RE: Kamukta Story बदला
गतान्क से आगे...
"मुझे कल ही पता चला है...क्या?..अच्छा....मगर ये कोई ऐसी-वैसी बात
नही.मैं यहा इन्हे बर्बाद करने आया हू.प्रसून तो पागल है मगर अगर सहाय की
मौत के बाद उसकी बीवी आ गयी तो फिर देविका के साथ-2 उसकी बहू से भी हमे
निबटना होगा....हां..जल्दी कुच्छ सोचो..हां-2 मैं ठीक हू.नही,मैं नही
बौख्लाउन्गा..बस इसका रास्ता मिल जाए..ओके!",इंदर ने मोबाइल बंद किया &
अपने फ़्लास्क से शराब के 2 घूँट भरे....सही कहा था उसने ..बदले की आग
उसकी दिमाग़ को जला के रख देगी 1 दिन.सहाय की बर्बादी के साथ ही काम
थोड़े ही ख़त्म था!..और ऐसी मुश्किले तो आती रहेंगी मगर इसका मतलब ये तो
नही की वो बौखलाने लगे.उसने 2 घूँट और भर के फ़्लास्क को अपनी अलमारी मे
बंद किया & अपने क्वॉर्टर से बाहर निकल गया.
वो नीचे के क्वॉर्टर मे जा रहा था जहा उसके इशारो पे नाचने वाली कठपुतली
उसका इंतेज़ार कर रही थी.
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देविका की आँखो से नींद गायब थी.उसने अपने पति से उसकी तबीयत के बारे मे
चिंता जताई थी तो उन्होने कहा था की ऐसी कोई बात नही है लेकिन उसके इसरार
पे वो 3 दिन बाद उसके साथ अपने डॉक्टर के पास जाने को तैय्यार हो गये
थे.देविका का दिल आज थोडा घबरा रहा था.बार-2 वो बस यही सोचे जा रही थी की
अगर अभी सुरेन ने उसका साथ छ्चोड़ दिया तो वो ये सब अकेले कैसे
संभालेगी.दुनिया की नज़रो मे वो 1 बहुत ही हिम्मती & आत्म विश्वास से भरी
औरत थी मगर थी तो आख़िर वो हाड़-माँस की इंसान ही ना!..सुरेन के बाद तो
वो बिल्कुल अकेली रह जाएगी.प्रसून को तो खुद सहारे की ज़रूरत थी वो उसे
भला क्या सहारा देगा!..शिवा....क्या उसपे भरोसा किया जा सकता था?उसकी
आँखो मे उसे सच्ची मोहब्बत दिखती थी ....हाँ बस 1 वही था जिसके सहारे वो
इस सब को संभाल सकती थी.
..& वीरेन?उसके दिमाग़ ने उस से सवाल किया तो उसे खुद पे बड़ा गुस्सा आया
& उस से भी कही ज़्यादा अपने देवर पे.उसने 1 तरह से सब कुच्छ सुरेन के
हवाले ही कर दिया था मगर फिर भी उसे आने की क्या ज़रूरत थी?!रहता वही
विदेश मे..!इधर उसने सुरेन जी को प्यार के लिए परेशान करना भी छ्चोड़
दिया था,वो चाहती थी की 1 बार डॉक्टर से बात कर ली जाए उसके बाद वो
निश्चिंत हो उनकी बाहो मे झूलेगी.2 दीनो से शिवा भी सवेरे उसकी प्यास नही
बुझा पाया था.
उसके ख़यालो से परेशान हो उसके दिल ने उसे अपने पति की बाहो मे पनाह लेने
को कहा मगर उसके दिमाग ने ऐसा करने से मना किया.अभी शिवा के पास जाना भी
बहुत ख़तरनाक हो सकता था.मन मार कर उसने अपनी नाइटी को उपर किया & अपना
नाज़ुक सा हाथ अपनी चूत से लगा दिया.वो जानती थी की 1 बार झड़ने के बाद
नींद उसे अपने आगोश मे ले लेगी & ये परेशान करने वाले ख़याल उसका पीछा
छ्चोड़ देंगे.
