RE: Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
मैं चाटने लगा. टेस्ट के बारे में बता नहीं सकता, थोड़ा खारा, कसैला, मसालेदार .... जो भी था जीभ से ज्यादा लंड को पसंद आया. लंड और उछलने लगा जैसे कह रहा हो कि मुझे भी चखाओ. चाटते चाटते जीभ को मुलायम गीले मांस के अलावा बीच बीच में एक मक्के का कड़ा दाना भी महसूस हो रहा था.
मैं एक्सपेक्ट कर रहा था कि शायद स्नेहल चाची मुझे बतायेंगी कि कैसे उनकी चूत से मुखमैथुन करूं, कहां जीभ लगाऊं, कैसे चाटूं, कैसे चुंबन लूं, कैसा करने से उन्हें ज्यादा सुख मिलता है. पर वे बस टांगें पसारे बैठी रहीं. जैसे किसी देवी ने अपने भक्त पर छोड़ दिया हो कि कैसे वह उसकी पूजा करता है. याने हर तरह की पूजा उन्हें मान्य थी, बस थोड़ा सा बीच बीच में ’अं .. अं .. हां ...’ ऐसा करती थीं. कभी अचानक अपने हाथ से मेरा सिर पकड़ लेतीं.
मैंने मन भरके उनकी बुर के रस का भोग लगाया. उस चिपचिपे शहद जैसे स्त्राव को चाट चाट कर साफ़ किया. आखिर में अचानक चाची ने मेरा सिर कस के अपनी जांघों में जकड़ कर मेरा चेहरा अपनी बुर पर दबा लिया और एक मिनिट बस बैठी रहीं, उनका बदन पथरा सा गया. मैं उनकी चूत के भगोष्ठ मुंह में लेकर चूसता रहा, मेरे मुंह में उन भगोष्ठों का कंपन मुझे महसूस हो रहा था. सहसा मेरे मुंह में और चेहरे पर छूटे उनके पानी से मैंने अंदाजा लगाया कि वे स्खलित हो गयी होंगी.
मैं अपना भीगा मुंह और चेहरा लिये बैठा रहा. मन में एक संतोष की भावना थी कि चाची को ऑर्गज़म तो दिला पाया, भले नौसिखिया होऊं. अब मेरा लंड मुझे पागल कर रहा था, ऐसा तन्नाया था कि लग रहा था कि स्नेहल चाची को नीचे पटककर चढ़ जाऊं और सपासप उनकी नरम नरम पाव रोटी चोद मारूं. पर अब भी इस बात का एहसास था कि वे मुझसे उमर में इतनी बड़ी हैं और उनसे मैं इस तरह से नहीं पेश आ सकता था. और बड़ा कारण यह था कि अब मैं सच में उनका भक्त हो गया था, मेरा बस इतना ही कर्तव्य था कि अपनी मालकिन की सेवा करूं, उन्हें अधिकाधिक सुख दूं और उनकी सेवा में जो भी आनंद मिले, उसे ग्रहण करूं.
मुझे लगा था कि वे मुझे पूछेंगी कि कैसा लगा मेरा रस, स्वाद आया? पर उन्होंने कुछ नहीं पूछा. बस हल्के सा गालों में मुस्करायीं, उनको मेरे चेहरे के हावभाव से ही उत्तर मिल गया होगा. मुझे यह भी महसूस हुआ कि चाची का सेल्फ़ कॉन्फ़िडेन्स इतना जबरदस्त है कि उनके मन में भी नहीं आया होगा कि किसी को उनकी बुर का शहद पसंद नहीं आयेगा, उनके अनुसार तो शायद यह उन्होंने मुझपर किया हुआ एहसान था कि वे मुझे अपना अमरित चखने दे रही थीं.
"विनय, चल अब बिस्तर पर आ जा ... आराम से" कहकर वे मुझे बेड पर ले गयीं. उनके कमरे का वह डबल बेड एकदम बड़ा था, पुराने स्टाइल का, आज कल के डबल बेड से डेढ़ गुना बड़ा. मुझे पकड़कर वे करवट पर लेट गयीं और मुझे पास खींच कर आगोश में ले लिया. "क्यों रे नालायक? कुछ दिल भरा? या अब भी देखना है मुझे टुकुर टुकुर जैसा पिछले हफ़्ते भर से देख रहा है?"
"चाची ... वो गलती हो गयी ... आपको ऐसी नजर से नहीं देखना था ... पर वो आपके ... याने स्तन दिख गये तो मन बहुत विचलित हो गया था मेरा ... आप इतनी बड़ी हैं और ... मां भी आपको इतना रिस्पेक्ट करती है ... "
"तो सिर्फ़ मेरे स्तन इतने भा गये तुमको कि अपनी मां जैसी चाची को बुरी नजर से देखने लगे तुम?" उन्होंने मेरी आंखों में देखकर कहा.
