RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
"क्या ?" ममता का मूँह हैरत से खुला का खुला रह गया, वह अचानक सिहर उठती है "नही नही! तू मेरा बेटा है और तू उसे! उसे नही देख सकता" उसने सॉफ इनकार करते हुवे कहा. कैसे संभव था कि एक मा खुद अपने जवान बेटे को उसकी असल जन्मस्थली, अपनी कामरस उगलती चूत का दर्शन करवाती. उस मा की अनियंत्रित सांसो के उतार-चढ़ाव से तंग ब्रा में क़ैद उसके गोल मटोल मम्मो का आकार आकस्मात ही इस कदर बढ़ जाता है कि उन पर शुशोभित चुचक तंन कर उसके ब्लाउस में छेद कर देने पर आमादा होने लगते हैं.
"बिना देखे उसका इलाज नही हो सकता मा और यह तुम्हे भी अच्छे से मालूम है. अभी कुच्छ देर पहले ही तुम्हारे बेटे ने एक ऐसी विवाहित औरत के छत-विक्षत गुदा-द्वार का सफलतापूर्वक निरीक्षण किया था, जिसका पति भी उस वक़्त इसी कॅबिन में मौजूद था, तुम्हे शायद झूठ लगे मगर उसने खुद अपनी पत्नी को नग्न होने की इजाज़त दी थी और क्लिनिक छोड़ने से पूर्व उन दोनो के चेहरे पर पूर्ण संतुष्टि के भाव थे" ऋषभ ने उसे समझाने का प्रयत्न किया. उसके दिल में कुच्छ अंश मा के प्रति प्रेम व संवेदना से भरपूर अवस्था मे थे मगर बाकी का संपूर्ण जिस्म गहेन उत्तेजना के प्रभाव से काँप रहा था.
"वो जो भी हो, मुझे खुशी है कि तेरे मरीज़ तुझ पर भरोसा करते है मगर मुझ में इतना साहस नही बेटे कि मैं तेरे सामने ..." ममता ने अपने कथन को अधूरा छोड़ अपना थूक निगला "तू मुझे कोई दवाई लिख दे रेशू! मैं ठीक हो जाउन्गि" वह विनती के स्वर में बोली. पहली बार सही परंतु उसे अपने पुत्र की ईमानदारी पर गर्व सा महसूस होता है, यक़ीनन उसके कथन को वह झुठला नही सकती थी. उसने भी प्रत्यक्षरूप से वो अचंभित कर देने वाला द्रश्य देखा था जिसमें एक पति खुद अपनी पत्नी के नितंभो की दरार खोले खड़ा था, उसकी गान्ड के फटे हुवे छेद को जाँचने में ऋषभ की सहयता कर रहा था. माना की उस पति ने चिकित्सक ही हैसियत से ऋषभ को अपनी स्वीकृति प्रदान की थी मगर था तो वो चिकित्सक कोई पर-पुरुष ही.
"ऐसे कैसे कोई भी दवाई लिख दूँ मा ? मैं कोई जादूगर नही! तुम फिकर मत करो, इलाज के बाद भी मेरे दिल में तुम्हारे लिए ज़रा सा भी अंतर नही आएगा. तुम मेरी मा थी हो और हमेशा रहोगी" ऋषभ ने शांत स्वर में कहा. वह भरकस प्रयास कर रहा था कि निरंतर बढ़ती ही जा रही उसकी कामोत्तेजना से समन्धित कोई भी संकेत ममता के मन में संदेह पैदा ना कर दे और जिसके प्रभाव से वह पहले से कहीं ज़्यादा टूट जाए.
"अंतर! कैसा अंतर रेशू ?" ममता ने अधीरतापूर्वक पुछा, आख़िर वह भी तो जानने की प्रबल इक्शुक थी कि इलाज के पश्चात उन दोनो के आपसी संबंधो में कितना और किस तरह से बदलाव आएगा मगर बदलाव आएगा ज़रूर, यह अटल सत्य था.
