RE: Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
मैं नीचे आया तो चाची वहीं बैठी टी वी देख रही थीं. साड़ी बदलकर उन्होंने घर में पहनने की सादी साड़ी और ब्लाउज़ पहन लिया था. मुझे चाय बना दी. मेरी ओर देखकर बस जरा मुस्करायीं, कुछ बोली नहीं. मैं भी चुप रहा, पर अब उनसे दूर रहना मेरे लिये मुश्किल होता जा रहा था. उनके भरे पूरे मांसल मुलायम बदन ने मुझे जो सुख दिया था, वह सुख मुझे और चाहिये था, हर वक्त चाहिये था. आखिर जवानी का जोश था मेरा. मन ये हो रहा था कि उनसे चिपक कर सोफ़े पर बैठ जाऊं और जो वे करने दें, याने चूमा चाटी, स्तनमर्दन वगैरह, कम से कम वो तो करूं. मैं ऐसा करता तो शायद वे करने भी देतीं, पर उनके प्रति जहां मेरे मन में तीव्र आकर्षण था वहीं एक तरह का डर भी बना हुआ था कि वे किसी बात पर डांट न दें. अब वैसे डर का कोई कारण नहीं था, कोई वे मुझे छड़ी लेकर पीटने थोड़े वाली थीं. डर यह था कि वे अगर नाराज हो जायें तो उसका असर मुझे भविष्य में मिलने आले उस असीम सुख पर पड़ेगा जो चाची से मुझे मिलने वाला था. और इससे बड़ा डर मेरे लिये क्या हो सकता था! अगर कोई हमें स्वर्ग सुख देता है तो हम जरा घबराने भी लगते हैं कि ऐसा कोई काम अपने हाथ से न हो जाये कि उस सुख में व्यत्यय आ जाये.
चाय खतम होने पर मैंने चाची से कहा कि मैं घूम आता हूं. उनके सामने सिर्फ़ ऐसे ही बैठे रहना मेरे लिये मुश्किल था. और अब फ़ॉर्मल बातें भी करूं तो क्या करूं. भले हमारा संभोग शुरू हो गया था पर इमोशनल लेवल पर तो अभी थोड़ी दूरी थी. चाची ने आज्ञा दे दी तो मैंने चैन की सांस ली और निकल पड़ा.
वापस आया तो सात बज गये थे. नीलिमा भाभी भी आ गयी थी. चाची किचन में कुछ काम कर रही थीं. शायद शाम के खाने की थोड़ी तैयारी कर रही थीं. नीलिमा वहीं बैठे बैठे उनसे बातें कर रही थी. मुझे देख कर आवाज देकर उसने वहीं बुला लिया "क्यों विनय, कैसा लगा हमारा गोआ?"
"एकदम मस्त है भाभी. मुझे लगा था उससे भी ज्यादा अच्छा है" एक नजर चुराकर मैंने चाची की ओर देख लिया. मन में आया कि अगर चाची मुझे धारावी की झोपड़ पट्टी में ले जातीं और पूछतीं कि कैसी जगह है तो मैं अच्छी ही कहता.
"गोआ में देखने जैसा और अच्छा लगने लायक बहुत कुछ है विनय बेटे. यहां कुछ दिन और रहेगा तब पता चलेगा तुझे. मेरा तो विश्वास है कि हमारे गोआ को देखकर अब तू कंपनी से यहीं ट्रान्सफ़र करा लेगा" चाची ने कहा.
"ऐसा हुआ तो कितना अच्छा होगा ना ममी!" नीलिमा खुशी से बोली "हमें भी कंपनी हो जायेगी. तुझे मालूम नहीं है कि यहां इतने बड़े घर में अकेलापन कैसे खाने को दौड़ता है"
कुछ देर और बातें करके मैं बाहर ड्राइंगरूम में बैठ गया. आठ बजे ही खाना तैयार था. चाची खाना लगाते लगाते मेरी ओर देखकर बोलीं "तुम तो रोज नौ साढ़े नौ को खाना खाते थे ना बेटे पूना में?"
