RE: Mastram Kahani मेरी बेकाबू जवानी
एक मोड़ पे मैं झाड़ ने ही वाली थी तभी पति जी को अहसास हो गया और मुझे ज़ोर से गर्दन मे हाथ डाल के पकड़ लिया और लंड को एक झटके मे अंदर तक जाके रख दिया और मेने अपना पानी छोड़ दिया, उस पानी ने गरम लंड को पूरा गीला कर के ठंडा कर दिया. पति जी मेरी चूत मे लंड को अंदर तक रख ते हुए, मेरी कमर पे हाथ रख के, मेरे दोनो पैरो के बिचमे बैठ गये. उनके जिस्म से पसीने की बूंदे मेरी कमर पे गिर रही थी और वो मुझे ठंडक दे रही थी. मेरे चेहरे पे बाल आए थे, उनको पति जी ने हटाते हुए मेरी ओर देख ने लगे. मेने हल्की सी मुस्कान देके उनको थॅंक्स कहा. पति जी मेरे हाथो को अपने हाथो मे लेके उनकी उंगलियो को चूम ने लगे और कहा “ जया अपने हाथ अपने सिर के उपर ले जाके रखो और मैं कुछ भी करू वो नीचे नही आने चाहिए”. मेने अपने हाथ सिर के उपर ले जाके रख दिए, ऐसा करते ही मेरे दोनो स्तन उपर की ओर उभर आए. पति जी मेरे उपर झुकते ही मेरे राइट को स्तन को चूमने लगे और लंड को अंदर बाहर कर ने लगे. जैसे जैसे लंड अंदर बाहर हो रहा था, पति जी मेरे स्तन पे ज़ोर से दबाव दे रहे थे. मेरे हाथ अपने आप ही नीचे आगाये और मेने पति जी के सिर के बालो को ज़ोर से पकड़ लिया. क्यूंकी पति जी मेरे स्तन पे बहुत ज़ोर से काट रहे थे और मे सहन नही कर पा रही थी.
इतने मे ही पति जी रुक गये और मेरी ओर देख के कहा “ जया मेने कहा था अपने हाथ उपर ही रख ना”. मेने अपनी नज़र झुकाते हुए कहा “ पति जी मुझे से दर्द सहा नही गया और मेरे रोक ने पे भी मेरे हाथ रुके नही और वो नीचे आ गये”. पति जी ने कविता जी की ओर देखते हुए कहा“ कविता इसे थोड़ा सा सहारा दो ताकि ये मेरा दर्द सहे सके, जया जाओ और कविता से आशीर्वाद ले के आओ”. मैने बेड पे से उतर के, चल ने के लिए अपने लेफ्ट पैर को आगे किया और राइट पैर को आगे करने ही वाली थी की मैं वापस बेड पे बैठ गयी, क्यूंकी मुझे बहुत दर्द हो रहा था. मैं जैसे तैसे करके कविता जी के फोटो के पास गयी और उनसे आशीर्वाद माँगा कि “ कविता जी मुझे दर्द सहन करने की हिम्मत दो, ताकि मैं अपने पति जी को खुस रख के उनकी जिस्म की प्यास को बुझा ने मे समभागी हो सकु”. मैं मूड के बेड की ओर बढ़ने ही वाली कि मेने देखा कि पति जी ने बेड के किनारे पे बनाई हुए लकड़ी की डिज़ाइन मे एक रस्सी बाँध दी और उसका एक छोर बेड के उपर खुला रखा.
मैं सिर को नीचे झुकाते हुए पति जी के पास जाके खड़ी रही, उन्होने मुझे चूमा और कहा “ जया मैं कविता को भी ऐसे ही प्यार करता था और उसे कोई सीकायत नही होती थी”. मेने कहा “ आप क्या करते थे कविता जी के साथ”. इतना कहते ही उन्होने मुझे कमर से उठा के बेड पे लिटा दिया और खुद भी लंड को चूत के पास रख के मेरे हाथो को अपने हाथो मे लेके मेरे सिर के पीछे ले गये. सिर के उपर मेरे दोनो हाथो को उन्होने रस्सी से बंद दिया और धीरे धीरे अपने हाथो को मेरे बँधे हाथो के उपर से छूते हुए मेरे स्तन पे ले जाके उन्हे दबा दिया और लंड को मेरी चूत मे डाल दिया, मैं दर्द से कराह उठी. लंड हर बार अंदर करने पर वो मेरे स्तन को दबाते थे और बाहर करने पर छोड़ देते थे. फिर मेरे स्तन के नीचे से पीठ पे हाथ ले जाके मुझे ज़ोर से दबा दिया और अपने मूह को मेरे राइट स्तन पे रख के उसे चूस ने लगे और लंड के अंदर बाहर होने पर उसे ज़ोर से काटते थे और मेरे निपल को चूम थे और कई बार काट ते भी थे. मेरे हाथ बंदे होने की बजह से मैं हाथो से कुछ भी कर नही पा रही थी और मेरी टाँगे जो खुली हुई थी उसे पति जी की कमर पे ज़ोर से दबा रही थी, क्यूंकी मेरा विरोध करने का एक ही रास्ता खुला था, मैं पैरो को और खोल भी नही सकती थी क्यूंकी लंड तेज़ी से अंदर बाहर हो रहा था उसे रोक ने के लिए मैं उसे और अंदर कर रही थी, ताकि पति जी उसे और अंदर बाहर ना करे और मुझे थोड़ी सी चैन की सांस ले ने को मिले.करीब आधे घंटे तक वो मुझे ऐसे ही दर्द देते रहे और उनके लंड ने पानी छोड़ दिया, जो मेरी चूत मे अंदर तक फेल गया और चूत चारो और से गीला करके उसे ठंडा कर दिया. उधर पति जी भी मेरे उपर गिर पड़े और मैं उनके पसीने से पानी पानी हो गई.
क्रमशः........
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