RE: Antarvasna परदेसी
बिट्टू बाहर गया और इधर उधर देखा. रोहित का कहीं नामोनिशान नही था. उसने इधर उधर काफ़ी ढूँढा पर रोहित कहीं दिख नही रहा था. वो वापस अंदर गया और बहाना बना के दिया को छत पर ले गया. उसे लगा कि रोहित वहाँ होगा लेकिन वहाँ भी और कोई नही था
"कहाँ चला गया रोहित."
"अर्रे छत पे कहाँ ढूँढ रहे हो उसे?? आसमान से टपके थे क्या तुम लोग"
"टपके तो थे. पर उसको यहीं कहीं होना चाहिए"
"उसको फोन कर के क्यूँ नही पूछ लेते कि वो कहाँ है"
"अर्रे हां. काफ़ी इंटेलिजेंट हो तुम. फोन तो कर ही सकते हैं. अपना फोन दो. मेरे में बॅलेन्स कम है" दिया नीचे अपना फोन लेने चली गयी और बिट्टू छत पे घूमता रहा
"अर्रे पापा. आप क्यूँ ग्लास उठा रहे हो... मैं उठा दूँगी ना"
"अर्रे बेटा कुछ नही होता. वैसे भी मुझे नींद नही आ रही. तुम एंजाय करो" उसके पापा ने कहा. अगर दिया थोड़ी देर और रुकती तो देखती कि उसके पापा वो ग्लास डिश वॉशर में डालने की बजाए अपनी बेसमेंट की लॅबोरेटरी में ले गये हैं.
"लो. ले लो फोन... कंगाल कहीं के" बिट्टू को फोन देते हुए दिया बोली.
"अर्रे कंगाल नही हूँ. बस थोड़ा बुरे दौर से गुज़र रहा हूँ. और तुम्हारे सामने तो पूरी दुनिया ही कॅंगाल है. इतनी अमीरी मैने देखी नहीं है किसी पे"
"चुप रहो और फोन लगाओ"
"अर्रे फोन कहाँ भागा जा रहा है. अच्छा ही है कि रोहित यहाँ नहीं है. कम से कम हमे थोड़ा टाइम अकेले में बिताने का मौका तो मिला"
"तुम्हें क्यूँ अकेले में मेरे साथ टाइम बिताना है? मुझे कोई ऐसी-वैसी लड़की मत समझना"
"अर्रे तुम्हें मैं अगर ऐसी वैसी लड़की समझता तो सीधा तुम्हारे बिस्तर पे आता, छत पे नही"
"शट अप और फोन लगाओ..."
"लगा रहा हूँ. जितनी मुझे रोहित की चिंता नही है, उससे कहीं ज़्यादा तुम्हें लग रही है... कुछ है तो बता दो... रास्ते से हटा दूँगा उसको"
"उफ्फ तुम कितना बोलते हो.."
"ह्म्म लेकिन अच्छा बोलता हूँ ना... हेलो.." कॉल लग गयी थी "अबे कहाँ है बे... मुझे यहाँ छोड़ के कहाँ भाग गया"
"मेरी हालत ठीक नही है बिट्टू. बहुत वीकनेस लग रही है. तुम्हें वापस उठाने की हिम्मत नही थी मेरे में.. और वैसे भी मुझे लगा कि तुम्हारा कोई प्रॉब्लम हो गया है मकान मालिक के साथ, इसलिए मैने वहाँ रुकना मुनासिब नही समझा"
"वाह.. दोस्त को प्राब्लम में देख के भाग गया... तुझसे आ के निपट-ता हूँ. कहाँ है अभी"
"रास्ते में ही थोड़ा रेस्ट कर रहा हूँ.. उड़ा नही जा रहा... सब तेरी वजह से हुआ.. शायद रास्ता भी भूल गया हूँ मैं.. किसने कहा था तुझे इतना ठूँसने को"
"अबे फोन धर अब... आके तेरा हिसाब किताब क्लियर करता हूँ मैं" कहते हुए बिट्टू ने फोन वापस दिया को दे दिया "कैसे बंद करते हैं इसे... फोन है या करमफूटर"
"तुम्हें यहाँ का अड्रेस मिला कैसे ? सच सच बताना..." दिया ने फोन लेते हुए कहा
"देखो दिया.. मैने इस बात को छुपा के नहीं रखा है कि तुम मुझे अच्छी लगती हो. अब मैं उन लोगों में से नही हूँ जो भगवान की मर्ज़ी प्रकट होने का इंतेज़ार करते रहें. मुझे तुमसे मिलना था, मैने अड्रेस ढूँढ लिया और टपक पड़ा. डीटेल्स में क्यूँ जाना है तुम्हें"
"तुम्हें पता है तुम कितने अजीब हो..."
