RE: kamukta औरत का सबसे मंहगा गहना
मुझे रोते रोते अहसास हुआ कि मैं सुधीर के सीने से बहुत देर से चिपकी हुई हूँ.. तो मैं अपने आंसू पौंछते हुए सुधीर से अलग हुई.. और सॉरी कहकर घर आ गई।
सुधीर ने सॉरी का जवाब दिया या नहीं मुझे नहीं पता..
मैं तो अभी भी सैम की यादों में खोई हुई थी.. पर जब मैं अपने इस हाल से उबर गई तब मुझे अहसास हुआ कि सुधीर चाहता तो मुझे उस समय कहीं भी टच कर सकता था, सहला सकता था या और कुछ कर सकता था, पर उसने मुझे छुआ तक नहीं.. अब मैं उसकी इस शराफत की कायल होने लगी।
अगले दिन सुधीर मुझे स्कूल में नजर नहीं आया, मैंने इस बात को साधारण बात समझी.. लेकिन वह एक हफ्ते स्कूल नहीं आया.. तब मैंने उसके एक खास दोस्त को पेड़ के नीचे पार्किंग में देखा और उससे पूछा- सुधीर स्कूल क्यों नहीं आ रहा है?
तब उसने मुझे एक चिट्ठी थमा दी और कहा- सुधीर ने तुम्हें देने को कहा था।
मैंने कहा- तो तुमने मुझे पहले क्यों नहीं दे दी?
तो उसने कहा- सुधीर ने कहा था कि जब स्वाति खुद आकर मेरे बारे में पूछे तभी यह चिट्ठी उसे देना, और जब तक ना पूछे इसे अपने पास ही रखना..
वो चला गया और मैं वहीं खड़ी रही.. मेरी आँखों से आँसू की मोटी धार बह निकली, मैंने ऐसे ही रोते हुए उसकी चिट्ठी व्याकुलता के साथ खोली, मुझे अक्षर धुंधले नजर आ रहे थे क्योंकि आंसुओं की वजह से मुझे साफ नजर नहीं आ रहा था, फिर भी मैं पढ़ने की कोशिश करने लगी.. और चिट्ठी को सीने से लगाकर रोने लगी.. मुझे नहीं पता कि मैं क्यों रो रही थी.. मुझे किसी ने कुछ कहा भी नहीं था, ना ही सुधीर से कोई बात हुई थी।
मुझे आज समझ आता है वही सच्चा प्यार था.. जो बिना ‘आई लव यू’ कहे बिना इजहार के और बिना सेक्स के हो गया था।
मैं मन ही मन सुधीर को चाहने लगी थी.. पर सुधीर के मन में क्या है, यह मैं नहीं जानती थी।
अब मैंने अपना दुपट्टा उठाया आँसू पौंछे और चिट्ठी पढ़ने लगी.. चिट्ठी की पहली लाईन पढ़ कर ही मैं चौंक उठी.. डीयर स्वाति तुम रोना मत.. तुम बहुत भावुक हो इसलिए मुझे यह बात चिट्ठी के सहारे करनी पड़ रही है।
मैं यह सोच कर कि कोई मुझे इतने अच्छे से समझता है मैं और जोरों से रो पड़ी!
आगे लिखा था- तुम चिट्ठी पढ़ रही हो इसका मतलब तुमने मेरी तलाश की, मेरे लिए तुम्हारे दिल में इतनी ही जगह काफी है.. मैं तुम्हें बहुत प्यार करने लगा हूँ.. हाँ मैं रेशमा से भी बहुत प्यार करता था, पर वो छोड़ कर चली गई, उसके जाने के बाद मैं टूट सा गया था पर तुम्हारे साथ वक्त बिता कर मन को हल्का लगता था, पर मैं तुमसे निश्छल दोस्ती निभा रहा था, मेरा यकीन करो मैं खुद नहीं जानता कि मेरे मन में कब तुमसे प्रेम करने के विचार ने घर कर लिया.. मैं तुम्हारी सादगी, सौंदर्य और विचारों का पहले से कायल था पर तुम मेरी प्रियसी बनो, यह मैंने ख्वाबों में भी नहीं सोचा था, अब अगर मैं तुम्हारे सामने या पास रहा तो कभी भी तुमसे इजहार कर बैठूंगा और तुम मुझे मौके का फायदा उठाने वाला लड़का समझ बैठोगी, इसलिए मैं अपने मामा के यहाँ आ गया हूँ और मैं यहीं पढ़ाई करुंगा, अब मेरी जिन्दगी में कोई नहीं आयेगी.. तुमने मुझे अच्छा दोस्त समझा पर मेरे मन में तुम्हारे लिए पाप उमड़ा उसके लिए माफी चाहता हूँ। तुम अपनी जिंदगी में हमेशा खुश रहना, तुम्हारा सुधीर!
मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई.. क्या लड़के भी इतने ईमानदार हो सकते हैं.. क्या सैम भी मुझे इतना ही समझता रहा होगा.. क्या यह मुझसे सच में प्यार करता है, मैंने सच्चा प्यार खो दिया या पा लिया…
यही सब सोच-सोच कर मेरा बुरा हाल था..
मैं घर आई और बिना खाए पिये अपने रूम में चली गई और सुधीर को ‘अपने दिल की हालत कैसे बताऊँ’ यह सोचने लगी।
फिर मैंने सोचा कि छुट्टियों में तो सुधीर घर आयेगा ही… तब मैं उससे सारी बात कर लूँगी।
लेकिन कब आयेगा, क्या बात होगी… यह कुछ पता ना था, और सबसे बड़ी बात तो यह थी कि इतना लंबा इंतजार मैं कैसे कर पाऊँगी और कहीं सुधीर की जिन्दगी में कोई आ गई तो मेरा क्या होगा?
फिर मैंने अपने आपको समझाते हुए सच्चा प्यार पाने के लिए कठोर तप करने का निर्णय लिया और उसके खत का बिना जवाब दिये मैं स्वयं विरह अग्नि में जलने लगी, मैं चाहती तो उसका कान्टेक्ट नं. आसानी से पा सकती थी पर मैंने जान बूझ कर दूरी बनाये रखी। हालांकि मेरे तन की जरूरत ने कई बार मुझे कमजोर किया पर मैं उंगली केला गाजर या मोमबत्ती घुसा कर अपने आप को शांत कर लेती थी।
मेरी दो ही महीने की तपस्या ने रंग दिखाया और सुधीर से मुलाकात के ठीक 65वें दिन से चार दिनों की तीज पर्व की छुट्टी में घर आ रहा था।
मैंने उसके दोस्त को पहले ही कह रखा था कि उसके आने की खबर मुझे जरूर देना, उसने मुझे तीन दिन पहले ही सूचना दे दी..ये तीन दिन ‘मैं उससे कैसे मिलूँगी, क्या कहूँगी, कहाँ मिलूँगी’ सोचने में निकल गये।
मैं बहुत खुश थी, मैंने अपना ड्रेस कई बार बदला होगा, खाने पीने का ख्याल ही नहीं रहता था और मैं बार बार तैयार होती और आईने को देखती थी।
इस बार छुट्टियों में किमी दीदी और भैया नहीं आने वाले थे, तो मेरी हरकत पर गौर करने वाली मेरी मम्मी बची और वो भी तीज मनाने अपने मायके चली गई थी, उन्होंने मुझे भी चलने को कहा पर मैंने मना कर दिया क्योंकि मुझे तो सुधीर से मिलना था।
आखिर मेरी जिन्दगी का सबसे हंसीन पल आने ही वाला है।
मैंने पापा को खाना खिला कर आफिस के लिए विदा किया और बहुत सोच कर काले रंग के शर्ट के साथ सफेद लैगिंग्स और सफेद दुपट्टा डाल लिया और अपना बैग और चाबी उठा कर मैं सुधीर के घर जाने के लिए घर में लॉक करने ही वाली थी कि मुझे अपने सामने सुधीर खड़ा दिखा।
मुझे लगा कि मैं स्वपन देख रही हूँ और मैं बुत बनी स्तब्ध खड़ी रही।
सुधीर पास आया, दरवाजा खोला और मेरा हाथ पकड़ कर घर के अंदर ले गया, मैं तो काठ की गुड़िया हो गई थी, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था..
