RE: Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
थोड़ी देर से बोली "विनय ... मेरी एक और फ़ेंटसी है. जरा विचित्र किस्म की है पर जब सोचती हूं तो बहुत मजा आता है ... अब तेरे को बताने में हर्ज नहीं है क्योंकि वैसे भी मैं दस पंद्रह दिनों में जाने वाली हूं ... मैं इमेजिन करती हूं कि मैं ऐसे ही, याने जैसे तुम्हारी गोद में बैठी हूं, वैसी ही अरुण की गोद में बैठी हूं, उसका वो शाही लंड गांड में लेकर ..."
"अब यह क्या फ़ेंटसी हुई भाभी, ऐसा तो तुम सच में ही करती होगी अपने पति के साथ!"
"अरे आगे सुन तो ... तो मैं अरुण की गोद में बैठ कर गांड मरा रही हूं, बटरफ़्लाइ नहीं लगायी है, बटरफ़्लाइ के बजाय ... ममी मेरे सामने बैठी हैं और मेरी बुर चूस रही हैं ..."
"अरे बाप रे ... एक साथ पति और सास के साथ सेक्स! बहुत तगड़ी कल्पना शक्ति है आप की भाभी, पति और सास मिल कर प्यारी बहू के लाड़ प्यार कर रहे हैं, उसे सुख और आनंद दे रहे हैं ... वाह ... मजा आ गया भाभी" मैंने मस्ती में कस के नीलिमा की गांड में अंदर तक लंड पेला और उसके मम्मे जोर से हथेली में भर लिये.
"... और फ़िर हम जगह बदल लेते हैं, याने ममी अरुण की गोद में और मैं उनके सामने नीचे जमीन पर बैठ कर उनकी चूत का स्वाद ले रही हूं. मेरी आंखों के बिलकुल सामने तीन इंच दूरी पर उनकी गोरी मोटी गांड है और उसमें उनके ही बेटे का लंड घुसा हुआ है" मेरे हाथ अपनी चूंचियों पर दबाते हुए नीलिमा बोली, उसकी गांड का छल्ला अब मेरे लंड को कस के पकड़ा हुआ था "सुखी परिवार हमारा ... मजे की बात है या नहीं?"
मेरे लंड ने नीलिमा की गांड में ही तन कर उसकी इस कल्पना शक्ति को सलाम किया, मैंने नीचे से दो चार कस के धक्के भी मारे. नीलिमा ने रिमोट का बटन और सरकाया और उसकी चूत से चिपकी वह बटरफ़्लाइ जोर जोर से भनभनाने लगी "हां ... ऐसे ही मार ना विनय राजा ... मुझे अरुण और ममी को इस तरह से लिपटे हुए देखना है ... वे आपस में खुल कर संभोग कर रहे हैं और मैं उनके साथ लेटी हुई उस रतिरत मां बेटे की जोड़ी के बारी बारी से चुंबन ले रही हूं और उन्हें संभोग और तेज करने को कह रही हूं, और कस के चोदने को ... उकसा रही हूं ...आह ... ओह ऽ ... हां ... आह ऽ ऽ ..." और नीलिमा अचानक लस्त पड़ गयी.
उसकी यह अनूठी फ़ेंटसी को सुन कर मैं भी बेभान सा हो गया था, नीलिमा के झड़ते ही मैंने उसे वहीं सोफ़े पर पटका और उस पर चढ़ कर घचाघच उसकी गांड मार ली. "अरे ये क्या कर रहा है ... जरा आराम से ..." वह कहती रह गयी पर मैंने नहीं सुनी. मुझे नीलिमा पर जरा सा गुस्सा भी आ गया था, जब झड़ी नहीं थी तो तैश में आकर जोर जोर से मरा रही थी, अब खुद की बुर शांत हो गयी तो मुझे सबर करने को कहने लगी.
