RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
फिर एक दिन की बात है, शाम का वक्त था, मैं अपने घर की छत पर खड़ी थी.
मैं किन्ही ख़यालो में खोई थी, अचानक मुझे अपने पीछे वाहा कुछ महसूस हुवा
मैं चोंक कर मूड गयी
“क्या हुवा वर्षा बेटी” चाचा ने गंदी सी हँसी हंसते हुवे पूछा
“कुछ नही चाचा जी बस यू ही आपको देख कर चोंक गयी” --- मैने कहा
मैं और क्या कहती, पर मुझे तब पूरा यकीन हो गया था कि चाचा जान बुझ कर मेरे साथ छेड़कानी कर रहा है
होली वाले दिन तो चाचा ने हद ही कर दी
मैं होली की मस्ती में डूबी हुई थी. कुछ ना कुछ तरकीब लगा कर सभी को रंग रही थी
मैने अपने कमरे में ख़ास हरे रंग का गुलाल रखा था, वो लेने के लिए में अपने कमरे में घुसी ही थी कि पीछे पीछे चाचा भी आ गया
उसने मेरे वाहा हाथ रख कर कहा, “अब जवान हो गयी हो वर्षा बेटी, थोड़ी मौज मस्ती किया करो, ये क्या बच्चो के खेल खेलती हो…. आओ असली होली मनाते हैं”
चाचा ने पी रखी थी तभी उसकी इतनी हिम्मत हो गयी थी.
मुझे उस वक्त इतना गुस्सा आया कि मैने एक थप्पड़ उसके गाल पर जड़ दिया
मैं भूल गयी थी कि वो मेरा चाचा है
“अछा किया वर्षा, जब वो भूल गया कि तुम उसकी भतीजी हो तो तुम क्यों भला उसे चाचा समझोगी”
लेकिन फिर भी उसकी बेसरमी नही रुकी मदन, वो बाद में भी मोका देख कर मुझे छेड़ने से बाज़ नही आया.
“क्या तुमने घर में किसी को ये बात नही बताई”
“किसे बताती मदन, पिता जी जीवन चाचा पर आँख मीच कर विश्वास करते हैं और तुम्हे तो पता ही है, मेरी मा को गुज़रे 8 साल हो चुके हैं”
“फिर बाद में ये सब कैसे रुका वर्षा”
एक दिन मैं शाम के वक्त छत पर खड़ी थी, चाचा वाहा आ गया और मेरे बाजू में खड़ा हो गया
मैं जाने लगी तो वो बोला, “वर्षा बेटी तुम मुझ से दूर क्यों भागती हो, मैं तो तुम्हे तुम्हारी जवानी का मज़ा देना चाहता हूँ, आओ तुम्हे कुछ सीखा दूं वरना ये जवानी बीत जाएगी और तुम हाथ मालती रह जाओगी”
“ठीक है चाचा जी मैं तैयार हूँ”
“अरे वाह !! क्या सच !!” --- चाचा ने कहा
“हाँ चाचा जी चलिए पिता जी से ये नयी शिक्षा शुरू करने से पहले आशीर्वाद ले आती हूँ”
ये सुन कर चाचा थर थर काँपने लगा
उस दिन मैने ठान लिया था कि चाहे पिता जी कुछ भी समझे में उन्हे चाचा की करतूतो के बारे में बता दूँगी
जैसे ही मैं वाहा से चली चाचा मेरे कदमो में गिर गया और बोला, “बेटी माफ़ कर दो आगे से मैं तुम्हे परेशान नही करूँगा पर रुद्रा को कुछ मत बताओ, वो मुझे जान से मार देगा”
मुझे यकीन नही था कि वो इतने आराम से सीधे रास्ते पर आ जाएगा. उस दिन के बाद उसने मुझे कभी परेशान नही किया
“वर्षा मैने सपने में भी नही सोचा था कि तुमने इतना कुछ सहा होगा” --- मदन ने दर्द भरी आवाज़ में कहा
“मदन औरत बाहर घूमते भेड़ियों से तो फिर भी निपट ले लेकिन घर के भेड़ियों का क्या ?… जो अपने होकर भी पराए बन जाते हैं और सब रिस्ते नाते भुला कर अपनी बहन बेटियों को बस एक शरीर समझ कर उन पर टूट पड़ते हैं” -----वर्षा ने रोते हुवे भावुक हो कर कहा
“बस वर्षा चुप हो जाओ, मुझे लग रहा है कि मैं भी एक भेड़िया हूँ…. ना मैं तुम्हे वाहा छूटा ना तुम्हे ये सब याद आता, पर मेरा यकीन करो वर्षा मैं बस तुम्हे प्यार कर रहा था और कुछ नही”
“पता नही क्यों मदन मुझे अछा नही लगा, मुझे यकीन है कि अब तुम समझ सकते हो”
“मैं समझ रहा हूँ वर्षा, छ्चोड़ो ये बाते देखो कितनी प्यारी चाँदनी रात है”
“पर इस चाँदनी रात ने आज घर से निकलना मुस्किल कर दिया था मदन, बड़ी मुस्किल से डरते डरते आई हूँ मैं”
“मैं तुम्हे बहुत प्यार करता हूँ वर्षा तुम्हारी ये दर्दनाक कहानी सुन कर दुख हुवा पर तुम पर और ज़्यादा प्यार आ रहा है क्योंकि तुमने इतना कड़वा सच मुझे बताया है जो शायद ही कोई लड़की अपने प्रेमी या पति को बताएगी”
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