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आज मौसम बहुत ख़ुसनूमा था.ठंडी हवा के झोंके कामिनी के घने,काले,लंबे
बालो को बार-2 उसके चेहरे पे ला रहे थे & वो उन्हे बार-2 हटा के सामने
रखी वीरेन की बनाई दूसरी पैंटिंग देखे जा रही थी.वीरेन सचमुच कमाल का
कलाकार था.तस्वीर मे वो 1 गाओं की लड़की के रूप मे अपनी हवेली की खिड़की
पे खड़ी अपने प्रेमी का इंतेज़ार करती नज़र आ रही थी.उसके चेहरे के भाव
वीरेन ने किस खूबसूरती से दिखाए थे.
उसने नज़रे उठा के उसकी ओर देखा तो वीरेन ने अपनी दिलकश मुस्कान बिखेर
दी.जवाब मे कामिनी भी मुस्कुराए बिना ना रह सकी,"कैसी लगी?"
"मैं क्या बोलू..",कामिनी अपना सर हिला रही थी,"..आप-आप कैसे कर लेते हैं
ये....दिल के भाव चेहरे पो ले आना केवल रंगो के जादू से."
"आपके जैसी खूबसूरत & दिलचस्प चेहरे वाली लड़की मॉडेल हो तो ये काम बड़ी
आसानी से हो जाता है.",वीरेन हंसा.
"दिलचस्प?",कामिनी के होंठो पे मुस्कान थी & माथे पे शिकन.
"हां..",वीरेन ने उसकी आँखो मे आँखे डाल दी,"..ये चेहरा है ही ऐसा.इस्पे
सारे भाव सॉफ-2 आते हैं क्यूकी चेहरे की मालकिन के दिल मे ईमानदारी भरी
हुई है.हम सब जैसे-2 बड़े होते हैं कामिनी & अपने बचपन से दूर जाते हैं
वैसे-2 दुनियादारी की परते हमारे चेहरे पे चढ़ती जाती हैं & हमारा असली
चेहरा कही खो सा जाता है.ये पारट सिर्फ़ हम अपने बेहद करीबी लोगो के लिए
हटते हैं & काई बार तो उनके लिए भी नही..",वीरेन की मुस्कान गायब हो गयी
थी & वो खिड़की से बाहर देख रहा था.
कामिनी को लगा की उसका जिस्म यही था मगर वो कही दूर चला गया
था,"..उपरवाले की रहमत से आप इस से दूर हैं & यही बात आपकी खूबसूरती मे 4
चाँद लगाती है."
कामिनी की ज़िंदगी मे अब तक जितने भी मर्द आए थे सब उसकी तारीफ करते थे
मगर किसी का भी अंदाज़ ऐसा अनोखा नही था.वीरेन की तारीफ से ना जाने क्यू
कामिनी के चेहरे पे शर्म की लाली आ जाती.उसने फिर से बात बदलने के लिए कल
वाला ही सवाल दोहराया,"अब आज मुझे कैसे खड़ा होना है?",उसने थोड़ा शरारत
से पुचछा.
"बिल्कुल नंगी."
कामिनी के चेहरे की मुस्कुराहट गायब हो गयी & चेहरा सख़्त हो गया,"मुझे
ऐसा मज़ाक पसंद नही!",वीरेन से ऐसी बात की उम्मीद नही थी उसे.
"मैं मज़ाक नही कर रहा.",कामिनी का पारा अब बिल्कुल चढ़ गया.उसने अपन
हॅंडबॅग उठाया & वहा से जाने लगी.उसे भी वीरेन पसंद आने लगा था & मुमकिन
था की वो उसका आशिक़ भी बन जाता मगर ऐसी बेहूदा बात!
"रुकिये कामिनी.",वीरेन ने उसका हाथ पकड़ लिया,"..मुझे शायद आपसे इस
तरहसे नही कहना चाहिए था."
"जो कहना था आप कह चुके.अब मेरा हाथ छ्चोड़िए.",कामिनी की आवाज़ बड़ी तल्ख़ थी.
"प्लीज़..".वीरेन उसके सामने खड़ा हो गया,"..पहले मेरी बात सुन लीजिए,फिर
भी आप जाना चाहेंगी तो मैं नही रोकुंगा.",उसने कामिनी का हाथ छ्चोड़
दिया.कामिनी ने कुच्छ कहा तो नही मगर वही खड़ी रही.वीरेन समझ गया की वो
उसकी बात सुनने को तैय्यार है.
