RE: Antarvasna परदेसी
अगले दिन सुबह जब रोहित का अलार्म बजा तो उसकी नींद खुली. वो जल्दी से बाथरूम गया और अपना सभी काम निपटा कर किचन में पहुँचा ताकि कॉलेज जाने से पहले थोड़ा नाश्ता कर ले. उसने देखा के तान्या पहले ही उठ चुकी है और नाश्ता बना रही है
"रोहित तुम बैठो. मैं अभी नाश्ता ले कर आती हूँ" वो बोली और अपनी स्पीड थोड़ी बढ़ा दी. रोहित को हैरानी तो बहुत हुई लेकिन वो थोड़ा खुश भी हुआ तान्या में आए इस बदलाव को देख कर. वो जा कर लिविंग रूम में बैठ गया और कॉफी टेबल खाली कर दी नाश्ते के लिए
"तान्या एक बात पूछूँ" जब तान्या ने नाश्ता लगा दिया तो रोहित ने उससे सवाल किया
"हां बोलो.."
"मुझे कल के बारे में कुछ पूछना है..."
"ज़रूर पूछो..."
"कल ऐसा क्या हो गया था जो तुम इतना अपसेट हो गयी थी..."
"रोहित मुझे समझ नही आ रहा कि कैसे बताऊ यह.. पर जब उस आदमी का आक्सिडेंट हुआ तो मुझे लगा कि यह नज़ारा मैने पहले भी कहीं देखा है...."
"ऐसा होता है.. डेजा-वू की फीलिंग हम सब को कभी ना कभी होती है"
"नहीं रोहित.. अगर ऐसा होता तो मुझपे इतना असर ना पड़ता... लेकिन पिछली 2 रातों से मेरे सपनों में लगातार वो आदमी आ रहा था और मैं यह घटनाक्रम को देख रही थी..."
"सपने याद नही रहते तान्या.. तुम्हें पक्का कोई वहाँ हुआ होगा..."
"नहीं रोहित.. तुम इस बात को मानो या ना मानो... लेकिन मैं अपने सपनों में रोज़ उस हादसे को देख रही थी.. यहाँ तक कि वो ट्रक और उसका नंबर भी मुझे याद है... फिर भी मैं कल उस आदमी को नही बचा पाई... पता नहीं क्यूँ मुझे लगता है कि इस सपने का ज़रूर कोई मतलब है..."
"अर्रे बहकी बहकी बातें मत करो.. खाली पड़े रहने से तुम्हें वहाँ होने लगा है... मैं कॉलेज जाता हूँ, आ कर बातें करेंगे... मेरी मानो तो तुम भी कोई जॉब ढूँढ लो.. नहीं तो उल्टे सीधे ख़याल ही आते रहेंगे पूरा वक़्त" रोहित ने कहा और अपना बॅग ले कर निकल गया. तान्या उसको देख रही थी और बस यह ही सोच रही थी कि जिसको उसने इतनी आसानी से भ्रम का नाम दे दिया, सच्चाई तो सिर्फ़ तान्या ही जानती है.. वो ही जानती है कि उसने पता नही कितनी बार अपने ख्वाबों में उस आदमी को मरते देखा है...
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सुबह जब बिट्टू की आँख खुली तो उसको जन्नत सा महसूस हो रहा था. पिछली रात उनकी मॅरीड लाइफ की पहली रात थी और उसके हिसाब से उसका पर्फॉर्मेन्स अच्छा रहा था. जब उसने करवट बदल कर दिया की तरफ मूह किया तो पाया कि दिया है नही बिस्तर पर. एक पल के लिए वो घबरा गया फिर सोचा के शायद नहा रही होगी या नाश्ता बना रही होगी. वो उठा और बाथरूम में गया तो उसको खाली पाया. उसने अपनी मॉर्निंग रुटीन ख़तम की और नाश्ते के लिए डाइनिंग रूम पहुँच गया. लेकिन दिया ना तो वहाँ थी और ना ही किचन में. बिट्टू का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा किसी अनहोनी की आशंका में. वो फटाफट घर से बाहर भागा और वहाँ भी दिया को ना पा कर बहुत चिंतित हो गया. उनका रेस्टोरेंट घर के साथ ही लगा हुआ था. कुछ सोच कर बिट्टू वहाँ की ओर चल पड़ा.
रेस्टोरेंट में बाहर से ताला लगा हुआ था. बिट्टू ने खिड़की से अंदर झाँकने की कोशिश करी और अंदर एक साया इधर उधर होता हुआ पाया. धड़कते दिल के साथ बिट्टू तेज़ी से घर के अंदर घुसा और घर और रेस्टोरेंट को जो डोर कनेक्ट करती थी उसके पास पहुँच गया. उसको लगा कि शायद कोई चोर अंदर घुस आया है. किचन से चाकू उठा कर उसने एक झटके में रेस्टोरेंट का दरवाज़ा खोला और अंदर हो गया. अंदर दिया को सफाई करते देख उसकी जान में जान आई.
"अर्रे दिया तुम सुबह सुबह यहाँ क्यूँ घुस आई.."
