RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
"यह संभव नही रेशू! तू अकारण ही अपने पापा से नाराज़ है जब कि वो तुझसे बहुत प्यार करते हैं" ममता अपने पुत्र की उदासीनता को समाप्त करने के उद्देश्य से उसके बलप्रयोग को नज़रअंदाज़ करने का भ्रम पैदा करती है. उसने जानबूझ कर अपने सर को ढीला छोड़ दिया. उसके मन-प्रेम और नैतिक व्यवहार! भावना और कर्तव्य! ममता और यथार्थता के द्वन्द्व में उसकी हार हो चुकी थी. उसे क्या करना चाहिए और क्या नही, वह असमंजस की स्थिति में फस गयी थी. यदि वह समाज के नियमो का उल्लंघन करती तो उसका बचा हुवा संपूर्ण जीवन ख़तरे में पड़ सकता था, माना ऋषभ के साथ की वजह से उसकी सुरक्षा का प्रश्न इतना गंभीर मुद्दा नही था मगर पाप और पुण्य को अचानक से नकार देना भी उचित नही कहलाता. जल्द ही सकारत्मत्का से हट कर उसका भटकाव नकारात्मकता से होने लगता है और तत-पश्चात ही वह अत्यंत शर्मीली मा अपने पुत्र के खड़े लंड की रगड़ अपने चेहरे पर झेलने हेतु बेहद व्याकुल हो उठती है.
"क्या मैं झूठ कह रहा हूँ मा ? क्या पापा ने तुम्हे मुझसे जुदा नही किया ? क्या मुझे अपनी मा के प्रेम की कोई आवश्यकता नही ?" ऋषभ ने एक साथ अनेक सवालो के नुकीले बान छोड़ दिए. अपनी मा के स्वच्छ और कोमल व्यक्तित्व से वह भली भाँति परिचित हो चुका था और जब-जब उसकी पीड़ा दाई व्यथाओ से ममता का सामना हुवा था हर बार वह उसके पूर्ण नियंत्रण में आ गयी थी.
"मातृत्व! स्त्री का श्रेष्ठतम आभूषण. प्रसव-वेदना की भट्टी में तप कर बाहर निकला हुवा सोना, प्रकृति का सबसे शुभ वरदान" विचार-मग्न ममता की तंद्रा को भंग करता हवा का एक मादक झोंका उसके नथुओ में समा गया. उसकी चूत का कामरस जो कुच्छ हद कर उसने ही ऋषभ के पॅंट पर चुपडा था, जिसे सूंघने के उपरांत वह किल्कारी मार उठी. उसके गाल पर गहरा गोल गढ़हा पड़ गया और जिसके परिणामस्वरूप अत्यंत तुरंत वह अपने पुत्र के विशाल लंड से चिपक सी जाती है.
"बोल कितना प्यार चाहिए तुझे! आज मैं तेरी उपेक्षा को सदा-सदा के लिए समाप्त कर देना चाहती हूँ" ममता ने रोमांच से भरते हुवे कहा और बिना किसी अतिरिक्त झिझक के वह स्वयं के कामरस को चाटना शुरू कर देती है. इस एहसास के तहत की उसकी जीभ ऋषभ के लंड के फूले सुपाडे पर फुदक रही है, उसके मर्दाने रस को चाट रही है. अति-शीघ्र अपने होश ओ हवास खोते हुए हक़ीक़त में वह मा अपने पुत्र के लंड को जहाँ-तहाँ चूमने भिड़ जाती है.
"ओह्ह्ह्ह मा! रुक जाओ .. वरना! वरना मैं ...." ऋषभ कराहते हुवे चीखा, अपने कथन को अधूरा छोड़ कर वह ममता के सर को बलपूर्वक अपने लंड पर दबा देता है. हलाकी मन की उपज और वास्तविकता में कोई समानता नही होती परंतु इतना काफ़ी था कि यदि वह भी नंगा होता तो अवश्य ही अपना लंड अपनी सग़ी मा के सुंदर मुख से चुसवाने में सफल हो गया होता.
"मत रोक मुझे रेशू! एक मा को अपने बेटे से प्यार करने से रोकने का तुझे कोई हक़ नही" इससे पहले कि मदहोश ममता के हाथ अपने पुत्र के विशाल लंड का स्पर्श कर पाते ऋषभ ने फॉरन उसके सर को मुक्त कर दिया और तत-पश्चात बिजली की गति से उसे मेज़ से नीचे उतार लेता है.
"मेरे माथे को चूमो! मेरे गालो को चूमो! मेरी हथेली को चूमो मगर यह क्या मा ? तुम्हे अंदाज़ा भी है कि तुम अपने बेटे के किस अंग को चूम रही थी ?" आवेश से ऐसा कहते हुवे ऋषभ अपनी पॅंट में उभरे तंबू को देखने लगा, जिस पर उसकी मा की चूत के कामरस के साथ अब उसकी लार भी अपनी छाप छोड़ चुकी थी.
"देखो! तुमने क्या किया ?" वह पुनः गरजा.
"इसी लिए तो कह रही हूँ रेशू कि मुझे घर चले जाने दे. मैं घोर पापिन हो चुकी हूँ! मुझे समझ नही आ रहा कि मैं क्यों बहकती जा रही हूँ ? क्यों मैं अपने ही सगे बेटे के संग इतने घ्रानित कार्यों को लगातार करने से बाज़ नही आ रही ?" ममता के रुन्वासे स्वर फूट पड़े परंतु उसकी कामग्नी ज्यों की ज्यों बरकरार थी. उसकी वासनमयी निगाहों का जुड़ाव अपने पुत्र के विशाल तंबू से इस कदर जुड़ चुका था कि जानते हुवे भी कि वह कितनी निर्लज्ज हरक़त कर रही है, उसकी निर्लज्जता का कोई अंत शेष ना था.
"इतने जल्द मैं तुम्हे हारने नही दूँगा मा! मुझे खुद पर विश्वास है. मैं बाकी बची जाँचो को ज़रूर पूरा करूँगा, चाहे तुम्हारा मन कितना ही क्यों ना भटक जाए" अपनी मा की नम आँखों को पोंछते हुवे ऋषभ ने उसका साहस बढ़ाया और इसके उपरांत उसके कंधो की मदद से उसे पलटा कर खड़ा कर देता है.
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