"कामिनी,मैं सारे इंसानी जज़्बात आपकी पूर्कशिष शख्सियत के ज़रिए कॅन्वस
पे उतारना चाहता हू.इस बार मैं आपको बेताब दिखाना चाहता हू & बेताबी की
शिद्दत तो सबसे ज़्यादा प्यार मे ही होती है.मैं चाहता हू की यही
बेताबी,ये बेसब्री जो 1 इंसान उसके जिसे की वो दिलोजान से चाहता है ना
होने पे महसूस करता है वो अपने बिल्कुल खालिस अंदाज़ मे आपके चेहरे पे
नज़र आए.."
"..इंसान जब किसी को हद से ज़्यादा चाहता है तो वो उसके जिस्म के साथ
अपने जिस्म को जोड़ उस से जुड़ने की कोशिश करता हुआ अपने प्यार का इज़हार
करता है..",कामिनी का गुस्सा काफूर हो चुका था.उसे ऐसा लग रहा था मानो
कोई प्रोफेसर,जोकि अपने विषय का उस्ताद है,उस से बात कर रहा हो..सही कह
रहा था वो..जिस्म की बेताबी से बड़ी कोई बेताबी नही & ये बेताबी बिना
नंगे हुए कैसे दिखाई जा सकती थी,"..& जब वो जुड़ने का एहसास उसे बार-2
नही मिलता तो वो बेचैन हो जाता है..यही बेचैनी मुझे दिखानी है.",उसकी
आँखो मे अपनी कला के लिए समर्पण झलक रहा था नकी किसी हवस से पैदा हुआ
पागलपन की वहशियात.
"..और आप नंगी ज़रूर होंगी मगर मेरी निगाहे फिर भी आपको नही देख पाएँगी."
"कैसे?",कामिनी के मुँह से बेसखता निकल गया.उसके सवाल ने वीरेन को भी ये
सॉफ कर दिया की उसका गुस्सा गायब हो चुका है.
मैं कमरे की इस दीवार से..",उसने अपने बाए हाथ से बाई दीवार की ओर इशारा
किया,"..उस दीवार तक..",अब हाथ दाई दीवार को दिखा रहा था,"..1 कपड़ा
बन्धूंगा.इस कपड़े की चौड़ाई इतनी होगी की आपके सीने से लेके जाँघो के
उपरी हिस्से तक ये आपको ढँक लेगा.आप इस कपड़े से अपना जिस्म इस तरह से
सटा के खड़ी होंगी की आपके जिस्म का आकर मुझे उस कपड़े से दिखाई पड़े."
कामिनी कुच्छ बोलती इस से पहले ही वीरेन ने आगे कहा,"कामिनी,ये परदा उन
मुश्किलो,उन दीवारो को दर्शाता है जोकि 2 प्रेमी हमेशा अपने रास्ते मे
महसूस करते हैं.आपको उस से सात के ऐसे खड़ा होना है मानो आप उस दीवार को
तोड़ देना चाहती हो."
"अगर अभी भी आपको ऐतराज़ है तो मैं ये पैंटिंग नही बनाउन्गा."
"कहा है वो परदा?",कामिनी का सवाल सुनते ही वीरेन हल्के से मुस्कुराया &
उसके करीब आया,"शुक्रिया..",उसने उसके दोनो हाथ अपने हाथो मे ले उसकी
आँखो मे झाँका,"..शुक्रिया,कामिनी.",उस वक़्त कामिनी को उसकी आँखो मे
केवल शुक्रगुज़ारी नही खुद के लिए चाहत भी नज़र आई.
बाथरूम स्टूडियो की दूसरी तरफ था & वाहा अपने कपड़े उतार कर कामिनी ने
बातरोब पहना & वापस आई.वीरेन ने 1 सॅटिन के मरून कपड़े को कमरे के
बीचोबीच बाँध दिया था.कामिनी उस कपड़े को उठा उसके दूसरे तरफ गयी & फिर
वीरेन की ओर मुँह कर खड़ी हो गयी.कपड़े के इस तरफ खड़ा वीरेन अपना ईज़ल
ठीक कर रहा था,"ठीक है.आप तैय्यार हैं,कामिनी?"
