RE: Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
मुझे समझ में नहीं आया कि ये किस तरह की गप्पें हैं. मैंने दरवाजे के सामने का परदा हटाया. बंद दरवाजे में एक दरार थी जिसमें से वो रोशनी दिख रही थी. मैं थोड़ी देर जरा पशोपेश में रहा क्योंकि प्राइवेसी का मामला था और ऐसे किसी के कमरे में देखना मुझे पसंद नहीं. पर फ़िर एक बार नीलिमा ने ’अं .. अं .." ऐसा किया तो मुझे रहा नहीं गया. मैं नीचे बैठ गया और दरवाजे के पास सरककर उस दरार से आंख लगा कर देखने लगा. दरार अच्छी खासी चौड़ी थी, बीच में करीब एक सेंटिमीटर का छेद सा था और उससे आंख सटाने के बाद उस कमरे का करीब करीब कर भाग दिखता था.
देखते ही मैं सुन्न सा हो गया. ऐसी बात नहीं है कि जो देखा वो बिलकुल ही अनपेक्षित था. इन सास बहू के अच्छे प्रेम के संबंध देखकर और चाची के इस कथन से कि ऑफ़िस जाते वक्त नीलिमा उनकी ब्रा के हुक लगा कर गयी थी क्योंकि वे टाइट थे और उनसे नहीं लगते थे, मेरे मन के किसी कोने में एक बड़ा नाजुक पर शैतानी भरा प्रश्न जाग उठा था. फ़िर भी जब सामने प्रत्यक्ष देखा तो जैसे मन में मस्ती का भूचाल सा आ गया. ये ऐसा था जैसे हम लॉटरी लेते हैं तो यह नहीं सोचते कि एक करोड़ मिलने ही वाले हैं. पर मन में एक आशा तो रहती है और जब मिलती है लॉटरी तो बेहद खुशी होती है पर पूरा शॉक नहीं लगता कि यह तो असंभव था, कैसे हो गया!
चाची और नीलिमा दोनों पूरी नग्नावस्था में बिस्तर पर थीं. दोनों पलंग के सिरहाने से टिक कर बैठी थीं और आपस में लिपटी हुई एक दूसरे को बाहों में भरकर चुंबन ले रही थीं. नीलिमा ने एक हाथ चाची के गले में डालकर उनका सिर अपने पास कर लिया था और उनके होंठों पर होंठ रखकर चूम रही थीं. दूसरा हाथ चाची के स्तनों को सहला रहा था, बीच बीच में वह उनको दबाने लगती, फ़िर झुक कर एक निपल थोड़ी देर चूसती और फ़िर सिर ऊपर करके अपनी सास के चुंबन लेने में जुट जाती. नीलिमा के स्तन चाची की तुलना में छोटे थे, पर एकदम प्रमाणबद्ध थे, छोटे आमों की तरह लग रहे थे. निपल भी जरा जरा से थे.
चाची एक हाथ नीलिमा की कमर में डाले हुए थीं और उसे कस के अपने बदन से चिपका रखा था. दूसरा हाथ नीलिमा की जांघों पर फ़िर रहा था. मेरे देखते देखते नीलिमा ने अपनी जांघें फैला कर चाची का हाथ उनमें दबा लिया. चूमा चाटी लगातार चल रही थी, उसमें जरा भी ब्रेक नहीं आ रहा था.
कुछ देर के बाद चाची ने कुछ कहा, मुझे ठीक से सुनाई नहीं दिया, बस इतना सुनाई दिया कि " ... जरा हाथ छोड़ेगी तब तो मैं ... कैसे कर रही है?"