"हां चाची. कभी कभी तो दस बज जाते थे"
"तुझे एक दो दिन तकलीफ़ तो होगी पर यहां की आदत डाल ले तो अच्छा है, यहां सब जल्दी खाना खा लेते हैं" स्नेहल चाची बोलीं.
"सो भी जल्दी जाते हैं, आराम की जिंदगी है, सुसेगाडो ... जैसा यहां के लोग कहते हैं" नीलिमा बोली.
खाना खाकर हम सब ड्राइंग रूम में आ गये और टी वी देखने लगे. मैं एक कुरसी में था और चाची और नीलिमा सोफ़े पर बैठे थे. टी वी देखते देखते गप्पें चल रही थीं. मैं तो हमेशा की तरह चुप ही था, बस बीच में एक दो वाक्य बोलता था. अधिकतर गप्पें चाची और नीलिमा के बीच चल रही थीं. उनकी अच्छी पटती थी, यह तो मुझे पहले ही महसूस हो गया था. आज भी गप्पें मारते मारते कुछ कहते वक्त कभी कभी चाची नीलिमा की जांघ पर चपत मारतीं, और दोनों हंसने लगतीं. ऐसा लगता था कि जैसे सास बहू नहीं, दो सहेलियां हैं. मैं सोचने लगा कि क्या ये दोनों हमेशा ऐसी मस्ती में रहती हैं या आज कुछ ज्यादा चढ़ रही है.
आधे घंटे बाद नीलिमा ने एक अंगड़ाई ली तो स्नेहल चाची ने उसकी कमर में हाथ डालकर प्यार से पूछा "थक गयी है लगता है. आज काम था क्या बहुत ऑफ़िस में?"
"हां ममी, बोर हो गयी, काम खतम ही नहीं होता था. वो तो मैं निकल आयी नहीं तो रात को नौ बजे तक भी वहीं बैठी रहती. आप का आराम हुआ कि नहीं दोपहर में? वो फ़न्क्शन कैसा रहा कामत चाची के यहां?""
"अच्छा था पर मैं तीन बजे ही निकल आयी. फ़िर आराम किया. विनय भी लगता है थका होगा. कह रहा था कि दोपहर को नींद नहीं आयी ठीक से, ज्यादा थकने पर ऐसा हो जाता है कभी कभी" मेरी ओर देखते हुए चाची निर्विकार चेहरे से बोलीं.
अब मेरी समझ में नहीं आया कि क्या कहूं. असल में मुझे एकदम फ़्रेश लग रहा था. पर चाची कह रही थीं कि विनय को नींद आ रही है. मुझे लगा शायद जैसे यह मेरे लिये एक हिंट है, फ़िर मैंने सोचा कि चलो, यही ठीक है. मैंने भी हाथ ऊपर करके एक जम्हाई छोड़ी और बोला "हां चाची, ये बस की जरनी ऐसी ही होती है."
अब तक नीलिमा भाभी वहीं सोफ़े पर पसर गयी थी. उसने चाची की गोद में सिर रख दिया और आराम से लेट गयी. चाची लाड़ से उसके घने बालों में उंगलियां चलाते बोलीं. "चल, आज जल्दी सो जा. मैं भी आती हूं. वैसे भी हम दस बजे तक सो ही जाते हैं"
मैं जिस कुरसी में बैठा था, नीलिमा का सिर उसकी ओर था, और इसलिये उसके गाउन के गले में से अंदर का काफ़ी कुछ दिख रहा था. उसने शायद घर आकर ब्रा निकाल दी थी इसलिये उसके छोटे मीडियम साइज़ के पुष्ट स्तन करीब करीब पूरे दिख रहे थे, बस निपल छोड़ कर. उसका भी गाउन घुटने तक चढ़ गया था इसलिये उसके पैर भी दिख रहे थे. अच्छी गोरी एकदम चिकनी पिंडलियां थीं, जरा भी बाल नहीं थे, पर एकदम भरी हुई सॉलिड थीं.