"हां.",कामिनी को जब वीरेन ने अपनी सोच के बारे मे बताया था तो उसने उसकी
बात को पूरी तरह से समझ लिया था.बदन की तन्हाई & उसकी बेताबी को उस से
बेहतर शायद ही कोई और समझता भी हो!..& इसलिए वो वीरेन के लिए नंगी पोज़
करने को तैय्यार हो गयी थी.वीरेन के पर्दे वाली बात ने उसे चौंका दिया
था.बहुत आसान होता की 1 औरत को नंगे तड़प्ते दिखाना.अब ये परदा उसके
जिस्म के सबसे हसीन अंगो को च्छूपा लेगा & देखने वाला बस उसके बदन की
कल्पना कर सकेगा & उसके चेहरे पे च्छाई बेताबी की शिद्दत उसे भी महसूस
होगी.
कामिनी अपना रोब उतार पर्दे की तरफ बढ़ी & उस से सॅट गयी,"हा..अब अपने
हाथ उपर उठा के पाने सर के बालो से खेलिए..थोड़ा और आगे आइए..थोड़ा
और..हां..बस ठीक है..",सामने खड़ी कामिनी को देख वीरेन का दिल ज़ोरो से
धड़कने लगा.कामिनी पर्दे से बिल्कुल सॅट गयी थी & उसकी छातियो का आकर सॉफ
दिख रहा था.परदा उसकी चूत के थोड़ा नीचे तक आया था & उपर,जहा से उसकी
छातियो का उभार शुरू होता था,वाहा तक था.इस तरह से उसकी भारी,गोरी जंघे &
सुडोल टाँगे जिन्हे कामिनी ने बिल्कुल सटा के ऐसे रखा था मानो उसकी चूत
को दबा के उसकी जंघे शांत कर रही हो.अपने हाथ उपर ले जा उसने लंबे बालो
मे फिरा के थोड़ा फैलाया तो उसके सीने के उभारो का हल्का सा कटाव वीरेन
को दिखा.
मगर जिस बात ने वीरेन के हलक को सूखा दिया था वो था कामिनी के चेहरे का
भाव.उसकी आँखे बंद थी लेकिन चेहरे पे प्रेमी के साथ की चाहत & उसके बदन
की तड़प से पैदा हुआ एहसास जोकि औरत के चेहरे को और नशीला बना देता है
फैला हुआ था.वीरेन का दिल उसके काबू से बाहर जा रहा था.उसका दिल कर रहा
था की अभी इस हसीना को अपनी बाहो मे भर उसकी सारी बेचैनी दूर कर दे &
अपनी भी प्यास बुझा ले मगर फिर उसका ध्यान ईज़ल पे लगे कोरे काग़ज़ पे
गया & उसके हाथ उसपे चलने लगे.
ठीक उसी तेज़ हवा के साथ वक़्त बारिश शुरू हो गयी.कामिनी पर्दे के जिस
तरफ खड़ी थी कमरे की बड़ी खिड़की भी उसी तरफ थी & इस वक़्त उसके शीशे
खुले हुए थे.वाहा से आती हवा कामिनी की ज़ुल्फो से खेलने लगी.कामिनी
उन्हे सावरते हुए खड़ी थी & उसका हुस्न अब और भी पूर्कशिष लग रहा
था.वीरेन उसके चेहरे को देखे जा रहा था & उसी मे कब उसने अपनी टी-शर्ट पे
रंग गिरा लिया उसे पता भी ना चला.
कामिनी के चेहरे के भाव अभी बिल्कुल सही थे & उन्हे वो जल्द से जल्द नकल
कर अपने कॅन्वस पे उतरना चाहता था.1 पल के लिए उसने ब्रश किनारे किया &
अपनी शर्ट निकाल दी.कामिनी ने भी ठीक उसी वक़्त आँखे खोली तो सामने वीरेन
के नंगे बालो भरे सीने को पाया.उसे षत्रुजीत सिंग की दिखाई तस्वीर याद आ
गयी.वीरेन का बदन अभी भी गतिला था & उसकी बाहे कितनी मज़बूत थी..कैसा हो
अगर वो इन मज़बूत बाजुओ मे उसके बदन को कस ले?..ख़याल ने उसकी चूत मे आग
लगा दी.गतान्क से आगे...