नीलिमा धीमे स्वर में बोली " ... हफ़्ते भर अकेली .... पागल हो गयी मैं ..." फ़िर दोनों हाथों से चाची का सिर पकड़ा और उनके होंठ अपने होंठों में दबा कर ऐसे चूसने लगी जैसे खा जायेगी, याने जिस ओपन माउथ किस कहते हैं वैसा गहरा खा जाने वाला किस! चाची ने उसे किस करने दिया पर अपना हाथ धीरे से बाहर निकाला. आखिर नीलिमा ने अपनी जांघें फैला दीं. अच्छी खासी मोटी जांघें थीं, थुलथुली नहीं कह सकते क्योंकि मांस कसा हुआ था, सॉलिड, एकदम मजबूत टांगें, जैसी एथेलीट लड़कियों की होती हैं. नीलिमा की बुर भी एकदम क्लीन शेव्ड थी. लगता था इस मामले में दोनों सास बहू एक खयाल की थीं.
चाची ने नीलिमा की बुर को अपनी दो उंगलियों से सहलाना शुरू कर दिया. इतनी दूर से भी मुझे नीलिमा की चूत की भग पर चमकते चिपचिपे पानी का गीलापन दिखा. चाची ने धीरे से दो उंगलियों में नीलिमा की बुर के भगोष्ठ कैंची जैसे लेकर रगड़ना शुरू किया. बीच में वे एक उंगली अंदर डाल देतीं और अंदर बाहर करतीं. उनकी खुद की टांगें एकदम एक दूसरे से सटी हुई थीं. मैंने ध्यान देकर देखा तो वे उनको बहुत धीरे धीरे आपस में रगड़ रही थीं.
थोड़ी देर में नीलिमा उनके बाहुपाश से दूर हुई और खुद नीचे सरककर बिस्तर पर लेट गयी. एक करवट पर सो कर उसने अपनी ऊपर की टांग हवा में उठा ली. उसकी बुर अब पूरी खुली थी. अंदर का लाल भाग भी थोड़ा दिख रहा था. स्नेहल चाची ने प्यार से उसकी चिकनी जांघों पर हाथ फेरा और फ़िर नीलिमा की जांघ को तकिया बनाकर लेट गयीं. फ़िर सरककर अपनी बहू की योनि के चुंबन लेने लगीं. नीलिमा कुछ देर वैसे ही पड़ी रही फ़िर उसने चाची की कमर में हाथ डालकर उनका बदन अपनी और खींचा और उनके नरम नरम फ़ूले हुए पेट के चुंबन लेने लगी.
मेरा सिर अब उत्तेजना और वासना से भनभना गया था. लग रहा था कि मुठ्ठ मार लूं पर किसी अन्दरूनी आवाज ने मुझे अब भी सबर करने की सलाह दी. सास बहू के इन मादक कर्मों ने मुझे जो सुखद वासना भरे आश्चर्य का जो धक्का दिया था, उससे मैं अब भी संवरा नहीं था. मैं जरा और आराम से फ़र्ष पर बैठ गया और पजामे की स्लिट से लंड बाहर निकाला. उसको हाथ में लेकर पुचकारते हुए चाची और नीलिमा की रति देखने लगा. मुझे अपने प्रश्न का उत्तर भी मिल गया था कि क्यों नीलिमा को सोने की जल्दी थी और क्यों चाची ने मुझे भी आग्रह किया था कि मैं भी सो जाऊं.
चाची अब नीलिमा की चूत में मुंह डाले हुई थीं. सास द्वारा बहू की बुर के रस का पान कई तरह से हो रहा था, कभी चाट कर, कभी भगोष्ठ मुंह में लेकर आम जैसे चूसकर और कभी जीभ अंदर डाल कर. जब नीलिमा ने चाची को और पास खींचने की कोशिश की तो चाची ने उसे रोक दिया, लगता है ऐसे तरसाने में उनको बड़ा मजा आता था.
नीलिमा बोली "ममी प्लीज़ ..." पर चाची ने एक न सुनी, उलटे अपने पैर मोड़ लिये और नीलिमा के पेट पर अपने घुटने टिका दिये कि वो उनकी बुर तक पहुंच ही न पाये. नीलिमा ने तड़प कर चाची के पांव पकड़ लिये और उनके चुंबन लेने लगी. मैं देखता रह गया. चाची के गोरे गोरे खूबसूरत पैरों पर मेरी निगाह कई बार गई थी. अब नीलिमा जिस तरह से उनको चूम रही थी, देख कर मुझे उससे ईर्ष्या होने लगी. मैं सोचने लगा कि साले, आज दोपहर को मौका था जब चाची कुरसी पर बैठी थीं, उनके चरणस्पर्ष कर लेता, करते वक्त पांव चूम लेता तो क्या वे मना करतीं?
