RE: XXX Hindi Kahani बिना झान्टो वाली बुर
मैने चमेली से कहा "चलो नीचे गरेज का ताला खोलो, कार कयी दीनो से
निकली नही है साफ कर देना, और मॅमी जो दे उसे रख देना, मेरा एक बॅग मेरे
कमरे से ले लेना पर उसे मॅमी ना देख पाए." जीजाजी बोले "अरे उसमे ऐसी क्या
चीज़ है" मैं बोली जीजाजी आपके लिए भाभी के कमरे से चुराई है, वही
चलकर दिखाउन्गि"
हमलोग मॅमी से कह कर घर से कार पर निकले. एक जगह गाड़ी रोक कर जीजाजी
अकेले ही कुच्छ खरीद कर एक झोले में ले आए और मुझसे कहा "सुधा अब तुम
स्टारर्रिंग सम्हालो" मैने उन्हे छेड़ते हुए कहा "जीजाजी को आज तीन गाड़ी
चलानी है इसी लिए इस गाड़ी को नही चलाना चाहते" और मैं ड्राइवर सीट पर
बैठ गयी, मेरे बगल में जीजू और चमेली को जीजाजी ने आगे बुला कर अपने
बगल मे बैठा लिया. हमलोग कामिनी के घर के लिए चल परे जो थोरी ही दूर
था........
रास्ते में जीजाजी कभी मेरी चूची दबाते तो कभी चमेली की मैं ड्राइव कर रही थी इस लिए उन्हे रोक भी नही पा रही थी मैने कहा, "जीजाजी क्यो बेताब हो रहे हैं वहाँ चल कर यही सब तो करना है, मुझे गाड़ी चलाने दीजिए नही तो कुच्छ हो जाएगा" जीजाजी अब चमेली की तरफ़ हो गये और उसकी चून्चि से खेलने लगे और चमेली जीजाजी की जिप खोलकर लंड सहलाने लगी फिर झुककर लंड मूह में ले लिया. यह देख कर मैं चमेली को डाँटते हुए बोली, "आरे बुर्चोदि छिनार, यह सब क्या कर रही है कामिनी का घर आने वाला है" चमेली जो अब तक जीजाजी के नशे में खो गई थी जागी, और ये देख कर कि कामिनी का घर आने वाला है जीजाजी के खरे लंड को किशी तरह थेलकार पॅंट के अंदर किया और जिप लगा दिया. जीजाजी ने भी उसकी बुर पर से अपना हाथ हटा लिया.
जब हमलोग कामिनी के घर पहुँचे तो चमेली ने उतर कर मैन गेट खोला मैने पोर्टिको मे गाड़ी पार्क की. तब तक कामिनी और उसकी मा दरवाजा खोल कर बाहर आ गयी.
जीजाजी कामिनी की मा के पैर छूने के लिए झुके, कामिनी की मा बोली "नही बेटा! हमलॉग दामाद से पैर नही छुवाते, आओ अंदर आओ" हमलोग अंदर ड्रॉइग्रूम में आ गये. कामिनी की मा रेखा और घर वालो का हालचाल लेने के बाद आज के लिए अपनी मजबूरी बताते हुए कहा, "बबुआ जी आज यही रुक जाना कामिनी काफ़ी समझदार है वह आपका ध्यान रखेगी, कल दोपहर दो बजे तक मैं आजवँगी, कल तो सनडे है, ऑफीस तो जाना नही है, मैं आउन्गी तभी आप जाइएएगा. अच्च्छा तो नही लग रहा है पर मजबूरी है जाना तो परेगा ही." जीजाजी बोले मॅमी जी किसके साथ जाएँगी कहिए तो मैं आपको मामा जी के यहाँ छोड़ दूं" कामिनी की मा बोली "नही बेटा, चंदर (ममाजी) लेने आते ही होंगे.