"मुझे कल ही पता चला है...क्या?..अच्छा....मगर ये कोई ऐसी-वैसी बात
नही.मैं यहा इन्हे बर्बाद करने आया हू.प्रसून तो पागल है मगर अगर सहाय की
मौत के बाद उसकी बीवी आ गयी तो फिर देविका के साथ-2 उसकी बहू से भी हमे
निबटना होगा....हां..जल्दी कुच्छ सोचो..हां-2 मैं ठीक हू.नही,मैं नही
बौख्लाउन्गा..बस इसका रास्ता मिल जाए..ओके!",इंदर ने मोबाइल बंद किया &
अपने फ़्लास्क से शराब के 2 घूँट भरे....सही कहा था उसने ..बदले की आग
उसकी दिमाग़ को जला के रख देगी 1 दिन.सहाय की बर्बादी के साथ ही काम
थोड़े ही ख़त्म था!..और ऐसी मुश्किले तो आती रहेंगी मगर इसका मतलब ये तो
नही की वो बौखलाने लगे.उसने 2 घूँट और भर के फ़्लास्क को अपनी अलमारी मे
बंद किया & अपने क्वॉर्टर से बाहर निकल गया.
वो नीचे के क्वॉर्टर मे जा रहा था जहा उसके इशारो पे नाचने वाली कठपुतली
उसका इंतेज़ार कर रही थी.
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देविका की आँखो से नींद गायब थी.उसने अपने पति से उसकी तबीयत के बारे मे
चिंता जताई थी तो उन्होने कहा था की ऐसी कोई बात नही है लेकिन उसके इसरार
पे वो 3 दिन बाद उसके साथ अपने डॉक्टर के पास जाने को तैय्यार हो गये
थे.देविका का दिल आज थोडा घबरा रहा था.बार-2 वो बस यही सोचे जा रही थी की
अगर अभी सुरेन ने उसका साथ छ्चोड़ दिया तो वो ये सब अकेले कैसे
संभालेगी.दुनिया की नज़रो मे वो 1 बहुत ही हिम्मती & आत्म विश्वास से भरी
औरत थी मगर थी तो आख़िर वो हाड़-माँस की इंसान ही ना!..सुरेन के बाद तो
वो बिल्कुल अकेली रह जाएगी.प्रसून को तो खुद सहारे की ज़रूरत थी वो उसे
भला क्या सहारा देगा!..शिवा....क्या उसपे भरोसा किया जा सकता था?उसकी
आँखो मे उसे सच्ची मोहब्बत दिखती थी ....हाँ बस 1 वही था जिसके सहारे वो
इस सब को संभाल सकती थी.
..& वीरेन?उसके दिमाग़ ने उस से सवाल किया तो उसे खुद पे बड़ा गुस्सा आया
& उस से भी कही ज़्यादा अपने देवर पे.उसने 1 तरह से सब कुच्छ सुरेन के
हवाले ही कर दिया था मगर फिर भी उसे आने की क्या ज़रूरत थी?!रहता वही
विदेश मे..!इधर उसने सुरेन जी को प्यार के लिए परेशान करना भी छ्चोड़
दिया था,वो चाहती थी की 1 बार डॉक्टर से बात कर ली जाए उसके बाद वो
निश्चिंत हो उनकी बाहो मे झूलेगी.2 दीनो से शिवा भी सवेरे उसकी प्यास नही
बुझा पाया था.
उसके ख़यालो से परेशान हो उसके दिल ने उसे अपने पति की बाहो मे पनाह लेने
को कहा मगर उसके दिमाग ने ऐसा करने से मना किया.अभी शिवा के पास जाना भी
बहुत ख़तरनाक हो सकता था.मन मार कर उसने अपनी नाइटी को उपर किया & अपना
नाज़ुक सा हाथ अपनी चूत से लगा दिया.वो जानती थी की 1 बार झड़ने के बाद
नींद उसे अपने आगोश मे ले लेगी & ये परेशान करने वाले ख़याल उसका पीछा
छ्चोड़ देंगे.
