RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
माँ का चैकअप--11
"वो रेशू! उफफफ्फ़ मैं! रेशू! ओह्ह्ह्ह .. मैने जान कर नही किया बेटे" ममता लड़खड़ा गयी. अपने पुत्र के नाखूनो की असहाय घिसन को अपने चूत्डो की दरार के भीतर सह पाना उसके लिए बेहद कठिन था, उसके बदन का सारा भार उसके पंजो पर एकत्रित होता जा रहा था और उसके ऐसा करते ही ऋषभ उसकी गान्ड के छेद को आसानीपूर्वक खोज निकालता है. चूतड़ो की लगभग पूरी दरार ही घुंघराली झांतो से भरी हुवी थी जो पसीने से तरबतर काफ़ी गीलेपन का एहसास भी करवा रही थी.
"अब कह दो कि तुम मेरी वजह से बहेक गयी थी. मैं इतना भी नीच इंसान नही कि अपनी सग़ी मा को ही चोदने का अनैतिक ख्वाब देखने लगूँ, मैने अब तक केवल अपनी चिकित्सक पद्धति का प्रयोग किया है और अपने मरीज़ो से सच उगलवाने के लिए मैं अक्सर ऐसे नाटक करता रहता हूँ" ऋषभ ने अपने बाएँ हाथ की सबसे लंबी उंगली को बेदर्दी से अपनी मा की गान्ड के बेहद कसे छेद के भीतर ठेलते हुवे कहा और अपने दाएँ हाथ की प्रथम उंगली को उसकी चूत की चिपचिपी, अत्यंत सूजी फांको के मध्य फेरने लगता है मानो उसकी चिपकी फांकों के चीरे की असल संकीरणता का जायज़ा ले रहा हो.
ममता का चेहरा अपने पुत्र के कथन को सुनकर खुद ब खुद शामिंदगी से नीचे झुक जाता है, वह सोच भी नही सकती थी कि अब तक ऋषभ सिर्फ़ उसकी भावनाओ से खिलवाड़ कर रहा था. उसे इस कदर लज्जा का अनुभव होने लगा था कि यह धरातल फॅट पड़े और अत्यंत तुरंत वह उसके भीतर समा जाए मगर फिलहाल तो लज्जा से कहीं अधिक उसे अपने पुत्र की मोटी उंगली अपनी गान्ड के छेद के भीतर घुसने का प्रयास करती हुवी महसूस हो रही थी और साथ ही साथ उसकी अन्य उंगली को अपनी चूत के अति-संवेदनशील मुहाने पर तीव्रता से रेगते प्रतीत कर वह कुच्छ भी सोचने-समझने की स्थिति से बिल्कुल महरूम हो चुकी थी.
"अच्छा लग रहा है ना मा ?" ऋषभ ने पुनः उसे झकझोरा. अथक प्रयासो के उपरांत वह अपनी आधी उंगली को अपनी मा की गान्ड के गुदाज़ छेद के भीतर पहुँचा देने में कामयाब हो गया था और अपने बाएँ हाथ के नाखूनो की मदद से बारी-बारी उसकी चूत के दोनो होंठो की ऊपरी सतह को भी कुरेद रहा था.
"ह ... नही! मज़ा नही आ रहा रेशू" ममता ने हड़बड़ाते हुवे पहले हां में अपनी स्वीकृति देनी चाही मगर जल्द ही अपनी भूल में सुधार कर ना में इनकार कर देती है.
"मैने तो अच्छे या बुरे की राय माँगी थी लेकिन तुम तो मज़े के बारे में बता रही हो मा" ऋषभ अपनी उंगली को उसकी गान्ड के छेद के भीतर हौले-हौले हिलाते हुवे बोला.
"ओह्ह्ह मज़ा नही! दर्द .. दर्द हो रहा है रेशू" ममता के कथन में लाचारी की प्रचूरता व्याप्त थी. आज तक उसने अपनी गान्ड के छेद को मात्र मल-विसर्जन हेतु ही प्रयोग में लिया था, रत्ती भर की वास्तु भी उसके भीतर नही पहुँच पाई थी और तभी ऋषभ की उंगली की मोटाई उसकी परेशानी का असल सबब बनती जा रही थी, लग रहा था जैसे उसके गुदा-द्वार का तंग माँस स्वतः ही सिकुड़ते हुवे बाकी की बची उंगली को भी अपने भीतर खींच रहा हो, उंगली को अत्यंत बलपूर्वक चूस रहा हो.
"दर्द ?" ऋषभ ने प्रश्नवाचक लहजे में पुछा.
"अब कहाँ हो रहा है दर्द तुम्हे ? बताओ मुझे" उसने खुल पर सवाल किया.
"पीछे रेशू! उफफफ्फ़ ... बहुत दर्द हो रहा है" ममता ने कराहते हुवे बताया.
"पीछे कहाँ मा ?" ऋषभ ने मुस्कुरा कर पुछा.
"बस पिछे हो रहा है" कहते हुवे ममता अपना चेहरा अपने पुत्र की बलिष्ठ छाति में छुपा लेती है. अगर ऋषभ हक़ीक़त में उसकी भावनाओ से खिलवाड़ नही रहा होता तो अवश्य ही वह बिना किसी संकोच के उसके समक्ष अपनी गान्ड के छेद का उल्लेख कर देती परंतु अब अत्यधिक शरम से जूझती वह खुद को कोस रही थी कि क्यों उसने अपने इलाज के लिए अपने ही सगे पुत्र का चुनाव किया, इससे तो कहीं बेहतर होता यदि वह किसी महिला यौन चिकित्सक के पास चली जाती. उसके पैर लड़खड़ाने लगे थे, काफ़ी देर से एक ही स्थिति में अपने पैरो के पंजो के बल खड़ी वह अत्यंत शर्मीली मा सहारे की आशा से अपने छरहरे बदन का सारा भार अपने पुत्र की विकराल काया पर डाल चुकी थी.
"अब तो बता दो मा! अब तो तुमने अपना सुंदर मुखड़ा भी छुपा लिया है" ऋषभ ने अपनी मा की चूत के चिपके चीरे को अपनी दो उंगलियों की सहायता से फैलाते हुवे कहा.
"आह रेशू! मेरी .. मेरी गान्ड में! ओह्ह्ह्ह तेरी उंगली बेटे" ममता बिलबिला उठी. उसका पुत्र कहीं अपनी उंगलियों को उसकी कामरस छल्काति चूत के भीतर भी ना पेल दे इसके पहले ही उसने अपने हाथ को तीव्रता से नीचे ले जा कर ऋषभ के बाएँ हाथ को थाम लिया जो निश्चित ही कुच्छ विलंभ के उपरांत अपनी लंबी उंगलियों से उसकी चूत की अन्द्रूनि गहराई की नपाई करना आरंभ कर देने वाला था.
"लो बाहर निकाल ली! बहुत कसा हुवा छेद है तुम्हारी गान्ड का" उसने अपने उसी हाथ से अपनी मा के खुले बालो को मुट्ठी में जाकड़ कर कहा जिससे वह उसकी गान्ड के छेद को चौड़ा करने का प्रयत्न कर रहा था. तत-पश्चात उसकी निराशाजनक अवस्था को बढ़ने के उद्देश्य से उसने अपना अगला कथन पूरा किया, जिसके कानो में गूंजते ही ममता के गुदा-द्वार में सिहरन की कपकपि सी ल़हेर दौड़ पड़ती है.
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