RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
तभी भाभी बात ख़तम करने से पहले बोली,
"हे ज़रा नेंदोई जी को फोन देना"और मेने क्रेडल उनकी ओर बढ़ा दिया.
"हाँ एकदम भाभी, हाँ अभी.. एकदम जो हुकुम."फोन रख के उन्होने मुझे अपनी बाहो मे उठा लिया और पलंग पे किनारे ले जा के लिटा दिया.
"हे हे ये क्या कर रहे है"मैं बोली.
"मैं अपनी सलहज का हुकुम मान रहा हू. हंस के, गाउन को मेरे कंधे तक उपर सरकाते वो बोले.
"हे सलहज और नेंदोई के बीच बेचारी ननद पीस रही है. जा के करिए ने अपनी सलहज के साथ"
"अरे क्या समझती हो उनको छोड़ दूँगा, एकलौती सलहज जो है."मेरे दोनो कुछ कस कस के मसलते वो बोले. वो खड़े ही खड़े, उनका शर्ट अपने आप सरक गया था और 'उठती' उन्होने मेरे हिप्स को उठा के मेरी गुलाबी काँपति पंखुड़ियो के बीच लगा दिया था.
"लेकिन ऐसे दिन दहाड़े"मेने हल्का सा रेज़िस्ट किया. पर अब मेरा भी मन कर रहा था. "क्या हुकुम था आपकी सलहज का."हिप्स उठाते मेने पूछा.
"मैं उनकी ननद को एक बार और हचक के चोदु उनकी ओर से."हल्के से मेरे कान को चूमते वो बोले.
उनके मूह से ये शब्द पहली बार सुन के मैं सिहर उठी और मेरी बाहों ने कस के उन्हे अपनी ओर खींच लिया. और उसी साथ के जो मस्त हो के उन्होने खड़े खड़े करारा धक्का मारा वो मेरे अंदर थे. मेरी दोनो जांघे पूरी तरह फैली.
दोनो नितंबो को पकड़ के उन्होने चार पाँच करारे धक्के मारे. और फिर कस के मेरे होंठ को चूम के बोले,
"ये मस्त रसीले होंठ मेरे है,
"हाँ"मेरी आँखे बंद हो रही थी और आवाज़ सरसरा रही थी.
मेरे कुचो को कस कस के मसलते, दबाते निपल को चूस के बोले,
"और ये मस्त मस्त जोबन' "हाँ हां तुम्हारे है"मेरी आवाज़ मुश्किल से निकल रही थी. मेने कस के उन्हे भींच लिया.
"और ये"उनकी उंगलिया अब मेरे यौन द्वार पे थी. उनकी बात पूरी होने के पहले ही मैं बोल पड़ी,
"हाँ राजीव हां, मेरे साजन, मेरे बालम सब कुछ मेरा सब कुछ तुम्हारा है.
हर अंग हर साँस सब तुम्हारा है, तुम्हारे लिए प्यासा है."और मेरे नितंब अपने आप उनके धक्को के साथ उठ गये.
"तो.. चोदु तुम्हे.."झुक के मेरी आँखो मे झुक, फूस फुसाते हुए उन्होने पूछा. जैसे कोई बहुत बड़ा बाँध टूट गया हो. फिर दुबारा उनके मूह से ये सुनके.
"हाँ डार्लिंग हां ले लो ले लो मुझे और कस के रूको मत"मेरे शरीर की चाहत मेरे ज़ुबान पे आ गयी थी. और खुद उठ के मेरे कुछ मेरे मस्त जोबन उनकी चौड़ी छाती मे मैं रगड़ रही थी, उनके हर धक्के के जवाब मे मैं भी कस कस के अपने हिप्स उठा रही थी. कमरे मे लगता है कोई तूफान आ गया था. वो कस कस के मुझे रगड़ रहे थे मसल रहे थे. उनके धक्के लगातार पूरी ताक़त से नाख़ून मेरे जोबन पे. और मैं भी सब कुछ भूल के उनका साथ दे रही थी. कभी दर्द से चीखती, कभी मज़े से सिसकती. मेरी टांगे उन्हे मेरे और अंदर और अंदर खींच रही थी मेरी बाहे उन्हे और कस के मेरी ओर खींच रही थी. उनके हर चुंबन का जवाब मेरे होंठ बराबर जोश से दे रहे थे. और 'वहाँ' नीचे भी.. हर स्पर्श हर रगड़ का मैं मज़ा ले रही थी. बस मन कर रहा था ये.. करते ही रहे करते ही रहे. और आधे घंटे से भी ज़्यादा बिना थमे ये तूफान चलता रहा. जब वो रुका तो हम दोनो एक साथ बारिश होती ही रही होती ही रही. मेरा तन मन सब शिथिल था. मेने आँखे खोली तो आठ बजने वाले थे और ये कह रहे थे,
"तुम थोड़ी देर उठना मत बस मैं पाँच मिनिट मे आता हू."
यहाँ उठने की ताक़त किसमे थी...
क्रमशः……………………….
शादी सुहागरात और हनीमून--18
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