RE: Hindi Sex Kahaniya काँच की हवेली
अपडेट 8
रवि झाड़ियों में छिप गया. उसके मन में बदले की भवना थी. इसी लड़की के कारण उसे हवेली में मज़ाक का पात्र बनना पड़ा था. उसने कंचन को सबक सिखाने का निश्चय कर लिया था. वो ये कैसे भूल सकता था कि बिना वजह इस लड़की ने उसके कपड़े जलाए थे. इसी की वजह से वो दो दिन तक जोकर बना हवेली में फिरता रहा. इन्ही विचारों के साथ वो झाड़ियों में छिपा रहा और कंचन के बाहर आने की राह देखता रहा.
कुच्छ देर बाद एक एक करके लड़कियाँ बाहर आती गयीं और अपने अपने कपड़े पहन कर अपने अपने घर को जाने लगी. रवि 1 घंटे से झाड़ियों की औट से ये सब देख रहा था. अब सूर्य भी अपने क्षितिज पर डूब चुका था. चारो तरफ सांझ की लालिमा फैल चुकी थी. अब नदी में केवल 2 ही लड़कियाँ रह गयी थी. उनमें एक कंचन थी दूसरी उसकी कोई सहेली. कुच्छ देर बाद उसकी सहेली भी नदी से बाहर निकली और अपने कपड़े पहनने लगी. अचानक उसे ये एहसास हुआ कि यहाँ कंचन के कपड़े नही हैं. उसने उसके कपड़ों की तलाश में इधर उधर नज़र दौड़ाई, पर कपड़े कहीं भी दिखाई नही दिए. उसने कंचन को पुकारा. - "कंचन, तुमने अपने कपड़े कहाँ रखे थे? यहाँ दिखाई नही दे रहे हैं."
"वहीं तो थे. शायद हवा से इधर उधर हो गये हों. मैं आकर देखती हूँ" कंचन बोली और पानी से बाहर निकली. वह उस स्थान पर आई जहाँ पर उसने अपने कपड़े रखे थे. वहाँ पर सिर्फ़ उसकी ब्रा और पैंटी थी. बाकी के कपड़े नदारद थे. वह अपने कपड़ों की तलाश में इधर उधर नज़र दौड़ने लगी. वो कभी झाड़ियों में ढूँढती तो कभी पत्थरों की औट पर. लेकिन कपड़े उसे कहीं भी दिखाई नही दिए. अब कंचन की चिंता बढ़ी. वो परेशानी में इधर उधर घूमती रही, फिर अपनी सहेली के पास गयी. "लता कपड़े सच मच में नही हैं."
"तो क्या मैं झूठ बोल रही थी." लता मुस्कुराइ.
"अब मैं घर कैसे जाउन्गि?."
"थोड़ी देर और रुक जा. उजाला ख़त्म होते ही घर को चली जाना. अंधेरे में तुम्हे कोई नही पहचान पाएगा."
"तू मेरे घर से कपड़े लेकर आ सकती है?" कंचन ने सवाल किया.
"मैं....! ना बाबा ना." लता ने इनकार किया - "तू तो जानती ही है मेरी मा मुझे आने नही देगी. फिर क्यों मुझे आने को कह रही है?"
"लता, तो फिर तू भी कुच्छ देर रुक जा. दोनो साथ चलेंगे. यहाँ अकेले में मैं नही रह सकूँगी." कंचन ने खुशामद की.
"कंचन, मैं अगर रुक सकती तो रुक ना जाती. ज़रा सी देर हो गयी तो मेरी सौतेली मा मेरी जान ले लेगी."
कंचन खामोश हो गयी. वो अच्छी तरह से जानती थी, लता की सौतेली मा उसे बात बात पर मारती है. एक काम को 10 बार करवाती है. वो तो अक्सर इसी ताक में रहती है कि लता कोई ग़लती करे और वो इस बेचारी की पिटाई करे. उसका बूढ़ा बाप भी अपनी बीवी के गुस्से से दूर ही रहता था.
"क्यों चिंता कर रही है मेरी सखी. मेरी माँ तो तू ऐसे ही मेरे साथ घर चल." लता ने उसे सुझाव दिया.
"ऐसी हालत में कोई देखेगा तो क्या कहेगा?" कंचन चिंतित स्वर में बोली.
"कोई कुच्छ नही कहेगा. उल्टे लोग तुम्हारी इस कंचन काया की प्रशंसा ही करेंगे." लता उसके पास आकर उसके कंधो पर हाथ रख कर बोली - "सच कहती हूँ, गाओं के सारे मजनू तुम्हे ऐसी दशा में देखकर जी भर कर सच्चे दिल से दुआएँ देंगे."
"लता तुम्हे मस्ती चढ़ि है और यहाँ मेरी जान निकली जा रही है." कंचन गंभीर स्वर में बोली.
"तुम्हारे पास और कोई चारा है?" लता उसकी आँखों में झाँकते हुए बोली - "या तो तू ऐसे ही मेरे साथ घर चल...या फिर कुच्छ देर रुक कर अंधेरा होने का इंतेज़ार कर. लेकिन मुझे इज़ाज़त दे. मैं चली." ये कहकर लता अपने रास्ते चल पड़ी. कंचन उसे जाते हुए देखती रही.
