RE: Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
मैंने फ़िर अपने मन को लगाम दी और घर में दाखिल हुआ. चाची तैयार होकर बैठी थीं, मेरी राह ही देख रही थीं. "चल विनय, खाना खा ले, फ़िर मुझे भी बाहर जाना है"
सो कर वे एकदम फ़्रेश दिख रही थीं. नहा कर उन्होंने एक प्रिन्ट वाली साड़ी और स्लीवलेस ब्लाउज़ पहना था. उनकी मोटी मोटी पर एकदम गोरी चिकनी बाहें उनके बाकी के गुदाज मांसल भरे भरे बदन से एकदम मेल खा रही थीं. पहली बार मैं उन्हें स्लीवलेस ब्लाउज़ में देख रहा था. शायद गोआ में वे जरा ज्यादा मॉडर्न अंदाज में रहती थीं. इस प्रिन्टेड साड़ी के साथ के ब्लाउज़ का कपड़ा जरा महीन था और उसमें से उनकी ब्रा के स्ट्रैप और कपों के आकार का अंदाज आसानी से हो रहा था. ब्रा अच्छी खासी टाइट थी, उसमें कस के बंधे उनके स्तन और उभर आये थे और आंचल में से भी उनका उभार समझ में आता था. ब्लाउज़ की पीठ भी अच्छी लो कट थी और उनकी गोरी मांसल सपाट पीठ का काफ़ी भाग उसमें से दिखता था. ब्लाउज़ और साड़ी के बीच में उनकी कमर और पेट का मुलायम मांसल भाग दिख रहा था.
आज एक खास बात जो मुझे उत्तेजित कर गयी, वह थी उन्होंने पहनी हुई ब्रा के कपों का कोनिकल आकार और उनके कारण आंचल में से माउंट फ़ूजी जैसे दो पर्वतों का उभार! ब्रा के कप बहुत प्रकार के होते हैं पर ऐसे कोनिकल कप देखते ही मुझे कैसा तो भी होता है, लगता है आइसक्रीम के दो बड़े कोन हैं जिनमें खचाखच मीठा माल भरा है.
एक असीम आनंद मेरी नस नस में भर गया. क्यों मैं इतने दिन यही समझता रहा कि स्नेहल चाची बस एक साधारण प्रौढ़े महिला हैं. असल में इतना मादक रूप है उनका. अभी इतनी सेक्सी लगती हैं तो जवानी में कैसी लगती होंगीं! ये ऐसा था जैसे किसी पास के हलवाई के यहां इतने साल सादे लड्डू देखे जिसे कभी खाने की इच्छा नहीं हुई और जब एक चखा तो स्वर्गिक स्वाद निकला उसका.
नजर छुपा कर उनको घूरने के मेरे कृत्य पर उनका ध्यान गया कि नहीं यह मुझे नहीं समझ में आया पर वे खाना परोसते हुए बोलीं. "मुझे अब थोड़ा बाहर जाना है विनय. एक फ़ंक्शन है मेरी एक सहेली के यहां. वहां लंच भी है. मैंने उसे कहा था कि मैं गोआ में नहीं हूं. पर अब अगर उसे पता चला कि मैं जल्दी वापस आ गयी हूं और फ़िर भी नहीं आयी तो बुरा मान जायेगी. मैं दो तीन घंटे में आ जाऊंगी. तू खाना खाकर आराम कर ले, जरा सो ले, बस में कभी ठीक से नींद नहीं होती और तेरी तो शायद बिलकुल नहीं हुई है" यह कहकर उन्होंने मेरे चेहरे पर निगाहें गड़ा दीं. मुझे ऐसे ही लगा कि उनकी बात में एक छुपा हुआ उपहास सा है पर फ़िर वे किचन में चली गयीं.
मुझे जरा निराशा हुई कि वे बाहर जा रही हैं. पहले एक सुखद आशा निर्माण हो गयी थी कि अब नीलिमा भाभी भी नहीं हैं तो घर में अकेले होने के कारण शायद चाची कल की बात कुछ आगे बढ़ायें. आज वे जितनी आकर्षक लग रही थीं, मुझे बार बार लगता था कि जाकर उन्हें चिपट जाऊं और कस के चूम लूं. अब वे उसको बुरा नहीं मानेंगी वो तो निश्चित था. पर फ़िर सुबह उनकी दी हुई चेतावनी कि बस मैं जो कहूं वही करना, मन से कुछ नहीं करना - याद आयी और मैंने अपने मन को मना लिया और खाने बैठ गया.
मैं खाना खा रहा था तब तक चाची वहीं ड्राइंग रूम में कुछ चीजें जमा रही थीं. टी वी यूनिट के ऊपर के शेल्फ़ पर रखे एक गुलदस्ते को वो निकाल रही थीं तब मुझे उनकी कांख दिखी. एकदम शेव की हुई साफ़ चिकनी कांख थी. मेरे मन में आया कि वाह, लगता है चाची रेगुलरली शेव करती हैं. सिर्फ़ कांखों में करती हैं या और कहीं भी. फ़िर मेरे पापी बदमाश मन में आया कि उस शेव की हुई कांख को किस करके कैसा लगेगा, उसपर जीभ चलाकर स्वाद कैसा लगेगा! मैंने तुरंत मन ही मन में अपने आप को एक कस के जूता मारा कि रुक जा साले हरामी, ऐसा करता रहेगा तो तेरी सूरत पर से कोई भी समझ जायेगा कि कैसा गंदा दिमाग पाया है तूने!