"तुम्हे मेरा सामना करने में शर्मिंदगी महसूस हो, या तुम खुद से ही घ्रणा करने लग जाओ. मैं इस बात से पूर्न सहमत हूँ कि अगले कुच्छ दिनो तक तुम्हारे दिल ओ दिमाग़ में अच्छे या बुरे ख़यालात आते रहेंगे मगर साथ ही यकीन भी है कि मेरी साहसी मा उन विषम परिस्थितियो से घबराएगी नही बल्कि डॅट कर उनका मुक़ाबला करेगी" ऋषभ अपनी मा के क्षीण होते मनोबल को बढ़ाते हुवे बोला.
"मैं इतनी साहसी नही रेशू कि उन हलातो से लड़ सकूँ" ममता ने बचाव किया.
ऋषभ: "तुम्हे बनना पड़ेगा मा, कोई और उपाय नही है"
ममता: "एक उपाय है"
ऋषभ: "क्या ?"
ममता: "मुझे मेरे हाल पर छोड़ दे"
ऋषभ: "नही छोड़ सकता, मेरा मात्र-धर्म और पेशा मुझे इसकी स्वीकिर्ति नही देता"
ममता: "तू समझता क्यों नही रेशू! मैं तेरी मा हूँ, खुद कैसे तुझे अपनी योनि दिखा सकती हूँ ?"
ऋषभ: "तुम फिर से भूल रही हो मा कि मैं एक सेक्शोलॉजिस्ट हूँ, तुम्हारी जानकारी के लिए बताना ज़रूरी है कि दिन भर में मुझे कयि औरतो के गुप्ताँग देखने पड़ते है"
ममता: "मैं कोई आम औरत होती या तू मेरा बेटा ना होता तो अभी के अभी नग्न हो जाती"
ऋषभ: "मैने पहले भी कहा था कि इस कुर्सी पर बैठने के बाद मैं तुम्हारा बेटा नही सिर्फ़ और सिर्फ़ एक यौन चिकित्सक रह गया हूँ और तुम भी मेरी मा नही मेरी मरीज़ की हैसियत से मेरे सामने बैठी हुवी हो"
ममता: "होने और समझने में बहुत अंतर है रेशू! मान, अगर तेरे पापा को पता चला तो वे क्या सोचेंगे. मेरी क्या इज़्ज़त रह जाएगी ?"
"मान-मर्यादा, सम्मान, संकोच, शरम, लिहाज, पीड़ा! क्या यह सारे नियम सिर्फ़ तुम्हारे लिए ही हैं मा, पापा का कहीं कोई कर्तव्य नही ? बरसो तुम अपने शरीर के जिस अंग से उन्हें काम-सुख पहुँचाती रही हो, उन्हें पता भी है कि उनकी पत्नी का वो संवेदनशील अंग आज सड़ चूकने की कगार पर है ? पापा को तुम्हारी फिक़र होती या तुम्हारी असहनीय ताकीफ़ से उनका नाता होता तो अभी तुम इतनी शर्मिंदगी का एहसास नही कर रही होती. खेर यदि तुम नही चाहती तो मैं तुम्हे और अधिक विवश नही करूँगा" ऋषभ के शब्दो ने ममता का हृदय चीर कर रख दिया.
ममता: "क्लिनिक का मेन गेट खुला है ना ?"
"हां खुला है" ममता के घर लौटने के कयास में ऋषभ क्रोधित स्वर में बोला मगर उसकी मा के अगले थरथराते अल्फ़ाज़ मानो उसके कानो से हो कर सीधे उसके फड़फड़ाते हुवे लंड से टकरा जाते हैं.
"तो फिर कॅबिन का गेट बंद करना होगा रेशू! मैं! मैं किसी गैर के सामने अपने कपड़े नही उतार पाउन्गि"
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