RE: Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
अब ग्रीन सिग्नल मिलने के बाद क्या पहले करूं समझ में नहीं आ रहा था. एक मन हो रहा था कि खड़ा होकर तुरंत लंड गाड़ दूं, पर अब पास से वे नितंब इतने सेक्सी लग रहे थे कि छोड़ने की इच्छा नहीं हो रही थी. इस माल का और गहरा स्वाद लेने की इच्छा जागृत हो गयी थी. मैंने नीलिमा भाभी के चूतड़ हाथों से पकड़कर फ़ैलाये. उनके बीच का हल्का भूरा छेद थोड़ा खुल गया और अंदर की गुलाबी नली दिखने लगी. मैंने क्षण भर देखा और फ़िर उनपर होंठ जमा दिये. चुंबन लिया, फ़िर जीभ से चाटने लगा. सपनों में मैंने ये किया था अनजान काल्पनिक कामिनियों के साथ, आखिर आज सचमुच करने का मौका मिला था.
"हं ... ओह ऽ .. अरे ये क्या कर रहा है! होश में तो है ना?" नीलिमा सिहरकर बोली.
मैं कुछ न बोला, बस उसकी गांड चूसता और चाटता रहा. जरा और मन लगाकर चखने लगा.
"अरे ये क्या कर रहा है, होश में तो है कि कहां मुंह लगाया है? ..." नीलिमा बोली पर उसके स्वरों में जो चासनी घुली थी, उस चासनी के मिठास ही ऐसी थी कि रुकने का सवाल ही नहीं था.
"भाभी, जरा रुको ना, अभी कहां स्वाद आया, जरा ठीक से चखने तो दो" कहकर मैंने जोर लगाकर उसके चूतड़ और चौड़े किये और उसके गुदा का जितना भाग मुंह में आ रहा था, लेकर चूसने लगा. एकदम अलग स्वाद था, एकदम अलग अनुभव था, एक मादक चीज़ी स्मेल थी उस चीज में, मैं ने जीभ की नोक से उसे गुदगुदाया और जीभ अंदर डालने का प्रयत्न करने लगा. चूत का स्वाद इस तरह से मैंने बहुत लिया था, दोनों का, भाभी का और चाची का, वो सरल भी था, चूत तो आराम से खुल जाती है, यहां जरा कठिनाई हो रही थी. पर उसकी वजह से मेरा निश्चय और पक्का हो गया कि अब तो टेस्ट लेकर ही रहूंगा.
ये सब मैं कर रहा था, तब तक नीलिमा ने पराठे बनाना बंद नहीं किया था. पर अब उसके हाथ रुक गये. वो वैसी ही खड़ी रही, कुछ बोली नहीं पर उसके मुंह से एक सिस्कारी सी निकली. बहुत एक्साइट हो गयी थी. मेरे मन में पटाखे फूटने लगे, आज मेरी ये इच्छा पूरी होगी, ये मैंने जान लिया.
नीलिमा ने खुद अपना गुदा और ढीला छोड़ा और मेरी जीभ एक इंच अंदर घुस गयी. मैं जीभ अंदर बाहर करके जीभ से ही उस छेद को चोदने लगा. मेरा लंड अब ऐसा तन गया था कि तकलीफ़ होने लगी थी, रिलीफ़ के लिये मैं उसे नीलिमा की पिंडलियों पर घिसने लगा.
"हं ऽ ... हं ऽ ... आह ऽ ... बहुत अच्छा लग रहा है विनय ... हां ऽ ... तू तो सच्चा रसिक निकला ... हं ऽ ... बहुत अच्छा कर रहा है रे ... ओह ऽ ... ओह ऽ ... थोड़ा रुक ना .... " नीलिमा सिसक कर बोली. उसके स्वरों में अब वासना का पुट आ गया था. मैंने उसके चूतड़ों के बीच के उस मुलायम मांस को खा जाने की अपनी मेहनत दूनी कर दी.
नीलिमा ने बेलन नीचे रखा और गैस बंद किया. फ़िर बिना कुछ बोले मुझे हाथ से पकड़कर खींचती हुई ऊपर ले गयी. बेडरूमे में जाते जाते उसे इतना भी धैर्य नहीं बचा था कि कपड़े निकाले. उसने साड़ी ऊपर करके कमर पर बांधी और पलंग का सिरहाना पकड़कर झुक कर खड़ी हो गयी. "चल वो क्रीम ले आ ड्रेसिंग टेबल से और डाल जल्दी"
नीलिमा भाभी खुद मुझे गांड मारने का आमंत्रण दे रही थी यह देख कर दिल बाग बाग हो गया. मैं झट से ड्रेसिंग टेबल पर गया, वहां एक कोल्ड क्रीम की बॉटल थी. मैंने उंगली पर ढेर सारा लेकर भाभी के गुदा में चुपड़ा, अंदर भी डाला एक उंगली से, थोड़ा सा अपने सुपाड़े पर चुपड़ लिया और हाथ पोछकर नीलिमा के पीछे आकर खड़ा हो गया. नीलिमा ने अपने हाथ अपने नितंबों पर रखे और खुद ही उनको फ़ैलाया, उसका गुदा जो अब क्रीम से चमक रहा था, खुल गया और अंदर का मुलायम भाग मुझे दिखने लगा.