तभी मामा जी के कार का हॉर्न बाहर बजा. कामिनी बोली लो मामा जी आ भी गये, वह बाहर गयी और आ कर अपनी मा से बोली, "मामा जी बहुत जल्दी में है अंदर नही आ रहे है कहते है मॅमी को लेकर जल्दी आ जाओ. उसकी मा बोली, "बेटा तुम लोग बैठो मैं चलती हूँ कल मिलूँगी"
कामिनी मॅमी को मामा की गाड़ी पर बिठा कर और मैन गेट पर ताला और घर का मुख्य दरवाजा बंद कर जब अंदर आई तो मुझसे लिपट गयी और बोली, "हुर्रे! आज की रात सुधा के नाम" फिर जीजाजी का हाथ पकड़ कर बोली, "आपका दरबार उपर हॉल में लगेगा और आपका आरामगाह भी उपर ही है. जहांपनाह! उपर हॉल में पूरी वयवस्था है डिनर भी वही करेंगे, मॅमी कल दोपहर लंच के बाद आएँगी इस लिए जल्दी उठने का जांझट नही है, हॉल में टीवी, सीडी प्लेयर लगा है और तांस (प्लेयिंग-कार्ड) खेलने के लिए कालीन पर गद्दा बिच्छा है"
जीजाजी बोले, "तांस"
"मॅमी ने तो तांस के लिए ही बिच्छवाया था लेकिन आप जो भी खेलना चाहें खेलिएगा, वैसे आप का बेड भी बहुत बरा है" कामिनी मुझे आँख मारती हुई बोली"
"चमेली से ना रहा गया बोली, " जीजाजी को तो बस एक खेल ही पसंद है..खाट कबड्डी.. आते आते...." चमेली आगे कुच्छ कहती मैने उसे रोका, "चुप शैतान की बच्ची ! बस आगे और नही"
जीजाजी बोले, "अब उपर चला जाय"
कामिनी सब को रोकती हुई बोली, "नही अभी नही, नस्ता करने के बाद, लेकिन दरबार में चलने का एक क़ायदा है शहज़ादे"
"वह क्या? हुस्न-की-मल्लिका" जीजाजी उसी के सुर मे बोले.
कामिनी बोली, "दरबार में ज़्यादा से ज़्यादा एक कपड़ा पहना जा सकता है"
"और कम से कम, चलो हम सब कम से कम कपरे ही पहन लेते है" जीजाजी चुहल करते हुए बोले "चलो पहले कपरे ही बदल लेते है"
सब्लोग ड्रेसिंग रूम में आ गये. कामिनी बोली, " सब लोग अपने अपने ड्रेस उतार कर ठीक से हॅंगर करेंगे फिर मैं शाही कपड़े पहनाउगि"
चमेली बोली, "मुझे भी उतारने है क्या?
"क्यों? क्या तू दरबार के काएदे से अलग है क्या?" और हम्दोनो ने सबसे पहले उसी के कपरे उतार कर नंगी कर दिया फिर उसने हम्दोनो के कपरे एक-एक कर उतारे और हॅंगर कर दिए और जीजाजी की तरफ देख कर कहा अब हमलोग कम-से-कम कपड़े मे है.
जीजाजी की नज़र कामिनी पर थी. कामिनी मुस्काराकार जीजाजी के पास आई और बोली, " शहज़ादे अब आप भी मदरजात कपरे मे आ जाइए" और उसने उनके कपरे उतारने शुरू किए.
चमेली मेरे पास ही खड़ी थी मुजसे धीरे से बोली "सुधा दीदी, कामिनी दीदी कैसी है आते ही मूह से गाली निकालने लगी मदर्चोद कपरे.." मैने उसे समझाया, "अरे पगली! मदर्चोद नही मदरजात कपड़ा कहा, जिसका मतलब है जब मा के पेट से निकले थे उस समय जो कपड़े पहने थे उस कपड़े में आ जाइए" "पेट का बच्चा और कपड़ा" "आरे बात वही है बच्चा नंगा पैदा होता है और उसीतरह आप भी नंगे हो जाओ, जैसे कि तू खड़ी है मदरजात नंगी" "ओह दीदी, पढ़े-लिखों की बाते.." चमेली की बात पर सब लोग खूब हासे. चमेली अपनी बात पर सकुचा गयी.
कामिनी जीजाजी को नगा कर कपड़े हॅंगर करने के लिए चमेली को दे दिए और खुद घुटनो के बल बैठ कर जीजाजी के लंड को चूम लिया.
मैने पुचछा, "अरी यह क्या कर रही है क्या यहीं...."
अरे नही, यह नंगे दरबार के अभिवादन करने का तरीका है चलो तुम दोनो भी अभिवादन करो" चमेली फिर बोली, "कामिनी बरा मस्त खेल खेल रही है"
मैने उसे फिर टोका, "गुस्ताख! तू फिर बोली अब चल जीजू का लॅंड चूम" "दीदी आप चूमने को कहती हैं, कहिए तो मूह में लेकर झार दूँ" हम सब फिर हंस परे.
चमेली और मैने दरबार के नियम के अनुसार कामिनी की तरह लंड को चूम कर अभिवादन किया फिर जीजाजी ने कामिनी की चून्चियो को चूमा.
मैने कहा फाउल ! शरीर के बीच के भाग को चूम कर अभिवादन करना है"
क्रमशः.........
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