"चाची ... उसके बाद आप मुझे ... बहुत सेक्सी लगने लगीं ... आप की हर चीज ... पांव भी ..."
चाची मुस्करा दीं "चलो कोई बात नहीं. और नतीजा तो अच्छा ही हुआ ना ... मेरे को भी तेरे जैसा क्यूट गुड्डा मिल गया खेलने को ... पर मुझे लगता है कि प्यार के साथ साथ इस गुड्डे की जरा पिटाई भी करना पड़ेगी नहीं तो ये बिगड़ जायेगा" फ़िर वे मुझे चूमने लगीं. उनके चुंबन प्यार से ज्यादा वासना के चुंबन थे. मेरे होंठों को वे ऐसे चूस रही थीं जैसे खा जाना चाहती हों. मुझे मजा आ गया. कोई औरत जबरदस्ती मुझपर मनमानी करके मुझे भोग रही है यह मेरी सबसे उत्तेजक फ़ेंटसी है.
उनके मुलायम बड़े बड़े स्तन मेरी छाती पर दब कर स्पंज के गोलों से लग रहे थे, पर उनके निपल कड़े हो गये थे, उनकी चुभन अलग महसूस हो रही थी. मेरा लंड उनके पेट पर दबा हुआ था. मैं कमर हिलाकर धक्के देने लगा कि लंड उनके पेट पर रगड़े तो लंड को बेचारे को भी कुछ मौका मिले मस्ती करने का.
स्नेहल चाची सीधी होकर सो गयीं. मेरे लंड को पकड़कर बोलीं "लगता है इस बेचारे को अब और तरसाया तो यह घुटने टेक देगा. चल आ जा फटाफट" मैं उनकी फैली हुई जांघों के बीच बैठ गया और चाची ने खुद मेरे शिश्न को पकड़कर अपनी चूत के मुख पर रख दिया, अधीर होकर मैंने लंड पेला और एक ही बार में वह उस विशाल गीली तपती गुफ़ा में जड़ तक समा गया. उस गरमा गरम चिपचिपी और मखमली म्यान ने मेरे लंड को पूरा आत्मसात कर लिया. मैं चोदने लगा. फ़ाइनली हमारी रिश्तेदार गोआ वाली स्नेहल चाची को चोद रहा हूं यह भावना एकदम मदहोश करने वाली थी.
कुछ देर मैं बस अपने हाथों पर वजन संभाले लंड पेल रहा था. आंखों के सामने स्नेहल चाची का चेहरा था जिस पर अब वासना की ललाई आ गयी थी. उनके जैसी बड़ी सयानी स्त्री मेरे चोदने से इतनी गरमा गयी थी, यह एहसास किसी शराब की खुमारी से कम नहीं था. मैंने झुक कर उनका चुंबन लिया और अपने धक्के बढ़ा दिये. उनके विशाल स्तन अब अपने ही वजन से फैल से गये थे. मैंने झुक कर एक बेरी मुंह में ली और चूसते चूसते घचाघच धक्के मारने लगा.
"आराम से बेटे, मजा ले लेकर हौले हौले .... ऐसे जल्दबाजी मत करो" चाची ने सावधान किया पर मेरे लिये अब रुकना मुमकिन नहीं था. मेरे धक्के और तीव्र हो गये. मेरी तड़प देख कर चाची ने पलटी मार कर मुझे अपने नीचे दबा लिया और मेरे मुंह में अपना आधा स्तन ठूंस दिया. अब धक्के मारना मेरे लिये संभव नहीं था क्योंकि वे काफ़ी शक्ति के साथ मुझे नीचे दबायी हुई थीं. "रुक ... रुक जा अब" वे बोलीं और मुझे अपने शरीर के नीचे दबाये पड़ी रहीं.
उनके स्वर में एक कठोर आदेश था. किसी तरह मैंने अपनी तड़प पर काबू किया और सांस लेता हुआ उनके मम्मे को चूसता हुआ पड़ा रहा. जब मेरी सांसों की गति थोड़ी धीमी हुई तो वे करवट बदल कर लेट गयीं पर मुझे अपनी बाहों और टांगों में जकड़े रहीं. "अब ठीक है? फ़िर से तो नहीं ऐसा पागल जैसा करेगा?"
