RE: kamukta kahani शादी सुहागरात और हनीमून
मेरे पाओ के किनारे किनारे ऐईडी से लेकर, उनके होंठो ने इस तरह से महावर रचा, मेरी पूरी देह गुलाल हो गयी. दुलारी ने जो महावर रचा था उससे भी गाढ़ा, नेह के रंग का महावर. मैं तड़प रही थी, मचल रही थी. लेकिन उसके होंठो की मेरी देह प्रदक्षिणा अभी पूरी नही हुई थी. अब मेरा हर अंग उनका जाना पहचाना था.
अब जब वह मेरी जाँघो की नसेनी पे चढ़, मेरे रस कूप तक पहुँचे, उसकी ज़ुबान पहले पैंटी के बाहर से, और फिर मेरी लेसी दो अंगुल की ठग को सरका के उसके अंदर वह मुझे तड़पाटा रहा, सुलगाता रहा. सहसा, उसके दोनो होंठो ने मिलके मेरे प्रेम के होंठो को ढकने का मात्र प्रयास कर रही पैंटी को मेरी शरीर से अलग कर दिया. मेरी जांघे अपने आप शरम से सॅट गयी, आँखे मूंद गयी.
लेकिन अब वो रुकने वाले नही थे. उसने कस के मेरे अनाव्रत गुलाबी पंखुड़ियो पे कस कस के हज़ार चुंबन ले लिए.
और मेरी सारी देह मे गुलाब उग आए. मेरी पूरी देह एक उपवन हो गयी.
उसके दोनो हाथो ने मेरी जाँघो को अलग कर रखा था. उसके रस के प्यासे होंठ मेरे निचले होंठो पे रस बरसा रहे थे.
जो काम कल उसकी अँगुलिया कर रही थी, गुलाबी पंखुड़ियो को छेड़ने काम. आज उसके होंठ कर रहे थे. मैं तड़प रही थी, मेरे नितंब उपर उठ रहे थे और मेरे हाथ कस के उसके सर पे थे. थोड़ी देर मे जब उसे लगा मैं पिघल जाउन्गि उसके होंठो की गरमी से.. . वह ठिठक गया और कुछ देर रुक कर कुचो की ओर बढ़ चला. मेरी गोलाईयो, मेरे कटाओं का रस लेता, स्वाद लेता जब वह मेरे रसीले जोबन तक पहुँचा तो वह अभी भी मेरी ब्रा मे बंद तड़फदा रहे.
"होंठवा से सैंया चोलिया के बंद खोलेला" कैसे होता है, उसके होंठो ने मुझे समझा दिया.
हम दोनो अब किसी भी बंदन से मुक्त थे सिवाय एक दूसरे की बाहो के बंधन के.
चुंबन, आलिंगन, रगड़ने मसलने, दांतो और नाखूनों के निशान, बस कभी वो उपर होते कभी मैं. बाहों मे एक दूसरे के हमारे जाने कितने हाथ उग आए थे कितने होंठ, एक साथ मेरे होंठो के, रस कलश के, और नीचे, रस बरस रहा था.
क्रमशः……………………….
शादी सुहागरात और हनीमून--22
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