RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
और उन्हे अंजलि ने इंट्रोड्यूस कराया,
"भाभी ये मेरा जीजा जी है और आपके नेंदोई."उनके बारे मे मैं सुन चुकी थी, अश्विन नाम था उनका और बड़े ही रसिया स्वाभाव के ' वो' रवि मेरे देवर को लेके कमरे के कोने मे चले गये. पर मैं देख रही थी कि उनकी निगाहें बार बार मूड केमेरी ही ओर थी तक मेरी मझली ननद ने मेरे नेंदोई को छेड़ा,
"हे क्या बात है, बिना पैसा लिए ही भाभी का मूह देख लिया. चलिए पहले पैसा निकालिए."
"अर्रे नेंदोई का तो 'सब कुछ देखने' का हक बनता है, सलहज नेंदोई का तो स्पेशल रिश्ता है"
"सब कुछ देखने का अलग रेट है, लेकिन पहले मेरी चाँद सी भाभी का मूह देखने का पैसा"
"अर्रे पैसे के मामले मे तो तुमने रंदियो को भी मात कर दिया है. देता हू पहले ठीक से पास से देख तो लेने दो"
वो हंस के बोले और मुझसे कहने लगे, "तेरी सुबह कह रही है तेरी रात का फसाना. फिर ननद से बोले,
"परदा उठे सलाम हो जाए."मेरी ननद ने आगे बढ़के मेरा घूँघट उठा दिया और उसके साथ शरारत मे मेरा आँचल भी हटा दिया. मेने आँचल ठीक करने की कोशिश की, पर बात और बिगड़ गयी. न सिर्फ़ क्लीवेज बल्कि मेरी गोलाइयाँ भी और कुछ निशान लेकिन तब तक मेरी ननद बोली, अर्रे भाभी क्यो इतने छिपा रही है आख़िर आपके ननदोयि ही तो है. 'वहाँ' देख के अश्विन, मेरे ननदोयि बोले,
"लगता है रात को लड़ाई जबरदस्त हुई"
"लड़ाई या" मेरी ननद आँख नचा के बोली.
"अर्रे वही समझ लो, 'ई' तो कॉमन है न दोनो मे' वो जबरदस्त ठहाके के साथ बोले और उनके साथ बाकी लोग भी हंस पड़े. वो मेरी ओर झुक के धीरे से बोले,
"ये बताओ 'ई' मे साले जी का खून, मेरा मतलब है सफेद खून से है, कितनी बार निकलवाया." मैं बड़ी मुश्किल से उनकी बातो पे मुस्कराहट दबा पाई.
बात कुछ और आगे बढ़ती कि जेठानी जी ने आके हुंकार लगाई खाना लग गया है,
सब लड़के चले और 'उनके' कान पकड़ते हुए बोली, मैं देख रही हू सुबह से तुम यही चक्कर काट रहे हो. कौन सी सूंघनी सूँघा दी है मेरी देवरानी ने. नेंदोई जी सबसे बाद मे उठे. वो मेरी ननद के कान मे कह रहे थे,
"साले की किस्मत बड़ी अच्छी है. ए-1 माल मिला है, एक दम मस्त. पटाखा."और बुरा लगने की बजाय मैं मुस्करा रही थी.
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