थोड़ी देर बाद नीलिमा उठ कर तृप्त भाव से टांगें फैलाकर सोफ़े में टिक कर बैठ गयी. "आज तूने डिसिप्लिन तोड़ दिया राजा, ऐसे चोद मारा मेरी गांड को. पर जाने दो, माफ़ किया, आज मैंने बातें भी जरा ज्यादा ही हरामीपन वाली की हैं" मैं सामने नीचे बैठकर अपना काम करने लगा, याने नीलिमा की बुर से बटरफ़्लाइ निकालना और फ़िर प्यार से सब बह आया रस चाट लेना. पिछले दो तीन रविवार नीलिमा ने यही क्रम बना दिया था.
"विनय ... तेरे को भी मेरी फ़ेंटसी अच्छी लगी, है ना? झूठ मत बोल, कैसे एकदम से चढ़ गया था मेरे ऊपर!" मेरा सिर पकड़कर नीलिमा बोली.
मैंने अपना काम पूरा किया और उठ बैठा. "भाभी, आप तो पॉन्डी लेखक बन जाओ. मस्त बदमाशी से भरी हुई पॉन्डी लिखोगी तुम. पर भाभी, ये फ़ेंटसी फ़ेंटसी ही रहने वाली है या इसको सच करने को कुछ करने वाली हो? अब तो जल्दी ही आप तीनों वहां अमेरिका में होगे"
"हां देखती हूं, अभी सब प्लान जरा अधर में ही हैं, ममी ने भी कुछ कहा नहीं कि वे कब आने वाली हैं, मेरे साथ या बाद में"
एक दो दिन और ऐसे ही गये. फ़िर इस विषय पर चर्चा नहीं हुई क्योंकि ऐसा एकांत नहीं मिला. नीलिमा और चाची ने अमेरिका जाने की तैयारी शुरू कर दी थी. अभी मुझे कुछ ठीक से पता नहीं था कि चाची कितने दिन को जाने वाली हैं. वैसे हमारा रोज रात का तीन तरफ़ा संभोग जोर शोर से चल रहा था. अब कुछ दिनों के बाद वे दोनों यहां नहीं होंगीं, यह सोच कर मेरा जोश जरा बढ़ गया था कि रहे सहे समय में जितना हो सकता है उतना इन दोनों अप्सारों को भोग लूं. नीलिमा तो गरम थी ही, रविवार को अब वह गांड मराने के साथ साथ चुदाने भी लगी थी, हो सकता है कि उसे एहसास हो गया हो कि अब अरुण के पास जाने के बाद उसकी गांड की सिकाई वैसे ही ज्यादा होगी, तो चूत रानी की प्यास का इंतजाम अभी से कर लिया जाये.
उस रविवार को हमें पूरी दोपहर और शाम भी मिली क्योंकि चाची अपनी एक पुरानी सहेली से मिलने चली गयी थीं और देर रात वापस आयीं. उनका नाम लता सरनाइक था. चाची जब सुबह बता रही थीं कि लता का फोन आया है, वह अभी अभी गोआ वापस आयी है, दो साल से अमेरिका में थी, और मैं उससे मिलने जा रही हूं, रात को ही वापस आऊंगी तो नीलिमा के चेहरे पर एक हल्की मुसकान थी. मैं समझा कि अब मैं और वह अकेले रहेंगे इसलिये भाभी खुश हैं कि बिना रोक टोक जो भी मन में है, करने मिलेगा.
उस रविवार को हमने अपना पूरा दम लगा दिया, कितना भी चोदो, नीलिमा भाभी का मन नहीं भर रहा था. उस दिन रात को जब हम सोये तो मैं थक कर चूर हो गया था, लंड और गोटियां भी बुरी तरह दुख रही थीं पर मुझे गम नहीं था, एक खुशी ही थी कि जाते जाते आखिर के दिनों में भाभी मुझे इस तरह से भोग रही है जैसे जनम भर की कसर पूरी कर लेना चाहती हो. वैसे वह कहती थी कि विनय तू भी वहां अमेरिका आना, कुछ चक्कर चला ट्रेनिंग का अपनी कंपनी में, या कहती कि मैं हर साल एक बार तो जरूर आऊंगी. पर हम दोनों को मालूम था कि भले ही मुलाकात हो, पर इतने फ़ुरसत के दिन आपस में कभी नहीं मिलेंगे.
|