RE: Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
दस मिनिट के इस तीव्र असहनीय सुख के बाद अब मैं ऐसी मानसिक स्थिति में आ गया था कि करीब करीब चाची का गुलाम हो गया था. मेरे लिये वे अब दुनिया की सबसे सेक्सी स्त्री बन गयी थीं, वे इस वक्त मुझे जो कहतीं मैं चुपचाप मान लेता. कब उनके उस मांसल खाये पिये नरम नरम बदन को बाहों में लेकर उनके जगह जगह चुंबन लेता हूं, ऐसा मुझे हो गया था. पर वह करना संभव नहीं था, बस में आखिर कोई कितना प्रेमालाप कर सकता है! और ऊपर से चाची ने मुझे सख्त हिदायत दी थी कि चुप बैठा रहूं, उनकी आज्ञा न मानने का मुझमें साहस नहीं था.
मेरी उस डेस्परेट अवस्था में कुछ न कुछ तो होना ही था. पागल न हो जाऊं इतने असीम सुख में डूब कर आखिर मैंने अपना हाथ उठाकर उनके स्तन को पकड़ने का प्रयत्न किया. अब नीचे रखा हाथ उलटा मोड़ कर ऊपर उनका स्तन पकड़ना मुझे नहीं जम रहा था. मैंने एक दो बार ट्राइ किया और फिर चाची ने अपने दूसरे हाथ से मेरा हाथ पकड़कर फिर नीचे कर दिया. दो मिनिट मैंने फ़िर से सहन किया और जब रहा नहीं गया तो उनकी जांघ पर हाथ रख दिया. वे कुछ नहीं बोलीं, उनका हाथ मेरे लंड को सताता रहा, हां उन्होंने अपने जांघें फैला दीं. याने अब तक वे अपनी जांघें आपस में जोड़ कर बैठी थीं.
अपनी टांगें फैलाना ये मेरे लिये उनकी एक हिंट थी. पर अब मैं पशोपेश में पड़ गया. याने उन्होंने सलवार वगैरह पहनी होती तो नाड़ी खोल कर हाथ अंदर डालने की कोशिश मैं कर सकता था. अब साड़ी होने की वजह से कैसे उनकी साड़ी और उसके नीचे के पेटीकोट में से हाथ अंदर डालता! कोशिश करता तो साड़ी खुलने का अंदेशा था. आखिर मैं साड़ी के ऊपर से ही उनकी जांघें दबाने लगा. सच में एकदम मोटी ताजी भरी हुई जांघें थीं. उनको दबा कर सहला कर आखिर मैंने अपना हाथ साड़ी के ऊपर से ही उनकी टांगों के बीच घुसा दिया. वे शायद इसी की राह देख रही थीं क्योंकि तुरंत उन्होंने अपनी टांगें फिर से समेट लीं और मेरा हाथ उनके बीच पकड़ लिया. मैंने हाथ और अंदर डाला और फ़िर चाची ने कस के मेरा हाथ अपनी योनि के ऊपर दबा कर जांघें आपस में घिसना शुरू कर दिया.
क्या समां था! स्नेहल चाची अब अपने हाथ से मेरा हस्तमैथुन करा रही थीं और खुद मेरे हाथ को अपनी टांगों के बीच लेकर रगड़ रगड़ कर स्वमैथुन कर रही थीं. मुझे ऐसा लगने लगा कि यह टॉर्चर रात भर चलेगा, मैं पागल हो जाऊंगा पर इस मीठी छुरी से मुझे छुटकारा नहीं मिलेगा, जब गोआ उतरूंगा तो सीधे पागलखाने में जाना पड़ेगा. शायद सच में यही मेरा पनिशमेंट था.