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आज मौसम बहुत ख़ुसनूमा था.ठंडी हवा के झोंके कामिनी के घने,काले,लंबे
बालो को बार-2 उसके चेहरे पे ला रहे थे & वो उन्हे बार-2 हटा के सामने
रखी वीरेन की बनाई दूसरी पैंटिंग देखे जा रही थी.वीरेन सचमुच कमाल का
कलाकार था.तस्वीर मे वो 1 गाओं की लड़की के रूप मे अपनी हवेली की खिड़की
पे खड़ी अपने प्रेमी का इंतेज़ार करती नज़र आ रही थी.उसके चेहरे के भाव
वीरेन ने किस खूबसूरती से दिखाए थे.
उसने नज़रे उठा के उसकी ओर देखा तो वीरेन ने अपनी दिलकश मुस्कान बिखेर
दी.जवाब मे कामिनी भी मुस्कुराए बिना ना रह सकी,"कैसी लगी?"
"मैं क्या बोलू..",कामिनी अपना सर हिला रही थी,"..आप-आप कैसे कर लेते हैं
ये....दिल के भाव चेहरे पो ले आना केवल रंगो के जादू से."
"आपके जैसी खूबसूरत & दिलचस्प चेहरे वाली लड़की मॉडेल हो तो ये काम बड़ी
आसानी से हो जाता है.",वीरेन हंसा.
"दिलचस्प?",कामिनी के होंठो पे मुस्कान थी & माथे पे शिकन.
"हां..",वीरेन ने उसकी आँखो मे आँखे डाल दी,"..ये चेहरा है ही ऐसा.इस्पे
सारे भाव सॉफ-2 आते हैं क्यूकी चेहरे की मालकिन के दिल मे ईमानदारी भरी
हुई है.हम सब जैसे-2 बड़े होते हैं कामिनी & अपने बचपन से दूर जाते हैं
वैसे-2 दुनियादारी की परते हमारे चेहरे पे चढ़ती जाती हैं & हमारा असली
चेहरा कही खो सा जाता है.ये पारट सिर्फ़ हम अपने बेहद करीबी लोगो के लिए
हटते हैं & काई बार तो उनके लिए भी नही..",वीरेन की मुस्कान गायब हो गयी
थी & वो खिड़की से बाहर देख रहा था.
कामिनी को लगा की उसका जिस्म यही था मगर वो कही दूर चला गया
था,"..उपरवाले की रहमत से आप इस से दूर हैं & यही बात आपकी खूबसूरती मे 4
चाँद लगाती है."
कामिनी की ज़िंदगी मे अब तक जितने भी मर्द आए थे सब उसकी तारीफ करते थे
मगर किसी का भी अंदाज़ ऐसा अनोखा नही था.वीरेन की तारीफ से ना जाने क्यू
कामिनी के चेहरे पे शर्म की लाली आ जाती.उसने फिर से बात बदलने के लिए कल
वाला ही सवाल दोहराया,"अब आज मुझे कैसे खड़ा होना है?",उसने थोड़ा शरारत
से पुचछा.
"बिल्कुल नंगी."
कामिनी के चेहरे की मुस्कुराहट गायब हो गयी & चेहरा सख़्त हो गया,"मुझे
ऐसा मज़ाक पसंद नही!",वीरेन से ऐसी बात की उम्मीद नही थी उसे.
"मैं मज़ाक नही कर रहा.",कामिनी का पारा अब बिल्कुल चढ़ गया.उसने अपन
हॅंडबॅग उठाया & वहा से जाने लगी.उसे भी वीरेन पसंद आने लगा था & मुमकिन
था की वो उसका आशिक़ भी बन जाता मगर ऐसी बेहूदा बात!
"रुकिये कामिनी.",वीरेन ने उसका हाथ पकड़ लिया,"..मुझे शायद आपसे इस
तरहसे नही कहना चाहिए था."
"जो कहना था आप कह चुके.अब मेरा हाथ छ्चोड़िए.",कामिनी की आवाज़ बड़ी तल्ख़ थी.
"प्लीज़..".वीरेन उसके सामने खड़ा हो गया,"..पहले मेरी बात सुन लीजिए,फिर
भी आप जाना चाहेंगी तो मैं नही रोकुंगा.",उसने कामिनी का हाथ छ्चोड़
दिया.कामिनी ने कुच्छ कहा तो नही मगर वही खड़ी रही.वीरेन समझ गया की वो
उसकी बात सुनने को तैय्यार है.
