RE: Kamukta Story बदला
गतान्क से आगे...
रोमा ने अभी तक पूरा एस्टेट नही देखा था & इसके लिए देविका ने तय किया था
कि शनिवार को वो उसे प्रसून के साथ एस्टेट घुमाने ले जाएगी लेकिन उसका
इरादा बस बेटे-बहू को ले जाने का नही था उस शख्स को भी साथ ले जाने को था
जिसने उसके दिल मे जगह बना ली थी-इंदर.रात उसके नाम से चूत मे उंगली करने
के बाद देविका नेउसके बारे मे सोचा तो पाया था कि इंदर कोई ग़ज़ब का हसीन
नौजवान नही था मगर कोई बदशक्ल इंसान भी नही था & उसका जिस्म भी गाथा हुआ
था.देविका की सोई हस्रतो को उसकी शराफ़त ने जगा दिया था & उसे लगने लगा
था की शिवा के दिए ज़ख़्मो पे इंदर ही मरहम लगाएगा.
"इंदर.ज़रा मेरे कॅबिन मे आना.",इनर्ट्र्कोम से उसने उसे बुलाया.
"यस मॅ'म.",इंदर उसके कॅबिन मे दाखिल हुआ.
"इंदर,इस शनिवार मैं प्रसून & रोमा को एस्टेट दिखाने ले जा रही हू.मैं
चाहती हू की तुम भी हमारे साथ आओ."
"पर..-"
"पर-वर कुच्छ नही.तुम्हे कही जाना है?"
"नही."
"कोई काम है?"
"नही,मगर..-"
तो फिर 3 बजे के बाद घर मे ही बैठे रहोगे."
"जी."
"तो उस से अच्छा है हमारे साथ चलो."
"मॅ'म."
"इंदर,ऑर्डर नही दे रही गुज़ारिश कर रही हू,प्लीज़.",1 पल को देविका के
चेहरे पे उसके दिल के असली भाव आ गये थे जिन्हे इंदर की पैनी निगाहो ने
पढ़ लिया था.
"मॅ'म,आप तो शर्मिंदा कर रही हैं.मैं ज़रूर चलूँगा."
"थॅंक्स,इंदर."
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
"रोमा..ये बिस्कट भी रख लो & ये फ्रूटी भी..ये वाली बॉटल तुम्हारी है &
ये मेरी.",ओपन टॉप जीप की पिच्छली सीट पे बैठ रही रोमा को प्रसून अपना
समान पकड़ा रहा था.जीप बंगल के अहाते मे खड़ी थी.
"और मेरी फ्रूटी प्रसून?",इंदर ने प्रसून को छेड़ा.सब तैय्यार होके आ गये
थे मगर देविका अभी तक नही आई थी.
"वो भी है,इंदर भाय्या.आपकी इस आइस-बॉक्स मे है & आपके लिए चिप्स भी लाया
हू.",प्रसून की मासूम बातो से रोमा & इंदर हंस पड़े.पूरे परिवार मे ये
अकेला था जिस से चाह के भी इंदर नफ़रत नही कर पाया था मगर इसके बावजूद
उसके मन मे ज़रा भी शुबहा नही था की जब वक़्त आएगा तो वो प्रसून को मोहरा
बनाने मे ज़रा भी नही हिचकिचाएगा.
"सॉरी,मेरी वजह से सबको इंतेज़ार करना पड़ा ना.",बंगल से बाहर निकलती
कमीज़ के आस्तीन के बटन लगाती देविका को देख इंदर का मुँह खुला का खुला
रह गया.उसने देविका को हमेशा सारी मे देखा था.आज उसने क्रीम कलर की कसी
शर्ट & बलुए रंग की कसी पॅंट जिन्हे राइडिंग ब्रीचास कहा जाता है पहनी
थी.ये ब्रीचास घुड़सवारी के वक्त पहनी जाती हैं.उन ब्रीचास के उपर से
उसने भूरे रंग के चमड़े के बेहतरीन घुटनो तक के राइडिंग बूट्स पहने थे.
इस कसे लिबास मे देविका के बदन के सभी कटाव सॉफ झलक रहे थे.उसकी चाल मे 1
कुद्रती लोच था जिस से उसकी कमर क़ातिलाना अंदाज़ मे मटकती थी.इस वक़्त
जब वो तेज़ी से चलते हुए इंदर के पास आई & फिर जीप की अगली सीट पे बैठी
तो इंदर उसकी कसी गंद की दिल ही दिल मे तारीफ किए बिना नही रह सका.
