पीछे बैठी थीं. मैं सोच रहा था कि अगर उनके साथ बैठूं तो फ़िर जरा विचलित हो सकता हूं. पर यह नहीं दिमाग में आया कि अब गोआ की बस में रात भर उनके साथ ही बैठकर जाना है. और हुआ यह कि आखरी मौके पर मेरी सारी तपस्या पर पानी फिर गया क्योंकि सामान नीचे लगेज में रखकर जब हम बस में चढ़ रहे थे, तब चाची आगे थीं. मैं उनके ठीक पीछे था. बस के स्टेप्स पर चाची की साड़ी थोड़ी ऊपर हुई और मुझे फ़िर से उनकी दोनों मांसल चिकनी पिंडलियां दिखीं. पिंडलियों के साथ साथ उनके गोरे पांव में दो इंच हील वाली स्मार्ट काली चप्पल दिखी, और चप्पल के सोल से उनका पांव उठा होने से उनके पांव के गुलाबी कोमल तलवे दिखे. मेरे मन में फ़िर एक लहर दौड़ गयी, क्या खूबसूरत पांव हैं चाची के! और तभी मेरा खयाल उनके कूल्हों पर गया. बस में चढ़ते वक्त उनकी साड़ी कूल्हों पर टाइट होने की वजह से उनमें उनके भारी भरकम नितंबों का आकार साफ़ नजर आ रहा था.
याने बस में बैठते बैठते मैं फ़िर उसी चाची जिंदाबाद के मूड में आ गया. अब कुछ कह भी नहीं सकता था, मन में चोर था इसलिये बस चुप बैठा रहा और एक किताब पढ़ने लगा. चाची को शायद लगा होगा कि हमेशा उनसे दिल खोलकर गप्पें मारने वाला विनय ऐसा चुप चुप क्यों है, पर वे कुछ बोली नहीं.
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