"बिट्टू इतनी भी सुबह नही है.. 10 बज चुके हैं... 12 बजे रेस्टोरेंट खोलना है.. और तुम शायद भूल रहे हो कि आज फुड इनस्पेक्षन वाले भी आ रहे हैं. मैं कोई रिस्क नही लेना चाहती. अगर हमारा लाइसेन्स रद्द हो गया तो लेने के देने पड़ जाएँगे"
"कैसे होगा लाइसेन्स रद्द... पूरा वॉट तो यह जगह बिल्कुल रूल्स के हिसाब से ही रखते हैं.. आज तक किसी ने कोई कंप्लेन भी नही करी..."
"अर्रे पर थोड़ा एक्सट्रा केर्फुल रहने में कोई बुराई तो नहीं है..."
"चलो ठीक है फिर तुम सफाई करो और मैं अंदर जा कर नाश्ता बना लेता हूँ. फिर साथ साथ नाश्ता कर लेंगे"
"ठीक है..." दिया ने कहा और वापस सफाई में लग गयी.
बिट्टू वापस घर के अंदर आया और पहले थोड़ा सुसताने का प्रोग्राम बनाया. उसने अख़बार हाथ में लिया, टीवी ऑन किया और अख़बार पढ़ने लगा. सुबह रेस्टोरेंट में रश पड़ने से पहले का यह समय उसका दिन का सबसे एंजायबल टाइम होता था. एक बार रेस्टोरेंट खुल जाता था तो रात तक साँस लेने की भी फ़ुर्सत नही मिलती थी. अख़बार पढ़ने के बाद वो उठा और किचन में नाश्ता बनाने को घुस गया. उसने गॅस ऑन करी पर रेंज जली नही.. दो तीन बार उसने ट्राइ किया और फिर भी जब वो रेंज नही जली तो वो लाइटर ढूँढने लग गया. कयि बार ऐसा होता था के इनबिल्ट प्लग काम नही करता था. उसने लाइटर उठाया और फिर से रेंज जलाने की कोशिश करने लगा लेकिन फिर भी नाकामी हाथ लगी. शायद लाइटर का सेल ख़तम हो गया था. वो लाइटर को वहीं रख कर सेल ढूँढने चला गया. वो भूल गया कि रेंज ऑन पे है और गॅस धीरे धीरे किचन में भर रही थी.
नये सेल लेकर जब वो वापस आया, तो उसने वो सेल लाइटर में डाल दिए. जैसे ही उसने रेंज ऑन करी, एक ज़ोर से धमाका हुआ और उसकी आँखों के आगे अंधेरा छा गया. अगली चीज़ जो उसे याद आई वो यह थी कि दिया उसके उपर झुकी थी और उसका नाम ले लेकर रो रही थी.
"कुछ नही हुआ.. दिया मैं ठीक हूँ... वैसे भी मुझे कुछ नही होता रिमेंबर" उसने उठने की कोशिश करते हुए कहा. आसपास की दीवारें जल गयी थी लेकिन आग का कहीं नामोनिशान नही था
"बिट्टू यह क्या करते रहते हो तुम... मैं कितना डर गयी थी" दिया ने आँखों से आँसू पोछते हुए कहा.."वैसे यहाँ हुआ क्या था"
"हुआ क्या था मतलब.. आग लग गयी थी.. तुम्हें नही दिखा था क्या"
"नहीं... मुझे बस तुम्हारे चीखने की आवाज़ आई और मैं भागी हुई यहाँ आई.. आकर देखा तो सारा किचन काला पड़ा था"
"ह्म्म.. मुझे लगता है के गॅस खुली छूट गयी थी और लाइटर जलाने से धमाका हुआ और आग लग गयी..."
"ऐसा नही हो सकता बिट्टू. ऐसा हुआ होता तो मुझे भी आग की लपटें दिखती या जब मैं यहाँ आती तो कहीं तो आग का नामोनिशान होता"
"पता नही फिर क्या हुआ होगा.. मेरा सर भन्ना रहा है... मैं ज़रा नहा के आता हूँ. तुम रेस्टोरेंट वाला किचन यूज़ कर लो... इस की बाद में सफाई कर देंगे हम" कुछ सोचता हुआ बिट्टू बाथरूम में घुस गया.
अगर आग लगी थी, तो गयी कहाँ.. और अगर लगी नही थी तो मेरे कपड़े और दीवार कैसे जले... आईने में अपने आप को देखते हुए वो सोचने लगा... उसका शरीर तो बिल्कुल ठीक हो गया था लेकिन कपड़े बुरी तरह से जले हुए थे. उसने वो कपड़े उतार के दूर फेंके और शवर के नीचे खड़ा हो गया. शवर से निकला पानी उसको बहुत ठंडा लग रहा था. उसने टेंपरेचर बढ़ाया लेकिन कोई असर नही हुआ. उससे लगा कि शायद बोलिएर खराब हो गया है. तभी उसने अपने चारों तरफ नज़र दौड़ाई तो पाया के बाथरूम में बहुत ज़्यादा स्टीम भर गयी थी. मतलब पानी गरम तो था, लेकिन उसको गरम नही लग रहा था. इतने ठंडे पानी से वो नहा नही सकता तो शवर से बाहर आया और अपना बदन पोछने लगा. पोछते पोछते उसकी नज़र तोलिये पर पड़ी तो उसने पाया के वो तोलिया काला हो रहा था. उसने गौर से तोलिये की तरफ देखा तो वो भक्क से आग में घिर गया और कुछ ही क्षण में जल के राख हो गया.
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