RE: Mastram Kahani मेरी बेकाबू जवानी
मेरी बेकाबू जवानी--9
गतान्क से आगे......
करीब दस मिनट तक वो मुझे ऐसे ही चोद्ते रहे, हम दोनो के जिस्म से पसीना बह रहा था. मेरी इतनी हिम्मत नही थी की मैं पति जी को बोल सकु के अब बस कीजिए, लेकिन मेरे चेहरे के हावभाव से उन्हे लगता था कि मैं थक गयी हू, इसलिए वो थोड़ी देर के लिए लंड को चूत मे से बाहर ना निकालते हुए मेरे उपर ऐसे ही लेटे रहे. उन्होने मेरे चेहरे को देखा, जो कि पूरा पसीने से भीगा हुवा था और मेरे बाल चेहरे के उपर आ रहे थे, पति जी ने बालो को हल्के से हटाते हुए मेरे सिर पे हाथ घुमाने लगे और मेरे गालो पर किस करने लगे. मुझे आजतक इस तरहसे किसी ने प्यार नही किया था, सच कहते है अपने से बड़े इसान का प्यार जितना मिले उतना कम है, आज मुझे यकीन हो गया था बूढ़े इंसान ही छोटे बच्चो को सही प्यार दे सकते है, चाहे वो किसी भी रूप मे हो. मेने उन्हे अपनी बाँहो मे ज़ोर से दबा दिया और अपनी चूत मे अंदर तक गये हुए लंड को और अंदर ले ने के लिए अपने पैरो को पति जी की कमर पे दबाने लगी.
मेरे ऐसे करने से उन्हे ग्रीन सिग्नल मिल गया और तुरंत अपने जिस्म को मेरे जिस्म के उपर सही तरह करते हुए अपने लंड को बाहर निकाला और फिर एक ही झटके मे पूरा का पूरा लंड मेरी चूत मे अंदर तक डाल दिया. इस बार हर धक्के पे लंड को पूरा बाहर निकालते और पूरा लंड चूत मे अंदर डालते थे. वो हर बार लंड चूत मे जानेके बाद मेरे चेहरे को देखते थे, मैं हर बार मेरे होंठो को दांतो तले दबाती थी क्यूंकी मुझे ये मीठा दर्द सहन नही हो रहा था. करीब दस या पंद्रह धक्के के बाद वो शांत हो गये और अपना वीर्य मेरी चूत मे छोड़ दिया, हालाकि मैं इसलिए भी थक गयी थी कि मेरी चूत ने पाँच या छे बार पानी छोड़ दिया था. फिर हम दोनो सो गये.
शाम को 6 बजे पति जी ने मुझे एक हल्की किस करके उठाया और हम दोनो बाथरूम मे जाके फ्रेश हो गये. पति जी ने कहा “ जया अभी तुम्हे अपने मायके जाना पड़ेगा, मेरी सासू मा अभी 7 बजे आती ही होगी”. मैं अपने कॉलेज के कपड़े पहन्के, पति जी का आशीर्वाद लेके अपने घर पे आ गयी. घर मे आते ही मैं अपने बेडरूम गयी और अपना होमे वर्क पूरा करने बैठ गयी, क्यूंकी मुझे रात को अपने पति देव के साथ सोना था और सुबह मुझे वापस कॉलेज भी जाना था. करीब 7 बजे मम्मी और पापा दोनो घर पर आ गये, मुझे पढ़ता हुए देख के मुझे परेशान नही किया. मम्मी ने खाना बनाया और मुझे आवाज़ दी कि जया बिटिया खाना ख़ालो. जैसे ही मैं किचन मे गयी तो देखा कि मेरे पति जी भी वाहा पर बैठे थे, मम्मी ने बताया कि आज उनकी वजह से मुझे नौकरी मिली है तो मैने उन्हे खाने पे बुलाया है. मैं पति जी के बाजू मे बैठ गयी, हम नीचे बैठ के ही खाना खाते थे. मेरा राइट पैर पति जी के लेफ्ट पैर को लग रहा था, उन्होने मेरे पैर की उंगलियो मे अपने पैर की उंगलिया फँसा दी और दबाने लगे. मम्मी ने हम सब की थाली परोसी. खाते वक़्त पापा ने पूछा “ जया तुम्हे राज जी से चावी मिल गयी थी ?”, मेने कहा “ हा पापा और उन्होने ने ही मुझे बताया कि आज कितना ख़ुसी का दिन था मम्मी के लिए”.
मेरी बात को बीच मे ही काट ते हुए पति जी ने कहा “ अरे संजय जी आपकी बिटिया तो बहुत होसियार है पढ़ने-लिखने मे और घर के काम मे भी. मैं ने जब उसे चावी दी और इसकी मम्मी की बात बताई तो उसने कहा “ आप मेरे घर आइए, मैं आपके लिए चाइ बनाती हू” तो मेने कहा “ जया तुम मेरी बेटी की तरह ही हो तुम मेरे इस घर को भी अपना ही घर समझ के यॅन्हा ही चाइ बना लो, हम दोनो साथ मे चाइ पी लेते हैं. चाइ पीते हुए हमने काफ़ी बाते की और तभी मेने जान लिया कि आपकी बिटिया बहुत तेज है, इस लिए मैं चाहता हू कि जया कॉलेज के आने के बाद मेरे साथ मेरे घर मे पढ़े और मैं भी पूरा दिन पढ़ता ही हू तो मुझे भी एक मित्र मिल जाएगा, और उसके कॉलेज की सारी किताबे मेरे पास है और मेने उसे बहुत ही अंदर तक पढ़ा है तो मैं उसे अच्चेसे पढ़ा भी सकूँगा और इसे कोई और ट्यूशन की भी ज़रूरत नही पड़ेगी, हा लेकिन फिस की जगह मैं आपकी पत्नी के हाथ का खाना ज़रूर खाना चाहूँगा”.
पापा ने कहा “ अरे राज जी ये तो बहुत ही बढ़िया बात कही आपने. हम जबसे यहा आए है ये काफ़ी उदास रहती थी. अब आपके साथ रहेगी तो अपने आप को अकेला भी नही समझेगी और उसकी पढ़ाई भी अच्छी तरह से होगी”. पापा ने मुझ से पूछा “ क्यू जया जाएँगी ना राज जी के यहा”. मेने कहा “ हा पापा मे जाउन्गी और खूब अच्छी तरह से उन्हे खुस रखूँगी और इन्हे किसी भी बात की शिकायत का मौका भी नही दूँगी, वो जो कहेंगे वो मानूँगी और जैसा करने को कहेंगे वैसा ही करूँगी”. सब खुस हो गये थे मेरी बात को ले कर, मम्मी पाप को अब मेरी चिंता नही थी, मेरे पति जी भी मेरी उनकी हर बात को मानने वाली बात पर काफ़ी गर्व महसूस कर रहे थे, क्यूंकी एक पत्नी का यही पति धर्म होता है.
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