RE: Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
स्नेहल चाची भी अब जरा फ़ॉर्म में आने लगी थीं. आज कल मुझे काफ़ी रगड़ती थीं, याने चुदाती तो थीं पर अब मेरे साथ अकेले में धीरे धीरे कुछ अलग तरह की हरकतें ज्यादा करने लगी थीं. नीलिमा जब साथ होती थी तब वे बस हमेशा की तरह अपनी बहू के साथ मिलकर मुझसे संभोग करती थीं. पर शनिवार के अकेले संभोग में उन्होंने धीरे धीरे मुझे और रंगीन जलवे दिखाना शुरू कर दिया था.
अरुण का फोन आने के बाद वाले शनिवार को मैंने हमेशा की तरह उनकी बुर पूजा से संभोग का आरंभ किया. कुछ देर के बाद जब उनकी बुर देवी मुझे रस का प्रसाद दे रही थीं और मैं उसे ग्रहण कर रहा था तब चाची ने कुरसी में बैठे बैठे मेरे बालों में हाथ चलाते हुए कहा "बहुत अच्छा शांत और स्वीट लड़का है तू विनय. पर लगता है कि अब भी मुझसे शरमाता है. या घबराता है?"
"नहीं चाची ... बस आपको .. बहुत रिस्पेक्ट करता हूं ... चाहता भी हूं ... आप की ही वजह से तो मुझे इतना सुख मिल रहा है वरना सबका ऐसा नसीब कहां होता है" मैंने उनकी बुर पर जीभ चलाना एक मिनिट को रोक कर कहा.
"मुझे भी तू बहुत प्यारा लगता है, लगता है जैसे तू मेरा गुड्डा है, सिर्फ़ मेरा अपना है, और किसी का नहीं है और फ़िर सोचने लगती हूं कि इस गुड्डे को कैसे और प्यार करूं, कैसे इसके साथ खेलूं" पहली बार चाची ऐसे खुल कर प्यार से मेरे साथ बोल रही थीं. मैं भी थोड़ा रिलैक्स हो गया, उनके पास खिसककर उनकी पिंडली पर अपना तन्नाया लंड रगड़ते हुए बोला "स्नेहल चाची ... आप कुछ भी कहिये ...कुछ भी कीजिये मेरे साथ ... आप जो भी करेंगीं बहुत अच्छा लगेगा मुझे"
"हां बेटे वो तो मैं करूंगी पर अभी ये बता कि आज तुझे मेरे साथ क्या करने का मन है? आज थोड़ा तेरे मन जैसा हो जाने दे. रोज तो मैं अपने ही मन की चलाती हूं" उन्होंने एक पर एक पैर रखकर मेरे लंड को अपनी पिंडलियों में दबाते हुए कहा.
मेरे मन में आया कि तुरंत उनकी गांड मांग लूं जिसके लिये मैं मरा जा रहा था. नीलिमा की गांड मारते वक्त जब चाची की और भरी हुई, और भारी भरकम, और गुदाज गांड की याद आती थी तो बड़ी तकलीफ़ होती थी. फ़िर जरा सुबुद्धि से काम लिया, चाची भली भांति जानती थीं कि मेरे मन में क्या है, उन्हें जब ठीक लगेगा, खुद ही अपनी गांड मुझे दे देंगीं. उनको मालूम तो जरूर होगा कि मेरे मन में क्या है, फ़िर कोई वजह होगी जिससे वे मुझे तरसा रही हैं. फ़िर और क्या मांगूं!!
पर मेरे मन में एक दो बातें थीं, उनकी खूबसूरत मुलायम रबर की चप्पलों वाला खेल; वो कभी कभी चलता ही था पर उतना नहीं जितने की आस मुझे होने लगी थी. इसे भी मैंने अभी के लिये टाल दिया, जरा अजीब लगता था कहना कि चाची, मन भरके मुझे आपकी चप्पलों से खेलना है. फ़िर दूसरी एक बात जो मेरे मन में थी, मैंने आखिर हिम्मत करके बोल ही दी. "चाची ... वो जब आप अकेली थीं तब क्या करती थीं?"
"अकेली थी याने? याने जब नीलिमा नहीं थी और मैं अकेली रहती थी?"
"हां चाची"
"अब तेरे को क्या बताऊं ... वैसे तेरा इशारा सेक्स की तरफ़ है ना कि अपनी कामना मैं कैसे शांत करती थी?"