मैंने मुंडी हिलाई. "अब आराम से कर, गहरा अंदर तक जा मेरे बदन में, धक्के अंदर तक लगा पर फ़्रीक्वेन्सी कम कर. फ़िर से नहीं बताऊंगी, समझा?"
मैंने "सॉरी चाची" कहा तो वे मुझे अपने ऊपर ले कर फ़िर से चित हो गयीं. "चल, चालू कर अपनी चाची की सेवा" उन्होंने आंखें बंद कर लीं और मैं फ़िर चालू हो गया.
जितना मुझे संभव था, उतना कंट्रोल रख कर मैंने यह रतिसाधना चालू रखी. बीच में फिर एक दो बार रुका. चोदने में इतना स्वर्गिक सुख है, इसका मुझे पहली बार अनुभव हो रहा था. ऊपर से इस संबंध का स्वरूप, यह वर्ज्य संभोग, टाबू रिलेशन और यह अहसास कि मैं एक पचास साल की नारी से संभोग कर रहा हूं, इन सब ने मिलकर इस सुख में बड़ी मीठी तीख पैदा कर दी थी.
कुछ देर बाद चाची ने भी प्रतिसाद देना शुरू किया. उन्हें भी अब अपनी वासना असहनीय हो रही है, इसका यह प्रमाण था. वे धीरे धीरे अपने विशाल चूतड़ उचका उचका कर नीचे से प्रहार करने लगी थीं. वे अब स्खलन के नजदीक आ रही हैं यह जानकर भी मैंने किसी तरह अपने ऊपर नियंत्रण रखा, और जैसा उनको अच्छा लगता था वैसे गहरा चोदता रहा.
अचानक स्नेहल चाची का बदन तन सा गया और उनके मुंह से एक लंबी सिसकारी निकली. वे कुछ बोली नहीं पर मुझे उन्होंने कस के भींच लिया और मेरे होंठ अपने होंठो में दबा लिये. ंउनकी बुर ने मेरे लंड को ऐसे जकड़ लिया जैसे किसी ने मुठ्ठी में भर लिया हो. मैंने अब सब सावधानी ताक पर रख दी और हचक हचक कर चोदने लगा. चाची को चोदने का असली मजा मुझे उन आखरी दो मिनिटों में आया. अब लगा कि मैं सही मायने में उनके उस मुलायम पके बदन का भोग लगा रहा हूं. मेरा स्खलन तीव्र था, एकदम मदहोश करने वाला, पर उस स्खलन के आनंद की किलकारी चाची के मुंह में दब कर रह गयी, जिसने मेरे मुंह को पकड़ रखा था. वह अलौकिक आनंद, पहली रति का सुख अब भी मेरे अंतर्मन पर अंकित है.
कुछ देर हम वैसे ही सुख में डूबे पड़े रहे. मैं चाची को चूमता रहा. इस बार अब मैंने उनके कानों, आंखों, गालों, माथे के चुंबन भी लिये, जैसे इतना सुख देने को उन्हें थैंक यू कह रहा होऊं. चाची ने कुछ देर बाद आंखें खोल कर कहा "बहुत अच्छा किया बेटे" उन शब्दों से मेरे मन में जो तृप्ति महसूस हुई, कह नहीं सकता, किसी नारी को पहली बार मैंने इतना सुख दिया था. मन में ठान ली कि अब स्नेहल चाची को जितना रति सुख दे सकता हूं, अपनी तरफ़ से पूरा दूंगा.
"अब जा और आराम कर. एक नींद और ले ले. जवानी में नींद की ज्यादा जरूरत होती है बच्चों को. तेरी सजा तो रह ही गयी इस चक्कर में ... अब बाद में दूंगी" चाची बोलीं. मैं उठ कर कपड़े पहनने लगा. पहनते पहनते जरा ठिठक कर बोला "चाची ... मैं ..."
चाची ने मेरी ओर देखा. मेरा धैर्य जवाब दे गया. "कुछ नहीं चाची" कहकर मैं वहां से भाग लिया. असल में मुझे पूछना था कि रात को क्या और कैसे करना है. रात को नीलिमा भाभी भी होंगी और वो भी चाची के कमरे में. क्या चुपचाप नीचे वाले कमरे में बुलायेंगी स्नेहल चाची, भाभी के सोने के बाद? पर पूछने की हिम्मत नहीं हुई. चाची कुछ न कुछ करेंगी, अब तक जो करना था, वो उन्हींने किया था. मेरे पूछने से नाराज न हो जायें! अपने कमरे में आकर अपने बिस्तर पर ढेर हो गया. जो सोया वो तीन घंटे बाद उठा. सफ़र की थकान जाती रही थी और संभोग की तृप्ति भी नस नस में समायी थी.
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