XXX Hindi Kahani घर का बिजनिस
09-04-2018, 10:20 PM,
#6
RE: XXX Hindi Kahani घर का बिजनिस
सारा दिन इसी तरह से गुजरा और शाम को 5:00 बजे अम्मी ने मुझसे कहा- जाकर अपनी बहन को आंटी के घर से ले आ…”

मैं उठा और दीदी को लाने चला गया और जैसे ही दीदी को लेकर घर की तरफ चला तो दीदी ने कहा- हाँ भाई सुनाओ, कैसा गुजरा सारा दिन?

मैंने कहा- दीदी, सारा दिन घर पे था, बहुत अच्छा गुजारा है…”

दीदी- भाई, एक बात पूछूं गुस्सा तो नहीं करोगे?

मैं- हाँ दीदी, पूछो क्या बात है?

दीदी- भाई, आप सारा दिन घर में थे और आप खुश हो इस सबसे?

मैं- क्या मतलब दीदी? मैं समझा नहीं आपकी बात?

दीदी- नहीं भाई, वो मेरा मतलब है कि घर में फारिग़ रहे हो ना, कोई काम नहीं (साफ पता चल रहा था कि दीदी ने बात बदल दी है)

मैं- “हाँ बाजी, मैं सारा दिन खुश रहा हूँ और अब तो मुझे नया काम भी संभालना है…”

दीदी ने मेरी बात सुनकर मेरी तरफ देखा और फिर से सर झुका लिया और घर आने तक मेरे साथ और कोई बात नहीं की और मैं भी घर आकर अपने रूम में चला गया। रूम में आकर मैं बेड पे लेट गया और आराम करने लगा।

तभी दीदी मेरे रूम में आ गई और बोली- “भाई, आपको बापू बुला रहे हैं…”

मैं उठा और दीदी के साथ बाहर निकला और बापू के रूम की तरफ चल पड़ा। जैसे ही मैं बापू के पास गया तो बापू अकेले ही बैठे हुये थे। मुझे देखते ही मुश्कुरा दिए और बोले- “आओ बेटा, बैठो यहाँ मेरे पास…”

मैं बापू के पास बैठ गया तो बापू ने मुझे एक चाभी पकड़ा दी और कहा- “ये लो बेटा, ये है मकान की चाबी जहाँ अब तुम सुबह से जाया करोगे…”

मैंने चाभी बापू के हाथ से पकड़ ली और कहा- बापू, दुकान का क्या होगा?

बापू मेरी बात सुनकर हँस पड़े और कहा- “पुरानी दुकान तो बिक गई है अब नयी को संभालो…”

मैं बापू की बात सुनकर हँस पड़ा और कहा- चलो ठीक है, कहाँ है ये दुकान?

बापू ने मुझे एक पाश एरिया के फ्लैट का, जो कि ग्राउंड फ्लोर पे ही था, पता बता दिया और कहा- “मैंने सब कुछ सेट करवा दिया है अब वहाँ कोई परेशानी नहीं होगी…”

मैं- “ठीक है बापू, मैं सुबह से वहाँ चला जाऊँगा…”

बापू- “चलो ठीक है, ऐसा करना कि खाना खाने के बाद रात को यहाँ मेरे पास आ जाना…”

मैं- क्यों बापू? कोई काम था क्या?

बापू- “हाँ बेटा, काम है इसीलिए तो बुला रहा हूँ तुम्हें…”

मैं बापू की बात सुनकर बोला- “ठीक है बापू, अब मैं चलता हूँ…” और रूम से बाहर आ गया बाहर बुआ और बाजी बैठी हुई थी।

मुझे देखते ही बुआ ने कहा- हाँ आलोक, क्या बोल रहे थे तेरे बापू?

