RE: Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
अब कहानी पर वापस आते हैं दो हफ़्ते बाद की बात है. रविवार की दोपहर थी. मैं नीलिमा भाभी पर पड़े पड़े उनको हौले हौले चोद रहा था. वैसे दो बार मैं उन्हें झड़ा चुका था, पर अब सिर्फ़ अगली चुदाई के पहले उनको गरम करने को उनकी गीली झड़ी हुई बुर में लंड डालकर बस जरा सा आगे पीछे कर रहा था, और उनका एक स्तनाग्र मुंह में लिये था.
बहुत दिनों से एक प्रश्न मेरे को सता रहा था. ये सास बहू का लफ़ड़ा शुरू कैसे हुआ होगा? ऐसा कहानियों में भले पढ़ें, होता बहुत कम है, ससुर बहू का भले हो जाये, पर सास बहू का? वो भी हमारे जैसे संभ्रांत मध्यम या उच्च मध्यम वर्ग में! हमारे प्रतिष्ठित परिवार में कहीं भी ऐसा कुछ हो सकता है, ये किसी के सपने में भी नहीं आता. चाची को पूछने का दम तो मुझमें था नहीं, सोचा नीलिमा को ही पूछा जाये, और अब अच्छा मौका था जब वो दो बार चुद कर एकदम तृप्त हो गयी थी.
मेरा काम नीलिमा ने आसान कर दिया, बड़े लाड़ के मूड में थी, मेरे बाल बिखरा कर बोली "बहुत प्यारा है तू विनय, अब तो मुझे यह समझ में ही नहीं आता कि तू नहीं था तब मैं कैसे ये अकेलापन सहन करती थी"
"क्यों भाभी? आप सास बहू के लाड़ प्यार तो मस्ती में चलते थे ना?" मैंने मौका देखकर पूछ ही डाला.
"अरे वो ठीक है, बहुत सुख मिलता था उससे, पर ऐसा सोंटा ..." मेरे लंड को चूत से पकड़कर वो बोली " ... नहीं था ना, तुझे नहीं समझेगा, इस लंड की जगह कोई वाइब्रेटर या डिल्डो नहीं ले सकता"
"आप के पास है भाभी? तो दिखाओ ना मेरे को. अब तक चाची के साथ की चुदाई में तो आप लोगों ने कभी इस्तेमाल नहीं किया!" मैंने इंटरेस्ट से पूछा.
"अब क्या करेगा देख कर? बहुत दिन हो गये, कहीं अंदर रखा है, अब तो जरूरत भी नहीं है. और ममीजी को भी वो ज्यादा पसंद नहीं है, उनको तो बस ऐसे मुंह लगाकर चूसने और चुसवाने में ही मजा आता है. हां पहले मुझे कभी कभी वे वाइब्रेटर से चोद देती थीं, मेरा मन रखने को"
"स्नेहल चाची वैसे आप को बहुत प्यार करती हैं भाभी, उनकी आंखों में ही दिखता है" मैंने कहा.
"हां मुझे मालूम है. मेरी सास ने मुझे जो सुख दिया है वो मैं कभी भूल नहीं सकती. याने ममता वाला प्यार भी है और वासना - लस्ट वाला भी प्यार है"
"भाभी एक बात पूछूं, नाराज तो नहीं होंगी?"
"अरे पूछ ना, तुझपर मैं और नाराज?"
"आप दोनों में ये ... याने ऐसे संबंध की शुरुआत कैसे हुई? मुझे आपकी प्राइवेट लाइफ़ में दखल नहीं देना पर बार बार यही सोचता हूं .... याने सास बहू में झगड़ा तो हर जगह दिखता है पर प्रेम और वो भी ऐसा प्रेम ... दो एक्स्ट्रीम हों जैसे सास बहू के बीच में ... बड़ा अनयूज़ुअल है"
"अरे अपनी चाची से पूछ ना" शोखी से हंस कर नीलिमा बोली.
"हिम्मत नहीं होती भाभी, वो अपनी चप्पल से ही मारेंगी मेरे को. वैसे उनकी उस नाजुक सी चप्पल से भी मैं मार खा लूंगा चुपचाप पर .... बताओ ना भाभी प्लीज़" मैंने आग्रह किया.
