RE: Sex Story मैं चीज़ बड़ी हूँ मस्त मस्त
मैं उठ कर बाथरूम की तरफ जाने लगी मगर मुझे चलने में बहुत मुश्क़िल हो रही थी. आकाश मेरे पास आया और मुझे उठाकर वॉशरूम में छोड़ आया. नहाने के बाद मुझे थोड़ी राहत मिली. मैं बाहर आई और अपने कपड़े पहन ने लगी. पैंटी तो आकाश ने अपने पास रख ली थी. मैने बाकी के कपड़े पहने और आकाश को चलने के लिए कहा. शाम को 4 बजे मैं घर पहुँची. मैं धीरे-2 चलती हुई घर के अंदर गयी. भाभी सामने ही बैठी थी. वो मुझे ऐसे चलते हुए देखने लगी. मैं भाभी से नज़र चुराते हुए अपने रूम में आ गई और बेड पे लेट गयी. मेरे पीछे-2 भाभी भी रूम में आई और आकर मेरे बेड के पास खड़ी हो गयी और कमर पे हाथ रखकर गुस्से से बोली.
करू-रीतू कहाँ से आ रही है.
मे-भाभी कॉलेज से.
करू-तुम्हारी चाल देखकर लग नही रहा.
मे-क्यूँ मेरी चाल को क्या हुया.
भाभी मेरे पास बैठ गई और मेरे गले में बाहें डालकर बोली.
करू-सच-2 बता कहाँ मूह काला करवा के आई है.
मुझे भाभी की इस बात पे गुस्सा आया और मैने अपना मूह फेर लिया.
करू-ओह हो मेरी स्वीतू नाराज़ हो गई. अरे मैं तो मज़ाक कर रही हूँ. अच्छा मेरे सर पर हाथ रख कर बोल कि तू आज कॉलेज ही गयी थी.
अब तो मैं फस चुकी थी.
मे-वो भाभी....मैं...वो...
करू-तू बताती है या लगाऊ एक.
मे-भाभी मैं आपके नंदोई के साथ गई थी.
करू-क्या...मुझे तो आज तक बताया नही तूने.
मे-आपने पूछा ही नही.
करू-अच्छा छोड़. मुझे लगता है आज तो कुछ करवा के आई है तू.
मैने बस जवाब में अपना सर हिला दिया.
करू-कलमूहि. बहुत आगे निकल गयी है तू. चिलकोज़ू को बोलकर तेरी शादी करवानी पड़ेगी.
मे-भाभी अब जाओ आप मैं थक गयी हूँ.
करू-हां-2 जाती हूँ तू ज़रूर बदनाम करेगी हम सब को.
भाभी वहाँ से चली गयी लेकिन भाभी की कही हुई बात मेरे दिल पे लगी जाकर.
क्या सचमुच मैं ग़लत जा रही हूँ. भाभी ने तो वो बात मज़ाक में कही थी मगर जाने-अंजाने में कही भाभी की ये बात बहुत बड़ी बात थी. आज आकाश के साथ सेक्स करने के बाद मुझे महसूस हो रहा था कि आकाश के साथ जाकर मैने करन को धोखा दिया है. शायद ये प्यार था जो कि मुझे शर्मिंदा होने पर मजबूर कर रहा था. मैने अब सोच लिया था कि आज के बाद किसी के साथ ऐसा कुछ नही करूँगी जिसकी वजह से मुझे शर्मिंदा होना पड़े.
अब मुश्क़िल एक ही थी कि मैं कारण के साथ अपना रिश्ता आगे कैसे बढ़ाऊ. उसका भी एक प्लान आख़िरकार मैने तयार कर ही लिया था. कॉलेज में तो हमे मौका नही मिलता था कभी एक दूसरे के साथ इस लेवेल की बात करने का तो मैने सोचा था कि क्यूँ ना करण के साथ कही बाहर जाया जाए. यहाँ सिर्फ़ मैं और करण हो और मैं आसानी से उसे अपनी दिल की बात कर सकूँ. एक दिन मुझे ये मौका भी मिल ही गया. आज कॉलेज में ज़्यादातर लेक्चर फ्री थे तो करण ने कहा की क्यूँ ना कही घूमने चले. आकाश और महक तो पहले से ही कही जाने के लिए रेडी थे. शायद आकाश महक को सुमित के फार्म-हाउस पे लेजाने वाला था तो मैं और करण ही बाकी बचे थे. आकाश और महक के जाने के बाद मैने करण को कहा.
मे-करण क्यूँ ना तुम्हारे घर चलें. इसी बहाने मैं तुम्हारा घर भी देख लूँगी और टाइम भी पास हो जाएगा.
करण-क्यूँ नही मोहतार्मा ज़रूर.
करण के घर दिन में कोई नही होता था. उसके मम्मी पापा गँवरमेंट. जॉब करते थे न्ड उसका एक भाई था जो कि स्कूल में होता था.
मैं कारण के साथ उसकी बाइक पे बैठ गई और हम उसके घर की तरफ चल पड़े. 20मिनट के सफ़र के बाद हम उसके घर पहुँच गये. कारण ने मुझे पानी दिया और फिर मुझे अपना सारा घर घुमाया. बहुत ही शानदार घर था उसका. आख़िर में वो मुझे अपने रूम में ले गया और मैने देखा बहुत ही अच्छे तरीके से उसने अपना रूम सजाया था. हर एक चीज़ यहाँ होनी चाहिए थी वही थी. मैं उसके बेड के उपर बैठ गई और करण भी मेरे साथ बैठ गया. काफ़ी देर हमारे बीच खामोशी छाई रही और आख़िरकार हम दोनो एक साथ बोल उठे.
'मैं तुमसे कुछ कहना चाहता/चाहती हूँ'
हम दोनो मुस्कुराए और मैने कहा.
मे-अच्छा तो पहले तुम कहो.
करण-नही-2 पहले तुम.
मे-मैने कहा ना पहले तुम.
करण-देखो लॅडीस ऑल्वेज़ फर्स्ट.
मे-अच्छा तो मैं अब तुम्हे लेडी दिखने लगी.
करण-अरे सॉरी बाबा चलो गर्ल्स ऑल्वेज़ फर्स्ट. ये ठीक है.
मे-अच्छा ठीक है ऐसा करते हैं हम दोनो एक साथ बोलते हैं.
करण-ओके.
मे-चलो 1, 2, 3,
'आइ लव यू'
हम दोनो के होंठों में से यही वर्ड निकले. मुझे करण की बात का यकीन नही हो रहा था और करण को मेरी. उसने मेरे हाथ पकड़े और मेरी बाहें अपने गले में डाल दी और फिर अपनी बाहें मेरे गले में डालकर बोला.
करण-एक दफ़ा फिर से कहो रीत.
मे-आइ लव यू करण.
करण-आइ लव यू टू रीत.
फिर उसके होंठ मेरे होंठों के नज़दीक आते गये और पता ही नही चला कब हमारे होंठ एक हो गये.
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