"हां मैं अजीब ही सही दिया.. लेकिन मुझे लगता है कि तुम्हें मुझे एक मौका देना चाहिए. एक बार मेरे साथ होके देखो. अगर तुम्हें मैं पसंद नही आया, बस एक बार बोलने भर की देर है.. मैं कभी तुमसे बात नही करूँगा"
"बिट्टू इतनी जल्दी मैं ऐसा डिसिशन नही ले सकती. यह हमारी दूसरी मुलाक़ात है बस. तो मैं कैसे तुम्हें इतनी जल्दी जड्ज कर सकती हूँ. थोड़ा टाइम दो, सब ठीक हो जाएगा."
"ओके.. चलो रोमॅंटिक बातें करते हैं.."
"व्हाट....."
"वो चाँद देख रही हो..."
"यार अब यह चाँद तारों की बोरिंग बातें मत करना..."
"बोरिंग??"
"हां मैं जानती हूँ कि तुम अब कहोगे कि मैं चाँद की तरह हूँ, उसपे दाग है, मुझपे नहीं एट्सेटरा एट्सेटरा"
"अर्रे चाँद को तो लोगों ने ऐसे ही मशहूर कर रखा है.. क्या सुंदर है उसमें ?? अपनी रोशनी तक नही है उसके पास. सूरज की उधार ले कर धरती को रोशन करता है. तुम्हें चाँद से कंपेर करना तुम्हारी सुंदरता की बदनामी करना होगा दिया.."
"हा हा हा... तुम तो बिल्कुल फिल्मी हो बिट्टू... मुझे नही पता था कि तुम ऐसी बातें भी कर सकते हो"
" हा हा हा... सीख के आया था यह डाइलॉग... वैसे चाँद को देखना हो तो कभी हमारे खेत से देखो, गन्ने चूस्ते हुए... ऐसा लगता है कि हम किसी और दुनिया में हैं... जहाँ सिर्फ़ हम और चाँद. जब बहुत टेन्षन में होता हूँ, तो मैं यही करता हूँ"
" कभी इंडिया आई तो ज़रूर तुम्हारे खेत आउन्गि.."
" बहुत बढ़िया.. वहाँ तुम्हें हॅपी से भी मिल्वाउन्गा. बहुत अच्छा दोस्त है मेरा. मेरे दिल, जिगर, फेफड़ा, अंडकोष - सक का टुकड़ा है वो"
"छी..."
"ओह सॉरी.. में थोड़ा जज़्बात में बह गया था...."
"बिट्टू मुझे नींद आ रही है"
"तो मेरे कंधे पे सर रख के सो जाओ... कसम वाहे गुरु की.. ऐसी नींद कभी नही आई होगी तुमको."
"शट अप बिट्टू. रात बहुत हो चुकी है. अब तुम्हें भी जाना चाहिए."
"ना... मुझे तो ऐसा नही लगता... मुझे लगता है यह रात सिर्फ़ इसलिए बनी है कि हम दोनो एक दूसरे को जान पाए"
" अब मैं जा रही हू सोने.. तुम्हें जो करना है करो..."
" मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ.."
"शट अप..."
"मतलब है नीचे तक...यहाँ से कूद के तो नीचे उतरून्गा नहीं..."
" हां चलो.."
" पहले अपना फोन तो दो"
" अब क्या करना है?"
" एक मिस कॉल मारूँगा अपने नंबर पे और एक कॉल कॅब कंपनी को. मैं नहीं चाहता कि तुम्हारे ख़याल दिमाग़ में रख कर मैं इतनी दूर पैदल जाऊं"
" यह लो"
बिट्टू ने कॅब कंपनी को कॉल किया तो मेसेज मिला के 15 मिनिट में कॅब पहुँच जाएगी. उसने दिया का नंबर अपने सेल में स्टोर किया और उसके साथ नीचे चल पड़ा
"यह नीचे की लाइट क्यूँ जल रही है.."
"पापा की लॅब है नीचे.. कुछ कर रहे होंगे.."
" अंकल डॉक्टर हैं?"
" नहीं साइंटिस्ट हैं.."
" क्या फरक पड़ता है... कोट तो दोनो ही पहनते हैं... चलो तुम भी जा के सो जाओ. मैं अंकल को बाइ करके निकलता हूँ"
" ओके... गुड नाइट... कॉलेज में मुलाक़ात होगी.."
"हां.. कॉलेज में शायद मुलाक़ात हो जाए.." बिट्टू ने कहा और विदा ले कर नीचे चला गया "क्या कर रहे हो अंकल"
" कुछ नही बेटा... ऐसे ही थोड़ा रिसर्च कर रहा था.."
"इतनी रात में काम... बहुत ज़रूरी है क्या..."
" काफ़ी स्ट्रेंज पज़्ज़ील है.. सुलझाने की कोशिश कर रहा हूँ... वैसे तुम्हारे घर में और कौन कौन है...."
" माँ बाप है... रिश्ते की बात करनी है तो उनका नंबर ले लेना..." कहते हुए बिट्टू हँसने लगा "वैसे मैं सिर्फ़ बाइ बोलने आया था. मैं जा रहा हूँ. आउन्गा कभी. फिर बता दूँगा सारी फॅमिली हिस्टरी आप को.. गुड नाइट"
" गुड नाइट बेटा.. आते रहना.. अपना ही घर समझना इसे"
" मेरे तो 2 घर आ जाएँगे यहाँ... थॅंक यू" कहते हुए बिट्टू बाहर निकल गया. टॅक्सी आ गयी तही. वो उसमें बैठ गया और उसको हॉस्टिल का अड्रेस दे दिया
रोहित ने फोन रखा तो वो बहुत हाफ़ रहा था. एक जगह से दूसरी जगह उड़ के जाने में सच मुच उसकी बहुत एनर्जी खरच हो रही थी. उसको लग रहा था कि वो अभी नही उड़ पाएगा और. वो थोड़ी देर छत पे बैठ कर अपनी एनर्जी रिस्टोर करने लगा. अब खाली बैठा है तो उल्टे सीधे ख़याल तो आएँगे ही. वो सोचने लगा कि इतनी बड़ी दुनिया, 19 साल में आज तक उसने एक भी आदमी नही देखा था जिसके पास सूपरहीरो पवर्स हो. अब ना सिर्फ़ उसके पास पवर्स थी, पर बिट्टू के पास भी थी. क्या यह सिर्फ़ लक है कि 4 अजनबी प्लेन क्रॅश में बच गये और एक अंजान हेलिकॉप्टर में सेफ्ली अपनी डेस्टिनेशन पर पहुँचाए गये. क्या यह लक ही है कि उन चार में से 2 लोगों के पास वो पवर्स हैं... रोहित का रॅशनल दिमाग़ यह मान-ने को तय्यार नही था कि यह सब लक या कोयिन्सिडेन्स है. हो ना हो, कुछ कनेक्षन तो है हम चारों में - वो ऐसा सोचने लगा.
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