"हां चाची"
"अब अकेले रहने पर वासना शांति के लिये क्या किया जाता है, तुझे मालूम है विनय, उसमें क्या बड़ी बात है?"
"पर आपके बारे में वैसा सोच कर बहुत ... एक्साइटिंग लगता है चाची, देखना चाहता हूं एक बार" मैंने हिम्मत करके कह ही डाला. "... आप को ... हस्तमैथुन ... याने खुद ही अपने हाथ से ... करते देखना चाहता हूं." मैंने उनकी ओर देखा, जरा टेंशन हो गया था, कहीं उन्हें गुस्सा ना आ गया हो. पर वे मुस्करा रही थीं. "बड़ा शरारती है, मेरे जितनी उमर की औरत की, बूढ़ी ही कह लो, आत्मरति देखना चाहता है!"
"नहीं चाची ... याने ... चाची आप उमर में बड़ी जरूर हैं पर बूढ़ी ना कहिये, आप तो इतनी सेक्सी हैं कि जवान लड़कियां भी बिरली ही होती हैं इतनी सेक्सी, आप को देखते ही जो मन करता है आप के साथ करने का ... याने वो कहा नहीं जाता चाची" मैंने एक बार में अपने मन की कह डाली, एकदम खरी खरी.
चाची कुछ देर मेरी ओर देखती रहीं, फ़िर मुस्करा दीं "ठीक है, आज तुझे वही दिखाती हूं, एक नहीं दो चीजें करके दिखाती हूं पर एक शर्त है, तू एकदम शांत रहेगा, हाथ अपनी छाती पर बांध कर देखेगा, अपने इस मूसल को जरा भी नहीं टच करेगा, है मंजूर? मैं नहीं चाहती कि मुझे देखते देखते तू भी शुरू हो जाये, तेरे इस प्यारे मूसल की जगह सिर्फ़ यहां है" अपनी चूत पर हाथ रखती हुई चाची बोलीं. मैंने तुरंत प्रॉमिस कर दिया.
चाची ने मेरी ओर देखा और फ़िर हल्का मुस्कराकर कुरसी में टिक कर बैठ गयीं. मैं जरा पीछे खिसककर आराम से वहीं दूसरी कुरसी में बैठ गया. चाची ने अपनी टांगें आपस में मिला लीं और स्थिर सी हो गयीं. मैं सोच रहा था कि यह क्या कर रही हैं चाची, ऐसी शांत बैठी हैं! फ़िर गौर से देखा तो उनका बदन जरा सा हिल रहा था. नीचे की ओर देखा तो उनकी पैर अब थोड़े हिल रहे थे, उनके पांव की वे खूबसूरत रबर की चप्पलें जरा हिल डुल रही थीं. फिर समझ में आया कि वे अपनी जांघें आपस में रगड़ रही थीं. फ़िर उनकी ओर देखा तो वे बोलीं "एक मिनिट को चकरा गया था ना? यह मुझे अच्छा लगता है, और इस की खासियत ये है कि यह कभी भी कहीं भी किया जा सकता है, किसी को पता भी नहीं चलता, बस देर लगती है थोड़ी"
फ़िर अपने दोनों हाथों में उन्होंने अपने स्तन ले लिये और उनसे खेलने लगीं. उनके स्तनों का मर्दन उन्हें कितना प्रिय था, यह मैं पहले से जानता था. अब देख रहा था कि अकेले में भी वे उनसे वैसे ही खेलती थीं जैसा मुझसे करवाती थीं. खुद का स्तनमर्दन करते करते उनकी जांघें वैसे ही आपस में दबी हुई हौले हौले चल रही थीं.
करीब पांच मिनिट ऐसा करने के बाद उन्होंने टांगें फैलायीं और फ़िर धीरे धीरे अपनी बुर के भगोष्ठों को सहलाना शुरू कर दिया. शायद ज्यादा गरम हो गयी थीं और उन्हें भी अब यह मस्ती सहन नहीं हो रही थी. उनका दूसरा हाथ लगातार अपने स्तनों को सहला और दबा रहा था. मैं टक लगाकर देख रहा था. बीच बीच में वे अपनी चूत को जरा खोलतीं और थोड़ा अंदर वाले लिप्स को भी रगड़तीं. कुछ देर बाद उनकी सांस थोड़ी जोर से चलने लगी. उन्होंने मेरे खड़े लंड पर नजर जमायी और फ़िर दो उंगलियों में अपनी बुर का ऊपरी भाग कैंची जैसा लकर रगड़ने लगीं. उनका क्लिट भी अब तन कर एक अनार के दाने जैसा दिखने लगा था.
