RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
“आअहह” --- रूपा फिर दर्द से कराह उठती है
“इतनी ज़ोर से चील्लाने की क्या ज़रूरत है, कोई सुन लेगा”
“मैं कब चील्लाइ किशोर अब दर्द में क्या कोई कराह भी नही सकता ?”
तभी उन्हे बहुत ज़ोर की चीन्ख सुनाई देती है जिसे सुन कर दोनो घबरा जाते हैं
किशोर ये कोई और चील्ला रहा है, वो मैं नही थी
“स्श्ह्ह्ह चुप रहो”
वो चील्लाहत उन्हे अपने करीब आती महसूस होती है और दोनो थर थर काँपने लगते हैं
“किशोर ये क्या है, मुझे बहुत डर लग रहा है, मैं कह रही थी ना कि यहा मुझे कुछ अजीब लग रहा है, चलो जल्दी यहा से”
तभी उन्हे किसी के भागने की आहट सुनाई देती है
“किशोर…” --- रूपा कुछ कहना चाहती है लेकिन किशोर उसके मूह पर हाथ रख देता है
“पागल हो क्या ? थोड़ी देर चुप नही रह सकती, बिल्कुल चुप रहो” --- किशोर रूपा के मूह पर हाथ रखे हुवे उसके कान में धीरे से कहता है
लेकिन तभी उन्हे फिर से बहुत ज़ोर की चीन्ख सुनाई देती है
“रूपा अपने कपड़े ठीक करो, पर आराम से, शांति से, कोई आवाज़ मत करना”
“ठीक है” --- रूपा अपनी गर्दन हिला कर इशारा करती है
किशोर भी अपने कपड़े ठीक करने लगता है
तभी उन्हे अपने बहुत करीब किसी के कदमो की आहट सुनाई देती है. उन्हे ऐसा लगता है जैसे कोई उनकी तरफ आ रहा है
“रूपा मेरी बात ध्यान से सुनो, चाहे कुछ हो जाए पीछे मूड कर मत देखना और जितना हो सके उतनी ज़ोर से भागना, ठीक है, और हाँ मेरा हाथ मत छोड़ना” --- किशोरे रूपा के कान में कहता है
और ये कह कर वो रूपा का हाथ पकड़ कर उसे वाहा से भगा ले चलता है, दोनो बिना पीछे देखे भागते चले जाते हैं
भागते भागते किशोर एक पत्थर से टकरा जाता है और लड़खड़ा कर गिर जाता है, रूपा गिरते गिरते बचती है
रूपा तुम भागो में आ रहा हूँ, मेरा अंगूठा चिल गया है, ये रास्ता सीधा खेतो से बाहर जा रहा है, तुम जल्दी यहा से निकलो
“मैं तुम्हे छ्चोड़ कर कहीं नही जाउन्गि किशोर, तुम्हारे साथ ही जाउन्गि जहा जाना है”
चीखने की आवाज़ बढ़ती ही जा रही है
किशोर मुस्किल से खड़ा होता है और रूपा का हाथ थाम कर फिर से भागने लगता है
इधर वर्षा, मदन को समझा रही है कि वो आज रात घर चला जाए, पर वो नही मान रहा
“ऐसे डर कर भागना अछा नही लगता वर्षा, क्या पता ये किसी का मज़ाक हो”
“ये बहुत भयानक आवाज़ है मदन, ये मज़ाक नही हो सकता”
“जो भी हो पर मैं यहीं रहूँगा, चलो तुम्हे घर छ्चोड़ आता हूँ”
तभी वर्षा को कुछ ऐसा दीखता है जिसे देख कर वो सहम जाती है
“मदन पीछे मूड कर देखो” --- वर्षा डरी हुई आवाज़ में कहती है
मदन पीछे मूड कर देखता है
“उसे बहुत दूर 2 साए दीखाई देते हैं”
“वर्षा तुम इस पेड़ के पीछे चुप जाओ मैं देखता हूँ कि बात क्या है”,
“नही मदन मुझे अकेला मत छ्चोड़ो मुझे बहुत डर लग रहा है”
“ठीक है फिर, चलो हम दोनो पेड़ के पीछे चलते हैं”
दौनो पेड़ के पीछे छुप जाते हैं
2 साए जब करीब आते हैं तो मदन मन ही मन कहता है
“अरे ये तो किशोर और रूपा हैं, ये इस वक्त यहा क्या कर रहे हैं ? क्या इन्होने ही यहा ये तूफान मचा रखा है”
जब वो बहुत करीब आ जाते हैं तो मदन वर्षा को वहीं पेड़ के पीछे रुकने का इशारा कर के उन दोनो के सामने आ जाता है
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