"इंदर."
"जी."
"बुरा ना मानो तो आज तुम ही जीप चलाओ."
"ज़रूर मॅ'म.इसमे बुरा मानने की क्या बात है!",इंदर सीट पे बैठ गया &
स्टियरिंग संभाल ली.जीप तेज़ी से बंगल के ड्राइववे से निकल एस्टेट के
खेतो की ओर निकल पड़ी.देविका & इंदर आगे बैठे थे & रोमा & प्रसून
पीछे.देविका & प्रसून रोमा को हर जगह के बारे मे बता रहे थे.
सब्ज़ियो के खेतो के पास से गुज़रते हुए वाहा काम कर रहे आदमियो ने उन्हे
सलाम किया & उनमे से 1 ने प्रसून को ताज़े खीरे पकड़ाए.सभी लोग
ताज़े,रसीले खीरो के ज़ायके का मज़ा उठाते हुए आगे बढ़ गये.एस्टेट के
छ्होटे से जंगल के रास्ते पे दौड़ती जीप अब वाहा की सबसे खूबसूरत जगह की
ओर बढ़ रही थी.
रास्ता थोड़ा उबड़-खाबड़ था & झटका लगता तो देविका की बाँह इंदर से च्छू
जाती.देविका को बहुत अच्छा लग रहा था & उसका दिल कर रहा था की ये असर्त
कभी ख़त्म ही ना हो मगर ये तो नामुमकिन बात थी & कोई 10 मिनिट बाद वो लोग
उसी झील के पास पहुँच गये जहा कुच्छ दिन पहले प्रसून की शादी के वक़्त
इंदर ने कामिनी & वीरेन को 1 दूसरे को चूमते देखा था.
झील पे पहुँचते ही प्रसून जीप से उतर के पानी की तरफ भागा,उसके पीछे-2
उसकी बीवी भी गयी,"अब देखना ये पानी पे पत्थर तराएएगा.",देविका अपने बेटे
को छपते पत्थर ढूंढते देख मुस्कुराइ.
"ये तो बड़ा मज़ेदार खेल है.मैं भी जाता हू.",इंदर ड्राइविंग सीट से उतरा
& उन दोनो के पास पहुँच गया.तीनो पानी पे चपते पत्थर फेंक के ये देखने
लगे की किसका पत्थर देर तक पानी पे उच्छलता है.देविका जीप से उतर उसके
बॉनेट पे बैठ गयी.इंदर ने अपनी कमीज़ की आस्तीने मोड़ ली थी & उसके
मज़बूत बाज़ू सॉफ दिख रहे थे.देविका के दिल मे कसक सी उठी....आख़िर कितना
इंतेज़ार करना पड़ेगा उसे उन बाजुओ मे क़ैद होने के लिए!
इंदर के करीब आने के ख़याल ने उसे फिर से उसके बेवफा आशिक़ की याद दिला
दी & उसके चेहरे पे उदासी की परच्छाई आ गयी..कही वो इंदर के करीब आके
वोही ग़लती तो नही दोहराएगी?....शिवा भी उसका दीवाना था & इतना उसे यकीन
था की उसने शुरू मे उसे सच्चे दिल से चाहा था मगर ना जाने कब वो चाहत
पैसो के आगे फीकी पड़ गयी....कही इंदर भी उसे आगे जाके धोखा तो नही
देगा?....लेकिन इंदर को तो उसका ख़याल ही नही है..शिवा उसकी खूबसूरती का
कायल था,ये बात देविका को उसके इश्क़ के इज़हार के पहले से पता थी,उसने
कयि बार उसे खुद को देखते पाया था मगर इंदर के लिए वो बस उसकी मालकिन थी
& कुच्छ नही....इस बार तो बात उल्टी थी,वो इंदर के करीब आना चाहती
थी....वैसे भी उसे इंदर से इश्क़ नही हुआ था....वो उसकी ईमानदारी &
अच्छाई की कायल थी मगर इश्क़...नही!