मैं मंत्रमुग्ध सा होकर उनकी इस स्वकामलीला को देखता रहा. चाची काफ़ी मजे ले लेकर अपने मम्मों को दबाते हुए, बीच में अपने निपलों को उंगलियों में लेकर रोल करते हुए हस्तमैथुन कर रही थीं. पिछले कुछ दिनों में मैंने उनसे खूब चुदाई की थी, उनके शरीर का उपभोग लिया था, नीलिमा के साथ उनकी समलिंगी रति में भी सहभागी हुआ था और हस्तमैथुन उस हिसाब से जरा सादा सा ही खेल था पर न जाने क्यों उनके इस करम को देखकर मैं बहुत उत्तेजित हो गया. कारण वही था, एक पचास साल की सीदी सादी हाउसवाइफ़ - हमारे घर की बड़ी संभ्रांत महिला - मेरे सामने मुठ्ठ मार रही थी.
शायद वे भी बहुत गरम हो गयी थीं क्योंकि अब उनके मुंह से बीच बीच में ’हं’ ’आह’ निकलने लगा था. अकेले में हस्तमैथुन करना अलग बात है और फ़िर किसी को दिखाने के लिये, वो भी उनके करीब करीब पोते की उमर की नौजवान को दिखाने के लिये अलग बात है! उन्होंने अचानक कहा "विनय बेटे ... इस जगह आकर मैं अक्सर एक डिल्डो या वाइब्रेटर ले लेती हूं ... अब वो कहीं पड़ा होगा मेरी अलमारी में ... आज एक नया तरीका आजमाना चाहती ... हूं ... पर तुझे ऐसे ही ... कंट्रोल रखना पड़ेगा ...रखेगा? ... जरा मुश्किल काम है ... हं ... आह ऽ ... करेगा ? ..."
"हां चाची, आप जो कहें" वैसे मेरा लंड अब बहुत तकलीफ़ दे रहा था पर सामने जो ए-वन लाइव ब्ल्यू फ़िल्म चल रही थी उसके लिये मैं कुछ भी प्रॉमिस कर सकता था.
"फ़िर चल बिस्तर पर" वे उठ कर पलंग पर आयीं और सिरहाने से टिक कर बैठ गयीं. मुझे उन्होंने इशारा किया कि उनके सामने अपनी करवट पर आड़ा लेट जाऊं . इस पोज़ में मेरा लंड उनकी बुर के ठीक सामने था और उनकी टांगें मेरे बदन के ऊपर थीं. जब मेरे शरीर की पोज़िशन उनके मन मुताबिक हो गयी, तो उन्होंने मेरे लंड को पकड़ा और सुपाड़े से अपनी बुर को रगड़ने लगीं.
अगले दस मिनिट मेरे लिये बड़े कठिन थे, याने इतना सुख मिल रहा था पर उस सुख का चरम आनन्द मैं नहीं ले सकता था, उनको प्रॉमिस किया था कि मैं झड़ूंगा नहीं. वैसे वे भी बीच बीच में रुक जातीं, अगर उनको लगता कि मैं कगार पर आ गया हूं. अपने तने हुए सूजे सुपाड़े पर उनकी मुलायम गीली बुर का एहसास और सुपाड़े की नाजुक चमड़ी में बार बार उनके अनार के दाने का चुभना ऐसी मीठी सजा थी कि बड़ी मुश्किल से मैं उसे सह रहा था.
चाची को भी शायद मेरे लंड के सुपाड़े से मुठ्ठ मारने में बहुत आनन्द आया होगा क्योंकि कुछ ही देर में वे हल्के से ’अं .. अं ..’ करके स्खलित हो गयीं, मेरे सुपाड़े को उन्होंने जोर से अपनी बुर पर दबा लिया और उसे वैसे ही दबाये रख कर एकदम स्थिर हो गयीं, उनका बदन तन सा गया, और वे बस सांस लेती हुई आंखें बंद करके बैठी रहीं.
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