"डाल जल्दी" मुझसे ज्यादा उसी को ज्यादा जल्दी थी. मैंने सुपाड़े की नोक टिकाई और पेल दिया. एक ही धक्के में ’पुक’ की आवाज के साथ वह अंदर हो गया. मुझे लगा था कि शायद वह दर्द से थोड़ा कराहेगी पर उसने चूं तक नहीं की. "हां ... हां ... अब डाल दे पूरा राजा" उसके स्वर में बेहद मादकता थी.
मैंने जोर लगाया तो एक स्मूथ मोशन में पूरा लंड जड़ तक अंदर घुस गया और मेरी झांटें उसके नितंबों से आ भिड़ीं. मुझे रोमांच सा हो आया. ’कितनी गरम और मुलायम होती है गांड’ मेरे मन में आया. किसी तपती मखमली म्यान जैसी थी. नीलिमा भाभी ने मेरे हाथ पकड़कर अपने कूल्हों पर रखे और खुद फ़िर से पलंग के सिरहाने को पकड़कर झुक कर जम गयी "चल मार अब फटाफट"
किसी की गांड मार रहा हूं, यह कल्पना ही मेरे लिये बहुत उत्तेजक थी. मैं आगे पीछे होकर लंड पेलने लगा. गांड चूत जैसी ही मुलायम था, लंड आसानी से अंदर बाहर हो रहा था. बीच में नीलिमा अपना गुदा सिकोड़ कर मेरे लंड को कस कर पकड़ती और फ़िर छोड़ देती. उसकी सांस तेज चल रही थी. वह बार बार दायीं ओर देख रही थी. मैंने देखा तो वहां ड्रेसिंग टेबल के ऊपर जो बड़ा आइना लगा था, उसमें हम दोनों साफ़ दिख रहे थे. मेरे लंड का साइड व्यू था जो उसके गोरे गोरे चूतड़ों के बीच अंदर बाहर हो रहा था, जैसे ब्ल्यू फ़िल्म चल रही हो. उसको देखते देखते नीलिमा ने एक हाथ पलंग से हटाया और अपनी जांघों के बीच डालकर हिलाने लगी. भाभी हस्तमैथुन कर रही थी, अच्छी खासी गरमा गयी थी. जोर से अपनी बुर को घिसते हुए बोली "अरे जोर से मार ना ... ये क्या पुकुर पुकुर कर रहा है ... और देख ... जल्दी झड़ा साले तो ... कोड़े से मारूंगी पकड़कर"
उसकी आवाज में जो अथाह कामुकता भरी थी, उसने जैसे मेरे ऊपर मदिरा का काम किया. मेरे मुंह से अनजाने में निकल गया "भाभी ... आज तो तुम्हारी गांड फाड़ कर रहूंगा ..."
"है हिम्मत? ... हरामी कहीं का ... जरा दिखा फाड़ कर ... तेरे जैसे कल के छोकरे को तो मैं पूरा गांड में ले लूं ... तू क्या फाड़ेगा मेरी साले ..."
पहली बार नीलिमा भाभी ने ऐसी भाषा का प्रयोग किया था, उसकी वासना कितनी चरम सीमा पर पहुंच गयी थी इसका यह प्रमाण था. मेरा भी माथा घूम गया "भाभी ... आज तेरी गांड का भोसड़ा बना दूंगा ... चौड़ी गुफा कर दूंगी इसकी ... आज के बाद कोई हाथ डालेगा तो वो भी चला जायेगा कंधे तक ... गांड मारना क्या होता है आज तू समझेगी ..." और नीलिमा के कूल्हे पकड़कर मैं सपासप अपना लंड पेलने लगा.
भाभी अब पूरी ताकत से मुठ्ठ मार रही थी. एक हाथ से अपना वजन संभालना उसे कठिन हो रहा था पर बुर पर से हाथ नहीं हट रहा था. उसकी सांसें भी अब बहुत तेज हो गयी थीं. मैंने एक हाथ से उसका कूल्हा पकड़े रखा और दूसरा हाथ लंबा कर उसके लटकते मम्मे पकड़ कर मसलने लगा.
"उई ऽ ऽ मां ऽ ऽ" की जोरदार चीख लगाकर नीलिमा झड़ गयी. पिछले तीन चार हफ़्ते में चाची ने मुझे इतना ट्रेन किया था पर फ़िर भी आज मैं कंट्रोल नहीं कर पाया और दो चार कस के धक्के लगाकर नीलिमा के पीछे पीछे स्खलित हो गया. हांफ़ते हांफ़ते हम दो मिनिट वैसे ही खड़े रहे और फ़िर नीलिमा सरककर पलंग पर सो गयी. साथ में मुझे भी नीचे खींच लिया, और मुझे बेतहाशा चूमने लगी.
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