RE: Porn Sex Kahani तरक्की का सफ़र
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वो नशे में चूर लड़खड़ा रही थी। घर जाते वक्त उसने पूछा, “टीवी पर शो कैसा लगा और तुमने सब रिकॉर्ड कर लिया ना? ”
जब मैंने बताया कि बहुत ही क्लीयर पिक्चर थी और मैंने सब रिकॉर्ड कर लिया है तो उसके चेहरे पर संतोष के भाव थे। उसके कहने पर मैंने अपने और उसके लिये एक-एक सिगरेट सुलगा दीं।
“प्रीती! तुमने बिना एम-डी की जानकारी के ये सब इक्यूपमेंट कैसे इंस्टाल कर लिये?” मैंने पूछा।
“राज! तुम औरत की चूत की ताकत का अंदाज़ा नहीं लगा सकते, पहले तो होटल के मैनेजर ने मना कर दिया पर जब मैंने उससे चुदवा लिया तो वो मान गया”, उसने हँसते हुए जवाब दिया।
“लेकिन तुम ये सब क्यों कर रही हो, तुम्हारा मक्सद क्या है?” मैंने उत्सुक्ता से पूछा।
“पता नहीं मुझे क्यों ऐसा लग रहा है कि भविष्य में ये सब हमारे काम आयेगा। मेरा मक्सद क्या है ये समय आने पर तुम जान जाओगे”, प्रीती ने फिर हँसते हुए कहा।
दो महीने बाद तक, सब कुछ ऐसे ही चलता रहा। प्रीती इसी तरह हफ्ते में तीन-चार बार क्लब जाती और रात को नशे में धुत्त पैसे से भरा पर्स लेकर लौटती। उसने घर पर भी शराब-सिगरेट पीनी शुरू कर दी।
एक दिन प्रीती बोली, “राज! चलो हम कुछ दिन के लिये अपने घर हो आते हैं, तुम्हारी माताजी भी कई बार लिख चुकी हैं।”
ये सुन कर मुझे एक बहाना मिल गया प्रीती को यहाँ से भेजने का। कुछ दिन के लिये तो इस दलदल से बाहर निकलेगी। मैंने कहा, “प्रीती तुम हो आओ, मैं काम की वजह से नहीं जा पाऊँगा।”
हम लोगों ने बहुत शॉपिंग की। मैंने सबके लिये तोहफ़े खरीदे और प्रीती को ट्रेन मैं बिठा कर विदा कर दिया।
एक महीने बाद आज प्रीती लौटने वाली थी। मैं उसे लेने स्टेशन पहुँचा तो देखा कि वो आ चुकी थी और मेरा इंतज़ार कर रही थी। मैंने माफी माँगते हुए कहा, “सॉरी प्रीती! ट्रैफिक में फँस गया था, आओ चलते हैं।”
इतने में मैंने आवाज़ सुनी, “भैया”, और पीछे मुड़ कर देखा तो मेरी दोनों बहनें अंजू और मंजू हँसते हुए खड़ी थी। मैंने दोनों को बाँहों में भरके चूमा। “प्रीती! अच्छा किया जो तुम इन दोनों को साथ ले आयी, मैं इन्हें मिस कर रहा था”, मैंने कहा।
हम लोग घर पहुँचे। अंजू और मंजू दोनों खुश थी। मेरी नयी कार और फ्लैट की बहुत तारीफ कर रही थी। हम लोग जब खाना खा रहे थे तो मैं उनसे उनके बारे में पूछने लगा। वो दोनों सब बता रही थी: घर के बारे में, अपनी सहेलियों के बारे में।
“तुम दोनों ने एक बात तो बतायी ही नहीं”, मैंने कहा।
“क्या नहीं बताया भैया?” अंजू ने कहा।
“अपने बॉय फ्रैंड्स के बारे में...” मैंने हँसते हुए कहा।
वो दोनों सोच में पड़ गयी और प्रीती की तरफ देखने लगी। फिर मंजू मुँह बनाकर बोली, “भैया आपको मालूम है कि हम ऐसी लड़कियाँ नहीं हैं।”
“फिर तो तुम लोगों के लिये लड़के ढूँढने पड़ेंगे, है ना प्रीती?” मैंने हँसते हुए कहा।
“मैं भी ऐसा ही कुछ सोच रही थी”, प्रीती ने जवाब दिया।
अगले दिन तक मैं अपनी बहनों को घुमाता फिराता रहा, सिनेमा दिखाया। दोनों बहुत खुश थीं, किंतु मेरे और प्रीती में सब कुछ वैसा ही था। शायद उसने मुझे अभी तक माफ़ नहीं किया था।
मैं सुबह रोज़ की तरह ऑफिस पहुँच चुका था। दोपहर के करीब चार बजे प्रीती ने फोन किया और घबरायी आवाज़ में कहा, “राज तुम जल्दी घर आ जाओ, अंजू और मंजू.....।”
मैंने घबरा कर पूछा, “क्या हुआ अंजू और मंजू को?”
“बस तुम जल्दी आ जाओ”, कहकर प्रीती ने लाईन डिसकनेक्ट कर दी।
मैं अपना सब काम छोड़ कर घर पहुँचा और प्रीती से पूछा, “क्या हुआ? कहाँ हैं वो दोनों?”
प्रीती ने शरारती मुस्कान के साथ उन दोनों के बेडरूम की तरफ इशारा किया। मैंने देखा बेडरूम का दरवाजा आधा खुला हुआ था और उसमें से मादक सिसकरियों की आवाज़ आ रही थी।
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