रवि झाड़ियों में छिपा ये सब देख रहा था. लता के जाते ही वो बाहर निकला. और धीमे कदमो से चलता हुआ कंचन की और बढ़ा. कंचन उसकी ओर पीठ किए खड़ी थी. रवि उसके निकट जाकर खड़ा हो गया और उसे देखने लगा. किसी नारी को इस अवस्था में देखने का ये उसका पहला अवसर था. कंचन गीले पेटिकोट में खड़ी थी. उसका गीला पेटिकोट उसके नितंबो से चिपक गया था. पेटिकोट गीला होने की वजह से पूरा पारदर्शी हो गया था. हल्की रोशनी में भी उसके भारी गोलाकार नितंब रवि को सॉफ दिखाई दे रहे थे. दोनो नितंबो के बीच की दरार में पेटिकोट फस सा गया था. वह विस्मित अवस्था में उसके लाजवाब हुश्न का दीदार करता रहा. अचानक से कंचन को ऐसा लगा कि उसके पिछे कोई है. वह तेज़ी से घूमी. जैसे ही वो पलटी चीखती हुई चार कदम पिछे हटी. वो आश्चर्य से रवि को देखने लगी. रवि ने उसकी चीख की परवाह ना करते हुए उसे उपर से नीचे तक घूरा. उसकी अर्धनग्न चूचियाँ रवि की आँखों में अनोखी चमक भरती चली गयी. उसकी नज़रें उन पहाड़ जैसे सख़्त चुचियों में जम गयी. गीले पेटिकोट में उसके तने हुए बूब्स और उसकी घुंडिया स्पस्ट दिखाई दे रही थी. रवि ने अपने होठों पर जीभ फेरी.
कंचन की हालत पतली थी. ऐसी हालत में अपने सामने किसी अजनबी मर्द को पाकर उसका दिल धाड़ धाड़ बज रहा था. सीना तेज़ी से उपर नीचे हो रहा था. उसे अपने बदन पर रवि के चुभती नज़रों का एहसास हुआ तो उसने अपने हाथों को कैंची का आकर देकर अपनी छाती को ढकने का प्रयास करने लगी. वो लाज की गठरी बनी सहमी से खड़ी रही. फिर साहस करके बोली - "आप यहाँ इस वक़्त....आपको इस तरह किसी लड़की को घूरते लज्जा नही आती?"
उत्तर में रवि मुस्कुराया. फिर व्यंग भरे शब्दों में बोला - "ये तो वही बात हो गयी. कृष्ण करे तो लीला. हम करे तो रासलीला."
"मैं समझी नही." कंचन रूखे स्वर में बोली.
रवि ने अपने हाथ आगे किए और उसके कपड़े दिखाए. कंचन रवि के हाथो में अपने कपड़े देखकर पहले तो चौंकी फिर आँखें चढ़ाकर बोली -"ओह्ह...तो आपने मेरे कपड़े चुराए थे. मुझे नही पता था आप शहरी लोग लड़कियों के कपड़े चुराने के भी आदि होते हैं. लेकिन ये बड़ी नीचता का काम है. लाइए मेरे कपड़े मुझे दीजिए."
रवि व्यंग से मुस्कुराया. -"मुझे भी नही पता था कि गाओं के सीधे साधे से दिखने वाले लोग, अपने घर आए मेहमान का स्वागत उसके कपड़े जलाकर करते हैं. क्या ये नीचता नही है."सहसा उसकी आवाज़ में कठोरता उभरी - "अब क्यों ना मैं अपने उस अपमान का बदला तुमसे लूँ. क्यों ना तुम्हारे बदन से ये आख़िरी कपड़ा भी नोच डालूं."
कंचन सकपकाई. उसकी आँखों से मारे डर के आँसू बह निकले. वो सहमी सी आवाज़ में बोली - "मैने आपके कपड़े नही जलाए थे साहेब. वो तो...वो तो...." कंचन कहते कहते रुकी. वह खुद तो लज्जित हो चुकी थी अब निक्की को शर्मसार करना ठीक नही समझा.
"वो तो क्या? कह दो कि वो काम किसी और ने किए थे. जो लड़की मेरे रूम में मेरे जले हुए कपड़े रख के गयी थी वो तुम नही कोई और थी."
"साहेब....मैं सच कहती हूँ, मैने आपके कपड़े नही जलाए."
"तुम्हारा कोई भी झूठ तुम्हारे किए पर परदा नही डाल सकता. तुम्हारे इस गोरे शरीर के अंदर का जो काला दिल है उसे मैं देख चुका हूँ."
कंचन रुआन्सि हो उठी, रवि के ताने उसके दिल को भेदते जा रहे थे. उसने सहायता हेतु चारो तरफ नज़र दौड़ाई पर उसे ऐसा कोई भी दिखाई नही दिया. जिससे वो मदद माँग सके. उसने उस पल निक्की को जी भर कोसा. काश कि वो उसकी बातों में ना आई होती. उसने एक बार फिर रवि के तरफ गर्दन उठाई और बोली - "साहेब, मेरे कपड़े दे दो. मेरे घर में सब परेशान होंगे." उसकी आवाज़ में करुणा थी और आँखें आँसुओं से डबडबा गयी थी. वो अब बस रोने ही वाली थी.
क्रमशः....................................
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