RE: Post Full Story प्यार हो तो ऐसा
“नही भैया ऐसा क्यों कहते हो, मैं आगे से ऐसा नही करूँगी” --- साधना ने मदन के गले लग कर कहा
“अजीब प्यार है तुम दोनो का, सारा दिन लड़ते झगड़ते रहते हो पर एक दूसरे के बिना तुम्हारा मन भी नही लगता”
“पिता जी मैं इसे इतना प्यार करता हूँ तभी तो ये मुझे इतना परेशान करती है”
ये सब बीते कल की घटना है.
साधना कोई गीत गुन-गुनाति हुई हँसती मुस्कुराती हुई अपनी दीदी के साथ आगे बढ़ रही है, और ये सब सोच रही है.
“अरे क्या सोच रही है साधना”
“कुछ नही दीदी बस यू ही कल की बात याद आ गयी थी”
“तूने आज कोई शरारत की ना तो मदन बहुत मारेगा तुझे” --- सरिता ने कहा
साधना ने सरिता की बात सुन कर मूह लटका लिया.
चिड़ियो की आवाज़ चारो तरफ गूँज रही है. सूरज की पहली किरण खेतो पर पड़ रही है, ऐसा लग रहा है जैसे प्रकृति ने चारो तरफ सोना बिखेर दिया हो. साधना और सरिता बाते करते हुवे खेत की तरफ बढ़ रहे हैं. उनके पीछे पीछे उनके पिता जी, गुलाब चंद भी आ रहे हैं
“ये चिड़ियो की आवाज़ सुबह सुबह कितनी प्यारी लगती है हैं ना दीदी”
“हाँ बहुत प्यारी लगती है, रोज यही बात कहती हो तुम, कुछ और नही है क्या कहने को सुबह सुबह”
“पर देखो ना ये चिड़ियो की आवाज़ ही है जिसके कारण हम रोज वक्त से उठ जाते हैं वरना हमें पता ही ना चले वक्त का” --- साधना ने कहा
“भगवान को तुझे चिड़िया ही बना-ना चाहिए था, चिड़ियों को दाना डालती है, पानी देती है, हर रोज उनकी तारीफ़ करती है, पता नही क्या है इन चिड़ियों में, हम से ज़्यादा तू इन चिड़ियों से प्यार करती है” ---- सरिता ने कहा
साधना, सरिता की बात सुन कर बहुत उदास हो जाती है
“अरे क्या हुवा ये चेहरा क्यों लटका लिया, मैने प्रेम को तो कुछ नही कहा ?”
साधना की आँखो में आँसू उतर आते हैं.
“दीदी चिड़ियों को प्यार दे के मैं खुद को प्रेम के नज़दीक महसूस कर पाती हूँ, वरना अब बचा ही क्या है”
“हाँ हाँ जानती हूँ, यहा खेत में भी तुम प्रेम के लिए ही आती हो, आखरी बार यहीं देखा था ना तुमने उसे” --- सरिता ने कहा
“सब कुछ जान कर भी ऐसी बाते करती हो दीदी, मुझे दुख दे कर तुम्हे क्या मिल जाता है”
सरिता साधना को रोक कर गले लगा लेती है और कहती है, “ अरे पगली, मैं क्या तेरी दुश्मन हूँ, जाने वाले लौट कर नही आते, कब तक प्रेम की यादों को अपने सर पर धोती रहोगी, भूल जाओ उसे अब”
“दीदी कुछ भी कहो पर मुझे मेरे प्रेम की यादों से जुदा मत करो, मैं जी नही पाउन्गि, यहा खेतो में भी मैं अक्सर इसलिए आती हूँ क्योंकि आखरी बार प्रेम को यहीं देखा था, लगता है अभी वो कहीं से आएगा और…..”
ये कह कर साधना फूट-फूट कर रोने लगती है
“बस-बस साधना चुप हो जाओ, मेरा मकसद तुम्हे दुख देना नही है पगली, मैं तो बस ये कह रही थी कि जींदगी किसी के लिए नही रुकती. कब तक प्रेम की यादों में डूबी रहोगी, कल को शादी होगी तो भी तो तुम्हे उसे भुलाना ही पड़ेगा” --- सरिता ने साधना को समझाते हुवे कहा
“मैं शादी नही करूँगी दीदी, मैं प्रेम के शिवा किसी से शादी नही कर सकती”
“कहा है प्रेम ?, कब आएगा प्रेम ?, पता नही वो जींदा है भी या नही, क्यों उसके लिए इतनी पागल बन रही हो, अब मैं ये पागल-पन और बर्दास्त नही कर सकती”
“फिर मुझे जहर दे दो दीदी, पर मैं ये पागल-पन नही छ्चोड़ सकती. और हां प्रेम इस दुनिया मैं हो या ना हो पर वो मेरे दिल में हमेशा जींदा रहेगा” --- साधना ने भावुक हो कर कहा
“तू बस मदन की बात सुनती है, हम तो तेरे कोई हैं ही नहीं, अब वो ही तुझे समझाएगा”
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