तभी सुधीर ने मुझे आवाज दी और कंधे से पकड़ कर हिलाया, मैं चौंकी और रो पड़ी और अचानक ही मैंने बहुत जोर का तमाचा सुधीर को मारा…
और मारती ही रही…
मैं (स्वाति) तैयार होकर सुधीर से मिलने जाने ही वाली थी कि सुधीर मेरे घर पर ही आ गया, मैं स्तब्ध रह गई, फ़िर मैंने सुधीर को मारना चालू कर दिया।
सुधीर ने मेरे हाथों को पकड़ लिया और खुद को मारते हुए कहने लगा- और मारो स्वाति, मैं इसी लायक हूँ!
तब मैं रुक गई और उसको सीने से लगा लिया, सच में ये सुकून आज से पहले कभी नहीं मिला था.. सुधीर ने भी मुझे बाहों में जकड़ लिया और ‘आई लव यू स्वाति… आई लव यू स्वाति…’ की रट लगा दी और मेरे मस्तक गालों और होंठों पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी।
हम दोनों बदहवास से थे.. दोनों ही रो रहे थे..
सिसकते हुए सुधीर ने कहा- स्वाति मैंने तुम्हें बहुत रुलाया है, मुझे और मारो..
मैंने कहा- हाँ सुधीर, रुलाया तो है पर तुम्हें मारुंगी तो चोट मुझे लगेगी.. इसलिए तुम्हारी सजा यह है कि अब तुम मुझे छोड़ कर कहीं मत जाना..
तो उसने हाँ कहते हुये मुझे और जोरो से जकड़ लिया।
ऐसे ही खड़े खड़े बहुत देर हो गई, तभी हवा चलने से दरवाजा तेजी से हिला और टकराया तब मुझे दरवाजा खुला होने का अहसास हुआ, और मैं उसे बंद कर आई, फिर सुधीर का हाथ पकड़ के अपने कमरे की ओर बढ़ी और कहा- आओ सुधीर अंदर बैठते हैं, अभी घर पर कोई नहीं है..
सुधीर ने कहा- मैं जानता हूँ!
मुझे आश्चर्य हुआ कि मेरे घर के बारे में इसे कैसे पता.. मेरा मुंह आश्चर्य से खुला रहा।
तब उसने कहा- स्वाति, मैंने अपने दोस्तों से तुम्हारी खबर रखने को कहा था, जब मैं यहाँ आने वाला था, तब मैंने पहले ही सारी जानकारी ले ली थी, उन्हीं लोगों से मुझे यह भी पता चला था कि तुम भी मुझे चाहती हो, तब मुझे यहाँ से जाने का बहुत अफसोस हुआ पर मैं बार-बार स्कूल नहीं बदल सकता था, मुझे बाद में अहसास हुआ कि मैंने तुमसे दूर जाकर खुद को भी तकलीफ दी और तुम्हें भी। लेकिन तुमने मुझसे फोन पर बात क्यों नहीं की, तुम्हें तो मेरा नम्बर कहीं भी मिल जाता।
मैंने उसकी बात सुनकर कहा- नम्बर तो मिल जाता पर मैं चाहती थी कि हम दोनों दूर ही रहें ताकि वक्त के साथ एक दूसरे के प्रति प्यार की तड़प कम है या ज्यादा… यह जान सकें! सुधीर मैं तुमसे जीवन भर का साथ चाहती हूँ!
कहते हुए मैं फिर सुधीर से लिपट गई.. सुधीर ने अपने होंठों से ‘मैं भी…’ शब्द निकाले और मेरे वाटर कलर लिपस्टिक लगे गुलाबी होंठों से सटा दिया.. मैं भी उसका प्रतिउत्तर देने लगी।
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