चाची ने मेरी ओर देखा. उन्हें पता चल गया कि मेरी नजर कहां टिकी हुई है पर वे कुछ नहीं बोलीं. मैंने जल्दी से नजर हटाई और टी वी पर जमा दी. दो मिनिट में नीलिमा उठी और हाथ पैर लंबे कर अंगड़ाई ली. फ़िर बोली "मैं जा रही हूं सोने ममी. अच्छा विनय, गुड नाइट" मैंने भी गुड नाइट कहा.
"ठीक है तू चल, मैं भी आयी" चाची उठते हुए बोलीं.
नीलिमा ऊपर चली गयी. चाची साफ़ सफ़ाई करने लगीं, मैंने भी कुछ मदद की. फ़िर उन्होंने लाइट ऑफ़ की और हम दोनों ऊपर आये. अपने बेडरूम के दरवाजे के पास चाची रुक गयीं. मुड़ कर मुझसे बोलीं "अब तू नॉवल वगैरह पढ़ने वाला है विनय या सोने वाला है? मेरी मान तो लाइट ऑफ़ कर और सो जा, आराम कर ले, जरूरी है, कल तेरे को जॉइन भी करना है"
मैंन कहा "चाची, बस कपड़े बदल कर सोने ही वाला हूं" चाची मुस्करा दीं और अपने कमरे में चली गयीं. मैं रूम में आया. कपड़े बदले. असल में मुझे नींद नहीं आ रही थी, काफ़ी एक्साइटेड था. दोपहर चाची ने जो मस्ती की थी मेरे साथ, वही याद आ रही थी, बहुत मन हो रहा था कि चाची के साथ फ़िर वैसा ही मौका मिले. पर अब नीलिमा भी घर में थी, घर में क्या, चाची के कमरे में ही थी.
फ़िर मेरा ध्यान गया चाची के उस वाक्य पर कि लाइट ऑफ़ करके सो जा. क्या उनका मतलब था कि नीलिमा के सो जाने के बाद वे चुपचाप मेरे कमरे में आयेंगीं? इस मादक आशा से दिल बाग बाग हो गया, लंड भी सिर उठाने लगा.
इसलिये मैंने दरवाजा भी सिर्फ़ उढ़का दिया, अंदर से सिटकनी नहीं लगायी. चाची आयें तो उनको सहूलियत हो इसलिये. लाइट ऑफ़ किया और बिस्तर पर लेट गया.
अंधेरे में दोनो कमरों के बीच जो दरवाजा था, उसकी एक दरार में से लाइट आ रही थी. याने अभी वे सोयी नहीं थीं. मैं इंतजार करने लगा. कब वो लाइट ऑफ़ होता है और कब उसके कुछ देर बाद चाची आती हैं. बार बार मेरा ध्यान दरवाजे से दिखती लाइट की ओर जा रहा था.
पंधरा बीस मिनिट हो गये फ़िर भी लाइट वैसा का वैसा. पहले शांति थी पर अब चाची के कमरे से बोलने की धीमी धीमी आवाजें आ रही थी. ठीक से सुनाई नहीं दे रहा था पर ऐसा लग रहा था कि दोनों गप्पें मार रही हैं.मुझे बड़ी कोफ़्त हुई, यहां मुझे नीलिमा भाभी बोल कर गयी कि नींद आ रही है और यहां सास के साथ अब गप्पें करने पर तुली है! कुछ देर बाद मुझे हंसने की आवाज आयी, फ़िर शांत हो गया. अब बीच में चाची या नीलिमा के बोलने की आवाज आती और फ़िर सब शांत हो जाता.
मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि ये कैसी गप्पें हैं जो न तो जोर से चल रही हैं और न खतम होती हैं. बड़ी कोफ़्त भी हो रही थी, लंड चाची के इंतजार में खड़ा था. आखिर मैं उठ कर दरवाजे के पास गया. मुझे नीलिमा की आवाज आयी "आप ऐसे आइये ना ममी ..." फ़िर थोड़ी देर से उसके धीमे धीमे हंसने की आवाज आयी और चाची की आवाज आयी "ये क्या कर रही है नीलिमा ... मैंने क्या कहा था ..." फ़िर वे भी चुप हो गयीं.
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