मैंने बुआ को चाभी दिखाई और कहा- “नयी दुकान की चाबी देनी थी मुझे, बस और कुछ नहीं…”

मेरी बात सुनकर बुआ हँस पड़ी और बोली- “चलो अच्छा है, तेरी भी जान छूटी, पुरानी दुकान से…”

मैंने दीदी की तरफ देखा तो दीदी अजीब सी नजरों से मेरी तरफ देख रही थी जिसमें बे-यकीनी और दुख और हल्की सी खुशी सब कुछ था जिसको कि मैं समझ ना सका।

अब मैं वहाँ से अपने रूम की तरफ चल पड़ा और जाकर दीदी के बारे में सोचने लगा कि आखिर दीदी मेरी तरफ इस तरह क्यों देख रही थी? क्या दीदी जानती हैं कि बापू ने मुझे किस दुकान की चाबी दी है? और वहाँ कौन सा काम होना है?

खैर टाइम गुजरता गया और रात का खाना दीदी ही मेरे रूम में लेकर आई और झुक के मेरे सामने रखने लगी तो मेरी नजर दीदी की चूचियों को, जो कि ऊपर से हल्के से नजर आ रही थीं, देखने लगा क्योंकि दीदी ने ऊपर दुपट्टा नहीं लिया हुआ था।

दीदी खाना रखकर ऊपर उठी और मुझे अपनी चूचियों के अंदर घूरता हुआ देखा तो दीदी ने कहा- भाई, क्या देख रहे हो आप?

मैंने कहा- कुछ नहीं दीदी, मैं भला क्या देखूंगा?

दीदी मेरी बात सुनकर वापिस मुड़ गईं और मैं दीदी की गाण्ड की तरफ देखने लगा तो दीदी रूम के दरवाजे के पास रुकी और मुड़कर मेरी तरफ देखा और मुझे अपनी गाण्ड की तरफ देखता पाकर दीदी बाहर निकल गईं।
दीदी के जाने के बाद मैंने खाना खाया और बर्तन बगल में रख दिए और टाइम गुजरने का इंतेजार करने लगा। क्योंकि अभी मैंने बापू के रूम में भी जाना था।

रात के 10:00 बज चुके थे। अब मैं उठा और बापू के रूम की तरफ चल पड़ा, क्योंकि बापू ने मुझे बुलाया था। मैं जैसे ही बापू के रूम के बाहर पहुँचकर दरवाजे को हल्का सा दबाया तो वो खुलता चला गया और मैं रूम में दाखिल हो गया। रूम में बापू के साथ बुआ और अम्मी भी बैठी हुई थी।

मुझे आता देखकर अम्मी ने कहा- “चलो अच्छा हुआ कि तुम खुद ही आ गये वरना मैं अभी आ ही रही थी तुम्हें बुलाने के लिए…”

मैंने दरवाजे को लाक किया और जाकर बेड के करीब पड़ी चेयर पे बैठ गया और बोला- “क्यों अम्मी कोई खास बात है क्या? जो इस वक़्त आप सब यहाँ जमा हैं…”

बुआ ने कहा- “हाँ आलोक, बात तो खास ही है इसीलिए तो हम लोग जमा हुये हैं…”

मैं- “तो फिर मुझे भी बतायें कि क्या बात है? जिसने आप सबकी नींद उड़ा रखी है…”

अम्मी- “बेटा, बात ये है कि तेरी दीदी इस काम के लिए मान गई है और अब उसके लिए एक आदमी भी ढूँढ़ना था, जो कि तेरे बापू ने ढूँढ़ लिया है?

अम्मी की बात सुनकर दीदी का चेहरा मेरी आँखों के सामने घूम सा गया और मैंने कहा- तो इसमें जमा होने की क्या बात है?

बुआ- आलोक, बात ये है कि तेरी दीदी अभी तक कुँवारी है और वहाँ उसके पास भी तो किसी का होना जरूरी है ना।

मैं- बुआ, क्या जब लड़की शादी के बाद अपने पति के साथ जाती है तो वहाँ भी उसके रूम में कोई होता है क्या?

बापू मेरी बात सुनकर हँस पड़े और बोले- “यार, मैं भी इनको ये ही समझा रहा था लेकिन ये है ना जो तेरी बुआ… इसका बड़ा दिल है कि ये भी उस वक़्त अंजली के साथ ही हो…”

बुआ- “भाई, आप तो ना बस बात का बतंगड़ बना देते हो। मैं तो बस ऐसे ही बोल रही थी…”
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