"कामिनी,मैं सारे इंसानी जज़्बात आपकी पूर्कशिष शख्सियत के ज़रिए कॅन्वस
पे उतारना चाहता हू.इस बार मैं आपको बेताब दिखाना चाहता हू & बेताबी की
शिद्दत तो सबसे ज़्यादा प्यार मे ही होती है.मैं चाहता हू की यही
बेताबी,ये बेसब्री जो 1 इंसान उसके जिसे की वो दिलोजान से चाहता है ना
होने पे महसूस करता है वो अपने बिल्कुल खालिस अंदाज़ मे आपके चेहरे पे
नज़र आए.."
"..इंसान जब किसी को हद से ज़्यादा चाहता है तो वो उसके जिस्म के साथ
अपने जिस्म को जोड़ उस से जुड़ने की कोशिश करता हुआ अपने प्यार का इज़हार
करता है..",कामिनी का गुस्सा काफूर हो चुका था.उसे ऐसा लग रहा था मानो
कोई प्रोफेसर,जोकि अपने विषय का उस्ताद है,उस से बात कर रहा हो..सही कह
रहा था वो..जिस्म की बेताबी से बड़ी कोई बेताबी नही & ये बेताबी बिना
नंगे हुए कैसे दिखाई जा सकती थी,"..& जब वो जुड़ने का एहसास उसे बार-2
नही मिलता तो वो बेचैन हो जाता है..यही बेचैनी मुझे दिखानी है.",उसकी
आँखो मे अपनी कला के लिए समर्पण झलक रहा था नकी किसी हवस से पैदा हुआ
पागलपन की वहशियात.
"..और आप नंगी ज़रूर होंगी मगर मेरी निगाहे फिर भी आपको नही देख पाएँगी."
"कैसे?",कामिनी के मुँह से बेसखता निकल गया.उसके सवाल ने वीरेन को भी ये
सॉफ कर दिया की उसका गुस्सा गायब हो चुका है.
मैं कमरे की इस दीवार से..",उसने अपने बाए हाथ से बाई दीवार की ओर इशारा
किया,"..उस दीवार तक..",अब हाथ दाई दीवार को दिखा रहा था,"..1 कपड़ा
बन्धूंगा.इस कपड़े की चौड़ाई इतनी होगी की आपके सीने से लेके जाँघो के
उपरी हिस्से तक ये आपको ढँक लेगा.आप इस कपड़े से अपना जिस्म इस तरह से
सटा के खड़ी होंगी की आपके जिस्म का आकर मुझे उस कपड़े से दिखाई पड़े."
कामिनी कुच्छ बोलती इस से पहले ही वीरेन ने आगे कहा,"कामिनी,ये परदा उन
मुश्किलो,उन दीवारो को दर्शाता है जोकि 2 प्रेमी हमेशा अपने रास्ते मे
महसूस करते हैं.आपको उस से सात के ऐसे खड़ा होना है मानो आप उस दीवार को
तोड़ देना चाहती हो."
"अगर अभी भी आपको ऐतराज़ है तो मैं ये पैंटिंग नही बनाउन्गा."
"कहा है वो परदा?",कामिनी का सवाल सुनते ही वीरेन हल्के से मुस्कुराया &
उसके करीब आया,"शुक्रिया..",उसने उसके दोनो हाथ अपने हाथो मे ले उसकी
आँखो मे झाँका,"..शुक्रिया,कामिनी.",उस वक़्त कामिनी को उसकी आँखो मे
केवल शुक्रगुज़ारी नही खुद के लिए चाहत भी नज़र आई.
बाथरूम स्टूडियो की दूसरी तरफ था & वाहा अपने कपड़े उतार कर कामिनी ने
बातरोब पहना & वापस आई.वीरेन ने 1 सॅटिन के मरून कपड़े को कमरे के
बीचोबीच बाँध दिया था.कामिनी उस कपड़े को उठा उसके दूसरे तरफ गयी & फिर
वीरेन की ओर मुँह कर खड़ी हो गयी.कपड़े के इस तरफ खड़ा वीरेन अपना ईज़ल
ठीक कर रहा था,"ठीक है.आप तैय्यार हैं,कामिनी?"