"अब कैसे बताऊं .. कहां से शुरू करूं ... एक बात हो तो बताऊं ...वैसे तेरी स्नेहल चाची बड़ी ग्रेट पर्सनालिटी हैं विनय. तुझे तो उनके बारे में टेन परसेंट भी पता नहीं है .... हां ... हां ... ऐसे ही चोद ना हौले हौले .... बहुत अच्छा लग रहा है"
मैंने धीरे धीरे फ़िर से स्ट्रोक लगाने शुरू कर दिये "बताओ ना भाभी प्लीज़"
"ठीक है बाबा, बताती हूं ... बताने जैसा बहुत कुछ है पर ... बताना नहीं चाहिये तेरे को ... आखिर उनकी पर्सनल लाइफ़ है पर चलो ठीक है ... पहले यह समझ ले कि एक बात में मेरा और चाची ... ममी का स्वभाव करीब करीब एक सा है ... याने सेक्स के बारे में ... हम दोनों जरा ज्यादा ही गरम तबियत की हैं. दूसरे यह कि हम दोनों ए.सी. डी.सी. हैं ... समझ रहा है ना? याने सेक्स के मामले में पार्टनर मर्द हो या औरत इसका फरक नहीं पड़ता, इसका मतलब यह नहीं कि कभी भी किसी के साथ जानवरों जैसा कर लिया ... जो सच में अच्छे लगते हैं, मन को भाते हैं ...उनके साथ सेक्स करने में बहुत मजा आता है ... जैसा तू .. एकदम स्वीट जवान लड़का और वो भी अपने पास का .... अगर मान लो तू विनय के बजाय एक जवान लड़की विनीता होता और चाची को विनीता पसंद आती और अगर बाकी सर्कमस्टेंसेस फ़ेवरेबल होतीं तो तब भी यही होता जो आज तेरे साथ हुआ है ... समझा?"
"हां भाभी, थैंक यू"
"अरे थैंक यू क्या बोलता है, सच में तू चिकना है, हमें इतना सुख देता है. अब अरुण ... मेरी शादी के एक महने के बाद ही मेरे हसबैंड के परदेश जाने से हम दोनों मां बेटी जरा अकेली पड़ गयीं गोआ में. दिन रात बस एक दूसरे का साथ ही था, और दोनों का ऐसा गरम नेचर! फ़िर आगे क्या होना है यह तो पक्का ही है. छोटी सी शुरूआत हुई, एक बार शुरुआत हुई तो तेज बहाव में बहते गये हम दोनों. वैसे तेरी चाची याने सच में ... माल ... हैं. और उनको भी अपनी यह बहू भा गयी. तब तक हम दोनों अलग बेडरूम में थे. फ़िर ममी ही बोलीं कि अकेले में कौन देखता है, तू आ जा मेरे ही बेडरूम में" कुछ देर नीलिमा चुप रही, शायद पुरानी यादों में खो गयी थी.
"पर एग्ज़ैक्ट शुरुआत कैसे हुई, बताइये ना भाभी, याने पहली बार क्या हुआ, पहला कदम किसने उठाया?" मैंने उनको कस के चूम कर फ़िर आग्रह किया. मेरे धक्कों का जोर अब बढ़ गया था. नीलिमा भी नीचे से धीरे धीरे चूतड़ उछाल कर साथ दे रही थी.
"तुझे क्या लगता है?" नीलिमा भाभी ने शैतानी भरी आवाज में पूछा.
"चाची ने किया होगा, जैसा मेरे साथ किया बस में. सॉलिड एग्रेसिव पर्सनालिटी है उनकी"
"पर उनको प्रोत्साहन तूने ही दिया ना? परिवार में और किसीके साथ ऐसा किया है क्या उन्होंने? उनकी ओर घूरकर, ऐसे चोरी छिपे देख देख कर तुझे वे अच्छी लगती हैं यह संकेत तूने ही दिया ना उन्हें! बस ऐसा ही मेरे बारे में हुआ. अरुण नहीं था, और ये सौतन चूत मेरी ... बहुत तंग करती थी. उस मूड में ममी की ओर आकर्षण बढ़ने लगा मेरा. और दो औरतों के बीच कपड़े बदलते वक्त वगैरह इतनी प्राइवेसी भी नहीं होती, खास कर जब वे एक ही घर की हों. मेरी निगाहें ऐसे वक्त उनपर टिक जाती थीं. उनको वह समझ में आ गया होगा, किसी की भी नजर पहचानने में वे एकदम उस्ताद हैं ... तुझे तो खुद अनुभव है इसका. फ़िर एक दिन हमें दाबोलिम एक शादी में जाना था तो मुझे उन्होंने बुलाया, बोलीं कि ब्लाउज़ टाइट है, जरा बटन लगा दे"
मेरे चेहरे के भाव देख कर नीलिमा हंसने लगी "अरे ऐसा क्यों देख रहा है? तुझे भी उनके इस रामबाण ने ही वश में किया ना? उनको मालूम है कि उनकी छातियां याने क्या चीज हैं. उस दिन उन्होंने एकदम पुरानी ब्रा पहनी थी ... शायद जान बूझकर. फ़िर मेरे मुंह से निकल गया कि ममी, ये ब्रा अच्छी नहीं है. फ़िर क्या था, वे बोलीं कि तू ही बता कौन सी पहनूं. फ़िर मैंने उनकी सब ब्रा देखीं. एक से एक स्टॉक है उनके पास. देखते देखते ही मेरी गीली होने लगी थी. उनकी डार्क ब्राउन साड़ी थी इसलिये मैंने वो काली वाली चुनी, तो उन्होंने मेरे सामने ही बदली, याने पूरा नहीं दिखाया, दांत में आंचल पकड़कर उसके पीछे पुरानी ब्रा निकाली और नयी पहनी पर इतनी झीनी थी वो साड़ी, उसमें से सब दिखता था. फ़िर बोलीं कि उस ब्रा के हुक का लूप टाइट है, उसे जरा फैला दे."