बाकी चाची ने मुझसे ज्यादा बातचीत नहीं की. मैं बस यही सोच रहा था कि अब आगे क्या होगा. अपनी प्लेट सिन्क में रखकर मैं हाथ मुंह धोकर आया तो चाची टेबल साफ़ कर रही थीं. मैंने वहीं रखी एक मेगेज़ीन उठा ली. दो मिनिट में चाची ने अपनी पर्स उठाई और चप्पल पहनकर बोलीं "अब जा और जरा आराम कर ले विनय. नीलिमा शाम को छह बजे के पहले नहीं आयेगी. मैं आ जाऊंगी दो तीन बजे तक पर मेरे पास लैच की है, दरवाजा मैं खोल लूंगी, तेरी नींद नहीं डिस्टर्ब होगी. और सुन ... " मेरी ओर देखते हुए वे थोड़ी कड़ाई से बोलीं जैसे किसी छोटे बच्चे को कह रही हों " ... अब ऊपर जाकर सीधे सो जाना, ठीक है?"
मैंने हां कहा, चाची निकल गयीं. मैं सोचने लगा कि आज अभी अकेले में भी चाची ने मुझे कल के बारे में या पूना में उनकी ओर ऐसी नजर से देखने के बारे में कुछ नहीं कहा था, कल तो मेरी मुठ्ठ मारने के बाद सोते समय उन्होंने मुझे कहा था कि वहां गोआ में और आगे सजा दूंगी, तो सजा तो दूर, डांटा भी नहीं था अकेले में. मैंने ऊपर आकर कुरता पाजामा पहना और बिस्तर पर लेट गया. पर आंखों के आगे बार बार चाची ही आ रही थीं. अभी देखे उनके उभरे स्तन, उनकी शेव की हुई कांखें और कल रात जो उन्होंने मेरे लंड को एकदम नंदनवन की सैर करा दी थी वह किस्सा, ये सब बार बार याद आ रहा था. कस के लंड खड़ा हो गया. मूड हो रहा था कि चाची को अपनी फ़ेंटसी में ही भोगते हुए एक मस्त मुठ्ठ मार दी जाये पर फ़िर थोड़ा गिल्टी भी लगने लगा.चाची ने आज्ञा दी थी कि कुछ नहीं करना, बस मैं कहूं वही करना. उनके आदेश की अवहेलना करना अब मेरे लिये असंभव था.
लंड में होती मस्ती को कम करने को और टाइम पास करने को मैं कमरे में इधर उधर घूमने लगा. बाल्कनी में गया, बाहर बगीचे को देखा. लंड थोड़ा शांत होने पर अंदर आया. मेरे और चाची के कमरे के बीच जो दरवाजा था, वो देखा. खोलने की कोशिश की पर शायद उस तरफ़ से सिटकनी लगी थी. परदा भी था.
अब मुझे थोड़ी थकान लग रही थी. इस बार जब बिस्तर पर लेटा तो समझ में भी नहीं आया कि कब आंख लग गयी. मेरी नींद खुली तो देखा साढ़े तीन बजे थे. नींद में शायद कुछ मीठा मीठा सपना देखा होगा क्योंकि लंड एकदम तन्नाया हुआ था. बाजू के कमरे से थोड़ी आवाज आयी तो मैं समझ गया कि शायद चाची वापस आ गयी हैं, उन्हीं के दरवाजा खोलने की आवाज से शायद मेरी नींद खुली होगी.
मैं इंतजार करने लगा कि देखें चाची क्या करती हैं. अपने तने लंड को मैंने पजामे के ऊपर से ही थोड़ा दबाया कि बैठ जाये पर ये कुत्ते की दुम सीधा करने की कोशिश के समान था. इतनी देर में बाजू के कमरे से चाची की आवाज आयी. शायद चाची ने बीच के दरवाजे के पास आकर मुझे बुलाया होगा "अरे विनय, जाग गया कि सो रहा है?"
मैं उठ कर बैठ गया. "स्नेहल चाची, जगा हूं, बहुत अच्छी नींद लगी थी, अब फ़्रेश लग रहा है"
"फ़िर एक मिनिट जरा इधर आ बेटे मेरे कमरे में" चाची ने कहा, उनकी आवाज में फ़िर वही लहजा था जैसा किसी छोटे बच्चे को प्यार से ऑर्डर देते वक्त बड़े बूढ़ों का होता है. अब मैं जरा सकते में आ गया. पायजामे में ये बड़ा तंबू बना था, वो लेकर कैसे उनके सामने जाऊं! माना कि कल जो हुआ उसके बाद इस लिहाज का शायद कोई मतलब ना हो पर यहां आने के बाद तो अब तक चाची ने मुझे कोई भी ऐसा वैसा संकेत नहीं दिया था. और अगर वे अकेली ना हों, कोई उनके साथ आया हो? खड़ा होकर मैं लंड को बैठाने की कोशिश करने लगा.
दो मिनिट में चाची ने फ़िर बीच के दरवाजे पर दस्तक देकर आवाज लगाई "अरे विनय, क्या कर रहा है? चल जल्दी आ" इस बार उनकी आवाज में झुंझलाहट और एक कड़ा आदेश सा था जिसे ठुकराने का साहस मुझमें नहीं था. मैंने कुरता थोड़ा ठीक किया कि मेरे तंबू को वो झांक ले और धड़कते दिल से स्नेहल चाची के कमरे का दरवाजा खोला. जो देखा उससे मेरे पांव वहीं ठिठक से गये.
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