RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --17
गतान्क से आगे........................
"हिम्मत भी मत करना नीच आदमी" अचानक उनके अंदर का ठाकुर खून जाग उठा "तुझ जैसे को मैं अपनी जूती तले रखती हूँ. मेरे साथ कुच्छ करने का सोचना भी मत"
राजन के चेहरे के रंग बदलते चले गये. वो आगे बढ़ा और ठकुराइन के चेरहे पर एक ज़ोरदार थप्पड़ मारा और दूसरे हाथ से उनकी सारी का पल्लू खींच दिया.
सरिता देवी हक्की बक्की रह गयी. थप्पड़ इतनी ज़ोर से था के उन्हें लगा जैसे रात में ही सूरज निकल आया हो. वो गिरते गिरते बची और फ़ौरन अपनी सारी पकड़ी.
"मैं तुझे बताता हूँ के तेरी औकात क्या है. जब यहाँ ये मेरे 6 आदमी तुझपर चढ़कर उतरेंगे तो पता चल जाएगा तुझे" कहते हुए उसने ठकुराइन को वापिस गाड़ी की पिच्छली सीट पर धकेलना शुरू किया.
"चल आज इसी गाड़ी में तेरे साथ सुहाग रात मना लेता हूँ"
"राजन छ्चोड़ दे मुझे. ठाकुर तेरे टुकड़े टुकड़े करवा देंगे. मेरे साथ यहाँ जो तू करेगा वो तो यहीं ख़तम हो जाएगा पर फिर तेरे साथ क्या होगा ये सोच ले" ठकुराइन हिम्मत करके बोली. उन्हें खुद हैरत थी के अपनी इज़्ज़त की गुहार लगाने के बजाय वो खुद राजन को धमकी दे रही थी.
और शायद धमकी असर कर गयी. राजा रुक गया और कुच्छ पल के लिए चुप होकर सोचने लगा.
"सही कह रही हो आप" वो थोड़ी देर बाद बोला "यहाँ जो होगा वो तो यहीं ख़तम हो जाएगा. आप अबला नारी बन जाओगी और हम दरिंदे. तो चलिए खेल एक दूसरी तरह से खेलते हैं. इस तरह से के आज की रात ठाकुर खानदान में आने वाले कई सालों तक याद की जाए. इस तरह से के आज की रात हवेली में रहने वालो का हवेली में रहना मुश्किल कर दे"
सब चुप खड़े उसकी बात सुन रहे थे.
"इस लड़के को इधर लाओ ओये" राजन ने अपने आदमियों से कहा. वो लड़के को पकड़कर करीब ले आए.
"तो ठकुराइन जी" राजन सरिता देवी से बोला "अब मैं तो ठहरा गंदा खून जो आपको हाथ भी नही लगा सकता पर आपका बेटा तो ठाकुरों का खून है ना. तो ऐसा करते हैं के आपके साथ आज सुहाग रात मैं नही, आपका अपना बेटा मनाएगा."
सरिता देवी का मुँह हैरत से खुला रह गया.
"क्यूँ क्या हुआ ठकुराइन?" राजन हस्ता हुआ बोला "हम गंदा खून हैं पर आपका अपना बेटा तो नही"
वो लड़का हैरत से खड़ा कभी सरिता देवी की तरफ देखता तो कभी राजन की तरफ.
"चल ओये आगे बढ़ और अपनी माँ के कपड़े उतार" राजन उसको धकेलटा हुआ बोला.
"नही" सरिता देवी लगभग चीख उठी "भगवान का ख़ौफ्फ खा राजन. ऐसा पाप करने से पहले सोच ले. इस ज़मीन पर ठाकुर और उपेर आसमान में भगवान तेरा क्या हाशर करेंगे एक बार सोच"
"सोचा तो मैने कभी ज़िंदगी में नही ठकुराइन" राजन ने कहा "सोचा होता तो आज डाकू थोड़े ही होता. आप लोगों की तरफ पढ़ा लिखा शरीफ आदमी होता"
उसकी बात सुनकर उसके सारे आदमी हस पड़े.
"चल ओये आगे बढ़" राजन ने फिर उस लड़के को धकेला पर वो अपनी जगह पर ही खड़ा रहा. उसका पूरा शरीर पत्ते की तरह काँप रहा था.
"सरदार ये गूंगा क्या करेगा" राजन का एक आदमी बोला "इसकी हालत देखो. लगता है यहीं खड़े खड़े मूत देगा"
राजन ने लड़के को गौर से देखा.
"बात तो सही है ठकुराइन" वो सरिता देवी से बोला "ये ज़रा सा बच्चा क्या करेगा आपके साथ. एक काम करते हैं. आप खुद क्यूँ नही सिखाती अपने बेटे को कुच्छ?"
सरिता देवी कुच्छ नही बोली. चुप चाप खड़ी रही.
"आगे बढ़ो ठकुराइन और शुरू करो. मैं बेसबरा हो रहा हूँ कुच्छ खेल तमाशा देखने को" राजन ने कहा
"तुम्हें जो करना है मेरे साथ कर लो. पर ये मत कर्वाओ मुझसे" सरिता देवी ने एक आखरी कोशिश की.