"हां.",कामिनी को जब वीरेन ने अपनी सोच के बारे मे बताया था तो उसने उसकी
बात को पूरी तरह से समझ लिया था.बदन की तन्हाई & उसकी बेताबी को उस से
बेहतर शायद ही कोई और समझता भी हो!..& इसलिए वो वीरेन के लिए नंगी पोज़
करने को तैय्यार हो गयी थी.वीरेन के पर्दे वाली बात ने उसे चौंका दिया
था.बहुत आसान होता की 1 औरत को नंगे तड़प्ते दिखाना.अब ये परदा उसके
जिस्म के सबसे हसीन अंगो को च्छूपा लेगा & देखने वाला बस उसके बदन की
कल्पना कर सकेगा & उसके चेहरे पे च्छाई बेताबी की शिद्दत उसे भी महसूस
होगी.
कामिनी अपना रोब उतार पर्दे की तरफ बढ़ी & उस से सॅट गयी,"हा..अब अपने
हाथ उपर उठा के पाने सर के बालो से खेलिए..थोड़ा और आगे आइए..थोड़ा
और..हां..बस ठीक है..",सामने खड़ी कामिनी को देख वीरेन का दिल ज़ोरो से
धड़कने लगा.कामिनी पर्दे से बिल्कुल सॅट गयी थी & उसकी छातियो का आकर सॉफ
दिख रहा था.परदा उसकी चूत के थोड़ा नीचे तक आया था & उपर,जहा से उसकी
छातियो का उभार शुरू होता था,वाहा तक था.इस तरह से उसकी भारी,गोरी जंघे &
सुडोल टाँगे जिन्हे कामिनी ने बिल्कुल सटा के ऐसे रखा था मानो उसकी चूत
को दबा के उसकी जंघे शांत कर रही हो.अपने हाथ उपर ले जा उसने लंबे बालो
मे फिरा के थोड़ा फैलाया तो उसके सीने के उभारो का हल्का सा कटाव वीरेन
को दिखा.
मगर जिस बात ने वीरेन के हलक को सूखा दिया था वो था कामिनी के चेहरे का
भाव.उसकी आँखे बंद थी लेकिन चेहरे पे प्रेमी के साथ की चाहत & उसके बदन
की तड़प से पैदा हुआ एहसास जोकि औरत के चेहरे को और नशीला बना देता है
फैला हुआ था.वीरेन का दिल उसके काबू से बाहर जा रहा था.उसका दिल कर रहा
था की अभी इस हसीना को अपनी बाहो मे भर उसकी सारी बेचैनी दूर कर दे &
अपनी भी प्यास बुझा ले मगर फिर उसका ध्यान ईज़ल पे लगे कोरे काग़ज़ पे
गया & उसके हाथ उसपे चलने लगे.
ठीक उसी तेज़ हवा के साथ वक़्त बारिश शुरू हो गयी.कामिनी पर्दे के जिस
तरफ खड़ी थी कमरे की बड़ी खिड़की भी उसी तरफ थी & इस वक़्त उसके शीशे
खुले हुए थे.वाहा से आती हवा कामिनी की ज़ुल्फो से खेलने लगी.कामिनी
उन्हे सावरते हुए खड़ी थी & उसका हुस्न अब और भी पूर्कशिष लग रहा
था.वीरेन उसके चेहरे को देखे जा रहा था & उसी मे कब उसने अपनी टी-शर्ट पे
रंग गिरा लिया उसे पता भी ना चला.
कामिनी के चेहरे के भाव अभी बिल्कुल सही थे & उन्हे वो जल्द से जल्द नकल
कर अपने कॅन्वस पे उतरना चाहता था.1 पल के लिए उसने ब्रश किनारे किया &
अपनी शर्ट निकाल दी.कामिनी ने भी ठीक उसी वक़्त आँखे खोली तो सामने वीरेन
के नंगे बालो भरे सीने को पाया.उसे षत्रुजीत सिंग की दिखाई तस्वीर याद आ
गयी.वीरेन का बदन अभी भी गतिला था & उसकी बाहे कितनी मज़बूत थी..कैसा हो
अगर वो इन मज़बूत बाजुओ मे उसके बदन को कस ले?..ख़याल ने उसकी चूत मे आग
लगा दी.
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