RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
हां, उसने अभी धक्के मारने नही शुरू किए थे. उसे जब महुसुस हो गया कि मैं एक बार फिर रस की सरिता मे गोते लगा रही हू, उसने मेरे नितंबो के नीचे कुशन को, मेरी उठी हुई टाँगो को, फिर से अड्जस्ट किया. (मुझे मम्मी की गाली, जो उन्होने बार बार दी थी, 'जितने चौड़ा कर सकती हो उससे ज़्यादा चौड़ा, जितने उँचा कर सकती हो उससे ज़्यादा उँचा' और फिर जिम मे मेरी ट्रेनर ने जो जिमनेस्ट की तरह टांगे फैलाना सिखाया था..) मेने अपने हिप्स थोड़ा और उठाए और दर्द के बावजूद जांघे खूब कस के, पूरी ताक़त से फैलाई. अब उसने फिर बहुत हल्के हल्के थोड़ा सा बाहर निकाल के 'उसे'अंदर बहुत प्यार से घुसेड़ा. उसके हाथ मेरी कमर पे थे.
कुछ देर धीमे धीमे करने के बाद, उसका हाथ मेरे सीने पे जा पहुँचा और उसे उसने दबाने, सहलाना चालू कर दिया. थोड़ी देर मे उसने घोड़े को एड दे दी और फिर तो कभी मेरे दोनो किशोर रसीले उरोज पकड़ के, कभी कमर, कभी नित्म्बो को, उसके धक्को की रफ़्तार बढ़ने लगी. पर मुझे जो पागल कर रही थी वो उसके होंठ और उंगलिया थी, जो कभी होंठो का रस लेती, कभी मेरे रस कलशो का और जब अचानक उसने मेरे 'मदन द्वार' के उपर उस 'तिलस्मि बटन' को छू लिया (जिसका घूँघट मेरी डॉक्टर भाभी ने उठा दिया था) मेरे पूरे बदन मे तरंगे दौड़ने लगी. एक नये सवार की तरह उसने एड तो लगा दी थी, पर लगाम खींचनी उसे आती नही थी. थोड़ी ही देर मे मेरी सारी देह काँप रही थी और मैं उत्तेजना के चरम शिखर पे पहुँच के शिथिल हो गयी.
उस दौरान वो रुका नही, हां धीमा ज़रूर हो गया. लेकिन मेरे शरीर के ढीले पड़ने के साथ वो रुक गया, बिना कुछ भी किए. थोड़ी देर मे जैसे कोई ठंडे हो रहे अंगारो को फिर से धौन्कने शुरू करे उसी तरह, पहले उसने मेरे पॅल्को पे, फिर होंठो पे और जब वह मेरी गोलाईयो के तले से होते हुए 'शिखरो' तक पहुँचा, वो उसके स्वागत मे खड़े हो गये थे. फिर तो 'उन्हे' अपने होंठो से चूम कर, सहला कर. होंठो के बीच भींच कर और उसकी शैतान उंगलियाँ भी जो अब मेरी देह के कटाव और गोलाईयो से अंजान नही थी, कभी मेरे सीने को छूटी, दबाती, सहलाती और कभी 'नीचे' भी. अब तो उसे मेरी 'यौवन गुहा' के उपर के उस चमत्कारी बटन का भी पता चल गया था. थोड़े ही देर मे उसने फिर से अंदर बाहर ..करना शुरू कर दिया था. दर्द अभी भी हो रहा था, खास तौर पे जब वह कस के.. मैं सिहर भी उठती लेकिन अब सुख का अहसास ज़्यादा था थोड़ी ही देर मे उसने फिर 'घोड़े' को एड लगा दी और अब हम दोनो मे से कोई रुकना नही चाह रहा था. वह मुझे बाहो मे कस के भींच लेता, दबा देता, अंग अंग को चूम लेता और मैं भी बिना कुछ बोले इस नये सुख को, बूँद बूँद सोख रही थी. अबकी जब मदन तरंगे मेरी देह मे दौड़ने लगी तो..वो मेरे साथ था. उसके धक्को की रफ़्तार तेज हो गयी थी,
उसका एक हाथ कस कस के मेरे कुछ मसल रहा था और दूसरा मेरे कंधे को पकड़े मेरी उंगलियाँ भी उसके पीठ पे धँसी उसके साथ साथ जीवन मे पहली बार और मेरे शिथिल होने के पहले ही मेने पहली बूँद महसूस की.
उसके साथ ही जैसे बंद टूट पड़ा हो. तपती प्यासी धरती को कैसा लगता होगा,
असाढ़ की पहली बूँद पा के उस रिम झिम की हर बूँद मैं सोख रही थी उतावली होके. मेने अपनी बाहे कस के भींच ली, और मेरी टांगे भी और यहा तक कि मेरी 'वो' भी 'उसे' कस के भींच रही थी, आलिंगन कर रही थी, लता की तरह लिपटी हुई थी मैं. उसी समय कही 12 बजे का घंटा बजा 'टन' 'टन' 'टन' 'टन' बार बार तरंगे उठ रही थी मेरी देह मे. और जब मुझे लगता था कि इस स्नेह रस की बदिश रुक गयी है. घंटा बजता ही चला जा रहा था, टन टन टन टन, फिर दुबारा फिर फिर. और मैं अपने नितंब और कस के उपर उठा लेती थी कि हर बूँद सोख लू. बंद होने के बाद भी हम लोग बहुत देर तक उसी तरह लिपटे रहे.
|