इश्क़,प्यार किताबी बाते होती हैं & वही अच्छी लगती हैं.ये बात तो वो
ज़िंदगी मे बहुत पहले समझ चुकी थी.अभी भी इंदर उसे अच्छा लगा था मगर उसके
दिल से ज़्यादा उसके बदन को उस गथिले नौजवान की ज़रूरत थी.उसे नही पता था
की कल क्या होने वाला है..हो सकता है इंदर जैसा आज है वैसा ही कल भी रहे
& हो सकता है वो बदल जाए जैसे शिवा बदला था....मगर वो ये ख़तरा उठाने को
तैय्यार थी.इंदर के करीब उसे जाना ही था आगे क्या होगा वो संभाल
लेगी..इतनी बेवकूफ़ नही थी वो की बार-2 1 ही ग़लती करे.इस बार वो अपने
आशिक़ पे आँख मूंद के भरोसा नही करेगी मगर पहले वो उसका आशिक़ बने तो!
तीनो वापस आ रहे थे,"अब कहा चलना है,मॅ'म?"
"अब टीले पे चलते हैं,इंदर भाय्या.",देयका के बोलने से पहले ही प्रसून बोल उठा.
"हां,वही चलते है नही तो अंधेरा हो जाएगा.",चारो 1 बार फिर जीप मे बैठ
गये & 1 बार फिर देविका की बाँह इंदर की बाँह से च्छू उसे मस्त करने
लगी.एस्टेट मे जो सबसे ऊँची जगह थी उसे ही टीला कहते थे.उसके उपर जाने का
रास्ता सुरेन जी ने ही बनवाया था.वाहा कुच्छ नही था बस कुच्छ पेड़ो के
सिवा मगर वाहा से पूरी एस्टेट दिखती थी & वो नज़ारा बड़ा ही दिलकश होता
था.जब प्रसून छ्होटा था तो सुरेन जी बीवी & बेटे को अक्सर वाहा पिक्निक
मनाने ले जाते थे.
1 बार प्रसून साथ गये नौकर के साथ टीले से नीचे उतर आस-पास के पौधो से
फूल इकठ्ठा करने लगा था.उस रोज़ देविका ने स्कर्ट पहनी थी & कुछ ज़्यादा
ही खूबसूरत लग रही थी.प्रसून के जाते ही सुरेन जी को मौका मिल गया &
उन्होने अपनी हसीन बीवी को गोद मे उठाया & पेड़ो के झुर्मुट के बीच ले
जाके उसे चोद दिया था.देविका को आज भी वो दोपहर याद थी.जीप टीले के उपर
खड़ी थी & उसके बेटे-बहू जीप से नीचे उतर के वाहा से एस्टेट को देख रहे
थे.
देविका पति के साथ बिताए हसीन लम्हो की याद मे खोई जीप की पिच्छली सीट पे
आ गयी थी & खड़ी हो जीप की रेल पकड़ के बेटे-बहू को देख रही थी.उस रोज़
सुरेन जी कुछ ज़्यादा ही जोश मे थे & देविका भी उनके लंड से 2-3 बार झाड़
गयी थी.उन मस्त पॅलो की याद ने देविका के जिस्म मे आग लगा दी & उसने
बेचैन हो अपनी भारी जंघे आपस मे हल्के से रगडी & अपना ध्यान हटाने के लिए
बेटे-बहू के पास जाने की गरज से जीप से उतरने को घूमी & वाहा बैठे इंदर
के घुटनो से टकरा के गिरने लगी.
उसे पता ही नही चला था की इंदर कब आके बैठ गया था.इंदर ने उसे गिरने से
रोका & अपनी बाहो मे संभाला & वो संभालते हुए उसकी गोद मे गिर गयी.इंदर
की बाई बाँह उसकी कमर के गिर्द थी & दाई उसकी बाई बाँह पे.दोनो के चेहरे
1 दूसरे के बिल्कुल करीब थे & दोनो 1 दूसरे की सांसो को महसूस कर रहे
थे.इंदर की नज़रे देविका के चेहरे से नीचे हुई & उसकी शर्ट के गले मे से
झलक रहे उसके क्लीवेज पे गयी & फिर वापस उसके चेहरे पे जिसपे देविका के
जिस्म की प्यास सॉफ दिख रही थी.देविका को अपनी गंद के नीचे दबा इंदर का
कुलबुलाता लंड महसूस हो रहा था....कितना करीब था उसका लंड उसकी प्यासी
चूत के..अफ!देविका को आज यकीन हो गया था की इंदर का लंड बहुत बड़ा
है.उसका दिल बेताब हो उठा था उस लंड से खेलने के लिए मगर अभी उसका वक़्त
नही था.
|