RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
“मैं तुम्हारी हूँ मदन, मुझे जहाँ चाहे वाहा ले चलो, मुझे अपनी चिंता नही है. अपनी चिंता होती तो ये प्यार ही ना करती. मुझे बस तुम्हारी और तुम्हारे घर वालो की चिंता है”
“तुम किसी की चिंता मत करो, जिसने ये जीवन दिया है वही इसकी रक्षा भी करेंगे, मुझे भी अपने घर वालो की चिंता है, पर मैं अपने दिल के हाथो मजबूर हूँ, मुझे यकीन है कि सब कुछ ठीक होगा” ---- मदन ने कहा
“ठीक है मदन जैसा तुम ठीक समझो”
चाँद की चाँदनी चारो तरफ फैली हुई है और दो प्यार में डूबे दिल दुनिया की हर दीवार को तोड़ कर आगे बढ़ना चाहते हैं.
हरे हरे खेत के एक कोने में आम के वृक्षा के नीचे दो दिल अपने प्यार को मंज़िल तक ले जाने की बाते कर रहे हैं
“वर्षा एक बात बताओ”
“हाँ पूछो”
“क्या तुम्हे डर नही लगा मेरे पास तन्हाई में आते हुवे”
“मदन एक तुम ही हो जिसको में कभी भी कहीं भी मिल सकती हूँ, तुमसे इतना प्यार जो करती हूँ, वरना मुझे हर आदमी से डर लगता है”
“ऐसा क्या है मुझ में वर्षा ?”
“तुम्हे याद है आज से करीब 4 साल पहले जब में खेतो में रास्ता भटक गयी थी तब तुम मुझे घर तक छ्चोड़ कर आए थे. अंधेरा होने को था और तुम मुझे बड़े प्यार से समझा रहे थे कि ‘डरो मत मैं तुम्हारे साथ हूँ ना’. उस दिन पिता जी से खूब डाँट पड़ी थी इस बात को ले कर कि मैं क्यों अपनी सहेलियों के साथ खेतो में घूमने गयी थी. पर सब कुछ भुला कर रात भर मैं बस तुम्हे ही सोच रही थी. उस दिन तुम जाने अंजाने मेरे दिल के एक कोने में अपना घर बना गये थे”
“वो दिन मुझे भी याद है, उस दिन तुम्हे पहली बार देखा था मैने, पता नही था कि तुम कौन हो कहा से हो. तुम खेत के एक कोने में परेशान सी खड़ी थी. मैं तुम्हे देखते ही समझ गया था कि तुम रास्ता भटक गयी हो. जब मैने पूछा था कि क्या बात है ? तुमने रोनी सूरत बना कर कहा था, “मुझे घर जाना है” और मैने कहा था चलो मैं तुम्हे घर छ्चोड़ देता हूँ”
“उस वक्त मैं बहुत डर गयी थी मदन, मेरी सहेलियाँ जाने कहाँ थी और अंधेरा घिर आया था, और वो पहली बार था कि मैं घर से ऐसे बाहर थी”
“हाँ तुम तो मुझ से भी डर रही थी”
“मैं तुम्हे तब जानती नही थी, डरना लाज़मी था, अकेली लड़की के साथ कुछ भी हो सकता है, पर मुझे अछा लगा था कि तुम मुझे बड़े प्यार से समझा रहे थे”
“हां पर बड़ी मुस्किल से तुम मेरे साथ चली थी”
“तुम्हारे साथ तब मज़बूरी में चली थी लेकिन आज तुम्हारे साथ अपनी ख़ुसी से कहीं भी चलने को तैयार हूँ”
“इतना प्यार क्यों करती हो तुम मुझे वर्षा ?”
“पता नही मदन, मुझे सच में नही पता”
“याद है जब मैने तुम्हारे घर के बारे में पूछा था तो तुम बड़े गरूर से बोली थी कि मैं रुद्र प्रताप सिंग की बेटी हूँ”
“मैं तुम्हे डराना चाहती थी ताकि तुम कुछ ऐसा वैसा ना सोचो, और तुम मेरे पिता जी का नाम सुन कर डर भी तो गये थे”
“उनके नाम से यहा कौन नही डरता वर्षा, उनके एक इशारे पर किसी की भी जान जा सकती है”
“पर 4 दिन बाद ही तुम में बहुत हिम्मत आ गयी थी, मुझे लाल गुलाब का फूल दे कर गये थे वो भी बड़े अजीब तरीके से. मैं मंदिर से निकल रही थी और तुम मेरे रास्ते में गुलाब का फूल फेंक कर भाग गये थे, मैं तुम्हे देखती रही पर तुमने पीछे मूड कर भी नही देखा. आज तक संभाल कर रखा है मैने वो फूल”
“पता नही क्या हो गया था मुझे, डरते डरते तुम्हारे रास्ते में फूल फेंका था, वो तो सूकर था कि किसी ने देखा नही वेर्ना मुसीबत हो जाती”
“मैने भी डरते डरते वो फूल उठाया था, वो पल आज तक मेरी आँखो में घूमता है, तुम तो फूल फेंक कर भाग गये थे, उठाते वक्त मुझ पर जो बीती थी वो मैं ही जानती हूँ”
“और अगले दिन तुमने क्या किया था, खुद भी तो एक गुलाब वहीं उसी जगह गिरा दिया था जहाँ मैने अपना गुलाब फेंका था. अगले दिन तुम में कहा से हिम्मत आ गयी थी?”
“पता नही, तुम्हारे प्यार का ज्वाब प्यार से देना चाहती थी”
“वर्षा मैने भी तुम्हारा गुलाब आज तक संभाल कर रखा है”
दौनो हंस पड़ते हैं
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