जवाब में राजन ने एक लंबा सा च्छुरा निकाला और उस आदमी के हाथ में दिया जो उस लड़के को पकड़े खड़ा था.
"अगर अगले एक मिनिट के अंदर अंदर ठकुराइन ने काम शुरू नही किया तो लड़के की गर्दन उड़ा देना"
"नही" सरिता देवी लगभग चीख उठी "मैं करती हूँ"
"शाबाश" राजन बोला "तो चलिए अब जैसा जैसा मैं करता हूँ वैसा वैसा करती जाओ"
सब खामोशी से सरिता देवी की तरफ देख रहे थे.
"और सुन ओये" राजन अपने आदमी से बोला "अगर ठकुराइन मेरी बात मानने में ज़रा भी आना कानी करें तो फ़ौरन लड़के का सर धड़ से अलग कर देना"
उसके आदमी ने दाँत दिखाते हुए हां में सर हिला दिया.
"शाबाश ठकुराइन जी" राजन बोला "तो चलिए शुरू करते हैं आपको नंगी देखने से. अब एक एक करके अपने कपड़े उतारिये ज़रा. हम भी तो देखें के ठाकुर खानदान की औरतें अंदर से कैसी होती हैं"
सरिता देवी शरम से गढ़ गयी. आज तक उनकी पूरी ज़िंदगी में उनेह्न उनके अपने पति के सिवा किसी और ने बेपर्दा नही देखा था. और आज 7 मर्द और एक 17-18 साल के लड़के के सामने उन्हें नंगी होने पर मजबूर किया जा रहा था.
"काट दे गर्दन" राजन ने जब देखा के ठकुराइन कुच्छ नही कर रही तो उसने अपने आदमी को इशारा किया.
सरिता देवी ने फ़ौरन अपनी सारी का पल्लू अपने कंधे से हटाया और सारी खोलनी शुरू कर दी. सबकी नज़रें उनके जिस्म पर आकर चिपक गयी.
सारी खोलकर सरिता देवी ने नीचे गिरा दी और हाथ बाँधकर खड़ी हो गयी.
"ब्लाउस" राजन ने इशारा किया
सरिता देवी एक पल को झिझकी और फिर अपना ब्लाउस खोलने लगी. थोड़ी ही देर बाद वो सिर्फ़ ब्रा और पेटिकट में खड़ी थी. ब्लाउस के नीच गिरते ही किसी आदमी के मुँह से आह निकली, तो किसी ने सीटी बजाई.
सरिता देवी फिर रुक गयी.
"ठकुराइन मैने आपको पूरी नंगी होने को कहा है" राजन बोला "अगर अगली बार पूरी नंगी होने से पहले रुकी तो कसम से इस लौंदे की लाश यहीं पड़ी होगी"
आसमान में पूरा चाँद था और बस वही एक रोशनी उस वक़्त उस रास्ते पर थे. हर चीज़ चाँद की रोशनी में चमक रही थी और चमक रहा था सरिता देवी का जिस्म जो अब उन सब के बीच पूरी तरह नंगी खड़ी थी. उन्होने दोनो टांगे सिकोड रखी थी और एक हाथ से अपनी चूत और दूसरे से अपनी चूचियाँ जितनी हो सकें ढक रखी थी.
"क्या बात है" राजन ने कहा "भगवान ने क्या खूब बनाया है आपको ठकुराइन"
हर कोई उस वक़्त नंगी खड़ी ठकुराइन के बेदाग जिस्म को देख रहा था. बड़ी बड़ी चूचियाँ, गोरा चितता रंग, शरीर पर कहीं कोई दाग या धब्बा नही, बिल्कुल सपाट पेट, कहीं कोई चारभी का निशान नही, लंबी सुडोल टाँग.
"अपने बाल खोल दीजिए ठकुराइन" राजन ने हुकुम दिया.
सरिता देवी एक पल को झिझकी. बाल खोलना मतलब एक हाथ चूत या चूचियो पर से हटाना. वो शरम से गढ़ी जा रहीं थी. इतनी बे-इज़्ज़त वो अपनी पूरी ज़िंदगी में कभी नही हुई थी.
"हे भगवान!" उन्होने मंन ही मंन में सोचा "ये दिन दिखाने से पहले मुझे उठा क्यूँ नही लिया"
"मार दो लड़के को" राजन की फिर आवाज़ आई तो वो जैसे एक सपने से जागी और फ़ौरन अपनी छातियो वाला हाथ उपेर किया, बाल खोले और फिर अपनी चूचियाँ ढक ली.
उनकी बड़ी बड़ी चूचियाँ एक पल को खुली और हर किसी के मुँह से एक ठंडी आह निकल पड़ी.
"सीधी खड़ी हो जाइए ठकुराइन" राजन ने कहा "अपने हाथ हटाइए"
सरिता देवी जानती थी के अगर उन्होने हाथ नही हटाए तो आगे क्या होगा" धीरे धीरे झिझकते हुए उन्होने अपने दोनो हाथ साइड में गिरा दिए.
अब वो पूरी तरह से नंगी, पूरी खुली हुई खड़ी थी.