पर दस एक मिनिट में मुझे छुटकारा मिल ही गया. मेरा लंड अचानक उछलने लगा. चाची ने शायद रुमाल अपने दूसरे हाथ में तैयार रखा था क्योंकि तुरंत उन्होंने मेरे सुपाड़े को रुमाल में लपेटा, और दूसरे हाथ से मेरे लंड को हस्तमैथुन कराती रहीं. मैं एकदम स्खलित हो गया. दांतों तले होंठ दबाकर अपनी आवाज दबा ली, नहीं तो जरूर चिल्ला उठता. गजब की मिठास थी उस झड़ने में. मेरा लंड मच मचल कर वीर्य उगलता रहा और चाची उसे बड़ी सावधानी से रुमाल में इकठ्ठा करती रहीं.
मेरा लंड शांत होने पर चाची ने रुमाल से उसे पोछा और रुमाल बाजू में रख दिया. मेरा लंड अंदर पैंट में डाला और ज़िप बंद की. रुमाल को फ़ोल्ड करके उन्होंने अपनी पर्स में रख लिया. मैंने उनकी ओर देखा तो बस के नाइटलैंप के मंद प्रकाश में उनकी आंखों में मुझे एक बड़ी तृप्ति की भावना दिखी जैसे अपने मन की कर ली हो. मुझे अपनी ओर तकता देख कर जरा मुस्कराकर बोलीं "आज छोड़ दिया जल्दी तुझपर दया करके. चल अब सो जा. अब गोआ आने दे, फ़िर देखती हूं तुझओ. सब बदमाशी भूल जायेगा"
पर मेरा हाथ अब भी उनकी जांघों की गिरफ़्त में था. उसको अपनी क्रॉच में दबा कर वे लगातार जांघें आपस में घिस रही थीं. मैंने वैसे ही साड़ी पेटीकोट और पैंटी इन तीन तीन कपड़ों के ऊपर से जितना हाथ में आ रहा था, उनकी योनि का उतना भाग पकड़ा,और दबाने और घिसने लगा. पांच मिनिट के बाद चाची का बदन अचानक पथरा सा गया, वे दो मिनिट मेरे हाथ को कस के दबाये हुए एकदम स्थिर बैठी रहीं, फ़िर एक लंबी सांस छोड़कर उन्होंने मेरे हाथ को छोड़ा, अपनी साड़ी ठीक की और आंखें बंद कर लीं.
मेरे मन में विचारों का तूफ़ान सा उमड़ पड़ा था. बहुत देर तक मुझे नींद नहीं आयी. सुनहरे सपने आंखों के आगे तैर रहे थे. स्नेहल चाची - उस सादे रहन सहन और व्यक्तित्व के पीछे कितना कामुक और मस्तीभरा स्वभाव छुपा हुआ था! और अब तीन महने मैं उनके यहां रहने वाला था. वे मुझे क्या क्या करने देंगीं अपने साथ, इस शारीरिक सुख के स्वर्ग के किस किस कोने में ले जायेंगी यही मैं सोच रहा था. वैसे थोड़ा डर भी था मन में, उनकी वह स्ट्रिक्ट हेड मिस्ट्रेस वाली छवि मेरे दिमाग में से गयी नहीं थी, बल्कि और सुदृढ़ हो गयी थी. अब भी वे मुझे सबक सिखाने की धमकी दे रही थीं. उनसे कोई भी सबक सीखने को वैसे मैं तैयार था. फ़िर यह भी मेरे दिमाग में था कि वहां उस घर में मैं और वे अकेले नहीं रहने वाले थे. उनकी बहू, नीलिमा भाभी भी थी, और नौकर चाकर भी होंगे शायद. पर फ़िर मैंने इसपर ज्यादा सोचना बंद कर दिया. स्नेहल चाची ने इसका उपाय भी सोच रखा होगा.
यही सब बार बार मेरे दिमाग में घूम रहा था. चाची शायद जल्दी ही सो गयी थीं. एक बार लगा कि उनसे थोड़ा सा चिपक जाऊं, उनके मुलायम बदन को थोड़ा तो महसूस करूं, उन्हें नींद में पता भी नहीं चलेगा, पर फ़िर हिम्मत नहीं हुई. यही सब सोचते सोचते बहुत देर तक मैं बस इधर उधर सीट पर ही करवट बदलता रहा. शायद सुबह तीन बजे के करीब मेरी आंख लगी.
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