नीलिमा एक मिनिट रुकी, शायद उस पहले मिलन के क्षण को याद कर रही थी. फ़िर आगे बोली "अब मौके पर कुछ था भी नहीं वो वायर का लूप खोलने के लिये तो मैंने दांत से ही कर दिया, तब मेरा चेहरा उनकी पीठ के इतना पास पहुंच गया मैंने कि ... अब क्या बताऊं तुझे ... अच्छा वो ब्रा कम से कम दो इंच टाइट थी, मुझे खींचना पड़ी, किसी तरह मैंने फ़िर ब्रा को खींचकर उसके हुक लगाये. पता है विनय, मेरे हाथ इतने थरथरा रहे थे कि हुक स्लिप हो गया दो तीन बार, मुझसे लग ही नहीं रहे थे. मन में आ रहा था कि वैसे ही उनको पकड़कर उनके उन ठस कर भरे हुए स्तनों के खूब चुंबन लूं ... उनकी उस सपाट चिकनी गोरी पीठ को चूमूं. पर किसी तरह अपने आप को रोका. उस दिन शादी के हॉल में हम चार पांच घंटे थे और सारे समय उनसे ठीक से बात करने का भी साहस नहीं हो रहा था मुझे, बार बार यही लगता कि उन्होंने मेरी नजर में छुपी वासना पहचान ली होगी तो सोच रही होंगी कि कैसी बिगड़ी लड़की है. वो तो बाद में पता चला मुझे कि ये सब तो उन्होंने जान बूझकर किया था."
नीलिमा चुप हो गयी, पर उसकी नीचे से चोदने की स्पीड बढ़ गयी थी. मैं भी अब अच्छे लंबे स्ट्रोक लगाकर उसे चोद रहा था.
नीलिमा आगे बोली "रात को शादी के डिनर के बाद जब हम वापस आये तो उन्होंने फ़िर मुझे बुलाया "नीलिमा बेटी, ब्रा के हुक निकाल दे. और उसके बाद ब्रा निकाल कर मुड़ कर मेरे सामने खड़ी हो गयीं, मैं तो देखती ही रह गयी उनके उस लावण्य को ... याने क्या कहते हैं वो ... हां जोबन को ... और सबसे बड़ी बात तो यह है विनय कि उनमें कोई झिझक नहीं थी, बड़ा बॉडी कॉन्फ़िडेंस था कि मैं तो सुंदर और सेक्सी हूं और मेरी बहू को भी सेक्सी ही लगूंगी ... फ़िर खुद मुझे बाहों में लेकर मेरा चुंबन ले लिया और ... मैं उनसे लिपट गयी. उसके बाद तो ऐसी जल्दी हुई मुझे कि ठीक से कपड़े निकालने का भी धीरज नहीं था मुझमें ... क्या क्या नहीं किया उस रात हमने !!! वो रात मुझे उतनी ही याद रहेगी जितनी मेरी हनीमून की रात याद है. उसके बाद तो हम जैसे नवविवाहित पति पत्नी ही हो गये. एक दूसरे से जरा भी दूर नहीं रह सकते थे. और ममी भी मेरे जितनी ही प्यासी थीं. वैसे मुझे लगता है कि उनकी प्यास इतनी जबरदस्त है कि कोई उसे शांत नहीं कर सकता."
दो मिनिट बाद नीलिमा बोली "हो गया तेरा समाधान? वैसे इतनी बातें हैं गरमागरम उनके बारे में पर तुझे नहीं बताऊंगी, तुझे खुद ही पता चल जायेगा, आज के लिये बहुत हो गया. अब जरा स्पीड बढ़ा और जल्दी चोद मेरे को"
ये सब सुनकर मैं भी ऐसा गरम हो गया था कि मैंने नीलिमा को घचाघच चोद डाला, बिना उसके स्खलन की परवा किये, वो बात अलग है कि वो भी ऐसी उत्तेजित थी कि चार पांच धक्कों में ढेर हो गयी.
सांस धीमी होने के बाद मैंने और पूछने की कोशिश की पर नीलिमा टाल गयी, बोली और डीटेल्स चाहिये तो अपनी चाची से ही लो. उस शाम को जब चाची महिला मंडल से वापस आयीं और हम चाय पी रहे थे तो नीलिमा भाभी शैतानी पर उतर आयी. मुझे बार बार आंखों से इशारा कर रही थी कि पूछ ना चाची से. आखिर जब चाची किचन में गयीं तो मैंने कान को हाथ लगाकर इशारे से भाभी से मिन्नत की कि क्यों मुझे मार पड़वाने पर तुली हो तब उसने उझे सताना बंद किया.
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