अचानक नीलिमा उठी और चाची को उसने सीधा लिटा दिया. चाची ने चुपचाप अपनी लाड़ली बहू को अपने मन की करने दी. नीलिमा ने चाची को सीधा सुलाकर उनके सिर के नीचे एक तकिया दिया और फ़िर अपने घुटने उनके सिर के दोनों ओर टेक कर उनके चेहरे पर ही बैठ गयी. अपनी बुर से चाची का मुंह बंद करके नीलिमा फ़िर चाची के मुंह को चोदने लगी. अब यह कहना अटपटा लगता है कि कोई किसीका मुंह चोद रहा है और वो भी एक औरत, पर जो चल रहा था, उसके लिये मुझे और कोई शब्द नहीं सूझ रहा था, चाची के सिर को जांघों में जकड़कर नीलिमा ऊपर नीचे होते हुई अपनी चूत उनके होंठों पर रगड़ रही थी.
उसकी बुर को चूसते हुए चाची ने अपना एक हाथ अपनी जांघों के बीच ले लिया था और शायद हस्तमैथुन कर रही थीं, उनकी जांघें आपस में कैंची की तरह धीरे धीरे चल रही थीं. थोड़ी देर से ’ममी ... ओह ममी ...’ कहते हुए नीलिमा लस्त होकर निढाल हो गयी, और वैसे ही पलंग के सिरहाने को पकड़कर चाची के चेहरे पर बैठी रही.
उसको झड़ने का पूरा समय देकर चाची ने उसे बाजू में किया और उठ बैठीं. फ़िर नीलिमा को बाहों में लेकर उसका कान पकड़ा "अब पिटेगी मुझसे! हमेशा कहती हूं ना कि कि ऐसी जल्दबाजी नहीं करना, आराम से, धीरे धीरे इस सुख का मजा लूटना है. हमेशा तो तू इतना अच्छा करती है, आज दस मिनिट में ही ढेर हो गयी, हो क्या गया तुझे? उस विनय की वजह से तो नहीं?"
नीलिमा ने कराहकर "उई मां ऽ ऽ .. कितनी जोर से कान खींचा ममी ...ऽ " कहकर अपना कान छुड़वाया और थोड़ा चिढ़ कर बोली "अब आप ने तो रात को बस में भी उस छोकरे के साथ मजा ले लिया, फ़िर आज दोपहर को भी उसपर हाथ साफ़ कर लिया, हाथ क्या, अपना काफ़ी कुछ साफ़ कर लिया और अगर मैंने जरा मस्ती की तो डांटने लगीं?"
वे दोनों अब भी धीमी आवाज में बोल रही थीं पर मुझे अब साफ़ सुनाई दे रहा था. शायद मेरे कान अब ट्यून हो गये थे.
"तो क्या हुआ? क्या मेरा अधिकार नहीं है विनय पर? उसकी मां मेरी छोटी बहन जैसी है, मुझे इतना मानती है. और ये बता ... विनय को यहां लाया कौन? वैसे ही छोड़ देती तो वो या तो दूसरी नौकरी पकड़ लेता या यहां गेस्ट हाउस में चला जाता. वो तो अच्छा हुआ कि उस दिन ..." फ़िर उन्होंने नीलिमा के कान में कुछ कहना शुरू किया. दो मिनिट तक न जाने क्या बताती रहीं, नीलिमा बस मुंह पर हाथ रखकर हंसती रही. चाची ने फ़िर मेरे कमरे की ओर देखा और नीलिमा से कुछ बोलीं. नीलिमा ने भी देखा और अपनी मुंडी हिला दी. फ़िर बोली "लगता है बेचारा सो गया है. चाची, पर वो रुमाल कहां है?"
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