किसी की नज़र उनकी चूचियो से चिपक कर रह गयी तो किसी की नज़र उनकी चूत पर और कोई उनके पूरे शरीर को उपेर से नीचे तक देख रहा था.
"कमाल हैं कसम से" राजन सरिता देवी के चारों तरफ गोल घूम रहा था और उन्हें उपेर से नीचे तक देख रहा था "बहुत नंगी औरतें देखी हैं ज़िंदगी में ठकुराइन पर कोई आपके जैसी नही देखी. दिल तो करता है के आपको यहीं गिराकर रगड़ दूँ पर वादे का पक्का है राजन. वादा किया के कोई कुच्छ नही करेगा आपके साथ तो कोई नही करेगा, सिवाय आपके बेटे के"
उसकी बात सुनकर ठकुराइन को उस लड़के की याद आई. वो तो जैसे भूल ही गयी थी उसके बारे में. उन्होने नज़र उठाकर उसकी तरफ देखा. वो अपनी नज़र नीची किए खड़ा था और अब भी काँप रहा था.
"चलिए ठकुराइन" राजन ने कहा "आगे बढ़िए. सिखाइए अपने बेटे को के औरत के जिस्म के साथ कैसे खेला जाता है"
ठकुराइन की टाँगें काँप उठी और उनका रोना छूट पड़ा. अब तक उन्होने एक भी ऐसी हरकत नही की थी जिससे राजन को ये लगे के वो डर रही हैं उससे पर आख़िर थी तो एक औरत ही. कब तक बर्दाश्त करती.
"अर्रे अर्रे सरदार" उन्हें रोता देखकर एक आदमी बोला "बेचारी ठकुराइन खुद अपने बेटे को ये सब कैसे सीखा सकती हैं. आप क्यूँ नही मदद करते ये बताकर के ठकुराइन को क्या करना चाहिए"
"हां बिल्कुल ठीक बात है" राजन हस्ता हुआ बोला "तो चलिए मैं आपकी मदद करता हूँ ठकुराइन" मैं बताता हूँ और आप करती जाइए. और याद रखना, अगर आप रुकी तो लड़के की गर्दन कटी. अब आप आगे बढ़िए और अपने बेटे के पास जाइए"
सरिता देवी अपना रोना दबाते हुए लड़के के करीब पहुँची.
"अब जैसा की आप देख सकती हैं के आपका बेटा काफ़ी डरा हुआ है. इस वक़्त जोश में नही हैं इसलिए कुच्छ भी कर नही पाएगा. तो एक माँ होने के नाते आपका फ़र्ज़ है के अपने बेटे का डर डोर कीजिए और उसको जोश में लाइए"
सरिता देवी को राजन की बात समझ नही आई.
"ओह्ह आप समझी नही?" राजन उनकी शकल की तरफ देखता हुआ बोला "अर्रे मेरा मतलब वही था, अँग्रेज़ी स्टाइल. आप अपने घुटनो पर बैठ जाइए"
सरिता देवी समझ गयी के वो क्या चाह रहा था पर ना बोलने का अंजाम भी वो जानती थी. चुप चाप अपने घुटनो पर बैठ गयी.
उनके अपने सामने बैठे ही लड़के ने पिच्चे हटने की कोशिश की पर पिछे से उसके एक आदमी पकड़े खड़ा था इसलिए कामयाब ना हो सका.
"आप जानती हैं के आपको क्या करना है" राजन बोला
सरिता देवी ने किसी हलाल होती मुर्गी की तरह राजन की तरफ देखा, ये सोचकर के शायद वो तरस खा ले पर राजन के चेहरे के भाव ज़रा भी नही बदले.
"शुरू हो जाइए वरना च्छुरा चल जाएगा"
सरिता देवी ने काँपते हाथों से लड़के के पाजामे का नाडा खोला. लड़के के पिछे खड़े आदमी ने उसका कुर्ता उठाकर उपर पकड़ लिया. नडा खुलते ही पाजामा नीचे आ गिरा.
"शाबाश" पाजामा खुलते ही राजन बोला "अब ज़रा अपने मुँह का कमाल दिखाइए"
सरिता देवी की आँखें भर आई थी. जो काम राजन उन्हें करने को कह रहा था वो करना उनको बहुत पसंद था, पर अपनी मर्ज़ी से और अपने पति के साथ. सामने खड़े अपने बेटे की उमर के लड़के के साथ नही, वो भी मर्ज़ी के खिलाफ.
"ठकुराइन" पीछे से राजन की आवाज़ आई.
सरिता देवी ने अपने आपको किस्मत पर छ्चोड़ा और आँखें बंद कर ली. अपने कमरे में अपने पति के साथ वो ये काम हमेशा आँखें खोलकर करती थी ताकि ठाकुर के चेहरे पर गुज़रते भाव देख सकते. वो जब भी ठाकुर का चूस्ति, तो ठाकुर मज़े से कराह उठता था और उस हालत में उसको देखना सरिता देवी को बहुत पसंद था. पर इस उन्होने अपनी आँखें बंद करके अपना मुँह खोला.
क्रमशः........................................
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